Sunday, March 31, 2019

सीएजी क्या होता है?


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भारत का नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक जिसे अंग्रेजी में कम्प्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल कहते हैं, जिसका संक्षिप्त रूप है सीएजी। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 द्वारा स्थापित एक प्राधिकारी है जो भारत सरकार, सभी प्रादेशिक सरकारों तथा सरकारी पूँजी से बने सभी सार्वजनिक उपक्रमों और संस्थाओं के सभी तरह के हिसाब-किताब की परीक्षा करता है। उसकी रिपोर्ट पर संसद की लोकलेखा समिति (पीएसी) तथा सार्वजनिक उपक्रमों की समिति विचार करती है। यह एक स्वतंत्र संस्था है, जिसपर सरकार का नियंत्रण नहीं होता। सीएजी की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। सीएजी ही भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा का भी मुखिया होता है। सीएजी से सम्बद्ध व्यवस्थाएं हमारे संविधान के अनुच्छेद 148 से 151 तक की गईं हैं। देश के वरीयता अनुक्रम में सीएजी का स्थान नौवाँ होता है, जो सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश के बराबर है। देश के वर्तमान सीएजी हैं राजीव महर्षि, जिन्होंने 25 सितम्बर 2017 को पदभार संभाला था। वे देश के 13वें सीएजी हैं। इसका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की उम्र, जो भी पहले होगा, की अवधि के लिए होता है। उसे उसके पद से केवल उसी रीति से और उन्ही आधारों पर हटाया जा सकता है, जिस रीति से और जिन आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है। अपने पद पर न रह जाने के पश्चात या तो सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन वह किसी और पद का पात्र नहीं होगा।

सीएजी का काम क्या है?

संघ और राज्यों और किसी अन्य प्राधिकरण या निकाय के खातों के संबंध में संविधान का अनुच्छेद 149 कैग को शक्तियां अथवा अधिकार प्रदान करता है। इस संस्था के कर्तव्यों और शक्तियों को निर्दिष्ट करने के लिए संसद ने सीएजी (कर्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) अधिनियम 1971 पास किया था। इस अधिनियम में 1976 में संशोधन भी किया गया था। सीएजी वस्तुतः सार्वजनिक धन का प्रहरी है। वह उस खर्च की गई धनराशि की जांच करता है, जिसे कार्यपालिका एक समान रूप से कानून द्वारा स्थापित और संसद के दिशा-निर्देशों के अनुसार उपलब्ध कराती है। वह केवल संसद के प्रति जवाबदेह है जो कार्यपालिका के प्रभाव से उसको स्वंतत्र बनाती है। वह निम्नलिखित रिपोर्टें राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है: 1।विनियोग खातों पर ऑडिट रिपोर्ट, 2।वित्तीय खातों का ऑडिट रिपोर्ट, 3।सार्वजनिक उपक्रमों पर लेखा-परीक्षा रिपोर्ट।

रिपोर्ट देने के बाद?

संघ के खातों से सम्बद्ध रिपोर्ट राष्ट्रपति को और राज्यों के खातों से सम्बद्ध रिपोर्ट सीएजी सम्बद्ध राज्यपालों को देते हैं। इसके बाद ये रिपोर्टें संसद या सम्बद्ध राज्य विधानसभाओं के पास भेजी जाती हैं। संसद और विधानसभाओं की समितियाँ जैसे लोकलेखा समिति, और कमेटी ऑन पब्लिक अंडरटेकिंग्स रिपोर्ट पर विचार करती हैं और यह देखती हैं कि क्या सरकारी व्यय में नीतियों का पालन किया गया है। वहाँ यह भी देखा जाता है कि किसी सरकारी निकाय की तरफ से कोई गड़गड़ी तो नहीं की गई है। फिर मामले को चर्चा के लिए संसद में पेश किया जाता है और उस पर कार्रवाई की जाती है।


एशेज ट्रॉफी का सम्बन्ध किस खेल से है?

