Friday, April 23, 2021

सूती कपड़ों का चलन कहाँ शुरू हुआ?

कपास की खेती ईसा से कम से कम पाँच हजार साल पहले शुरू हो गई थी। सिंधु घाटी की सभ्यता को सम्भवतः कपास की खेती का श्रेय दिया जा सकता है। अलबत्ता मैक्सिको और पेरू की प्राचीन सभ्यताओं में भी कपास और सूती परिधान मिले हैं। प्राचीन यूनानी लेखक हैरोडोटस ने भारतीय कपास के बारे में लिखा है कि वह भेड़ के ऊन से भी बेहतर होती है। एक और यूनानी इतिहासकार स्त्राबो ने भारतीय सूती परिधानों की खासियतों का विवरण दिया है।

पुराने यूनानी साहित्य में विवरण मिलता है कि भारतीय कपास लेकर अरब व्यापारी आते थे। भारत का वस्त्र उद्योग एक जमाने में दुनिया भर में विख्यात था। यूरोप में छपे हुए भारतीय वस्त्र सन 1690 के बाद पहली बार ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पहुँचाए तो लोग उनपर टूट पड़े। कोझीकोड का कपड़ा जिसे ब्रिटेन में कालीकट या कैलिको क्लॉथ कहा जाता था, इतनी बड़ी मात्रा में जाने लगा कि उससे इंग्लैंड का स्थानीय वस्त्र उद्योग चरमराने लगा। इसके कारण ब्रिटिश संसद ने कैलिको एक्ट पास करके भारतीय वस्त्र के आयात पर रोक लगा दी।

उसी दौरान मशीनों का आविष्कार हो गया और सन 1774 में कैलिको कानून वापस ले लिया गया, क्योंकि इंग्लैंड के उत्पादक भारतीय कपड़े का मुकाबला करने लगे। उसी दौर में भारत तैयार वस्त्रों के निर्यातक के बजाय केवल कपास के निर्यातक के रूप में सीमित होता चला गया। भाप की शक्ति के आविष्कार, सस्ते मजदूरों की उपलब्धि और कताई-बुनाई मशीनरी के आविष्कार ने ब्रिटेन को बड़ी ताकत बना दिया। इंग्लैंड के पूँजीवादी विकास में लंकाशायर और मैनचेस्टर की टेक्सटाइल मिलों की बड़ी भूमिका है।

भारत की पहली हवाई सेवा कहां से हुई?

भारत में पहली व्यावसायिक असैनिक उड़ान 18 फरवरी 1911 को इलाहाबाद से नैनी के बीच हुई थी। इस उड़ान में विमान ने 6 मील यानी 9.7 किलोमीटर की दूरी तय की थी। उस दिन फ्रांसीसी विमान चालक हेनरी पेके हम्बर-सोमर बाईप्लेन पर डाक के 6,500 पैकेट लेकर गया था। यह दुनिया में पहली आधिकारिक एयरमेल सेवा भी थी।

इसके बाद दिसम्बर 1912 में इंडियन एयर सर्विसेज ने कराची और दिल्ली के बीच पहली घरेलू सेवा की शुरुआत की। उसके तीन साल भारत की पहली निजी वायुसेवा टाटा संस ने कराची और मद्रास के बीच शुरू की। 15 अक्तूबर 1932 को जेआरडी टाटा कराची से जुहू हवाई अड्डे तक हवाई डाक लेकर आए। व्यावसायिक उड़ान का लाइसेंस पाने वे पहले भारतीय थे। उनकी विमान सेवा का नाम ही बाद में एयर इंडिया हुआ।

क्या बरसात में समुद्र में भी पानी बढ़ता है?

समुद्र में पानी की मात्रा इतनी ज्यादा होती है कि उसमें बढ़ना-घटना आप समझ नहीं पाएंगे। दूसरे जो पानी बारिश बनकर गिरता है वह भी समुद्र से भाप बनकर उठता है। वापस वह फिर समुद्र में पहुँच जाता है। इसका एक चक्र है, जो चलता रहता है। कभी यहाँ बारिश होती है, कभी ऑस्ट्रेलिया में और कभी यूरोप में। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

 

Thursday, April 22, 2021

गर्मी में पसीना क्यों आता है?


