Friday, January 11, 2019

ताइवान क्या स्वतंत्र देश है?




चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने ताइवान के लोगों से कहा है कि उनका हर हाल में चीन के साथ 'एकीकरण' होकर रहेगा. चीन मानता है कि ताइवान उसका टूटा हुआ हिस्सा है. शी चिनफिंग के भाषण के एक दिन पहले 2 जनवरी को ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने कहा कि हम चीन की शर्तों पर एकीकरण के लिए कभी तैयार नहीं होंगे. चीन को 2.3 करोड़ लोगों की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए. चीन सरकार एक चीन नीति को बहुत महत्व देती है. जो देश इसे स्वीकार नहीं करता उससे राजनयिक सम्बन्ध नहीं रखती. उसने धमकी दे रखी है कि यदि यह देश औपचारिक स्वतंत्रता की घोषणा करेगा, तो हम फौजी कार्रवाई करेंगे. भारत भी एक चीन नीति को स्वीकार करता है. दुनिया के केवल 17 देशों के साथ इसके रिश्ते हैं. चीन मानता है कि ताइवान को चीन में शामिल होना होगा, भले ही हमें इसके लिए बल प्रयोग क्यों न करना पड़े.



चीन और इसमें क्या अंतर है?



इसका आधिकारिक नाम है रिपब्लिक ऑफ़ चाइना. सन 1912 से यह मेनलैंड चीन का नाम है, जो 1950 तक सर्वमान्य था. आज मेनलैंड चीन का नाम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना है, जो 1949 के बाद रखा गया. पहले यह फॉरमूसा नाम से प्रसिद्ध था और 17वीं सदी से पहले चीन से अलग था. 17वीं सदी में डच और स्पेनिश उपनिवेशों की स्थापना के बाद यहाँ चीन से हान लोगों का बड़े स्तर पर आगमन हुआ. सन 1683 में चीन के अंतिम चिंग राजवंश ने इस द्वीप पर कब्जा कर लिया. उन्होंने चीन-जापान युद्ध के बाद 1895 में इसे जापान से जोड़ दिया. उधर चीन में 1912 में चीनी गणराज्य की स्थापना हो गई, पर ताइवान, जापान के अधीन रहा. सन 1945 में जापान के समर्पण के बाद यह चीनी गणराज्य के हाथों में चला गया. उन दिनों चीन में राष्ट्रवादी पार्टी कुओमिंतांग और कम्युनिस्टों के बीच युद्ध चल रहा था. सन 1949 में माओ-जे-दुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने च्यांग काई शेक के नेतृत्व वाली कुओमिंतांग पार्टी की सरकार को परास्त कर दिया. माओ के पास नौसेना नहीं थी, इसलिए वे समुद्र पार करके ताइवान पर कब्जा नहीं कर सके. ताइवान तथा कुछ द्वीप कुओमिंतांग के कब्जे में ही रहे.



ताइवान बचा कैसे रहा?



काफी समय तक दुनिया ने साम्यवादी चीन को मान्यता नहीं दी. पश्चिमी देशों ने ताइवान को ही चीन माना. संयुक्त राष्ट्र के जन्मदाता देशों में वह शामिल था. सन 1971 तक साम्यवादी चीन के स्थान पर वह संरा का सदस्य था. साठ के दशक में इस देश ने बड़ी तेजी से आर्थिक और तकनीकी विकास किया. अस्सी और नब्बे के दशक में कुओमिंतांग के अधीन एक दलीय सैनिक तानाशाही की जगह यहाँ बहुदलीय प्रणाली ने ले ली. यह देश इलाके के सबसे समृद्ध और शिक्षित देशों में गिना जाता है. सन 1971 के बाद से यह संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं है. देश की आंतरिक राजनीति में भी चीन में शामिल हों या नहीं हों, इस आधार पर राजनीतिक दल बने हैं.













Thursday, January 3, 2019

बांग्लादेश की शासन-पद्धति?



