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Wednesday, August 16, 2023

चंद्रयान-3 और लूना-25 की रेस

एक हफ्ते बाद संभवतः 23 अगस्त को चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग होगी। इसके एक या दो दिन पहले रूसी मिशन लूना-25 चंद्रमा पर उतर चुका होगा। चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण 14 जुलाई को हुआ था, जबकि रूसी मिशन का प्रक्षेपण 10 अगस्त को हुआ। आपके मन में सवाल होगा कि फिर भी रूसी यान भारतीय यान से पहले क्यों पहुँचेगा? चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर तभी उतरेगा, जब वहाँ की भोर शुरू होगी। चूंकि रूसी लैंडर भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, इसलिए संभवतः रूस इस बात का श्रेय लेना चाहता है कि दक्षिणी ध्रुव पर उतने वाला पहला यान रूसी हो। दक्षिणी ध्रुव पर अभी तक किसी देश का यान नहीं उतरा है।

चंद्रमा का एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है। चंद्रयान-3 केवल 14 दिन काम करने के लिए बनाया गया है, जबकि रूसी यान करीब एक साल काम करेगा। लूना-25 जिस जगह उतरेगा वहाँ भोर दो दिन पहले होगी। भोर का महत्व इसलिए है, क्योंकि चंद्रमा की रात बेहद ठंडी होती है। वहाँ दिन का तापमान 140 डिग्री से ऊपर होता है और रात का माइनस 180 से भी नीचे।

चंद्रयान-3 में हीटिंग की व्यवस्था नहीं की गई है। उसके लिए ईंधन का इंतजाम अलग से करना होगा, जबकि लूना-25 में हीटिंग की व्यवस्था की गई है, ताकि वह साल भर काम करे। बहरहाल भारतीय अभियान के पास काम ज्यादा हैं, जो वह कम से कम समय में पूरे करेगा। ठंड में वह कितने समय तक चलेगा, इसका पता भी लग जाएगा।

धीमी गति

चंद्रयान-3 की गति धीमी क्यों है और वह लूना-25 की तुलना में कम समय तक काम क्यों करेगा? इन दोनों बातों को समझने के लिए प्रक्षेपण के लिए इस्तेमाल किए गए रॉकेट और चंद्रयान-3 और लूना-25 की संरचना के फर्क को समझना होगा।

चंद्रयान के प्रक्षेपण के लिए भारत के सबसे शक्तिशाली एलवीएम-3 रॉकेट का इस्तेमाल किया गया था, जबकि रूसी यान को सोयूज़-2.1बी रॉकेट पर रखकर भेजा गया है। सरल शब्दों में कहा जाए, तो रूसी रॉकेट ज्यादा शक्तिशाली है, उसका इंजन बेहतर है, और उसमें ज्यादा ईंधन ले जाने की क्षमता है, जिसके कारण वह कम ईंधन में ज्यादा दूरी तय कर सकता है।

दूसरा फर्क यह है कि चंद्रयान-3 लूना-25 के मुकाबले करीब दुगने से ज्यादा भारी है। चंद्रयान-3 का वजन है 3,900 किलोग्राम और लूना-25 का 1,750 किलो। चंद्रयान में एक रोवर भी है, जो चंद्रमा की सतह पर चलेगा, जबकि लूना-25 में रोवर नहीं है। रूसी रॉकेट को कम वजन ले जाना था, उसकी ताकत ज्यादा है और उसमें ईंधन ज्यादा है। भारतीय रॉकेट ने कम ईंधन का सहायता से ज्यादा वजनी यान को चंद्रमा पर पहुँचाया है।

