मोनालिसा इटली के कलाकार लिओनार्दो दा विंची की बनाई विश्व-प्रसिद्ध पेंटिंग है। इसमें एक विचारमग्न स्त्री का चित्रण है जिसके चेहरे पर स्मित मुस्कान है। दुनिया की सबसे प्रसिद्ध पेंटिंगों में इसकी गिनती की जाती है। माना जाता है कि लियोनार्दो दा विंची ने यह तस्वीर 1503 से 1514 के बीच कभी बनाई थी। इस तस्वीर को फ्लोरेंस के एक व्यापारी 'फ्रांसिस्को देल जियोकॉन्डो' की पत्नी 'लीज़ा गेरार्दिनी' को देखकर बनाया था। इस समय यह पेंटिंग फ्रांस के लूव्र संग्रहालय में रखी हुई है। संग्रहालय के इस क्षेत्र में 16वीं शताब्दी की इतालवी चित्रकला की कृतियाँ रखी गई हैं। यह पेंटिंग 21 इंच लंबी और 30 इंच चौड़ी है। इसे सुरक्षित बनाए रखने के लिए इसे एक ख़ास किस्म के शीशे के पीछे रखा गया है, जो न चमकता है और न टूटता है।
संविधान सभा की पहली बैठक?
भारतीय संविधान सभा की पहली बैठक डॉ राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में 9 दिसम्बर, 1946 को नई दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन हॉल में हुई, जिसे अब संसद भवन के केंद्रीय कक्ष के नाम से जाना जाता है। हालांकि संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 को संविधान के प्रारूप को अंतिम रूप से स्वीकार कर लिया था, पर यह तय किया गया कि इसे 26 जनवरी से लागू किया जाए क्योंकि 26 जनवरी 1930 के लाहौर कांग्रेस-अधिवेशन में पार्टी ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पास किया था और अध्यक्ष पं जवाहर लाल नेहरू ने अपने भाषण में इसकी माँग की थी। संविधान के नागरिकता, चुनाव और संसद जैसी व्यवस्थाएं तत्काल लागू हो गईं थीं। राष्ट्रीय संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज 22 जुलाई 1947 को ही स्वीकार कर लिया था। वही ध्वज 15 अगस्त 1947 से औपचारिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज के रूप में फहराया गया।
‘तीसरी दुनिया के देश’ नाम क्यों पड़ा?
तीसरी दुनिया शीतयुद्ध के समय का शब्द है।
शीतयुद्ध यानी मुख्यतः अमेरिका और रूस का प्रतियोगिता काल। फ्रांसीसी डेमोग्राफर, मानव-विज्ञानी
और इतिहासकार अल्फ्रेड सॉवी ने 14 अगस्त 1952 को पत्रिका ‘ल ऑब्जर्वेतो’ में
प्रकाशित लेख में पहली बार इस शब्द का इस्तेमाल किया था। इसका आशय उन देशों से था
जो न तो कम्युनिस्ट रूस के साथ थे और न पश्चिमी पूँजीवादी खेमे के नाटो देशों के
साथ थे। इस अर्थ में गुट निरपेक्ष देश तीसरी दुनिया के देश भी थे। इनमें भारत, मिस्र, युगोस्लाविया, इंडोनेशिया, मलेशिया, अफगानिस्तान
समेत एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के तमाम विकासशील देश
थे। यों माओत्से तुंग का भी तीसरी दुनिया का एक विचार था। पर आज तीसरी दुनिया शब्द
का इस्तेमाल कम होता जा रहा है।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 17 दिसंबर, 2022 को प्रकाशित