एशेज ट्रॉफी इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेली जाने वाली क्रिकेट श्रृंखला का नाम है। दोनों देशो के बीच यह 1882 से खेली जा रही है। इस सीरीज का नामकरण ब्रिटिश मीडिया ने किया था। इसकी शुरुआत 1882 में हुई जब ऑस्ट्रेलिया ने ओवल में पहली बार इंग्लैंड टीम को उसी की धरती पर हराया। ऑस्ट्रेलिया से मिली इस करारी हार को ब्रिटिश मीडिया बर्दाश्त नहीं पाया। एक अखबार The Sports Times ने एक शोक संदेश छापा जिसमें लिखा था- इंग्लिश क्रिकेट का देहान्त हो चुका है। तारीख 29 अगस्त 1882, ओवल और अब इनका अंतिम संस्कार के बाद राख [ashes] ऑस्ट्रेलिया ले जाई जाएगी। जब 1883 में इंग्लिश टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर रवाना हुई तो इसी लाइन को आगे बढ़ाते हुए इंग्लिश मीडिया ने ashes वापस लाने की बात रखी “Quest to regain Ashes” बाद में विकेट की बेल्स को जलाकर जो राख बनी उसको ही एक Urn [राख रखने वाले बर्तन] में डाल कर इंग्लैंड के कप्तान इवो ब्लिग को दिया गया। वहीं से परम्परा चली आई और आज भी Ashes की ट्रॉफी उसी राख वाले बर्तन को ही माना जाता है और उसी की एक बड़ी डुप्लीकेट ट्रॉफी बना कर दी जाती है।12 से 18 माह के अंतराल में होने वाली एशेज सिरीज में पाँच टेस्ट खेले जाते हैं। 
गोलमेज वार्ता क्या होती है?
गोलमेज वार्ता जैसा नाम है वह बताता है काफी लोगों की बातचीत जो एक-दूसरे के आमने सामने हों। अंग्रेजी में इसे राउंड टेबल कहते हैं, जिसमें गोल के अलावा यह ध्वनि भी होती है कि मेज पर बैठकर बात करना। यानी किसी प्रश्न को सड़क पर निपटाने के बजाय बैठकर हल करना । यानी अनेक विचारों के व्यक्तियों का एक जगह आना। माना जाता है कि 12 नवम्बर 1930 को जब ब्रिटिश सरकार ने भारत में राजनीतिक सुधारों पर अनेक पक्षों से बातचीत की तो उसे राउंड टेबल कांफ्रेंस कहा गया। इस बातचीत के कई दौर हुए थे। 

Saturday, March 30, 2019

बॉडी लैंग्वेज क्या होती है?


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आप और अन्य सभी लोग अक्सर दूसरों को अच्छी तरह से समझने की बात करते हैं। ऐसा संभव होता है, बॉडी लैंग्वेज के माध्यम से। दरअसल बॉडी लैंग्वेज अपने आप में एक समूची भाषा है, जो आपके व्यक्तित्व से लेकर आपके मन मे क्या चल रहा है, यह सब बता सकती है। बॉडी लैंग्वेज या कहें आपके हाव-भाव, एक तरह की शारीरिक भाषा है, जिसमें शब्द भले न हों, लेकिन यह बहुत कुछ कहती है। यह आपके व्यक्तित्व को दर्शाती है।

हर हाव-भाव का एक अलग अर्थ होता है। यह आपके दिल-दिमाग में क्या चल रहा है, बता देती है। मसलन, किसी वक्त आपके अंदर गुस्सा, उदासी, मनोरंजन, खुशी जैसे भावों यह बॉडी लैंग्वेज आसानी से बता सकती है। सबसे महत्वपूर्ण है चेहरे का अध्ययन। चेहरे पर आए भाव नाराजगी, खुशी, जलन, चिंता और चंचलता को सामने ला देते हैं। कुछ पसंद नहीं आ रहा हो तो नाक सिकोड़ते हैं, मुंह फुला लेते हैं।