बांग्लादेश में भारत की तरह संसदीय शासन पद्धति है. देश में बहुदलीय प्रणाली है, जिसके तहत पाँच साल में संसदीय चुनाव होते हैं. इस बार 30 दिसम्बर को चुनाव हुए. 350 सदस्यों वाले सदन को जातीय संसद कहते हैं. देश का संविधान सन 1972 में तैयार हुआ था. इसमें अब तक 16 संशोधन हो चुके हैं. संसद के 350 सदस्यों में से 300 सीधे फर्स्ट पास्ट द पोस्ट की पद्धति से चुने जाते हैं. महिलाओं के लिए आरक्षित 50 सीटों का चुनाव पार्टियों को प्राप्त वोटों के अनुपात में किया जाता है. सन 1973 से अब तक संसद के 10 चुनाव हो चुके हैं. पहले चुनाव में शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में अवामी लीग को भारी विजय मिली थी और वे प्रधानमंत्री बने. पर 15 अगस्त 1975 को उनकी हत्या के बाद देश में सैनिक शासन लागू रहा. फिर देश में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली लागू कर दी गई और 1977 में सेनाध्यक्ष जनरल जिया-उर-रहमान राष्ट्रपति बने. सन 1979 में संसदीय चुनाव हुए और अर्ध-अध्यक्षात्मक/अर्ध संसदीय प्रणाली की शुरूआत हुई.
संसदीय प्रणाली की वापसी
सन 1981 में राष्ट्रपति जिया-उर-रहमान की हत्या कर दी गई. उनके स्थान पर अब्दुस सत्तार राष्ट्रपति बने. एक साल बाद उनकी सरकार का तख्ता भी पलट गया. कुछ समय के अंतराल में सेनाध्यक्ष हुसेन मोहम्मद राष्ट्रपति बने. उन्होंने अपनी जातीय पार्टी बनाई. उनके ही नेतृत्व में सन 1988 में देश की संसद ने धर्मनिरपेक्ष-व्यवस्था के स्थान पर इस्लाम को देश का धर्म घोषित किया. सन 1990 में जनांदोलनों के बाद लोकतंत्र की वापसी हुई. सन 1991 में चुनाव के बाद खालिदा जिया प्रधानमंत्री बनीं. संविधान में 12वाँ संशोधन हुआ, जिसके तहत संसदीय प्रणाली की वापसी हुई. सन 1996 में संसद के दो बार चुनाव हुए. फरवरी 1996 के चुनाव में बीएनपी के मुकाबले पूरे विपक्ष ने चुनाव का बहिष्कार किया. इसके बाद जून में फिर चुनाव हुए, जिनमें अवामी लीग को बहुमत मिला और शेख हसीना पहली बार प्रधानमंत्री बनीं, पर 2001 के चुनाव में खालिदा जिया की वापसी हुई. सन 2006 से 2008 के बीच फिर अराजकता रही. सन 2008 के बाद से शेख हसीना की सरकार वहाँ है.
क्या अब स्थिरता है?
देश में पिछले चुनाव सन 2014 में हुए थे. तब खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने चुनाव का बहिष्कार किया था, जिसके कारण 154 सीटों पर चुनाव ही नहीं हुआ. इन 154 में से 127 पर अवामी लीग के प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए. नव-निर्वाचित सदस्यों ने 9 जनवरी, 2014 को शपथ ली. अवामी लीग की शेख हसीना लगातार दूसरी बार देश की प्रधानमंत्री बनी थीं. इसबार चुनाव में बीएनपी की भागीदारी भी है. सत्तारूढ़ गठबंधन के मुकाबले विरोधी दलों का जातीय ओइक्य (या एक्य) फ्रंट भी चुनाव मैदान में है. 20 दलों के इस फ्रंट में बीएनपी भी शामिल है, पर उसकी नेता खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण जेल की सज़ा मिली है. इस फ्रंट के नेता हैं कमाल हुसेन, जो पहले शेख मुजीबुर्रहमान के सहयोगी हुआ करते थे.


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