राष्ट्रीय शाके अथवा शक संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है। इसका प्रारम्भ 78 वर्ष ईसा पूर्व माना जाता है। यह संवत भारतीय गणतंत्र का सरकारी तौर पर स्वीकृत अपना राष्ट्रीय संवत है। ईसवी सन 1957 (चैत्र 1, 1879 शक) को भारत सरकार ने इसे देश के राष्ट्रीय पंचांग के रूप में मान्यता प्रदान की थी। इसीलिए राजपत्र (गजट), आकाशवाणी और सरकारी कैलेंडरों में ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ इसका भी प्रयोग किया जाता है। विक्रमी संवत की तरह इसमें चंद्रमा की स्थिति के अनुसार काल गणना नहीं होती, बल्कि सौर गणना होती है। यानी महीना 30 दिन का होता है। इसे शालिवाहन संवत भी कहा जाता है। इसमें महीनों का नामकरण विक्रमी संवत के अनुरूप ही किया गया है, लेकिन उनके दिनों का पुनर्निर्धारण किया गया है। इसके प्रथम माह (चैत्र) में 30 दिन हैं, जो अंग्रेजी लीप ईयर में 31 दिन हो जाते हैं। वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण एवं भाद्रपद में 31-31 दिन एवं शेष 6 मास में यानी आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन में 30-30 दिन होते हैं।
बर्गर की शुरूआत कब हुई?
कहा जाता है कि सन 1904 में सेंट लुई
के वर्ल्ड फेयर में पहली बार हैम्बर्गर नज़र आया। पर यह खाद्य पदार्थ उसके पहले से
दुनिया में मौजूद था। अठारहवीं सदी में जर्मनी के प्रसिद्ध बंदरगाह से गुजरने वाले
नाविक हैम्बर्ग स्टीक लाते थे। इसमें कई तरह के गोश्त के कीमे की परतें होतीं थी। दरअसल
बर्गर का नाम ही उस हैम्बर्गर पर पड़ा है। इसके बारे में कुछ कहानियाँ और है। कहते
हैं कि किसी के दिमाग में आया कि गोश्त को ब्रैड के दो पीसों के बीच रखकर खाया जाए
तो आसानी होगी। और देखते ही देखते यह लोकप्रिय हो गया। सैंडविच और पैटी जैसी इस चीज़
में अलग-अलग किस्म के स्वाद भी पैदा किए जा सकते थे। अमेरिका की ह्वाइट कैसल हैम्बर्गर
चेन को इसे लोकप्रिय बनाने का श्रेय जाता है। ह्वाइट कैसल के अनुसार जर्मनी के ओटो
क्लॉस ने 1881 में हैम्बर्गर का आविष्कार किया। पर उनके अलावा भी चार्ली नेग्रीन, तुईस लासेन और ऑस्कर वैबर बिल्बी जैसे
नाम भी हैं,
जिन्हें इसका
आविष्कारक माना जाता है। बहरहाल आज फास्टफूड के ज़माने में इसका आविष्कार सहज था। हमारे
देश में वैजीटेबल बर्गर की तमाम प्रजातियाँ विकसित हुईं हैं। मैकडॉनल्ड का आलू टिक्की
बर्गर भारतीय आविष्कार ही माना जाएगा।
ज्यादातर फल गर्मियों में ही क्यों आते हैं?
सर्दियों में भी फल आते हैं। अलबत्ता
गर्मी में आने वाले लगभग सभी फल रसीले होते हैं जैसे तरबूज लीची, लुकाट, आड़ू, आलूबुखारा, शहतूत,
संतरा, खरबूजा, सेब,
खुबानी, आड़ू आदि। इनके मीठे रस में शरीर को लू से बचाने
की अद्भुत क्षमता के कारण ही शायद प्रकृति ने गर्मी में पैदा किया। इसका सबसे बड़ा
कारण है सूर्य की रोशनी और गरमाहट। वनस्पति का मूलाधार गर्मी है। आपने देखा होगा सर्दियों
में पौधों का बाहरी विकास रुक जाता है। उन दिनों पौधों की जड़ें बढ़ती हैं।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 2 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित
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