अलग पद्धति

दोनों अभियानों में चंद्रमा तक पहुँचने की योजना दो अलग तरीकों और रास्तों से अपनाई गई है। जहाँ रूसी रॉकेट धरती से उड़ान भरकर पृथ्वी की गुरुत्व शक्ति को पार करते हुए सीधे चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया है, वहीं चंद्रयान पहले पृथ्वी की कक्षा में रहा और धीरे-धीरे उसने अपनी कक्षा का दायरा बढ़ाया। इस तरीके से जब वह चंद्रमा की कक्षा का करीब पहुँचा तब गुलेल की तरह से पृथ्वी की कक्षा को छोड़कर उसने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया। फिर धीरे-धीरे वह छोटी कक्षा में आता जा रहा है। इसमें ज्यादातर अपने ईंधन के बजाय पहले पृथ्वी की और बाद में चंद्रमा की गुरुत्व शक्ति का सहारा लिया गया। इस तरह से उसका रास्ता लंबा हो गया है। भारत के मंगलयान के लिए भी इसी तकनीक का सहारा लिया गया था।

 

 

Sunday, July 5, 2015

धरती से कितने ऊपर अंतरिक्ष शुरू होता है?

हालांकि ऐसी कोई सीमा नहीं है जहाँ से अंतरिक्ष की शुरुआत मानी जाए, पर सामान्यतः समुद्र की सतह से 100 किमी की ऊँचाई के बाद हम अंतरिक्ष की शुरूआत मानने लगे हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1967 में पारित वाह्य अंतरिक्ष संधि में भी यही सीमा मानी गई है। इसे कामान रेखा कहा जाता है।

क्या किसी मंदिर में भारत माता की पूजा की जाती है?
देश में कई जगह भारता माता मंदिर बनाए गए हैं। वाराणसी में राजघाट पर स्थित अपने ढंग का अनोखा भारतमाता मंदिर है। इस मंदिर की आराध्य भारत माता हैं। यहां पर पूजा, कर्मकाण्ड या दूसरे मंदिरों जैसे घंटा घड़ियाल नहीं बजते हैं और न ही पंडितों पुरोहितों की खींचतान होती है। यह मंदिर हिन्दू, मुस्लिम, सिख एवं ईसाई जैसे जाति या साम्प्रदायिक और उन्मादी धार्मिक भावना से कोसों दूर सर्वधर्म समभाव का संदेश देता है। मंदिर का उद्घाटन 25 अक्टूबर 1931 को महात्मा गांधी ने किया था। मंदिर के 81 वर्ष पूरे हो गए हैं। मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर महात्मा गांधी ने कहा था कि इस मंदिर में किसी देवता या देवी की मूर्ति नहीं है, यहां संगमरमर पर उभरा हुआ भारत का एक मानचित्र भर है। मध्य प्रदेश के इंदौर में एक ऐसा मंदिर है, जहां भारत माता की पूजा होती है। इस मंदिर में कोई आरती नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति गीतों की गूंज सुनाई देती है। सद्गुरु धार्मिक एवं परमार्थिक ट्रस्ट ने आम जन में राष्ट्रीय भावना जागृत करने के मकसद से सुखलिया इलाके में भारत माता मंदिर का निर्माण कराया है। मंदिर में बॉर्डर वाली गहरे रंग की साड़ी पहने हाथ में तिरंगा थामे भारत माता की प्रतिमा के पीछे भारत का नक्शा बना हुआ है। इस मंदिर में कोई पुजारी नहीं। हिसार की एम.सी. कॉलोनी में भी एक भारत माता मंदिर बनाया गया है।

क्या पेंगुइन सामूहिक आत्महत्या करते हैं? क्यों?
हाँ ऐसी खबरें मिली हैं कि अंटार्कटिक में पेंग्विन बड़ी संख्या में किसी बर्फीली चोटी पर खड़े होकर बड़ी संख्या में सागर में कूदकर जान दे रही हैं। यों जानवर उस तरह आत्महत्या नहीं करते जिस तरह इंसान करते हैं। केवल वे अपनी मौत के वक्त खुद को इस स्थिति में ले आते हैं कि जान चली जाए। मसलन खरगोश खुले में आ जाते हैं ताकि कोई चील उन्हें उठा ले जाए। असम के पेंग्विन की मौतों के पीछे ग्लोबल वार्मिंग है या कोई और बात है अभी कहना मुश्किल है।