पसीना सर्दियों में भी आ सकता है। महत्वपूर्ण है त्वचा का ठंडा या गर्म होना। हमारे शरीर के भीतर ऐसी व्यवस्था है कि जैसे ही त्वचा का तापमान बढ़े उसे कम करने के लिए शरीर सक्रिय हो जाता है। पसीना उस कोशिश का हिस्सा है। ज़ाहिर है कि गर्मियों शरीर ज्यादा गर्म होता है इसलिए में पसीना ज्यादा आता है। स्तनधारियों की त्वचा में पसीने की ग्रंथियों से निकलने वाला एक तरल पदार्थ हैजिसमें पानी मुख्य रूप से शामिल हैं और साथ ही विभिन्न क्लोराइड तथा यूरिया की थोड़ी सी मात्रा होती है। तेज़ गर्मी में त्वचा की सतह गर्म होने पर शरीर पानी छोड़कर उसे ठंडा करने की कोशिश करता है। गर्म मौसम मेंया व्यक्ति की मांसपेशियों को मेहनत के काम करने के कारणशरीर पसीने का उत्पादन करता है। सर्दियों में उसकी ज़रूरत नहीं होती इसलिए वह नहीं निकलता। हमारे मस्तिष्क के हायपोथेलेमस के प्रियॉप्टिक और एंटेरियर क्षेत्रों के एक केंद्र से पसीना नियंत्रित होता हैजहां तापमान से जुड़े न्यूरॉन्स होते हैं। त्वचा में तापमान रिसेप्टर्स से प्राप्त सूचनाओं से मस्तिष्क सक्रिय हो जाता है और पसीना निकलने लगता है।

क्या सफेद हाथी भी होते हैं?

दक्षिण पूर्व एशिया के थाईलैंड, म्यांमार, लाओस और कम्बोडिया आदि में सफेद हाथी भी मिलते हैं। इनकी संख्या कम होने के कारण इन्हें महत्वपूर्ण माना जाता है। राजा महाराजा ही इन्हें रखते हैं। हिन्दू परम्परा में सफेद हाथी ऐरावत है इन्द्र की सवारी। पवित्र होने के नाते इस इलाके में सफेद हाथियों से काम भी नहीं कराते। हाथी रखना यों भी खर्चीला काम है, इसलिए सफेद हाथी एक मुहावरा बन गया है।

हेल्मेट की शुरूआत कब हुई?

हेल्मेट का मतलब है शिरस्त्राण। सिर को बचाने वाला। ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले शिरस्त्राण मेसोपोटामिया की सभ्यता से जुड़े सैनिकों ने पहने थे। ईसा से तकरीबन एक हजार साल पहले सैनिकों ने चमड़े और धातु के बने टोपे पहनने शुरू किए थे ताकि पत्थरों, डंडों और तलवारों के वार से बचाव हो सके। यों उसके पहले इंसान ने छाते के रूप में सिर को पानी और धूप से बचाने का इंतजाम किया था।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित


Tuesday, April 20, 2021

‘निसार’ सैटेलाइट क्या है?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा सन 2022 में एक उपग्रह का प्रक्षेपण करने वाले हैं, जिसका नाम नासा-इसरो और सिंथेटिक एपर्चर रेडार (एसएआर) को मिलाकर बनाया गया है निसार। यह उपग्रह धरती की सतह पर होने वाली एक सेमी तक छोटी गतिविधियों पर नजर रखेगा। इसका प्रक्षेपण भारत के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से किया जाएगा। इसे नियर-पोलर कक्षा में स्थापित किया जाएगा और अपने तीन साल के मिशन में यह हरेक 12 दिन में पूरी धरती को स्कैन करेगा।

