ध्रुवतारे की स्थिति हमेशा उत्तरी ध्रुव पर रहती है. इसलिए उसका स्थान नहीं बदलता. बदलता भी है तो वह इतना मामूली होता है कि अंतर समझ में नहीं आता. पर सच यह है कि हजारों साल बाद इसकी स्थिति बदल जाएगी. वास्तव में यह एक तारा नहीं है, बल्कि तारामंडल है, जिसमें छह मुख्य तारे हैं. यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से 45वाँ सब से चमकदार तारा है, और पृथ्वी से लगभग 434 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है. इसका मुख्य तारा (ध्रुव ‘ए’) एफ-7 श्रेणी का महा दानव तारा है. इसकी चमक सूरज की चमक से 2200 गुना ज्यादा है. इसका द्रव्यमान हमारे सूरज के द्रव्यमान का लगभग 7.5 गुना और व्यास हमारे सूरज के व्यास का 30 गुना है. इसके साथ ही ध्रुव ‘बी’ सूरज के द्रव्यमान से लगभग डेढ़ गुना एफ3वी श्रेणी का तारा ध्रुव ‘ए’ की 2400 खगोलीय इकाइयों (एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट) की दूरी पर परिक्रमा कर रहा है. धरती से सूरज की दूरी को एक एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट माना जाता है.
धरती के अपनी धुरी पर घूमते वक्त यह उत्तरी ध्रुव की सीध में होने के कारण हमेशा उत्तर में दिखाई पड़ता है. इस वक्त जो ध्रुव तारा है उसका अंग्रेजी में नाम ‘उर्सा माइनर’ तारामंडल है. जिस जगह ध्रुव तारा है उसके आसपास के तारों की चमक कम है इसलिए यह कुछ ज्यादा चमकता प्रतीत होता है. धरती अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर परिक्रमा करती है, इसलिए ज्यादातर तारे पूर्व से पश्चिम की ओर जाते हुए नज़र आते हैं. चूंकि ध्रुव तारा सीध में केवल मामूली झुकाव के साथ उत्तरी ध्रुव के ऊपर है इसलिए उसकी स्थिति हमेशा एक जैसी लगती है.
स्थिति बदलती भी है तो वह इतनी कम होती है कि फर्क दिखाई नहीं पड़ता. पर यह स्थिति हमेशा नहीं रहेगी. हजारों साल बाद यह स्थिति बदल जाएगी, क्योंकि मंदाकिनियों के विस्तार और गतिशीलता की वजह से धरती और सौरमंडल की स्थिति बदलती रहती है. यह बदलाव सौ-दो सौ साल में भी स्पष्ट नहीं होता. आज से तीन हजार साल पहले उत्तरी ध्रुव तारा वही नहीं था जो आज है. उत्तर की तरह दक्षिणी ध्रुव पर भी तारामंडल हैं, पर वे इतने फीके हैं कि सामान्य आँख से नज़र नहीं आते.
भारतीय रेलवे की सबसे लंबी यात्रा कहाँ से कहाँ तक है?
भारतीय रेलवे की सबसे लंबी यात्रा डिब्रूगढ़-कन्याकुमारी विवेक एक्सप्रेस से तय की जाती है. डिब्रूगढ़ असम में है और कन्याकुमारी तमिलनाडु में. यह गाड़ी 4283 किलोमीटर का सफर 84 घंटा 45 मिनट में पूरा करती है. इस दौरान यह छह राज्यों के 57 स्टेशनों पर रुकती है. स्वामी विवेकानन्द की 150 वीं जयंती पर यह ट्रेन 20 नवम्बर 2011 से शुरू की गई थी.
हेलीकॉप्टर की पंखड़ी ऊपर होती है और हवाई जहाज़ की सामने, जबकि दोनों एक ही काम करते हैं। ऐसा क्यों?