ऑडिटोरियम में ग्रीन रूम को ग्रीन रूम क्यों कहते हैं?
कहा जाता है कि सन 1599 में लंदन के ब्लैकफ्रायर्स थिएटर में मंच के ठीक पीछे उन कलाकारों के बैठने की व्यवस्था की गई, जिन्हें बाद में मंच पर जाना था। इस कमरे में हरे रंग की पुताई की गई थी। धीरे-धीरे सका नाम ग्रीन रूम हो गया। एक बात यह भी कही जाती है कि मंच की रोशनी से कलाकारों की आँखें चौंधिया जाती थीं। उन्हें कुछ आराम देने के लिए ऐसे कमरे को हरे रंग से पोतते थे।

भारत में सबसे पहले ई-मेल कब?
15 अगस्त 1995 को भारत के विदेश संचार निगम ने देश में इंटरनेट सेवा की शुरूआत की। तभी से मेल सेवा भी शुरू हुई।

Monday, December 3, 2012

केसर क्या पेड़ से मिलता है?

क्या केसर पेड़ से मिलता है?
कुलवंत कौर, गीता कॉलोनी, दिल्ली
हाँ केसर की खेती होती है। आपको यह जानकर खुशी होगी कि भारत की केसर दुनिया में सबसे अच्छी मानी जाती है। भारत में केवल जम्मू-कश्मीर में ही केसर की खेती होती है। कश्मीर के अंवतीपुरा के पंपोर और जम्मू संभाग के किश्तवाड़ इलाके में केसर की खेती की जाती है। केसर बोने के लिए खास जमीन की आवश्यकता होती है। ऐसी जमीन जहां बर्फ पड़ती हो और जमीन में नमी मौजूद रहती हो। जिस जमीन पर केसर बोयी जाती है वहां कोई और खेती नहीं की जा सकती। कारण, केसर का बीज हमेशा जमीन के अंदर ही रहता है। इस बीज को निकाल कर उसमे दवाइयाँ और खाद मिलाकर फिर से बोया जाता है। यह बुआई जुलाई-अगस्त में की जाती है। केसर के फूल अक्टूबर-नवंबर में खिलने लगते हैं। जमीन में जितनी ज्यादा नमी होगी, केसर की पैदावार भी उतनी ही ज्यादा होगी। केसर का फूल नीले रंग का होता है। नीले फूल के भीतर पराग की पांच पंखुड़ियां होती हैं। इनमें तीन केसरिया रंग की और बीच की दो पंखुड़ियां पीले रंग की। केसरिया रंग की पंखुड़िया ही असली केसर कही जाती हैं,
एयरोप्लेन की गति कितनी होती है? 
भरत लाल वर्मा, नोएडा
आपने यह नहीं बताया कि आपका शय किस प्रकार के हवाई जहाज से हैं। आम तौर पर यात्री विमान तीन-चार सौ से लेकर 700 से 900 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलते हैं। कॉंकॉर्ड जैसे सुपरसॉनिक यात्री विमान 3200 किलोमीटर की रफ्तार से भी उड़ान भर सकते थे। ये विमान 1976 से 2003 तक विमान सेवाओं में रहे। सन 2001 में न्यूयॉर्क में हुए आतंकी हमले के बाद दुनिया भर में विमान सेवाओं के कारोबार में गिरावट आ गई और 2003 में इन्हें सेवा से हटाने का फैसला किया गया। पर दुनिया की विमान कम्पनियाँ अगली पीढ़ी के तेज़ गति विमानों पर अब भी काम कर रहीं हैं। कोशिश की जा रही है कि हाइपरसोनिक विमान तैयार किए जाएं जिनकी स्पीड 5000-6000 किलोमीटर प्रति घंटा तक हो। यात्री विमानों के मुकाबले लड़ाकू विमानों की गति आज भी 2000 से 3000 किलोमीटर प्रति घंटा तक की होती है।
बिहार के पहले मुख्यमंत्री कौन थे? 
गौरी शर्मा, लकड़मंडी, दिल्ली
डॉ श्रीकृष्ण सिन्हा। वे 1946 से 1961 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे।
ज़ू को चिड़ियाघर क्यों कहते हैं? 
टीपी सिंह, वसुंधरा, गाज़ियाबाद
तरह-तरह जीव-जन्तुओं होते हुए भी ज़ू के लिए हिन्दी में चिड़ियाघर नाम लोक प्रयोग के कारण है। हमारे यहाँ  चिड़िया पालने की परम्परा रही है। Zoological garden का शुद्ध अनुवाद प्राणि उद्यान है। पर तरह-तरह के जानवरों में पक्षियों की प्रधानता के कारण इसे चिड़ियाघर बना दिया। चाहते तो जानवर घर भी कह सकते थे। 
क्या मोहम्मद रफी के बच्चे हैं? हाँ तो वे गायक क्यों नहीं बने?
बॉबी राना दिल्ली
रफी साहब के तीन बेटे और तीन बेटियाँ हैं। बेशक उन्हें भी संगीत का शौक होगा, पर उनका गायक बनना या न बनना उनकी इच्छा और हालात से जुड़ा है। इसके बारे में क्या कहा जा सकता है।
एक फोन कम्पनी का फोन ऑन करते समय दो हाथ मिलते दिखाई पड़े हैं। ये हाथ किसके हैं और इनका मतलब क्या है?
हफूज़ हसन ज़फराबाद
