Sunday, December 31, 2023

दुनिया का सबसे पुराना शहर

दुनिया के कई शहर सबसे पुराना होने का दावा करते हैं। इनमें सीरिया का दमिश्क, लेबनॉन का बाइब्लोस, अफगानिस्तान का बल्ख और फलस्तीन के जेरिको का नाम भी है। पर मैं अपने वाराणसी का नाम लूँगा, जो सम्भवतः दुनिया के उन सबसे पुराने शहरों में एक है जो आज भी आबाद हैं। जनश्रुति है कि इसे भगवान शिव ने बसाया।  इसमें दो राय नहीं कि यह शहर तीन से चार हजार साल पुराना है। मार्क ट्वेन ने इस शहर के बारे में लिखा है,‘वाराणसी, इतिहास से पुराना, परम्पराओं से पुराना, किंवदंतियों से पुराना है और इन सबको मिलाकर भी उनसे दुगना पुराना है।

5000 वर्ष पुरानी सोने की खान

जर्मन शहर बोखुम के माइनिंग म्यूजियम के खनन पुरातत्वशास्त्रियों को हैरानी है कि इतनी नीचे जाने के लिए उन्होंने कौन सा रास्ता चुना. खदान का मुहाना खोजते समय इन पुरातत्वशास्त्रियों को एक और आश्चर्यजनक चीज मिली वह थे, पत्थरों के औजार. इन्हीं धारदार औजारों से उस समय इंसान ने खुदाई की थी. पुरातत्वशास्त्री थोमास श्टोएल्नेर बताते हैं, "उनके लिए यह मुश्किल भरा रहा होगा, इस तरह के हथौड़े से पत्थरों को तोड़ना और इतनी संकरी जगह पर खनन करना. हमें बहुत खास हथौड़े मिले जो साफ तौर पर ऐसी संकरी खदान के लिए बनाए गए."

सिर्फ पत्थर को औजार बनाकर प्राचीन काल में लोगों ने यहां 70 मीटर की सुरंग बना डाली. बहुत ही संकरी जगह पर पहले बच्चों को भेजा गया. मृतकों के अवशेष बताएंगे कि इतना जोखिम क्यों उठाया गया. नमूनों में सोने के अंश मिले हैं. नंगी आंखों से इसे देखना मुमकिन नहीं. धीरे धीरे पुरातत्वशास्त्री उस तकनीक तक पहुंच रहे हैं जो सबसे पहले सोना निकालने वालों ने अपनाई. टीम को शोध के दौरान पांच हजार साल पुराना तारकोल भी मिला है.

टीम ने दुनिया की अब तक की सबसे पुरानी सोने की खान खोज निकाली. माना जा रहा है कि यह शुरुआती कांस्य युग की निशानी है. खदान में सोने की कितनी मात्रा है, वह कहां है, इसका पता लगाने के लिए मोबाइल लेजर स्कैनर से सुरंग का खाका बनाया गया. "यह पहली ऐसी सुरंग है जिसके जरिए हम खनन की पुरानी तकनीक के बारे में जान रहे हैं. यहां हमें पहली बार एक बहुत उच्च स्तर की तकनीक का पता चला. ऐसी तकनीक जो खोज के हजार साल बाद लोकप्रिय हुई. जरा सोचिए, यहां जमीन के 25 मीटर नीचे एक सुरंगों वाली खदान है, यह विश्व स्तर की कामयाबी है. यह देखना रोमांचक है कि सोने के खनन में उन्होंने किस तरह की विशेषता का इस्तेमाल किया." दावे साबित कर रहे हैं कि आज से 5000 साल पहले कॉकेशस में इंसान ने चट्टानों को चूर कर सोना निकालना शुरू कर दिया था. यानी इंसान तभी से सोने के मोह में डूबा है. 

जर्मन रेडियो से साभार

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 30 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित

Wednesday, December 20, 2023

धन विधेयक और वित्त विधेयक में क्या अंतर होता है?

संविधान के अनुच्छेद 109 के अनुसार धन विधेयक राज्यसभा में पुरःस्थापित (इंट्रोड्यूस) नहीं किया जाएगा। लोकसभा से उसके पास होने के बाद राज्यसभा की सिफारिशों के लिए भेजा जाएगा, जहाँ से चौदह दिन की अवधि के भीतर राज्यसभा अपनी सिफारिशों के साथ उसे लोकसभा को लौटा देगी। लोकसभा उन सिफारिशों को स्वीकार कर भी सकती है और नहीं भी कर सकती है। अनुच्छेद 110 मे वर्णित एक या अधिक मामलों से जुड़ा धन विधेयक कहलाता है। ये मामले हैं -किसी कर को लगाना,हटाना, नियमन, धन उधार लेना या कोई वित्तीय जिम्मेदारी जो भारत की संचित निधि से धन की निकासी/जमा करना, संचित निधि से धन का विनियोग, ऐसे व्यय जिन्हें भारत की संचित निधि पर भारित घोषित करना हो, संचित निधि से धन निकालने की स्वीकृति लेना वगैरह। वित्त विधेयक (फाइनेंशियल बिल) वह विधेयक जो धन विधेयक (मनी बिल) के एक या अधिक प्रावधानों से पृथक हो तथा गैर मनी मामलों से भी संबंधित हो। जो राजस्व और व्यय से जुड़ा हो सकता है। वित्त विधेयक में धन प्रावधानों के साथ सामान्य विधायन से जुड़े मामले भी होते है। इस प्रकार के विधेयक को पारित करने की शक्ति दोनों सदनों मे समान होती है। यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस पर लोक सभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा।

गोलमेज वार्ता क्या होती है?

गोलमेज वार्ता माने जैसा नाम है काफी लोगों की बातचीतजो एक-दूसरे के आमने-सामने हों। यहाँ पर गोलमेज प्रतीकात्मक है। गोलमेज में ही सब आमने-सामने होते हैं। अंग्रेजी में इसे राउंड टेबल कहते हैंजिसमें गोल के अलावा यह ध्वनि भी होती है कि मेज पर बैठकर बात करना। यानी किसी प्रश्न को सड़क पर निपटाने के बजाय बैठकर हल करना। अनेक विचारों के व्यक्तियों का एक जगह आना। माना जाता है कि 12 नवम्बर 1930 को जब ब्रिटिश सरकार ने भारत में राजनीतिक सुधारों पर अनेक पक्षों से बातचीत की तो उसे राउंड टेबल कांफ्रेंस कहा गया। इस बातचीत के कई दौर हुए थे।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 16 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित

Wednesday, December 6, 2023

शक संवत क्या है?