आँखों को बॉडी लैंग्वेज समझने का सबसे अहम हिस्सा कहा जाए, तो गलत नहीं होगा। अगर आप संतुलित व सीधी अवस्था में हैं, तो यह आपके आत्मविश्वास को दर्शाती है। इसी प्रकार आपके बैठने की अवस्था भी बॉडी लैंग्वेज का अनिवार्य हिस्सा है। बैठने के दौरान अगर आप आगे की ओर झुक कर बैठते हैं, तो इसका मतलब यह है कि आप दोस्ताना हैं। अगर आप सिर उठाते समय मुस्कराते हैं, तो यह आपके चंचल मन होने की निशानी है। या फिर आप मजाकिया स्वभाव के भी हो सकते हैं। एक अनुमान के अनुसार इंसान चेहरे पर 2,50,000 हाव-भाव उत्पन्न कर सकता है। झूठ बोलने वाला इंसान नजरें मिलाकर बात नहीं कर सकता।

ट्रैफिक लाइट्स सबसे पहले कहाँ लगीं?
ट्रैफिक सिग्नल की शुरूआत रेलवे से हुई है। रेलगाड़ियों को एक ही ट्रैक पर चलाने के लिए बहुत ज़रूरी था कि उनके लिए सिग्नलिंग की व्यवस्था की जाए। 10 दिसम्बर 1868 को लंदन में ब्रिटिश संसद भवन के सामने रेलवे इंजीनियर जेपी नाइट ने ट्रैफिक लाइट लगाई। पर यह व्यवस्था चली नहीं। सड़कों पर व्यवस्थित रूप से ट्रैफिक सिग्नल सन 1912 में अमेरिका सॉल्ट लेक सिटी यूटा में शुरू किए गए। सड़कों पर बढ़ते यातायात के साथ यह व्यवस्था दूसरे शहरों में भी शुरू होती गई।

आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति कितनी पुरानी है?

आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। यह अथर्ववेद का उपवेद है। यह विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार संचार की प्राचीनतम् पुस्तक ऋग्वेद है । विभिन्न विद्वानों ने इसका रचना काल ईसा के 3000 से भी ज्यादा साल पहले का माना है। इस संहिता में भी आयुर्वेद के अति महत्त्व के सिद्धान्त यत्र-तत्र विकीर्ण है। चरक, सुश्रुत, काश्यप आदि मान्य ग्रन्थ आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं। इससे आयुर्वेद की प्राचीनता सिद्ध होती है।

‘आयुर्वेद’ का अर्थ है, ‘जीवन का ज्ञान’-और यही संक्षेप में आयुर्वेद का सार है। आयु+वेद अर्थात आयुर्वेद। इस शास्त्र के आदि आचार्य अश्विनी कुमार माने जाते हैं जिन्होंने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ा था। अश्विनी कुमारों से इंद्र ने यह विद्या प्राप्त की। इंद्र ने धन्वंतरि को सिखाया। काशी के राजा दिवोदास धन्वंतरि के अवतार कहे गए हैं। उनसे जाकर सुश्रुत ने आयुर्वेद पढ़ा। अत्रि और भारद्वाज भी इस शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं। आय़ुर्वेद के आचार्य ये हैं— अश्विनी कुमार, धन्वंतरि, दिवोदास (काशिराज), नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, जाजलि, पैल, करथ, अगस्त, अत्रि तथा उनके छः शिष्य (अग्निवेश, भेड़, जातूकर्ण, पाराशर, सीरपाणि हारीत), सुश्रुत और चरक।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

Friday, March 29, 2019

भारत ने अपना पहला एकदिनी क्रिकेट मैच कब खेला?