कहना मुश्किल है कि वे दो हाथ किसके हैं, पर यह समझ में आता है कि उन्हें दिखाने की प्रेरणा इटली के प्रसिद्ध चित्रकार माइकलएंजेलो की रचना द क्रिएशन ऑफ एडम से ली गई है। माइसलएंजेलो की रचना में एक हाथ ईश्वर का और दूसरा आदम का है। दोनों की उंगलियों के बीच हल्की सी दूरी है, जो ईश्वरीय ऊर्जा के मनुष्य में प्रवाहित होने की प्रतीक है। यह एक रूप में ईश्वर और मनुष्य का सम्पर्क है। टेलीफोन कम्पनी ने सम्पर्क के इस प्रतीक को अपनाया है।
दिल्ली में सबसे ज्यादा गहराई वाला मेट्रो स्टेशन कौन सा है? 
मनोहर लाल गांधी, ग़ाज़ियाबाद
दिल्ली में सबसे ज्यादा गहराई वाला मेट्रो स्टेशन चावड़ी बाज़ार है, जो 30 मीटर यानी तकरीबन 98 फुट की गहराई पर है। इसके आसपास जामा मस्जिद और लाल किला जैसी ऐतिहासिक इमारतें हैं, उन्हें मेट्रो चलने से किसी प्रकार का नुकसान न हो इसलिए इतनी गहराई रखी गई है।
एक फिल्म के ऑस्कर में जाने का मतलब क्या है? 
स्काई, नई दिल्ली
ऑस्कर पुरस्कार अमेरिका की अकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंस की ओर से दिए जाते हैं। इसमें एक पुरस्कार अमेरिका से बाहर बनी और गैर-अंग्रेजी फिल्म की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए भी है। विदेशी भाषा की यह श्रेणी 1956 के पहले नहीं होती थी। अलबत्ता 1947 से 1955 तक अमेरिका में रिलीज़ हुई एक विदेशी भाषा की फिल्म को मानद पुरस्कार दिया जाता था। वह पुरस्कार प्रतियोगिता का हिस्सा नहीं था। 1956 से यह प्रतियोगिता का हिस्सा हो गया यानी उसके लिए कुछ फिल्मों का नामांकन होने लगा, जनमें से एक को पुरस्कार दिया जाने लगा। भारत ने 1957 से इस पुरस्कार के लिए फिल्में भेजना शुरू किया। 1957 में भेजी गई पहली फिल्म थी मदर इंडिया जिसे चार अन्य फिल्मों के साथ प्रतियोगिता के फाइनल में रखा गया। केवल एक वोट से मदर इंडिया पिछड़ गई। 1984 से अब तक भारत हर साल फिल्म भेजता है। केवल सन 2003 में विवाद के कारण कोई फिल्म नहीं भेजी गई। अब तक केवल मदर इंडिया, लगान और सलाम बॉम्बे तीन भारतीय फिल्में पुरस्कार के फाइनल चक्र के लिए नामांकित हुईं हैं, पर पुरस्कार किसी को नहीं मिला है। भारतीय फिल्म का चयन फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया की एक ज्यूरी करती है। पिछले साल भारत के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की ज्यूरी ने सुझाव दिया कि जिस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय फिल्म का पुरस्कार दिया जाए उसे ही ऑस्कर पुरस्कार के लिए भेजना चाहिए।
धरती से कितने ऊपर अंतरिक्ष शुरू होता है? 
अनिल शर्मा, दिल्ली
हालांकि ऐसी कोई सीमा नहीं है जहाँ से अंतरिक्ष की शुरुआत मानी जाए, पर सामान्यतः समुद्र की सतह से 100 किमी की ऊँचाई के बाद हम अंतरिक्ष की शुरूआत मानने लगे हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1967 में पारित वाह्य अंतरिक्ष संधि में भी यही सीमा मानी गई है। इसे कामान रेखा कहा जाता है।
WHO का फुल फॉर्म क्या है- 
प्रदीप वाधवा, गीतेश वाधवा, झज्जर
World health organization
मैकमहोन लाइन क्या होती है?-
कपिल गोसाईं, पानीपत
मैकमहोन रेखा भारत और तिब्बत के बीच सीमा रेखा है। सन् 1914 में भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और तिब्बत के बीच शिमला समझौते के तहत यह रेखा तय की गई थी। 1914 के बाद कई साल तक इस रेखा को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ, पर 1937 में ओलफ केरो नामक एक अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी ने तत्कालीन अंग्रेज सरकार को इसे आधिकारिक तौर पर लागू करने का अनुरोध किया। 1937 में सर्वे ऑफ इंडिया के एक मानचित्र में मैकमहोन रेखा को आधिकारिक भारतीय सीमारेखा के रूप में पर दिखाया गया था। इस सीमारेखा का नाम सर हैनरी मैकमहोन के नाम पर रखा गया था, जिनकी इस समझौते में महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। वे भारत की तत्कालीन अंग्रेज सरकार के विदेश सचिव थे।