राष्ट्रीय शाके अथवा शक संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है। इसका प्रारम्भ 78 वर्ष ईसा पूर्व माना जाता है। यह संवत भारतीय गणतंत्र का सरकारी तौर पर स्वीकृत अपना राष्ट्रीय संवत है। ईसवी सन 1957 (चैत्र 1, 1879 शक) को भारत सरकार ने इसे देश के राष्ट्रीय पंचांग के रूप में मान्यता प्रदान की थी। इसीलिए राजपत्र (गजट), आकाशवाणी और सरकारी कैलेंडरों में ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ इसका भी प्रयोग किया जाता है। विक्रमी संवत की तरह इसमें चंद्रमा की स्थिति के अनुसार काल गणना नहीं होती, बल्कि सौर गणना होती है। यानी महीना 30 दिन का होता है। इसे शालिवाहन संवत भी कहा जाता है। इसमें महीनों का नामकरण विक्रमी संवत के अनुरूप ही किया गया है, लेकिन उनके दिनों का पुनर्निर्धारण किया गया है। इसके प्रथम माह (चैत्र) में 30 दिन हैं, जो अंग्रेजी लीप ईयर में 31 दिन हो जाते हैं। वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण एवं भाद्रपद में 31-31 दिन एवं शेष 6 मास में यानी आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन में 30-30 दिन होते हैं।

बर्गर की शुरूआत कब हुई?

कहा जाता है कि सन 1904 में सेंट लुई के वर्ल्ड फेयर में पहली बार हैम्बर्गर नज़र आया। पर यह खाद्य पदार्थ उसके पहले से दुनिया में मौजूद था। अठारहवीं सदी में जर्मनी के प्रसिद्ध बंदरगाह से गुजरने वाले नाविक हैम्बर्ग स्टीक लाते थे। इसमें कई तरह के गोश्त के कीमे की परतें होतीं थी। दरअसल बर्गर का नाम ही उस हैम्बर्गर पर पड़ा है। इसके बारे में कुछ कहानियाँ और है। कहते हैं कि किसी के दिमाग में आया कि गोश्त को ब्रैड के दो पीसों के बीच रखकर खाया जाए तो आसानी होगी। और देखते ही देखते यह लोकप्रिय हो गया। सैंडविच और पैटी जैसी इस चीज़ में अलग-अलग किस्म के स्वाद भी पैदा किए जा सकते थे। अमेरिका की ह्वाइट कैसल हैम्बर्गर चेन को इसे लोकप्रिय बनाने का श्रेय जाता है। ह्वाइट कैसल के अनुसार जर्मनी के ओटो क्लॉस ने 1881 में हैम्बर्गर का आविष्कार किया। पर उनके अलावा भी चार्ली नेग्रीन, तुईस लासेन और ऑस्कर वैबर बिल्बी जैसे नाम भी हैं, जिन्हें इसका आविष्कारक माना जाता है। बहरहाल आज फास्टफूड के ज़माने में इसका आविष्कार सहज था। हमारे देश में वैजीटेबल बर्गर की तमाम प्रजातियाँ विकसित हुईं हैं। मैकडॉनल्ड का आलू टिक्की बर्गर भारतीय आविष्कार ही माना जाएगा।

ज्यादातर फल गर्मियों में ही क्यों आते हैं?

सर्दियों में भी फल आते हैं। अलबत्ता गर्मी में आने वाले लगभग सभी फल रसीले होते हैं जैसे तरबूज लीची, लुकाट, आड़ू, आलूबुखारा, शहतूत, संतरा, खरबूजा, सेब, खुबानी, आड़ू आदि। इनके मीठे रस में शरीर को लू से बचाने की अद्भुत क्षमता के कारण ही शायद प्रकृति ने गर्मी में पैदा किया। इसका सबसे बड़ा कारण है सूर्य की रोशनी और गरमाहट। वनस्पति का मूलाधार गर्मी है। आपने देखा होगा सर्दियों में पौधों का बाहरी विकास रुक जाता है। उन दिनों पौधों की जड़ें बढ़ती हैं। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 2 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित

Monday, October 30, 2023

रोड सिग्नल में लाल ऊपर, रेलवे में नीचे क्यों?

लाल रंग को खतरे के निशान के रूप में सबसे पहले समुद्री जहाजों ने अपनाया। प्रकाश की किरणों में लाल रंग की वेवलेंग्थ ज्यादा होने की वजह से भी यह फैसला किया गया। उन्नीसवीं सदी के शुरू में ब्रिटेन ने रेलवे में सिग्नलिंग की व्यवस्था की। रेलगाड़ियों का एक ही ट्रैक होता था, इसलिए ज़रूरी था कि उनके लिए सिग्नलिंग की व्यवस्था की जाए। लाल रंग को तब तक खतरे के निशान के रूप में स्वीकार किया जा चुका था।

चूंकि हरा रंग लाइन क्लियर के लिए सोचा गया था, इसलिए रेलवे सिग्नल में उसे ऊपर रखा गया। वैसे भी रेलवे के शुरू के सिग्नल कई तरह के सोचे गए थे। इनमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय डाउन और अप सिग्नल हुए। उनके साथ रंगीन शीशे की प्लेट होती थीं, जिनके पीछे रात में लालटेन लगाई जाती थी। उसमें एक ही रंग दिखाई पड़ता था। रेलवे में लाइन क्लियर ज्यादा महत्वपूर्ण होता है और सड़क पर नियंत्रण और सावधानी।

सड़कों पर ट्रैफिक के संचालन के लिए 9 दिसम्बर 1868 को लंदन में ब्रिटिश संसद भवन के सामने रेलवे इंजीनियर जेपी नाइट ने ट्रैफिक लाइट लगाई। यह सिग्नल भी रेलवे जैसा ही था। पर वह व्यवस्था चली नहीं। सड़कों पर व्यवस्थित रूप से ट्रैफिक सिग्नल सन 1912 में अमेरिका सॉल्ट लेक सिटी यूटा में शुरू किए गए। सड़कों के ट्रैफिक सिग्नल तय करते वक्त सोचा गया कि ये संकेतक ज्यादा ऊँचाई पर नहीं होंगे, इसलिए लाल रंग को ऊपर रखना ही बेहतर होगा। वैज्ञानिक अध्ययनों से यह भी पता लगा कि जो रंग सबसे ज्यादा ध्यान खींचता है, वह लाल नहीं बल्कि लालिमा युक्त पीला रंग या केसरिया रंग है। इस रंग को भी ट्रैफिक सिग्नल में जगह दी गई है।

ओलिंपिक में क्रिकेट?

1896 में एथेंस में हुए पहले ओलिंपिक खेलों में क्रिकेट को भी शामिल किया गया था, पर पर्याप्त संख्या में टीमें न आ पाने के कारण, क्रिकेट प्रतियोगिता रद्द हो गई। सन 1900 में पेरिस में हुए दूसरे ओलिम्पिक में चार टीमें उतरीं, पर बेल्जियम और नीदरलैंड्स ने अपना नाम वापस ले लिया, जिसके बाद सिर्फ फ्रांस और इंग्लैंड की टीमें बचीं। उनके बीच मुकाबला हुआ, जिसमें इंग्लैंड की टीम चैम्पियन हुई। पिछले दिनों कॉमनवैल्थ गेम्स में और हाल में एशियाई खेलों में टी-20 क्रिकेट प्रतियोगिता भी हुई थी। फिलहाल 2024 के पेरिस ओलिंपिक खेलों में क्रिकेट शामिल नहीं है, पर 2028 के लॉस एंजेलस ओलिंपिक में क्रिकेट को शामिल करने का फैसला हो गया है। अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक कमेटी (आईओसी) के अध्यक्ष थॉमस बाख के नेतृत्व में गत 16  अक्तूबर को मुंबई में हुई बैठक में यह फैसला किया गया। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 28 अक्तूबर, 2023 को प्रकाशित

Monday, October 16, 2023

‘हर्ड इम्यूनिटी’ क्या होती है?