दोनों हवा में उड़ने का काम करते हैं, पर दोनों के सिद्धांत अलग होते हैं. हेलीकॉप्टर के पंखे रोटर कहलाते हैं जो घूमते हैं. हवाई जहाज के पंख बाईं और दाईं ओर होते हैं और स्थिर रहते हैं। घूमते नहीं हैं। हवाई जहाज अपने पंखों के सहारे हवा में तैरता है और उसके इंजन उसे आगे ले जाते हैं. हेलीकॉप्टर के रोटर उसे ऊपर उठाने और आगे पीठे ले जाने का काम भी करते हैं. हेलीकॉप्टर आगे-पीछे और दाएं बाएं जा सकता है. एक जगह रुका भी रह सकता है. हवाई जहाज ऐसा नहीं कर सकता है. वह सीधा चलता है और उसे दाएं या बाएं जाने के लिए घूमना पड़ता है. उसके सामने लगे प्रोपेपलर ब्लेड उसे आगे बढ़ाने में मदद करते हैं. हवाई जहाज का इंजन हवा खींचकर उसे पीछे की ओर फेंकता है तो वह आगे बढ़ता. पंखों पर हवा के दबाव से वह ऊपर उठता है.
पिनकोड किस तरह तरह बनाए गए हैं?
पिनकोड यानी पोस्टल इंडेक्स नम्बर भारतीय डाकव्यवस्था के वितरण के लिए बनाया गया नम्बर है. छह संख्याओं के इस कोड में सबसे पहला नम्बर क्षेत्रीय नम्बर है. पूरे देश को आठ क्षेत्रीय और नवें फंक्शनल जोन में बाँटा गया है. इसमे दूसरा नम्बर उप क्षेत्र का नम्बर है. तीसरा नम्बर सॉर्टिंग डिस्ट्रिक्ट का नम्बर है. अंतिम तीन संख्याएं सम्बद्ध डाकघरों से जुड़ी हैं. दिल्ली को शुरूआती नम्बर मिला है 11. 12 और 13 नम्बर हरियाणा को मिले हैं, 14, 15 नम्बर पंजाब को इसी तरह 20 से 28 नम्बर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को मिले हैं. बिहार और झारखंड को 80 से 85 नम्बर मिले हैं. किसी एक शहर या जिले में नम्बर बनाने का तरीका दिल्ली में देखा जा सकता है. यहाँ के आठ जिलों के पिनकोड भौगोलिक स्थित के अनुसार बाँटे गए हैं. नई दिल्ली के कनॉट प्लेट, बंगाली मार्केट के आसापास के इलाकों के नम्बर 110001 से शुरू होते हैं, मिंटो रोड, अजमेरी गेट और दरियागंज वगैरह का नम्बर है 110002, इसके बाद लोदी रोड, सफदरगंज एयरपोर्ट और पंडारा रोड वगैरह का नम्बर है 110003. अंत में यमुना पार इलाके में मयूर विहार के फेज़ 1 में 110091 से होता हुआ गाज़ीपुर, मयूर विहार फेज़ 3 और वसुन्धरा एन्क्लेव में यह 110096 हो जाता है.
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित
धरती के अपनी धुरी पर घूमते वक्त यह उत्तरी ध्रुव की सीध में होने के कारण हमेशा उत्तर में दिखाई पड़ता है. इस वक्त जो ध्रुव तारा है उसका अंग्रेजी में नाम ‘उर्सा माइनर’ तारामंडल है. जिस जगह ध्रुव तारा है उसके आसपास के तारों की चमक कम है इसलिए यह कुछ ज्यादा चमकता प्रतीत होता है. धरती अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर परिक्रमा करती है, इसलिए ज्यादातर तारे पूर्व से पश्चिम की ओर जाते हुए नज़र आते हैं. चूंकि ध्रुव तारा सीध में केवल मामूली झुकाव के साथ उत्तरी ध्रुव के ऊपर है इसलिए उसकी स्थिति हमेशा एक जैसी लगती है.
स्थिति बदलती भी है तो वह इतनी कम होती है कि फर्क दिखाई नहीं पड़ता. पर यह स्थिति हमेशा नहीं रहेगी. हजारों साल बाद यह स्थिति बदल जाएगी, क्योंकि मंदाकिनियों के विस्तार और गतिशीलता की वजह से धरती और सौरमंडल की स्थिति बदलती रहती है. यह बदलाव सौ-दो सौ साल में भी स्पष्ट नहीं होता. आज से तीन हजार साल पहले उत्तरी ध्रुव तारा वही नहीं था जो आज है. उत्तर की तरह दक्षिणी ध्रुव पर भी तारामंडल हैं, पर वे इतने फीके हैं कि सामान्य आँख से नज़र नहीं आते.
