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Friday, April 3, 2020

धर्म और विज्ञान

Cartoon Movement - Religion Versus Science

सृष्टि क्या है, मनुष्य क्या है, जीव जगत क्या है और मनुष्य समाज का प्रकृति से रिश्ता क्या है? ऐसे सवालों के जवाब शुरू में करीब-करीब सभी धर्मों और पंथों ने देने और समझने की कोशिश की थी. इन्हीं कोशिशों में से विज्ञान का जन्म हुआ, जिसने सत्यान्वेषण के तरीके विकसित किए. विज्ञान ने असहमतियों को सम्मान दिया और असहमत विचार की पुष्टि होने पर उसे स्वीकार करना जारी रखा. इसके विपरीत धर्म अपनी धारणाओं पर स्थिर रहे. असहमतियों को अस्वीकार किया गया. धर्मों ने नैतिकता को बचाए रखा है, ऐसी धारणा कितनी सही है, इसकी जानकारी इतिहास के पन्नों में देखें. भावी दिशा क्या है, इसके बारे में आप खुद सोचें.

Friday, April 15, 2011

आसमान का रंग नीला क्यों?


धरती के चारों ओर वायुमंडल है। यानी हवा है जिसमें कई तरह की गैसों के मॉलीक्यूल और पानी की बूँदें या भाप है। गैसों में सबसे ज्यादा करीब 78 फीसद नाइट्रोजन है और करीब 21 फीसद ऑक्सीजन। इसके अलावा आरगन गैस और पानी है। इसमें धूल, राख और समुद्री पानी से उठा नमक वगैरह है। हमें अपने आसमान का रंग इन्ही चीजों की वजह से आसमानी लगता है। दरअसल हम जिसे रंग कहते हैं वह रोशनी है। हम जानते हैं कि रोशनी वेव्स या तरंगों में चलती है। हवा में मौजूद चीजें इन वेव्स को रोकती हैं। जो लम्बी वेव्स हैं उनमें रुकावट कम आती है। वे धूल को कणों से बड़ी होती हैं। यानी रोशनी की लाल, पीली और नारंगी तरंगें नजडर नहीं आती। पर छोटी तरंगों को गैस या धूल के कण रोकते हैं। और यह रोशनी टकराकर चारों ओर फैलती है। रोशनी के वर्णक्रम या स्पेक्ट्रम में नीला रंग छोटी तरंगों में चलता है। यही नीला रंग जब फैलता है तो वह आसमान का रंग लगता है।

हमारे वायुमंडल का निचला हिस्सा ज्यादा सघन है। आप दूर क्षितिज में देखें तो वह पीलापन लिए होता है। कई बार लाल भी होता है।

आसमान का रंग तो काला होता है। रात में जब सूरज की रोशनी नहीं होती वह हमें काला नजर आता है। हमें अपना सूरज भी पीले रंग का लगता है। जब आप स्पेस में जाएं जहाँ हवा नहीं है वहाँ आसमान काला और सफेद सूरज नजर आता है। 

इन्द्रधनुष कैसे बनता है?


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इन्द्रधनुष का रिश्ता प्रकाश या रोशनी में मौज़ूद तमाम रंगों से है। रोशनी में कई रंगों की बात सैकड़ों साल पहले वैज्ञानिकों ने समझ ली थी, पर सर आइज़क न्यूटन ने अपनी किताब ऑप्टिक्स में प्रिज्म के मार्फत प्रकाश के रंगों के अलग होने या वापस सफेद रंग में परिणित होने का वैज्ञानिक सिद्धांत बनाया। उन्होंने इसका नाम दिया स्पेक्ट्रम जिसे हम हिन्दी में वर्णक्रम कहते हैं। इन्द्रधनुष प्राकृतिक रूप से नज़र आने वाला स्पेक्ट्रम है।