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भारत ने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय एकदिनी मैच 23 जुलाई 1974 को इंग्लैंड के विरुद्ध हैडिंग्ले में खेला। यह प्रूडेंशियल ट्रॉफी का पहला मैच था। इसमें इंग्लैंड ने भारत को चार विकेट से हराया।

ओलिंपिक में क्रिकेट क्यों नहीं?

1896 में एथेंस में हुए पहले ओलिम्पिक खेलों में क्रिकेट को भी शामिल किया गया था, पर पर्याप्त संख्या में टीमें न आ पाने के कारण, क्रिकेट प्रतियोगिता रद्द हो गई। सन 1900 में पेरिस में हुए दूसरे ओलिम्पिक में चार टीमें उतरीं, पर बेल्जियम और नीदरलैंड्स ने अपना नाम वापस ले लिया, जिसके बाद सिर्फ फ्रांस और इंग्लैंड की टीमें बचीं। उनके बीच मुकाबला हुआ, जिसमें इंग्लैंड की टीम चैम्पियन हुई। अब उम्मीद की जा रही है कि 2024 के ओलिम्पिक खेलों में टी-20 क्रिकेट को शामिल किया जाए।

फैट जीन क्या है?

ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने ‘एफटीओ’ नामक विशेष कोशिका खोज निकाली, जिसकी वजह से मोटापा, हृदयघात और मधुमेह जैसी बीमारियां देखने को मिलती हैं। जिनके शरीर में यह खास किस्म का जीन पाया जाता है, उन्हें अगर एक प्रकार का आहार दिया जाए, तो वह उन लोगों के मुकाबले अपना वजन बढ़ा हुआ महसूस करते है, जिनके शरीर में यह जीन नहीं होता है। वैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि इस जीन को खोज लिया गया है, जो कोशिकाओं में चर्बी जमा होने के लिए जिम्मेदार हैं। इन्हें फिट-1 व फिट-2 (फैट इंड्यूसिंग ट्रांसक्रिप्ट 1-2) जीन कहा जाता है।

प्रशंसक के अर्थ में ‘फैन’ शब्द कैसे बना?

दो साल पहले फिल्म 'फैन' के नायक थे शाहरुख खान। व्यक्तिगत बातचीत में कहीं शाहरुख ने कहा, फैन शब्द मुझे पसंद नहीं। उनका कहना था, फैन शब्द फैनेटिक (उन्मादी) से निकला है। यह कई बार नकारात्मक भी होता है। आप ने अक्सर लोगों को यह कहते सुना होगा कि मैं अमिताभ का फैन हूँ या सचिन तेंदुलकर, रेखा या विराट कोहली का फैन हूँ। कुछ लोग मज़ाक में कहते हैं कि मैं आपका पंखा हूँ, क्योंकि फैन का सर्वाधिक प्रचलित अर्थ पंखा ही है।

‘फैन’ का अर्थ उत्साही समर्थक या बहुत बड़ा प्रशंसक भी होता है, पर इसका यह अर्थ हमेशा से नहीं था। इसका जन्म अमेरिका में बेसबॉल के मैदान में हुआ। इसका पहली बार इस्तेमाल किया टेड सुलीवॉन ने, जो सेंट लुईस ब्राउन्ज़ बेसबॉल टीम के मैनेजर थे। सन 1887 में फिलाडेल्फ़िया की एक खेल पत्रिका ‘स्पोर्टिंग लाइफ़’ में इस शब्द के बारे में जानकारी दी गई। इसमें बताया गया कि फैन शब्द ‘फैनेटिक’ का संक्षिप्त रूप है।