भारतीय रेलवे की सबसे लंबी यात्रा कहाँ से कहाँ तक है?
भारतीय रेलवे की सबसे लंबी यात्रा डिब्रूगढ़-कन्याकुमारी विवेक एक्सप्रेस से तय की जाती है. डिब्रूगढ़ असम में है और कन्याकुमारी तमिलनाडु में. यह गाड़ी 4283 किलोमीटर का सफर 84 घंटा 45 मिनट में पूरा करती है. इस दौरान यह छह राज्यों के 57 स्टेशनों पर रुकती है. स्वामी विवेकानन्द की 150 वीं जयंती पर यह ट्रेन 20 नवम्बर 2011 से शुरू की गई थी.
हेलीकॉप्टर की पंखड़ी ऊपर होती है और हवाई जहाज़ की सामने, जबकि दोनों एक ही काम करते हैं। ऐसा क्यों?
दोनों हवा में उड़ने का काम करते हैं, पर दोनों के सिद्धांत अलग होते हैं. हेलीकॉप्टर के पंखे रोटर कहलाते हैं जो घूमते हैं. हवाई जहाज के पंख बाईं और दाईं ओर होते हैं और स्थिर रहते हैं। घूमते नहीं हैं। हवाई जहाज अपने पंखों के सहारे हवा में तैरता है और उसके इंजन उसे आगे ले जाते हैं. हेलीकॉप्टर के रोटर उसे ऊपर उठाने और आगे पीठे ले जाने का काम भी करते हैं. हेलीकॉप्टर आगे-पीछे और दाएं बाएं जा सकता है. एक जगह रुका भी रह सकता है. हवाई जहाज ऐसा नहीं कर सकता है. वह सीधा चलता है और उसे दाएं या बाएं जाने के लिए घूमना पड़ता है. उसके सामने लगे प्रोपेपलर ब्लेड उसे आगे बढ़ाने में मदद करते हैं. हवाई जहाज का इंजन हवा खींचकर उसे पीछे की ओर फेंकता है तो वह आगे बढ़ता. पंखों पर हवा के दबाव से वह ऊपर उठता है.
पिनकोड किस तरह तरह बनाए गए हैं?
पिनकोड यानी पोस्टल इंडेक्स नम्बर भारतीय डाकव्यवस्था के वितरण के लिए बनाया गया नम्बर है. छह संख्याओं के इस कोड में सबसे पहला नम्बर क्षेत्रीय नम्बर है. पूरे देश को आठ क्षेत्रीय और नवें फंक्शनल जोन में बाँटा गया है. इसमे दूसरा नम्बर उप क्षेत्र का नम्बर है. तीसरा नम्बर सॉर्टिंग डिस्ट्रिक्ट का नम्बर है. अंतिम तीन संख्याएं सम्बद्ध डाकघरों से जुड़ी हैं. दिल्ली को शुरूआती नम्बर मिला है 11. 12 और 13 नम्बर हरियाणा को मिले हैं, 14, 15 नम्बर पंजाब को इसी तरह 20 से 28 नम्बर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को मिले हैं. बिहार और झारखंड को 80 से 85 नम्बर मिले हैं. किसी एक शहर या जिले में नम्बर बनाने का तरीका दिल्ली में देखा जा सकता है. यहाँ के आठ जिलों के पिनकोड भौगोलिक स्थित के अनुसार बाँटे गए हैं. नई दिल्ली के कनॉट प्लेट, बंगाली मार्केट के आसापास के इलाकों के नम्बर 110001 से शुरू होते हैं, मिंटो रोड, अजमेरी गेट और दरियागंज वगैरह का नम्बर है 110002, इसके बाद लोदी रोड, सफदरगंज एयरपोर्ट और पंडारा रोड वगैरह का नम्बर है 110003. अंत में यमुना पार इलाके में मयूर विहार के फेज़ 1 में 110091 से होता हुआ गाज़ीपुर, मयूर विहार फेज़ 3 और वसुन्धरा एन्क्लेव में यह 110096 हो जाता है.
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित