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Saturday, March 9, 2024

‘वोक’ का मतलब क्या?

अंग्रेजी का ‘वोक’ शब्द वेक यानी जागने का पास्ट टेंस है। इसका अर्थ है ‘जागा हुआ, जाग्रत या जागरूक।’ इस अर्थ में यह व्यक्ति के गुण को बताता है। मूलतः यह अफ्रीकन-अमेरिकन वर्नाक्युलर इंग्लिश (एएवीई) से निकला शब्द है, जिसकी पृष्ठभूमि अमेरिकी जन-जीवन से जुड़ी है। इसका इस्तेमाल रंगभेद और सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध जाग्रति के अर्थ में किया जाता है। यह 1930 के दशक में ही गढ़ लिया गया था। तब इसका अर्थ था अश्वेतों के अधिकारों के पक्ष में जाग्रत।

पिछली सदी के अमेरिकी अश्वेत संगीतकार लीड बैली और हाल के वर्षों में एरिका बैडू ने इसे लोकप्रिय बनाया। अलबत्ता 2010 के शुरुआती वर्षों में इसका इस्तेमाल प्रजातीय, लैंगिक भेदभाव के विरुद्ध और एलजीबीटी अधिकारों के लिए भी होने लगा। तब इसका अर्थ-विस्तार हो गया। यानी केवल रंगभेद या प्रजातीय भेदभाव के अलावा अमेरिकी वामपंथियों ने सामाजिक पहचान, सामाजिक-न्याय के पक्ष में और गोरों की श्रेष्ठता जैसी धारणाओं के विरुद्ध खड़े लोगों के लिए इस विशेषण का इस्तेमाल करना शुरू किया। 2014 में एक अश्वेत व्यक्ति की मौत के बाद शुरू हुए फर्ग्युसन आंदोलन और ब्लैक लाइव्स मैटर जैसे आंदोलनों से यह और लोकप्रिय हुआ। वोक शब्द 2017 में ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में भी शामिल हो गया। इस दौर में इनक्लूसिव या समावेशी धारणाओं, लैंगिक समानता, पर्यावरण-सुरक्षा और राजनीतिक सतह पर धर्मनिरपेक्षता जैसे विचारों की बात होती है। इन विचारों के अंतर्विरोधों को उभारने के लिए वामपंथ के विरोधी इस शब्द का नकारात्मक अर्थ में या मज़ाक में भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।

स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव

स्वतंत्रता के बाद भारत के पहले आम चुनाव 25 अक्तूबर, 1951 से 21 फरवरी, 1952 तक हुए। उसमें लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के लिए जन-प्रतिनिधियों का चुनाव 17 करोड़ 30 लाख अधिकृत मतदाताओं में से 10 करोड़ 60 लाख ने वोट डालकर किया। लोकसभा की 489 सीटों के लिए कुल 1,874 प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें से 533 निर्दलीय प्रत्याशी थे। चुनाव में कुल 53 पार्टियों ने हिस्सा लिया। चुनाव में कांग्रेस के 364 प्रत्याशी जीते, दूसरे स्थान पर कम्युनिस्ट पार्टी रही, जिसके 16 और तीसरे स्थान पर सोशलिस्ट पार्टी के 12 प्रत्याशी जीते। जनसंघ को कुल तीन सीटें मिलीं और डॉ भीमराव आंबेडकर की पार्टी शेड्यूल्‍ड कास्ट फेडरेशन को दो सीटें मिलीं। डॉ आंबेडकर स्वयं चुनाव हार गए थे।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

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