Monday, May 23, 2011

क्या चांद पर दिन-रात होते हैं?


वहाँ भी दिन और रात होते हैं। पर वहाँ का एक दिन 24 घंटे का नहीं होता। चाँद अपनी धुरी पर घूमने में जो समय लगाता है वह धरती के 27.3 दिन के बराबर होता है। हमारा चांद-माह है उसका एक दिन। ठीक इतना ही वक्त वह धरती के चारों ओर घूमने में लगाता है। इसकी वजह से हम चाँद का एक ही हिस्सा देख पाते हैं। चाँद का तकरीबन 59 फीसद हिस्सा हमारी नज़रों से गुजरता है। उसका 41 फीसद हिस्सा धरती से कभी दिखाई नहीं पड़ता। 

चाँद पर वायुमंडल नहीं है इसलिए वहाँ रोशनी फैलती नहीं। जिस हिस्से पर सूरज की किरणें सीधी पड़तीं हैं वहीं दिखाई पड़ता है। बाकी हिस्से में धुप्प अंधेरा होता है। वायुमंडल न होने की वजह से वहाँ का आसमान भी काला होता है। हवा न होने से वहाँ जिस चीज पर धूप होती है उसका टेम्परेचर 102 डिग्री तक हो सकता है और उससे दो इंच दूर अंधेरी चीज़ का टेम्परेचर माइनस 150 डिग्री हो सकता है।


एफएम गोल्ड के कार्यक्रम बारिश सवालों की में शामिल
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