इस उपग्रह की लागत आएगी 1.5 अरब डॉलर। नासा को इस सैटेलाइट के लिए एक विशेष एस-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रेडार (एसएआर) की जरूरत थी जो भारत ने उपलब्ध कराया है। इस सैटेलाइट में अब तक का सबसे बड़ा रिफ्लेक्टर एंटेना लगाया गया है। दिलचस्प बात यह है कि इसरो का जो रॉकेट इस उपग्रह को लेकर जाएगा उसपर 1992 में अमेरिका ने प्रतिबंध लगाया था। 2200 किलो वजन के नासा-इसरो सार (निसार)को दुनिया की सबसे महंगी इमेजिंग सैटेलाइट माना जा रहा है और यह कैलिफोर्निया में नासा की जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी में तैयार किया जा रहा है।

निसारधरती की सतह पर ज्वालामुखियों, बर्फ की चादरों के पिघलने और समुद्र तल में बदलाव और दुनिया भर में पेड़ों-जंगलों की स्थिति में बदलाव को ट्रैक करेगा। धरती की सतह पर होने वाले ऐसे बदलावों की मॉनिटरिंग इतने हाई रिजॉल्यूशन और स्पेस-टाइम में पहले कभी नहीं की गई। इसका हाई रिजॉल्यूशन रेडार बादलों और घने जंगल के आर-पार भी देख सकेगा। इस क्षमता से दिन और रात दोनों के मिशन में सफलता मिलेगी। इसके अलावा बारिश हो या धूप, कोई भी बदलाव ट्रैक कर सकेगा। अमेरिका और भारत ने इस उपग्रह के प्रक्षेपण का समझौता 2014 में किया था।

रेलगाड़ी की आखिरी बोगी के आखिर में X क्यों अंकित होता है?

रेलगाड़ी के आखिरी डिब्बे पर कोई निशान जरूरी है ताकि उनपर नज़र रखने वाले कर्मचारियों को पता रहे कि पूरी गाड़ी गुज़र गई है। सफेद या लाल रंग से बना यह बड़ा सा क्रॉस आखिरी डिब्बे की निशानी है। इसके अलावा अब ज्यादातर गाड़ियों में अंतिम बोगी पर बिजली का एक लैम्प भी लगाया जाता है, जो रह-रहकर चमकता है। पहले यह लैम्प तेल का होता था, पर अब यह बिजली का होता है। इस लैम्प को लगाना नियमानुसार आवश्यक है। इसके अलावा इस आखिरी डिब्बे पर अंग्रेजी में काले या सफेद रंग का एलवी लिखा एक बोर्ड भी लटकाया जाता है। एलवी का मतलब है लास्ट वेहिकल। यदि किसी स्टेशन या सिग्नल केबिन से कोई गाड़ी ऐसी गुजरे जिसपर लास्ट वेहिकल न हो तो माना जाता है कि पूरी गाड़ी नहीं आ पाई है। ऐसे में तुरत आपात कालीन कार्रवाई शुरू की जाती है।

कार्निवल ग्लास क्या है?

कार्निवल ग्लास से आशय शीशे के उन पात्रों और वस्तुओं से है, जो सजावटी, चमकदार और अनेक रंगतों की आभा देती हैं और महंगी नहीं होतीं। काँच की ये वस्तुएं साँचे में ढालकर या प्रेस करके तैयार की जाती हैं। इनका रूपाकार ज्यामितीय, फूलों-पत्तियों वाला और कट ग्लास जैसा भी होता है। ऐसी वस्तुएं बीसवीं सदी के शुरू बाजारों में आईं थीं और आज भी मिलती हैं। इन्हें कार्निवल ग्लास कहने के पीछे एक कारण यह है कि पश्चिमी देशों में लगने वाले मेलों और उत्सवों में, जिन्हे कार्नवल कहा जाता है ऐसी काँच की वस्तुओं को प्रतियोगिताओं में इनाम के रूप में दिया जाता था।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित 

 

 

 

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