टेड सुलीवॉन ने बताया, ‘मैं टीम के मालिक क्रिस से बात कर रहा था। क्रिस के निदेशक मंडल में बेसबॉल के दीवाने भी थे जो मेरे कामों में हमेशा दखल देते रहते और क्रिस को यह बताते रहते कि टीम को कैसे चलना चाहिए। मैंने क्रिस से कहा कि मुझे इतने सारे फैनेटिक्स की सलाह की ज़रूरत नहीं है। इसी बातचीत में संक्षेप में फैन्ज़ शब्द बन गया। मैंने कहा कि क्रिस यहां बहुत सारे फैन्ज़ हैं। बाद में अखबारों में यह शब्द चल निकला।’
पहले यह शब्द अमेरिकी खेल प्रेमियों के लिए ही प्रयोग होता रहा, लेकिन बाद में यह दूसरे खेलों और फिर जीवन के सभी क्षेत्रों में छा गया। इस शब्द से फैनडम शब्द बना। फिर फैन मेल, फैन लेटर और फैन क्लब तक बन गए।



















Thursday, March 28, 2019

प्रस्ताव 1267 क्या है?


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अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को काबू करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के इस प्रस्ताव का जिक्र हाल में जैशे-मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को आतंकवादी घोषित करने के संदर्भ में हुआ था. यह प्रस्ताव 15 अक्तूबर, 1999 को पास हुआ था. अफ़ग़ानिस्तान में बिगड़ते हालात के मद्देनज़र सुरक्षा परिषद ने ओसामा बिन लादेन को आतंकवादी घोषित करने के लिए इस प्रस्ताव को पास किया था. इसके पहले सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव संख्या 1189 (1998), 1193 (1998) और 1214 (1998) पास किए थे. इन तीनों प्रस्तावों को वापस लेकर यह प्रस्ताव 1267 पास किया गया. इसका उद्देश्य ओसामा बिन लादेन और अल कायदा से जुड़े अन्य संगठनों को आतंकवादी घोषित करने के अलावा ऐसे संगठनों पर लागू होने वाले प्रतिबंधों की एक वैश्विक-व्यवस्था की स्थापना करना भी था. इसके तहत अफ़ग़ानिस्तान की तत्कालीन तालिबान सरकार पर भी प्रतिबंध लगाए गए थे. इस व्यवस्था के तहत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक समिति बनी है। इसके अलावा ऐसे व्यक्तियों और संस्थाओं की सूची है, जो अल कायदा और अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े हैं. साथ ही ऐसे कानूनों की रूपरेखा है, जो प्रतिबंध लगाए जाने के बाद सम्बद्ध देशों को लागू करने होते हैं. यह समिति सभी देशों से रिपोर्ट प्राप्त करती है, जिसमें इस बात का विवरण होता है कि प्रतिबंध किस प्रकार से लागू हो रहे हैं.

क्या जैश पर प्रतिबंध है?

जैशे-मोहम्मद की स्थापना सन 2000 में पाकिस्तान में आईएसआई की मदद से हुई थी. सन 2001 में ही प्रस्ताव 1267 के तहत उसे आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया गया था. यह संगठन कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए बनाया गया था. उसे आतंकवादी साबित करने की घोषणा उसके अल कायदा के साथ रिश्तों के आधार पर थी. इसी संगठन ने सन 2001 में जम्मू कश्मीर विधान सभा और भारतीय संसद पर हमले किए. जनवरी 2016 में पठानकोट हवाई अड्डे पर हमले, उसी साल अफ़ग़ानिस्तान के मजारें शरीफ स्थित भारतीय मिशन और फिर उड़ी के हमलों में उसका हाथ था. अब पुलवामा में उसका हाथ है, जिसकी जिम्मेदारी उसने ली है. इसके अलावा अनेक छोटी-मोटी गतिविधियों में इसका हाथ रहा है. इसका मुखिया मसूद अज़हर है, जो भारतीय जेल में कैद था और उसे सन 1999 में इंडियन एयरलाइंस की उड़ान संख्या 814 के अपहरण के बाद छुड़ाया गया था.

प्रतिबंध में होता क्या है?