शाम के समय पूर्व दिशा में तथा सुबह के समय पश्चिम दिशा में या वर्षा के बाद आसमान में लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला, तथा बैंगनी रंगों का बड़ा वृत्ताकार वक्र या आर्क दिखाई देता है। वर्षा अथवा बादल में पानी की छोटी-छोटी बूँदों अथवा कणों पर पड़नेवाली सूर्य किरणों का विक्षेपण (डिस्पर्शन) ही इंद्रधनुष के सुंदर रंगों का कारण है। इंद्रधनुष दर्शक की पीठ के पीछे सूरज होने पर ही दिखाई पड़ता है। पानी के फुहारे या झरनों के पास  दर्शक के पीछे से सूर्य किरणों के पड़ने पर भी इंद्रधनुष देखा जा सकता है। आमतौर पर इन्द्रधनुष में लाल रंग सबसे बाहर और बैंगनी रंग सबसे भीतर होता है। पर पानी में किरणों का दो बार परावर्तन हो, तो इंद्रधनुष ऐसा भी बनना संभव है जिसमें वक्र का बाहरी वर्ण बैंगनी रहे तथा भीतरी लाल। इसको द्वितीयक (सेकंडरी) इंद्रधनुष कहते हैं।

तीन अथवा चार आंतरिक परावर्तन से बने इंद्रधनुष भी संभव हैं, परंतु वे बिरले अवसरों पर ही दिखाई देते हैं। वे सदैव सूर्य की दिशा में बनते हैं तथा तभी दिखाई पड़ते हैं जब सूर्य स्वयं बादलों में छिपा रहता है। इंद्रधनुष की क्रिया को सर्वप्रथम दे कार्ते नामक फ्रेंच वैज्ञानिक ने उपर्युक्त सिद्धांतों द्वारा समझाया था। इनके अतिरिक्त कभी-कभी प्रथम इंद्रधनुष के नीचे की ओर अनेक अन्य रंगीन वृत्त भी दिखाई देते हैं। ये वास्तविक इंद्रधनुष नहीं होते। ये जल की बूँदों से ही बनते हैं, किंतु इनका कारण विवर्तन (डिफ़्रैक्शन) होता है। इनमें विभिन्न रंगों के वृतों की चौड़ाई जल की बूँदों के बड़ी या छोटी होने पर निर्भर रहती है।

Sunday, March 20, 2011

दुनिया में कुल कितने देश हैं?


दुनिया में कुल कितने देश हैंक्या सभी देश संयुक्त राष्ट्र-सदस्य हैं?

दुनिया के पूर्ण सम्प्रभुता सम्पन्न देशों की संख्या 193 है। इनमें से 192 संयुक्त राष्ट्र-सदस्य हैं। वैटिकन सिटी को सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य की मान्य परिभाषाओं में रखा जा सकता है, पर वह संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं केवल स्थायी पर्यवेक्षक है। वस्तुतः वैटिकन सिटी नहीं रोम के कैथलिक चर्च की प्रशासनिक व्यवस्था, जिसे होली सी कहा जाता है प्राचीनकाल से चली आ रही है। वैटिकन सिटी का गठन 1929 में हुआ था। उसके 178 देशों के साथ राजनयिक सम्बन्ध भी हैं।

संयुक्त राष्ट्र के 192 सदस्य देशों के अलावा कुछ राजव्यवस्थाएं और हैं, जिन्हें पूर्ण देश नहीं कहा जा सकता । उनके नाम हैं अबखाजिया, कोसोवो, नागोर्नो–कारबाख, उत्तरी सायप्रस, फलस्तीन, सहरावी गणराज्य, सोमालीलैंड, दक्षिण ओसेतिया, ताइवान, और ट्रांसनिस्ट्रिया। ये देश किसी न किसी वजह से राष्ट्रसंघ के पूर्ण सदस्य नहीं हैं। हाल में अफ्रीका में एक नए देश का जन्म हुआ है, जिसका नाम है दक्षिणी सूडान। लम्बे अर्से से गृहयुद्ध के शिकार सूडान में इसी साल जनवरी में एक जनमत संग्रह हुआ, जिसमें जनता ने नया देश बनाने का निश्चय किया है। यह फैसला देश के सभी पक्षों ने मिलकर किया है। नया देश 9 जुलाई 2011 को औपचारिक ऱूप से जन्म लेगा।
  
दयामृत्यु क्या हैक्या किसी देश में व्यक्ति को अपनी इच्छा से मरने का अधिकार है?

