Sunday, December 31, 2023

दुनिया का सबसे पुराना शहर

दुनिया के कई शहर सबसे पुराना होने का दावा करते हैं। इनमें सीरिया का दमिश्क, लेबनॉन का बाइब्लोस, अफगानिस्तान का बल्ख और फलस्तीन के जेरिको का नाम भी है। पर मैं अपने वाराणसी का नाम लूँगा, जो सम्भवतः दुनिया के उन सबसे पुराने शहरों में एक है जो आज भी आबाद हैं। जनश्रुति है कि इसे भगवान शिव ने बसाया।  इसमें दो राय नहीं कि यह शहर तीन से चार हजार साल पुराना है। मार्क ट्वेन ने इस शहर के बारे में लिखा है,‘वाराणसी, इतिहास से पुराना, परम्पराओं से पुराना, किंवदंतियों से पुराना है और इन सबको मिलाकर भी उनसे दुगना पुराना है।

5000 वर्ष पुरानी सोने की खान

जर्मन शहर बोखुम के माइनिंग म्यूजियम के खनन पुरातत्वशास्त्रियों को हैरानी है कि इतनी नीचे जाने के लिए उन्होंने कौन सा रास्ता चुना. खदान का मुहाना खोजते समय इन पुरातत्वशास्त्रियों को एक और आश्चर्यजनक चीज मिली वह थे, पत्थरों के औजार. इन्हीं धारदार औजारों से उस समय इंसान ने खुदाई की थी. पुरातत्वशास्त्री थोमास श्टोएल्नेर बताते हैं, "उनके लिए यह मुश्किल भरा रहा होगा, इस तरह के हथौड़े से पत्थरों को तोड़ना और इतनी संकरी जगह पर खनन करना. हमें बहुत खास हथौड़े मिले जो साफ तौर पर ऐसी संकरी खदान के लिए बनाए गए."

सिर्फ पत्थर को औजार बनाकर प्राचीन काल में लोगों ने यहां 70 मीटर की सुरंग बना डाली. बहुत ही संकरी जगह पर पहले बच्चों को भेजा गया. मृतकों के अवशेष बताएंगे कि इतना जोखिम क्यों उठाया गया. नमूनों में सोने के अंश मिले हैं. नंगी आंखों से इसे देखना मुमकिन नहीं. धीरे धीरे पुरातत्वशास्त्री उस तकनीक तक पहुंच रहे हैं जो सबसे पहले सोना निकालने वालों ने अपनाई. टीम को शोध के दौरान पांच हजार साल पुराना तारकोल भी मिला है.

टीम ने दुनिया की अब तक की सबसे पुरानी सोने की खान खोज निकाली. माना जा रहा है कि यह शुरुआती कांस्य युग की निशानी है. खदान में सोने की कितनी मात्रा है, वह कहां है, इसका पता लगाने के लिए मोबाइल लेजर स्कैनर से सुरंग का खाका बनाया गया. "यह पहली ऐसी सुरंग है जिसके जरिए हम खनन की पुरानी तकनीक के बारे में जान रहे हैं. यहां हमें पहली बार एक बहुत उच्च स्तर की तकनीक का पता चला. ऐसी तकनीक जो खोज के हजार साल बाद लोकप्रिय हुई. जरा सोचिए, यहां जमीन के 25 मीटर नीचे एक सुरंगों वाली खदान है, यह विश्व स्तर की कामयाबी है. यह देखना रोमांचक है कि सोने के खनन में उन्होंने किस तरह की विशेषता का इस्तेमाल किया." दावे साबित कर रहे हैं कि आज से 5000 साल पहले कॉकेशस में इंसान ने चट्टानों को चूर कर सोना निकालना शुरू कर दिया था. यानी इंसान तभी से सोने के मोह में डूबा है. 

जर्मन रेडियो से साभार

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 30 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित

Wednesday, December 20, 2023

धन विधेयक और वित्त विधेयक में क्या अंतर होता है?

संविधान के अनुच्छेद 109 के अनुसार धन विधेयक राज्यसभा में पुरःस्थापित (इंट्रोड्यूस) नहीं किया जाएगा। लोकसभा से उसके पास होने के बाद राज्यसभा की सिफारिशों के लिए भेजा जाएगा, जहाँ से चौदह दिन की अवधि के भीतर राज्यसभा अपनी सिफारिशों के साथ उसे लोकसभा को लौटा देगी। लोकसभा उन सिफारिशों को स्वीकार कर भी सकती है और नहीं भी कर सकती है। अनुच्छेद 110 मे वर्णित एक या अधिक मामलों से जुड़ा धन विधेयक कहलाता है। ये मामले हैं -किसी कर को लगाना,हटाना, नियमन, धन उधार लेना या कोई वित्तीय जिम्मेदारी जो भारत की संचित निधि से धन की निकासी/जमा करना, संचित निधि से धन का विनियोग, ऐसे व्यय जिन्हें भारत की संचित निधि पर भारित घोषित करना हो, संचित निधि से धन निकालने की स्वीकृति लेना वगैरह। वित्त विधेयक (फाइनेंशियल बिल) वह विधेयक जो धन विधेयक (मनी बिल) के एक या अधिक प्रावधानों से पृथक हो तथा गैर मनी मामलों से भी संबंधित हो। जो राजस्व और व्यय से जुड़ा हो सकता है। वित्त विधेयक में धन प्रावधानों के साथ सामान्य विधायन से जुड़े मामले भी होते है। इस प्रकार के विधेयक को पारित करने की शक्ति दोनों सदनों मे समान होती है। यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस पर लोक सभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा।

गोलमेज वार्ता क्या होती है?

