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Saturday, August 10, 2024

वीडियो रेफरल यानी थर्ड अंपायर

खेलों में पहले रेफरी या अंपायर नहीं होते थे। सबसे पहले फुटबॉल में रेफरी बने। पहले टीमों के कप्तान मिलकर तय कर लेते थे कि गोल हुआ या नहीं। अब सभी खेलों में वीडियो रेफरल का चलन बढ़ रहा है और अंपायर के फैसलों को चुनौती देने की व्यवस्था भी है। फुटबॉल में इसे 2018 में मान्यता मिली, पर क्रिकेट और हॉकी में इसने पहले जगह बना ली थी। साठ के दशक में टीवी प्रसारण में इंस्टेंट रिप्ले होते थे। इसी रिप्ले के सहारे क्रिकेट में थर्ड अंपायर की शुरुआत नवंबर 1992 में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच डरबन टेस्ट मैच में हुई। मैच के दूसरे दिन थर्ड अंपायर के फैसले से सचिन तेंदुलकर रन आउट हुए थे। फिर डीआरएस (डिसीज़न रिव्यू सिस्टम) की ईज़ाद हुई और 2008 में भारत-श्रीलंका टेस्ट मैच में इसका परीक्षण हुआ। 23-26 जुलाई के बीच खेले गए टेस्ट मैच में वीरेंद्र सहवाग इस सिस्टम के तहत आउट पहले खिलाड़ी थे। नवंबर 2009 में ड्यूनेडिन में न्यूज़ीलैंड-पाकिस्तान टेस्ट में आधिकारिक रूप से इसे लागू किया गया। जनवरी 2011 में इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गई, तब पहली बार एकदिनी मैचों में और 2017 में टी-20 में इसकी अनुमति मिली। इसमें तकनीकी सुधार होते गए और हो रहे हैं।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 10 अगस्त, 2024 को प्रकाशित

 

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