दयामृत्यु का अर्थ है किसी व्यक्ति या प्राणी के जीवन का ऐसी स्थिति में अंत जब समझा जाय कि उसकी मृत्यु उसके जीवित रहने से बेहतर है। इसके कई रूप सम्भव है। मृत्यु का स्वयं वरण, सम्बंधियों और परिजन द्वारा निश्चय या किसी अन्य स्थिति में जीवन का अंत। मृत्यु का वरण निष्क्रिय या सक्रिय दोनों प्रकार से हो सकता है। व्यक्ति को जीवित रखने वाले उपकरण हटा लिए जाएं या इंजेक्शन आदि देकर अंत किया जाए।

हाल में सुप्रीम कोर्ट में अरुणा शानबाग के मामले का फैसला आने के पहले से देश में इस प्रश्न पर बहस चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने दया मृत्यु को कानूनी शक्ल दे दी है, साथ ही उम्मीद जाहिर की है कि देश की संसद इस मामले में कोई नियम बनाएगी।

दया मृत्यु पर सारी दुनिया में बहस चल रही है, पर इसे स्वीकार बहुत कम लोग करते हैं। युरोप में अल्बानिया, बेल्जियम, नीदरलैंड्स, आयरलैंड, जर्मनी और लक्जेमबर्ग में पूर्ण या आंशिक दया मृत्यु की अनुमति है। अमेरिका के ओरेगॉन, वॉशिंगटन और मोंटाना राज्यों में भी इसकी अनुमति है। इस व्यवस्था का अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में विरोध हुआ था, पर अंततः अदालत ने दया मृत्यु को स्वीकार कर लिया। इन राज्यों में अब भी इस कानूनी अधिकार के अनेक पहलू अस्पष्ट हैं। दया मृत्यु के समानांतर इच्छा मृत्यु की अवधारणा है। जैन समाज में संथारा एक पवित्र कर्म है। इसी तरह जापान के परम्परागत समाज में हाराकीरी को योद्धाओं का पवित्र कार्य माना जाता है।    


मोबाइल टेलीफोन सेवाओं को संदर्भ में जीएसएम, जीपीआरएस और सीडीएमए क्या होते हैं?

जीएसएम यानी ग्लोबल सिस्टम फऑर मोबाइल। मोबाइल टेलीफोन की यह सबसे ज्यादा प्रचलित पद्धति है। इनका दुनिया भर में नेटवर्क है और अधिकतर देशों में इसकी रोमिंग सुविधा है। जीएसएम एसोसिएशन इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाले संगठनों की अंतरराष्ट्रीय संस्था है। इनकी वैबसाइट http://www.gsmworld.com/ पर जीएसएम पभोक्ताओं की लगातार बढ़ती संख्या आती रहती है। अनुमान है कि इस वक्त दुनिया में करीब पाँच अरब जीएसएम फोन हैं। जीएसएम की तरह सीडीएमए भी मोबाइन फोन की एक तकनीक है। इसका पूरा नाम है कोड डिवीजन मल्टिपल एक्सेस। इसे चैनल एक्सेस मैथड भी कहते हैं। जीपीआरएस यानी जनरल पैकेट रेडियो सर्विस एक प्रकार की तेज डेटा सर्विस है जैसे फिक्स्ड लाइन पर ब्रॉडबैंड सेवा होती है।

भारतीय मुद्रा में गांधी जी ग्यारह लोगों के साथ दांडी यात्रा पर दिखाए गए हैं। क्या ये ग्यारह सदस्य ही यात्रा पर गए थे?

महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा 12 मार्च 1930 को शुरू की थी। उनके साथ 78 यात्री और चले थे। 240 मील(करीब 325 किमी) की यह यात्रा 24 दिन में पूरी हुई। रास्ते में हजारों लोगों ने उनका स्वागत किया। बड़ी संख्या में नए लोग उनके साथ यात्रा में शामिल हुए। आपने करेंसी में जो चित्र देखा है वह दिल्ली में मदर टेरेसा क्रेसेंट और सरदार पटेल मार्ग के टी पॉइंट पर स्थापित ग्यारह मूर्तियों का है। यह प्रतीक चित्र है। इसमें सभी यात्रियों को शामिल नहीं किया गया है। इन मूर्तियों के पास यह विवरण भी नहीं है कि इनमें गांधी जी के साथ दूसरे यात्री कौन हैं। यह प्रतिमा प्रसिद्ध मूर्तिकार देवी प्रसाद रॉय चौधरी ने बनाई थी।  


राजस्थान पत्रिका के me next में प्रकाशित
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