एक हफ्ते बाद संभवतः 23 अगस्त को चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग होगी। इसके एक या दो दिन पहले रूसी मिशन लूना-25 चंद्रमा पर उतर चुका होगा। चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण 14 जुलाई को हुआ था, जबकि रूसी मिशन का प्रक्षेपण 10 अगस्त को हुआ। आपके मन में सवाल होगा कि फिर भी रूसी यान भारतीय यान से पहले क्यों पहुँचेगा? चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर तभी उतरेगा, जब वहाँ की भोर शुरू होगी। चूंकि रूसी लैंडर भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, इसलिए संभवतः रूस इस बात का श्रेय लेना चाहता है कि दक्षिणी ध्रुव पर उतने वाला पहला यान रूसी हो। दक्षिणी ध्रुव पर अभी तक किसी देश का यान नहीं उतरा है।
चंद्रमा का एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता
है। चंद्रयान-3 केवल 14 दिन काम करने के लिए बनाया गया है, जबकि रूसी यान करीब एक
साल काम करेगा। लूना-25 जिस जगह उतरेगा वहाँ भोर दो दिन पहले होगी। भोर का महत्व
इसलिए है, क्योंकि चंद्रमा की रात बेहद ठंडी होती है। वहाँ दिन का तापमान 140
डिग्री से ऊपर होता है और रात का माइनस 180 से भी नीचे।
चंद्रयान-3 में हीटिंग की व्यवस्था नहीं की गई
है। उसके लिए ईंधन का इंतजाम अलग से करना होगा, जबकि लूना-25 में हीटिंग की
व्यवस्था की गई है, ताकि वह साल भर काम करे। बहरहाल भारतीय अभियान के पास काम
ज्यादा हैं, जो वह कम से कम समय में पूरे करेगा। ठंड में वह कितने समय तक चलेगा,
इसका पता भी लग जाएगा।
धीमी गति
चंद्रयान-3 की गति धीमी क्यों है और वह लूना-25
की तुलना में कम समय तक काम क्यों करेगा? इन दोनों बातों को समझने के लिए
प्रक्षेपण के लिए इस्तेमाल किए गए रॉकेट और चंद्रयान-3 और लूना-25 की संरचना के फर्क
को समझना होगा।
चंद्रयान के प्रक्षेपण के लिए भारत के सबसे
शक्तिशाली एलवीएम-3 रॉकेट का इस्तेमाल किया गया था, जबकि रूसी यान को सोयूज़-2.1बी रॉकेट पर रखकर भेजा गया है। सरल शब्दों में कहा जाए, तो रूसी
रॉकेट ज्यादा शक्तिशाली है, उसका इंजन बेहतर है, और उसमें ज्यादा ईंधन ले जाने की
क्षमता है, जिसके कारण वह कम ईंधन में ज्यादा दूरी तय कर सकता है।
दूसरा फर्क यह है कि चंद्रयान-3 लूना-25 के
मुकाबले करीब दुगने से ज्यादा भारी है। चंद्रयान-3 का वजन है 3,900 किलोग्राम और
लूना-25 का 1,750 किलो। चंद्रयान में एक रोवर भी है, जो चंद्रमा की सतह पर चलेगा,
जबकि लूना-25 में रोवर नहीं है। रूसी रॉकेट को कम वजन ले जाना था, उसकी ताकत
ज्यादा है और उसमें ईंधन ज्यादा है। भारतीय रॉकेट ने कम ईंधन का सहायता से ज्यादा
वजनी यान को चंद्रमा पर पहुँचाया है।
अलग पद्धति
दोनों अभियानों में चंद्रमा तक पहुँचने की
योजना दो अलग तरीकों और रास्तों से अपनाई गई है। जहाँ रूसी रॉकेट धरती से उड़ान
भरकर पृथ्वी की गुरुत्व शक्ति को पार करते हुए सीधे चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश
कर गया है, वहीं चंद्रयान पहले पृथ्वी की कक्षा में रहा और धीरे-धीरे उसने अपनी
कक्षा का दायरा बढ़ाया। इस तरीके से जब वह चंद्रमा की कक्षा का करीब पहुँचा तब
गुलेल की तरह से पृथ्वी की कक्षा को छोड़कर उसने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया।
फिर धीरे-धीरे वह छोटी कक्षा में आता जा रहा है। इसमें ज्यादातर अपने ईंधन के बजाय
पहले पृथ्वी की और बाद में चंद्रमा की गुरुत्व शक्ति का सहारा लिया गया। इस तरह से
उसका रास्ता लंबा हो गया है। भारत के मंगलयान के लिए भी इसी तकनीक का सहारा लिया
गया था।
बहुत अच्छा और सार्थक लेख ! वैसे अब लूना असफल हो गया है और चन्द्रयान 3 अभी भी दौड़ रहा है 'स्लो एंड स्टीडी विन्स द रेस' की तर्ज पर।
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