गोलमेज वार्ता माने जैसा नाम है काफी लोगों की बातचीतजो एक-दूसरे के आमने-सामने हों। यहाँ पर गोलमेज प्रतीकात्मक है। गोलमेज में ही सब आमने-सामने होते हैं। अंग्रेजी में इसे राउंड टेबल कहते हैंजिसमें गोल के अलावा यह ध्वनि भी होती है कि मेज पर बैठकर बात करना। यानी किसी प्रश्न को सड़क पर निपटाने के बजाय बैठकर हल करना। अनेक विचारों के व्यक्तियों का एक जगह आना। माना जाता है कि 12 नवम्बर 1930 को जब ब्रिटिश सरकार ने भारत में राजनीतिक सुधारों पर अनेक पक्षों से बातचीत की तो उसे राउंड टेबल कांफ्रेंस कहा गया। इस बातचीत के कई दौर हुए थे।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 16 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित

Wednesday, December 6, 2023

शक संवत क्या है?

राष्ट्रीय शाके अथवा शक संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है। इसका प्रारम्भ 78 वर्ष ईसा पूर्व माना जाता है। यह संवत भारतीय गणतंत्र का सरकारी तौर पर स्वीकृत अपना राष्ट्रीय संवत है। ईसवी सन 1957 (चैत्र 1, 1879 शक) को भारत सरकार ने इसे देश के राष्ट्रीय पंचांग के रूप में मान्यता प्रदान की थी। इसीलिए राजपत्र (गजट), आकाशवाणी और सरकारी कैलेंडरों में ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ इसका भी प्रयोग किया जाता है। विक्रमी संवत की तरह इसमें चंद्रमा की स्थिति के अनुसार काल गणना नहीं होती, बल्कि सौर गणना होती है। यानी महीना 30 दिन का होता है। इसे शालिवाहन संवत भी कहा जाता है। इसमें महीनों का नामकरण विक्रमी संवत के अनुरूप ही किया गया है, लेकिन उनके दिनों का पुनर्निर्धारण किया गया है। इसके प्रथम माह (चैत्र) में 30 दिन हैं, जो अंग्रेजी लीप ईयर में 31 दिन हो जाते हैं। वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण एवं भाद्रपद में 31-31 दिन एवं शेष 6 मास में यानी आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन में 30-30 दिन होते हैं।

बर्गर की शुरूआत कब हुई?

कहा जाता है कि सन 1904 में सेंट लुई के वर्ल्ड फेयर में पहली बार हैम्बर्गर नज़र आया। पर यह खाद्य पदार्थ उसके पहले से दुनिया में मौजूद था। अठारहवीं सदी में जर्मनी के प्रसिद्ध बंदरगाह से गुजरने वाले नाविक हैम्बर्ग स्टीक लाते थे। इसमें कई तरह के गोश्त के कीमे की परतें होतीं थी। दरअसल बर्गर का नाम ही उस हैम्बर्गर पर पड़ा है। इसके बारे में कुछ कहानियाँ और है। कहते हैं कि किसी के दिमाग में आया कि गोश्त को ब्रैड के दो पीसों के बीच रखकर खाया जाए तो आसानी होगी। और देखते ही देखते यह लोकप्रिय हो गया। सैंडविच और पैटी जैसी इस चीज़ में अलग-अलग किस्म के स्वाद भी पैदा किए जा सकते थे। अमेरिका की ह्वाइट कैसल हैम्बर्गर चेन को इसे लोकप्रिय बनाने का श्रेय जाता है। ह्वाइट कैसल के अनुसार जर्मनी के ओटो क्लॉस ने 1881 में हैम्बर्गर का आविष्कार किया। पर उनके अलावा भी चार्ली नेग्रीन, तुईस लासेन और ऑस्कर वैबर बिल्बी जैसे नाम भी हैं, जिन्हें इसका आविष्कारक माना जाता है। बहरहाल आज फास्टफूड के ज़माने में इसका आविष्कार सहज था। हमारे देश में वैजीटेबल बर्गर की तमाम प्रजातियाँ विकसित हुईं हैं। मैकडॉनल्ड का आलू टिक्की बर्गर भारतीय आविष्कार ही माना जाएगा।

ज्यादातर फल गर्मियों में ही क्यों आते हैं?

सर्दियों में भी फल आते हैं। अलबत्ता गर्मी में आने वाले लगभग सभी फल रसीले होते हैं जैसे तरबूज लीची, लुकाट, आड़ू, आलूबुखारा, शहतूत, संतरा, खरबूजा, सेब, खुबानी, आड़ू आदि। इनके मीठे रस में शरीर को लू से बचाने की अद्भुत क्षमता के कारण ही शायद प्रकृति ने गर्मी में पैदा किया। इसका सबसे बड़ा कारण है सूर्य की रोशनी और गरमाहट। वनस्पति का मूलाधार गर्मी है। आपने देखा होगा सर्दियों में पौधों का बाहरी विकास रुक जाता है। उन दिनों पौधों की जड़ें बढ़ती हैं। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 2 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित

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