अंग्रेजी के हर्ड शब्द का अर्थ होता है झुंड या समूह। हर्ड इम्यूनिटी का अर्थ है सामूहिक प्रतिरक्षण। कोविड-19 के दिनों में यह शब्द ज्यादा सुनाई पड़ा। ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार सर पैट्रिक वैलेंस ने कहा था कि हम देश की 60 फीसदी जनसंख्या को कोरोना वायरस का संक्रमण होने दें, ताकि एक सीमा तक हर्ड इम्यूनिटीविकसित हो जाए। जब किसी वायरस या बैक्टीरिया का संक्रमण होता है, तब शरीर के अंदर उससे लड़ने या प्रतिरक्षण की क्षमता भी जन्म लेती है। सिद्धांत यह है कि यदि बड़ी संख्या में लोगों के शरीर में प्रतिरक्षण क्षमता पैदा हो जाए, तो बीमारी का प्रसार सम्भव नहीं है, क्योंकि तब समाज में उसके प्रसार की संख्या कम हो जाती है। अनेक बीमारियों से लड़ने की क्षमता समाज में इसी तरह पैदा होती है। इसके पीछे का वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि यदि समाज में बड़ी संख्या में ऐसे लोग होंगे, जिनके शरीर में प्रतिरक्षण क्षमता है, तो वे ऐसे व्यक्तियों तक रोग को जाने ही नहीं देंगे, जो प्रतिरक्षित नहीं हैं।

फिंगर-प्रिंट की खासियत?

दो व्यक्तियों के हाथों और पैरों की अंगुलियों के निशान या उभार समान नहीं होते। विज्ञान के अनुसार भले ही ये निशान फौरी तौर पर लगभग एक जैसे दिखाई पड़ें, पर उनमें समानता नहीं होती। इस अंतर का पता सूक्ष्म विश्लेषण से ही हो सकता है। इन्हें एपिडर्मल रिज कहते हैं। हमारी त्वचा जब दूसरी वस्तुओं के साथ सम्पर्क में आती है तब ये उभार उसे महसूस करने में मददगार होते हैं। साथ ही ग्रिप बनाने में मददगार भी होते हैं। किसी भी वस्तु के साथ सम्पर्क होने पर ये निशान उसपर छूट जाते हैं। इसकी वजह है पसीना, जो हमारी त्वचा को नर्म बनाकर रखता है। तमाम दस्तावेजों में जहाँ व्यक्ति दस्तखत नहीं कर पाता उसकी उंगलियों के निशान लिए जाते हैं। आधार पहचान-पत्र में इसीलिए उंगलियों के निशान लिए जाते हैं। फोरेंसिक विज्ञान के विस्तृत होते दायरे में अब दूध का दूध और पानी का पानी अलग करना आसान हो गया है। इसके तहत संदेह की लेशमात्र भी गुंजाइश नहीं रहती।

क्यूज़ीन का मतलब?

क्यूज़ीन फ्रांसीसी शब्द है, जिसका अर्थ है खाना बनाने की कला। इसके लिए लैटिन शब्द है कोकरे। क्यूज़ीन शब्द का इस्तेमाल किसी स्थान विशेष या किसी और तरह से विशेष भोजन के लिए किया जाता है। जैसे जापानी व्यंजन, बंगाली, दक्षिण भारतीय, गुजराती वगैरह। स्थानीय सामग्री का इस्तेमाल भी इसमें महत्वपूर्ण है।

राजस्थान पत्रिका के 14 अक्तूबर 2023 के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

Wednesday, September 27, 2023

एशियाड में खेले जा रहे हैं भविष्य के खेल ई-स्पोर्ट्स


इंडोनेशिया में 2018 में हुए एशिया खेलों में पहली बार ई-स्पोर्ट्स को डिमांस्ट्रेशन स्पोर्ट्स के रूप में शामिल किया गया था। कहा गया कि 2022 में हैंगज़ाऊ, चीन में होने वाले 19वें एशिया खेलों में ई-स्पोर्ट्स प्रतियोगिता के रूप में शामिल होंगे। चीन के कोरोना-प्रतिबंधों के कारण 2022 के एशियाड नहीं हो पाए। इस साल हो रहे खेलों में ई-स्पोर्ट्स भी हो रहे हैं। इनका मतलब है इलेक्ट्रॉनिक स्पोर्ट्स। यानी वीडियो गेमिंग, प्रोफेशनल वीडियो गेमिंग।

मंगलवार को एशियाई खेलों में थाईलैंड ने पहला ई-स्पोर्ट्स पदक हासिल किया। इस मोबाइल फोन गेम में वियतनाम के खिलाफ प्लेऑफ में उसने कांस्य पदक जीता। इस खेल को ओलिंपिक में स्थान दिलाने के लिए वीडियो गेम उद्योग का दबाव बढ़ता जा रहा है। हैंगज़ाऊ में पबजी से डेटा-2 और मल्टी-प्लेयर बैटल एरेना गेम सहित विभिन्न खिताबों के लिए टीमें और व्यक्ति कुल सात स्वर्ण पदकों के लिए मुकाबलों में हैं।

ये नए किस्म के खेल हैं, जिनमें व्यक्ति की प्रत्युत्पन्नमति मति और शूटिंग जैसी प्रतिभाओं की परीक्षा होती है। दुनिया में अब इन खेलों की प्रतियोगिताएं होने लगी हैं। सबसे ज्यादा प्रचलित खेल है रियल टाइम स्ट्रैटजी (आरटीएस), फर्स्ट पर्सन शूटर (एफपीएस) और फाइटिंग एंड मल्टीप्लेयर ऑनलाइन बैटल एरेना (एमओबीए)। इनकी लीग ऑफ लीजेंड्स वर्ल्ड चैम्पियनशिप, इवॉल्यूशन चैम्पियनशिप सीरीज और इंटेल एक्स्ट्रीम मास्टर्स जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं होती हैं।

द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार ये भविष्य के खेल हैं। हैंगज़ाऊ में आए यूएई के हरीब सामी का कहना है कि भविष्य में लोग दूसरे खेल नहीं, सिर्फ इन्हें खेलेंगे। इन खेलों में टेक्नोलॉजी की सबसे बड़ी भूमिका होगी। हैंगज़ाऊ में बनाया गया ई-स्पोर्ट्स सेंटर स्पेसशिप जैसा लगता है। दक्षिण अफ्रीका के ली सैंग ह्योक इस खेल के स्टार खिलाड़ी हैं। वे फ़ेकर के नाम से मशहूर हैं।

प्रसिद्ध ईए स्पोर्ट्स एफसी ऑनलाइन खिताब में 20 देशों के कुल 36 एथलीट भाग ले रहे हैं। सभी मैच डबल एलिमिनेशन और बेस्ट-ऑफ-थ्री (बीओ3) प्रारूप में खेले जा रहे हैं। ईए स्पोर्ट्स एफसी ऑनलाइन के फिक्स्चर के शुरू होने के बाद, भारत के दो सबसे प्रतिष्ठित स्ट्रीट फाइटर वी: चैंपियन संस्करण एथलीट, मयंक प्रजापति (एमआईकेवाईआरओजी) और अयान बिस्वास (एवाईएएन01) ने 26 सितंबर को अपने संबंधित खिताब में पदक के लिए प्रयास शुरू किए, पर वे हार गए। दक्षिण और पूर्वी एशिया के लिए सीडिंग ईवेंट में, मयंक ने पांचवीं वरीयता प्राप्त की और अयान ने छठी वरीयता प्राप्त की थी, इसलिए उन्होंने  राउंड ऑफ़ 32 चरण से अपना अभियान शुरू किया था। हांगकांग के ये मान हो के मुकाबले पराजित होने के पहले अयान बिस्वास शीर्ष 16 चरण में पहुंच गए थे। मयंक प्रजापति पहले दिन राउंड 16 मुकाबले में कतर के अल-मनई अब्दुल्ला से हारे।

अपने पहले मैच में अयान ने वियतनाम के ग्वेन खान हंग चाऊ के खिलाफ 2-0 से सनसनीखेज जीत हासिल कर अपने अभियान की विजयी शुरुआत की थी। उन्हें विनर्स ब्रैकेट राउंड 1 में सऊदी अरब के अलरायफ़ल अब्दुलरहमान सलेम ए के खिलाफ कड़े मुकाबले में 1-2 से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने लूज़र्स ब्रैकेट राउंड 2 में वियतनाम के गुवेन को 2-0 से फिर से हरा दिया। बाद में वे लूज़र्स ब्रैकेट राउंड 3 में हांगकांग के ये मान हो के खिलाफ पिछड़ गए और टूर्नामेंट से बाहर हो गए।

मयंक ने अपने टूर्नामेंट की शुरुआत सऊदी अरब के राजिखान तलाल फुआद टी के खिलाफ की और कड़े मुकाबले में 1-2 से हार का सामना किया। इसके बाद उन्हें कतर के अल-मन्नाई अब्दुल्ला के खिलाफ 0-2 से हार का सामना करना पड़ा और वे टूर्नामेंट से बाहर हो गए।

इस बीच, भारत की सितारों से सजी लीग ऑफ लीजेंड्स टीम, जिसे सीधे क्वार्टर फाइनल में जगह मिली है, बुधवार को अपना अभियान शुरू करेगी। हाल ही में आयोजित मध्य और दक्षिण एशिया सीडिंग इवेंट में दबदबा बनाने और शीर्ष वरीयता प्राप्त करने के परिणामस्वरूप, टीम ने टूर्नामेंट के शीर्ष-8 में सीधे प्रवेश प्राप्त कर लिया है और अपने पहले मैच में वियतनाम से भिड़ेगी।

इंडियन लीग ऑफ लीजेंड्स टीम में अक्षज शेनॉय (कप्तान), समर्थ अरविंद त्रिवेदी, मिहिर रंजन, आदित्य सेल्वराज, आकाश शांडिल्य और सानिन्ध्य मलिक शामिल हैं।

Sunday, September 24, 2023

सिक्स्थ सेंस क्या है?

सिक्स्थ सेंस के कई अर्थ होते हैं। एक अर्थ है व्यक्ति की मानसिक शक्ति। किसी चीज़ की अनुभूति शारीरिक अंगों से न होकर मानसिक अनुभूति। पूर्वाभास, टेलीपैथी जैसे कई नाम इसे दिए जाते हैं। इसे अतीन्द्रिय अनुभूति भी कहते हैं। इसे यह नाम जर्मन मनोविज्ञानी रुडॉल्फ टिशनर ने दिया और ड्यूक विश्वविद्यालय के मनोविज्ञानी जेबी राइनर ने चलाया। बहुत लोगों की मान्यता है कि इस दृश्य जगत से परे भी एक लोक है। इस अनुभूति का सम्बन्ध उस लोक से जोड़ते हैं। इसे परा-मनोविज्ञान का नाम देकर इसका अध्ययन भी करते हैं। कुछ लोग ऐसी शक्तियाँ पास होने का दावा करते हैं। कुछ लोग भविष्य में होने वाली बातों को देख सकने की क्षमता का दावा करते हैं। कई बार सामान्य लोगों को भी अच्छी या बातों का पूर्वाभास हो जाता है। कुछ लोग जमीन पर कान लगाकर बता देते हैं कि नीचे पानी है या नहीं। है तो कितनी गहराई पर है।

मनुष्यों के अलावा अन्य प्राणियों में ऐसी अनुभूति होती है या नहीं ऐसा तभी कहा जा सकता है जब कोई प्राणी ऐसा दावा करे। अलबत्ता पशु-पक्षियों, मछलियों, कीड़ों, चींटियों और कई बार वनस्पतियों के व्यवहार से लोग अनुमान लगाते हैं कि कुछ होने वाला है। बाढ़, आँधी-पानी, भूकम्प और सुनामी की पूर्व जानकारी पक्षियों के व्यवहार से लगती है। कुछ पक्षियों में दिशा ज्ञान जबर्दस्त होता है। वे मौसम बदलने पर एक जगह से दूसरी जगह की हजारों मील की यात्रा करते हैं।

अमेरिका के एक अस्पताल में विचरण करने वाले बिल्ले के बारे में दावा किया गया कि उसे मरीज के मरने का आभास हो जाता है। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसन ने जुलाई 2007 के अंक में रोड आयलैंड के स्टीयर हाउस नर्सिंग एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर में विचरण करने वाले ऑस्कर नाम के इस बिल्ले के बारे में जानकारी दी गई कि यह बिल्ला जिस मरीज के बिस्तरे के नीचे जमा रहता है उसकी मौत हो जाती है। कम से कम 50 मरीजों के साथ ऐसा हुआ। इसी तरह भूकम्प के पहले चींटियों का निकलना, चूहों का भागना जैसी बातें हैं। इन बातों का तार्किक विवेचन यहाँ सम्भव नहीं है। 

@ का मतलब क्या?

अंग्रेज़ी के ऍट या स्थान यानी लोकेशन का यह प्रतीक चिह्न है। शुरू में इसका इस्तेमाल गणित में ‘ऍट द रेट ऑफ’ यानी दर के लिए होता था। ई-मेल में इसके इस्तेमाल ने इसके अर्थ का विस्तार कर दिया। ई-मेल में पते के दो हिस्से होते हैं। एक होता है लोकल पार्ट जो के पहले होता है। इसमें अमेरिकन स्टैंडर्ड कोड फॉर इनफॉरमेशन इंटरचेंज (एएससीआईआई) के तहत परिभाषित अक्षरसंख्या या चिह्न शामिल हैं। चिह्न के बाद डोमेन का नाम लिखा जाता है। यानी इस चिह्न के पहले व्यक्ति या संस्था का नाम बताने वाले संकेत और उसके बाद डोमेन नाम। कुछ लोगों को लगता है कि इस पते को केवल लोअर केस में लिखा जा सकता है। इसे अपर और लोअर दोनों केस में लिख सकते हैं।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 23 सितंबर, 2023 को प्रकाशित

Monday, September 11, 2023

दवा की एक्सपायरी डेट कैसे तय होती है?

किसी भी दवा की समय सीमा एक वैज्ञानिक पद्धति से तय की जाती है। दवाइयों को सामान्य से कठिन परिस्थितियों में रखा जाता है जैसे 75 आरएच से अधिक आर्द्रता या 40 डिग्री से अधिक तापमान। फिर हर महीने या हर हफ़्ते उनकी प्रभावशीलता की जांच की जाती है। इसी आधार पर यह तय किया जाता है कि अमुक दवा की समय सीमा डेढ़ साल हो, दो साल या तीन साल। जब दवा बाज़ार में आ जाती है तो फिर उसका अध्ययन किया जाता है और उसकी प्रभावशीलता के अनुसार ही उसकी समय सीमा बढ़ाई जाती है।  

गणतंत्र-परेड में पाक मेहमान?

भारत दो बार पाकिस्तान के नेताओं को गणतंत्र दिवस में मेहमान के तौर पर आमंत्रित कर चुका है मगर 1965 के बाद से भारत ने कभी भी पाकिस्तान के किसी नेता को न तो गणतंत्र दिवस परेड में आमंत्रित किया ना ही भारत से कोई पाकिस्तान के इस तरह के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने ही गया। 1955 में पाकिस्‍तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद और 1965 में वहाँ के मंत्री राना अब्दुल हमीद मुख्य अतिथि थे।

पहला ईमेल किसने भेजा?

ईमेल इलेक्ट्रॉनिक मेल का संक्षिप्त रुप है। दुनिया का पहला ई-मेल 1971 में अमेरिका के कैम्ब्रिज नामक स्थान पर रे टॉमलिंसन नामक इंजीनियर ने उसी कमरे में रखे दो कम्पयूटरों के बीच भेजा। वे कम्प्यूटर नेटवर्क अर्पानेट से जुड़े थे। अर्पानेट एक माने में इंटरनेट का पूर्वज है। ईमेल को औपचारिक रूप लेने में कई साल लगे। अलबत्ता भारतीय मूल के अमेरिकी वीए शिवा अय्यदुरई ने 1978 में एक कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार किया, जिसे 'ईमेल' कहा गया। इसमें इनबॉक्स, आउटबॉक्स, फोल्डर्स, मेमो, अटैचमेंट्स ऑप्शन थे। सन 1982 में अमेरिका के कॉपीराइट कार्यालय ने उन्हें इस आशय का प्रमाणपत्र भी दिया। इस कॉपीराइट के बावजूद उन्हें ईमेल का आविष्कारक नहीं माना जाता।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 9 सितंबर, 2023 को प्रकाशित

Saturday, August 26, 2023

आपने शाकाहारी मीट खाया है?

तकनीकी दृष्टि से इसे मीट या गोश्त नहीं कहना चाहिए, पर वनस्पति-आधारित प्रोटीन से भरपूर ऐसे खाद्य-पदार्थ बाजार में आ रहे हैं, जो रूप और स्वाद में गोश्त जैसे लगते हैं। इन्हें मॉक-मीट या वैज-मीट, ‘शाकाहारी मांस’ या वीगन फूड्स कहा जा रहा है। ऐसे सींक कबाब, नगेट्स, बर्गर और सॉसेज बाजार में उपलब्ध हैं, जो एकदम मीट के बने लगते हैं और स्वाद में भी वैसे ही होते हैं।

इन्हें मटर और सोया जैसी वनस्पतियों से प्रोटीन निकालकर रिफाइंड नारियल के तेल, पाम ऑयल या ऐसे की किसी वनस्पति तेल की सहायता से बनाया जाता है। इनमें चुकंदर के सत या ऐसे ही किसी वानस्पतिक-पदार्थ की सहायता से रंग और टैक्सचर भी गोश्त जैसा दिया जाता है। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने वीगन फूड्स की विदेश में बढ़ती मांग पूरी करने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की शुरुआत की है। भारत में तैयार वीगन फूड्स के निर्यात की पहल भी शुरू हो गई है। लोग वीगन फूड्स के स्वास्थ्य एवं पर्यावरण से जुड़े लाभों को लेकर जागरूक हो गए हैं, पर स्वाद भी चाहते हैं।

कटहल शाकाहारी तत्त्वों का अच्छा स्रोत है, जिससे गोश्त की तरह स्वाद वाले पदार्थों को तैयार किया जा सकता है। कोविड महामारी के दौरान वीगन फूड्स ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा था। इसके पीछे धारणा यह थी कि बीमारियों से लड़ने में ये उत्पाद शरीर में प्रतिरोध क्षमता का विकास करते हैं। इससे देश में ‘मॉक-मीट्स’ उद्योग तेजी से आगे बढ़ा है। अमेरिका के कृषि विभाग ने मई 2021 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में भारत को ‘मांस के विकल्प के रूप में एक बड़ा बाजार बताया था’। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में प्रोटीन के स्रोत के रूप में दलहन, कटहल एवं दुग्ध उत्पादों का लंबे समय से इस्तेमाल होता रहा है।

छींक क्यों आती है.

छींक आमतौर पर तब आती है जब हमारी नाक के अंदर की झिल्ली, किसी बाहरी पदार्थ के घुस जाने से खुजलाती है। नाक से तुरंत हमारे मस्तिष्क को संदेश पहुंचता है और वह शरीर की मांसपेशियों को आदेश देता है कि इस पदार्थ को बाहर निकालें। जानते हैं छींक जैसी मामूली सी क्रिया में कितनी मांसपेशियां काम करती हैं....पेट, छाती, डायफ्राम, वाकतंतु, गले के पीछे और यहां तक कि आंखों की भी। ये सब मिलकर काम करते हैं। कभी-कभी एक छींक से काम नहीं चलता तो कई छींके आती हैं। जब जुकाम होता है तब छींकें इसलिए आती हैं क्योंकि जुकाम की वजह से हमारी नाक के भीतर की झिल्ली में सूजन आ जाती है और उससे ख़ुजलाहट होती है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 26 अगस्त, 2023 को प्रकाशित

Wednesday, August 16, 2023

चंद्रयान-3 और लूना-25 की रेस

एक हफ्ते बाद संभवतः 23 अगस्त को चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग होगी। इसके एक या दो दिन पहले रूसी मिशन लूना-25 चंद्रमा पर उतर चुका होगा। चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण 14 जुलाई को हुआ था, जबकि रूसी मिशन का प्रक्षेपण 10 अगस्त को हुआ। आपके मन में सवाल होगा कि फिर भी रूसी यान भारतीय यान से पहले क्यों पहुँचेगा? चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर तभी उतरेगा, जब वहाँ की भोर शुरू होगी। चूंकि रूसी लैंडर भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, इसलिए संभवतः रूस इस बात का श्रेय लेना चाहता है कि दक्षिणी ध्रुव पर उतने वाला पहला यान रूसी हो। दक्षिणी ध्रुव पर अभी तक किसी देश का यान नहीं उतरा है।

चंद्रमा का एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है। चंद्रयान-3 केवल 14 दिन काम करने के लिए बनाया गया है, जबकि रूसी यान करीब एक साल काम करेगा। लूना-25 जिस जगह उतरेगा वहाँ भोर दो दिन पहले होगी। भोर का महत्व इसलिए है, क्योंकि चंद्रमा की रात बेहद ठंडी होती है। वहाँ दिन का तापमान 140 डिग्री से ऊपर होता है और रात का माइनस 180 से भी नीचे।

चंद्रयान-3 में हीटिंग की व्यवस्था नहीं की गई है। उसके लिए ईंधन का इंतजाम अलग से करना होगा, जबकि लूना-25 में हीटिंग की व्यवस्था की गई है, ताकि वह साल भर काम करे। बहरहाल भारतीय अभियान के पास काम ज्यादा हैं, जो वह कम से कम समय में पूरे करेगा। ठंड में वह कितने समय तक चलेगा, इसका पता भी लग जाएगा।

धीमी गति

चंद्रयान-3 की गति धीमी क्यों है और वह लूना-25 की तुलना में कम समय तक काम क्यों करेगा? इन दोनों बातों को समझने के लिए प्रक्षेपण के लिए इस्तेमाल किए गए रॉकेट और चंद्रयान-3 और लूना-25 की संरचना के फर्क को समझना होगा।

चंद्रयान के प्रक्षेपण के लिए भारत के सबसे शक्तिशाली एलवीएम-3 रॉकेट का इस्तेमाल किया गया था, जबकि रूसी यान को सोयूज़-2.1बी रॉकेट पर रखकर भेजा गया है। सरल शब्दों में कहा जाए, तो रूसी रॉकेट ज्यादा शक्तिशाली है, उसका इंजन बेहतर है, और उसमें ज्यादा ईंधन ले जाने की क्षमता है, जिसके कारण वह कम ईंधन में ज्यादा दूरी तय कर सकता है।

दूसरा फर्क यह है कि चंद्रयान-3 लूना-25 के मुकाबले करीब दुगने से ज्यादा भारी है। चंद्रयान-3 का वजन है 3,900 किलोग्राम और लूना-25 का 1,750 किलो। चंद्रयान में एक रोवर भी है, जो चंद्रमा की सतह पर चलेगा, जबकि लूना-25 में रोवर नहीं है। रूसी रॉकेट को कम वजन ले जाना था, उसकी ताकत ज्यादा है और उसमें ईंधन ज्यादा है। भारतीय रॉकेट ने कम ईंधन का सहायता से ज्यादा वजनी यान को चंद्रमा पर पहुँचाया है।

अलग पद्धति

दोनों अभियानों में चंद्रमा तक पहुँचने की योजना दो अलग तरीकों और रास्तों से अपनाई गई है। जहाँ रूसी रॉकेट धरती से उड़ान भरकर पृथ्वी की गुरुत्व शक्ति को पार करते हुए सीधे चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया है, वहीं चंद्रयान पहले पृथ्वी की कक्षा में रहा और धीरे-धीरे उसने अपनी कक्षा का दायरा बढ़ाया। इस तरीके से जब वह चंद्रमा की कक्षा का करीब पहुँचा तब गुलेल की तरह से पृथ्वी की कक्षा को छोड़कर उसने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया। फिर धीरे-धीरे वह छोटी कक्षा में आता जा रहा है। इसमें ज्यादातर अपने ईंधन के बजाय पहले पृथ्वी की और बाद में चंद्रमा की गुरुत्व शक्ति का सहारा लिया गया। इस तरह से उसका रास्ता लंबा हो गया है। भारत के मंगलयान के लिए भी इसी तकनीक का सहारा लिया गया था।

 

 

Saturday, August 12, 2023

अक्षय ऊर्जा क्या होती है?

अक्षय मायने जिसका अंत नहीं है। अक्षय-ऊर्जा ऐसे स्रोत से प्राप्त ऊर्जा है, जिसका बार-बार इस्तेमाल होता रहे। मसलन पेट्रोल या लकड़ी जल जाने के बाद उसका दूसरी बार इस्तेमाल नहीं हो सकता। अक्षय-ऊर्जा का इस्तेमाल बिजली बनाने, वाहनों को चलाने, गर्मी पैदा करने या कूलिंग के लिए किया जाता है। ज्यादातर ऐसी ऊर्जा प्रदूषण भी पैदा नहीं करती या कम से कम करती है। इनमें प्राकृतिक प्रक्रिया के तहत सौर, पवन, सागर, पनबिजली, बायोमास, भूतापीय संसाधनों और जैव ईंधन और हाइड्रोजन वगैरह शामिल हैं। दुनिया में इसका इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है। सन 2011 में ऊर्जा के वैश्विक इस्तेमाल में इसका प्रतिशत 20 था, जो 2021 में बढ़कर 28 हो गया।

इंटरनेशनल इनर्जी एजेंसी के अनुसार 2022 में केवल सौर, पवन, जल और भूतापीय ऊर्जा में 8 फीसदी की वृद्धि हुई। इस प्रकार वैश्विक ऊर्जा में इनकी हिस्सेदारी 5.5 प्रतिशत हो गई। इसी तरह आधुनिक जैव-ऊर्जा की हिस्सेदारी 6.8 प्रतिशत हो गई। 2022 का वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए ढीला रहा, क्योंकि कोविड-19 के कारण ऊर्जा की माँग घट रही थी, पर अक्षय-ऊर्जा में तेजी से वृद्धि हो रही थी।

भारत में फरवरी 2023 तक 122 गीगावॉट अक्षय-ऊर्जा की क्षमता का निर्माण हो चुका था। इसमें पनबिजली और नाभिकीय ऊर्जा शामिल नहीं है। यह लक्ष्य से कम है, क्योंकि सरकार ने 2022 के अंत तक 175 गीगावॉट क्षमता के निर्माण का लक्ष्य रखा था। भारत ने 2030 तक देश में गैर-जीवाश्म (गैर-पेट्रोलियम) ऊर्जा का स्तर 50 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य रखा है। फरवरी 2023 तक देश में कोयले से चलने वाले ताप-बिजलीघर कुल बिजली का 78.2 प्रतिशत बना रहे थे।

ह्वाइट कॉलर जॉब?

ह्वाइट कॉलर शब्द एक अमेरिकी लेखक अपटॉन सिंक्लेयर ने 1930 के दशक में गढ़ा. औद्योगीकरण के साथ शारीरिक श्रम करने वाले फैक्ट्री मजदूरों की यूनीफॉर्म डेनिम के मोटे कपड़े की ड्रेस हो गई। शारीरिक श्रम न करने वाले कर्मचारी सफेद कमीज़ पहनते। इसी तरह खदानों में काम करने वाले ब्लैक कॉलर कहलाते। सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़े कर्मियों के लिए अब ग्रे कॉलर शब्द चलने लगा है।

राजस्थान पत्रिका के 12 अगस्त, 2023 के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित 

Thursday, August 3, 2023

पेनाल्टी कॉर्नर का नया नियम

 फील्ड हॉकी के पेनाल्टी कॉर्नर का नया नियम, जिसका परीक्षण कुछ समय तक किया जाएगा।  इसमें बॉल को पहले डी के बाहर पाँच मीटर दूर बनी डॉटेड लाइन तक जाना होगा। इसका मतलब है कि वहाँ से डायरेक्ट हिट या ड्रैग फ्लिक लगाया नहीं जा सकेगा। विस्तार से पढ़ें इंडियन एक्सप्रेस में


वेजीटेबल नहीं, वेजटेबल

 


डिसरप्टिव टेक्नोलॉजी

अंग्रेजी के डिसरप्टिव शब्द के हिन्दी में ज्यादातर अर्थ नकारात्मक हैं। मसलन बाधाकारी, हानिकारक, विध्वंसकारी वगैरह। जैसे सृजन के लिए संहार जरूरी है वैसे ही आधुनिक तकनीक के संदर्भ में इसके मायने सकारात्मक है। इनोवेशन या नवोन्मेष वह है जो नयापन लाने के लिए पुराने को खत्म करता है। जैसे सीएफएल ने परम्परागत बल्ब के चलन को खत्म किया और अब एलईडी सीएफएल को खत्म कर रहा है। मोबाइल फोन ने कैमरा,  वॉयस रिकॉर्डर समेत तमाम तकनीकों को लगभग खत्म कर दिया। इस  शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल लेखक क्लेटन एम क्रिस्टेनसेन (clayton m. christensen) ने 1995 में किया, जो हारवर्ड बिजनेस स्कूल में प्राध्यापक  भी रहे। सारे इनोवेशन डिसरप्टिव नहीं होते। मसलन बीसवीं सदी के शुरू में कार का आविष्कार क्रांतिकारी तो था, पर उसने घोड़ागाड़ी के परम्परागत परिवहन को तत्काल खत्म नहीं किया, क्योंकि मोटरगाड़ी महंगी थी। सन 1908 में फोर्ड के सस्ते मॉडल टी के आगमन के बाद ही घोड़ागाड़ी खत्म होने की प्रक्रिया शुरू हुई जो तकरीबन तीस साल तक चली। इसके मुकाबले मोबाइल फोन ने परम्परागत फोन को जल्दी खत्म किया।

Monday, July 31, 2023

बैडमिंटन सुपर सीरीज क्या है?

बैडमिंटन सुपर सीरीज़ अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन प्रतियोगिताओं की श्रृंखला है, जिसका स्वरूप अब काफी बदल गया है। बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन (बीडब्लूएफ) की इस प्रतियोगिता की घोषणा 14 दिसंबर, 2006 को हुई थी और 2007 में इसकी शुरुआत हुई थी। 2011 के बाद से इसमें कई स्तर की प्रतियोगिताएं होने लगी हैं। इनके अलग-अलग स्तर कर दिए गए हैं। प्रीमियर प्रतियोगिताओं में ज्यादा रैंकिंग पॉइंट और ज्यादा बड़ी धनराशि पुरस्कार में मिलती है।

अब हरेक चार साल में बीडब्लूएफ कौंसिल बीडब्लूएफ वर्ल्ड टुअर आयोजित करने वालों देशों की समीक्षा करती है। मार्च 2018 में बीडब्लूएफ ने 2018 से 2021 के लिए नए वर्ल्ड टुअर और नए मेजबानों की घोषणा की थी। अब बीडब्लूएफ वर्ल्ड टुअर फाइनल्स में एक सीज़न में चार सुपर 1000, छह सुपर 750, सात सुपर 500 और ग्यारह सुपर 300 प्रतियोगिताएं होती हैं। इनमें सबसे ऊँचा स्तर सुपर 1000 का होता है। इनके अलावा सुपर 100 प्रतियोगिताएं भी होती हैं, जिनका हर साल निर्णय होता है। इनके अंक भी रैंकिंग में जोड़े जाते हैं। इन प्रतियोगिताओं में शामिल व्यक्तिगत या युगल प्रतियोगियों में से टॉप आठ को उन्हें प्राप्त अंकों के आधार पर वर्ष के अंत में होने वाले बीडब्लूएफ वर्ल्ड टुअर फाइनल्स में खेलने का मौका मिलता है।

2023-26 के साइकिल के लिए चार हाई प्रोफाइल प्रतियोगिताओं को चुना गया है। ये हैं मलेशिया ओपन, ऑल इंग्लैंड ओपन, चीन ओपन और इंडोनेशिया ओपन। मलेशिया ओपन को इस साल से ही सुपर 1000 के स्टेटस पर अपग्रेड किया गया है। इंडिया ओपन का स्टेटस इस साल से सुपर 750 का हो गया है, जो पिछले साल तक सुपर 500 था। भारत की सैयद मोदी प्रतियोगिता सुपर 300, हैदराबाद तथा ओडिशा ओपन सुपर 100 में आती हैं।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 29 जुलाई, 2023 को प्रकाशित

Saturday, July 15, 2023

बनाना रिपब्लिक किसे कहते हैं?

राजनीति शास्त्र में बनाना रिपब्लिक शब्द लैटिन अमेरिका के उन देशों के लिए इस्तेमाल में लाया गया, जो राजनीतिक रूप से काफी अस्थिर थे। उन्हें बनाना रिपब्लिक इसलिए कहा गया, क्योंकि उनकी अर्थ-व्यवस्था मुख्यतः केले या प्राकृतिक संसाधनों के निर्यात पर निर्भर थी। इन देशों में गरीब-कमजोर मजदूर रहते हैं और सत्ता पर अल्पसंख्यक व्यापारियों, नौकरशाहों, राजनेताओं और फौजी अफसरों का नियंत्रण होता है। बनाना रिपब्लिक शब्दावली का प्रयोग प्रसिद्ध अमेरिकी कथाकार ओ’ हेनरी (O Henry) ने किया था। ओ’ हेनरी ने इसका इस्तेमाल उस विशेष स्थिति के लिए किया था जहाँ कुछ अमेरिकी कारोबारियों ने  कैरीबियन द्वीपों, मध्य अमेरिका तथा दक्षिण अमेरिका में अपनी चतुराई से भारी मात्रा में केला उत्पादक क्षेत्रों पर अपना एकाधिकार कर लिया। स्थानीय मजदूरों को कौड़ियों के भाव पर काम करवा कर केलों के उत्पादन को अमेरिका में भेजकर भारी लाभ उठाया।

पहला क्रिकेट टेस्ट मैच कब हुआ?

पहला आधिकारिक क्रिकेट टेस्ट मैच 15 मार्च 1877 को ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर हुआ। इसमें ऑस्ट्रेलिया की टीम 45 रन से जीती’ टेस्ट मैचों के सौ साल पूरे होने पर 12 से 17 मार्च 1977 को मेलबर्न में दोनों देशों के बीच हुए टेस्ट मैच में भी ऑस्ट्रेलिया ने इंग्लैंड को 45 रन से हराया।

नीम कड़वा क्यों होता है?

नीम के तीन कड़वे तत्वों को वैज्ञानिकों ने अलग किया है, जिन्हें निम्बिन, निम्बिडिन और निम्बिनिन नाम दिए हैं। सबसे पहले 1942 में भारतीय वैज्ञानिक सलीमुज़्ज़मा सिद्दीकी ने यह काम किया। वे बाद में पाकिस्तान चले गए थे। यह कड़वा तत्व ही एंटी बैक्टीरियल, एंटी वायरल होता है और कई तरह के ज़हरों को ठीक करने का काम करता है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 15 जुलाई, 2023 को प्रकाशित


 

 

Sunday, July 2, 2023

डकार क्या होती है और ये क्यों आती है?

डकार को अंग्रेजी में बर्पिंग, बेल्चिंग और इरक्टेशन (Eruction) वगैरह कहते हैं। यह मूलतः पेट के पाचन मार्ग से गैस या हवा का मुँह के रास्ते बाहर निकलना है। कंठ के पास मार्ग सँकरा होता है और यदि गैस ज्यादा हो तो एक आवाज निकलती है वही डकार है। प्रायः हम भोजन करते वक्त हवा या गैस बनाने वाली वस्तुओं का सेवन करते हैं, जिसके कारण अतिरिक्त हवा बाहर निकलती है। ऐसा कार्बोनेटेड पेय, सॉफ्ट ड्रिंक, बीयर और शैम्पेन वगैरह पीने के बाद भी होता है। पेय से निकली कार्बन डाई ऑक्साइड डकार के रूप में बाहर आती है। पेट में अल्सर या भोजन की एलर्जी होने पर खट्टी डकारें भी आती हैं। नवजात शिशुओं को दूध पिलाने के बाद उनके पेट में हवा जमा हो जाती है, उसे थपकी देकर निकाला जाता है। मनुष्यों को ही नहीं जानवरों को भी डकार आती हैं।

डैबिट और क्रेडिट कार्ड का अंतर

डैबिट कार्ड आपके बैंक खाते से जुड़ा होता है, जो आपकी ही रकम है जब आप कहीं सामान खरीदते वक्त इसके मार्फत भुगतान करते हैं तो धनराशि आपके खाते से जाती है। इसके अलावा धारक एटीएम से निर्धारित राशि तक निकाल भी सकता है’ क्रेडिट कार्ड, ऋण-सुविधा है। जिस संस्था का कार्ड है वह ग्राहक को तयशुदा धनराशि तक की खरीदारी करने या कैश निकालने की अनुमति देती है। यह राशि बाद में जरूरी ब्याज सहित वापस ले ली जाती है। 

एचडी क्या होता है?

एचडी यानी हाई डेफिनीशन आमतौर पर तस्वीर के संदर्भ में प्रयुक्त होता है। कम्प्यूटर में वही तस्वीर ज्यादा स्पष्ट होती है जिसके एक फ्रेम का रिज़ॉल्यूशन यानी मैगापिक्सेल जितने ज्यादा हों, चित्र उतना ही स्पष्ट होता है। चित्र की यही बात वीडियो और टीवी पर लागू होती है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 1 जुलाई 2023 को प्रकाशित

Saturday, June 17, 2023

हावड़ा ब्रिज में क्या खास है?

अस्सी साल से भी पहले निर्मित हावड़ा ब्रिज इंजीनियरिंग का चमत्कार है। यह विश्व के व्यस्ततम कैंटीलीवर ब्रिजों में से एक है। कोलकाता और हावड़ा को जोड़ने वाले इस पुल जैसे अनोखे पुल संसार भर में केवल गिने-चुने ही हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में कोलकाता और हावड़ा के बीच बहने वाली हुगली नदी पर एक तैरते हुए पुल के निर्माण की परिकल्पना की गई। तैरते हुआ पुल बनाने का कारण यह था कि नदी में रोजाना काफी जहाज आते-जाते थे। खम्भों वाला पुल बनाते तो जहाजों का आना-जाना रुक जाता। अंग्रेज सरकार ने सन् 1871 में हावड़ा ब्रिज एक्ट पास किया, पर योजना बनने में बहुत वक्त लगा। पुल का निर्माण सन् 1937 में ही शुरू हो पाया। सन् 1942 में यह बनकर पूरा हुआ। इसे बनाने में 26,500 टन स्टील की खपत हुई। इसके पहले हुगली नदी पर तैरता पुल था। पर नदी में पानी बढ़ जाने पर इस पुल पर जाम लग जाता था। इस ब्रिज को बनाने का काम जिस ब्रिटिश कंपनी को सौंपा गया उससे यह ज़रूर कहा गया था ‍कि वह भारत में बने स्टील का इस्तेमाल करेगा। टिस्क्रॉम नाम से प्रसिद्ध इस स्टील को टाटा स्टील ने तैयार किया। इसके इस्पात के ढाँचे का फैब्रिकेशन ब्रेथवेट, बर्न एंड जेसप कंस्ट्रक्शन कम्पनी ने कोलकाता स्थित चार कारखानों में किया। 1528 फुट लंबे और 62 फुट चौड़े इस पुल में लोगों के आने-जाने के लिए 7 फुट चौड़ा फुटपाथ छोड़ा गया था। 3 फरवरी, 1943 को आम जनता के उपयोग के लिए इसे खोल दिया गया। हावड़ा और कोलकाता को जोड़ने वाला हावड़ा ब्रिज जब बनकर तैयार हुआ था तो इसका नाम था न्यू हावड़ा ब्रिज। 14 जून 1965 को गुरु रवींद्रनाथ टैगोर के नाम पर इसका नाम रवींद्र सेतु कर दिया गया पर प्रचलित नाम फिर भी हावड़ा ब्रिज ही रहा। इसपर पूरा खर्च उस वक्त की कीमत पर ढाई करोड़ रुपया (24 लाख 63,887 पौंड)आया। इस पुल से होकर पहली बार एक ट्रामगाड़ी चली थी।

जुगनू कैसे चमकते हैं?

जुगनू उड़ने वाला कीड़ा है, जिसके पेट में रासायनिक क्रिया से रोशनी पैदा होती है। इसे बायोल्युमिनेसेंस कहते हैं। यह कोल्ड लाइट कही जाती है इसमें इंफ्रा रेड और अल्ट्रा वॉयलेट दोनों फ्रीक्वेंसी नहीं होतीं।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 17 जून, 2023 को प्रकाशित

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