यह प्रतिबंध लगने के बाद संगठनों के सभी साधनों यानी बैंक खाते वगैरह को सरकारें अपने कब्जे में ले लेतीं हैं. सम्बद्ध सरकारों को यह भी सुनिश्चित करना होता है कि इन संगठनों को किसी प्रकार की मदद न मिलने पाए. इस प्रस्ताव के बाद 19 दिसम्बर, 2000 को सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 1333 भी पास किया था, जिसका उद्देश्य था तालिबान को किसी प्रकार की फौजी मदद रोकना तथा उसके कैम्पों को बन्द कराना. इस सूची में दर्ज व्यक्तियों पर यात्रा सम्बद्ध प्रतिबंध भी होते हैं. हालांकि जैश पर प्रतिबंध के बावजूद पिछले 18-19 साल में जैश का विस्तार ही हुआ है.



Friday, March 15, 2019

युद्धबंदी क्या होते हैं?


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नाम से स्पष्ट है कि युद्ध के दौरान दूसरे देश में पकड़े गए सैनिक को युद्धबंदी कहते हैं. इनमें सेना से सम्बद्ध असैनिक कर्मी भी हो सकते हैं. प्राचीन काल में इन बंदियों के जीवन और रिहाई की सम्भावनाएं बहुत कम होती थीं, उन्हें या तो मार दिया जाता था या गुलाम बनाकर रखा जाता था. पर बीसवीं सदी आते-आते इस सिलसिले में काफी बदलाव आए हैं. खासतौर से दूसरे विश्व युद्ध के बाद. अलबत्ता उन्नीसवीं सदी में इस विषय पर वैश्विक सहमति बनाने के प्रयास शुरू हो गए थे. सन 1874 में रूस के ज़ार अलेक्जेंडर द्वितीय की पहल पर यूरोप के 15 देशों के प्रतिनिधि ब्रसेल्स में एकत्र हुए और उन्होंने युद्धों से जुड़े नियमों पर एक अंतरराष्ट्रीय संधि का प्रारूप तैयार किया. अंतरराष्ट्रीय कानूनों का एक संस्थान बना, जिसके तहत 1880 में ऑक्सफोर्ड में इस सिलसिले में एक मैनुअल तैयार किया गया. इसके बाद 1899 और 1907 में हेग में हुए दो सम्मेलनों में नियमों को स्पष्ट किया गया.

जिनीवा संधि क्या है?

इन व्यवस्थाओं को और दुरुस्त किया गया सन 1929 के जिनीवा सम्मेलन में. वस्तुतः चार महत्वपूर्ण जिनीवा संधियों में युद्ध के ज्यादातर नियमों को स्वीकार किया गया था, इनमें भी 1949 की तीसरी संधि सबसे महत्वपूर्ण है. तीसरी संधि के अनुच्छेद 4 में व्यवस्था है कि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को टॉर्चर नहीं किया जा सकता. साथ ही उस व्यक्ति को अपना नाम, जन्मतिथि, रैंक और सर्विस नम्बर (यदि हो तो) से ज्यादा जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. ऐसे मौकों पर इंटरनेशनल कमेटी ऑफ द रेडक्रॉस मानवीय प्रश्नों को देखती है और सहायता पहुँचाती है. पहले विश्वयुद्ध की समाप्ति होने तक करीब 80 लाख सैनिकों ने समर्पण किया था. उस समय हेग सम्मेलनों के नियम ही लागू होते थे. इनमें बड़ी संख्या में सैनिक मर गए. दूसरे विश्वयुद्ध में इससे भी बड़ी संख्या में सैनिक युद्धबंदी बनाए गए. सन 1971 के युद्ध के बाद भारत ने पाकिस्तान के 90,368 सैनिकों को युद्धबंदी बनाया था.   

भारत-पाक संधि?

चूंकि भारत और पाकिस्तान के बीच इस वक्त कोई घोषित युद्ध नहीं था, इसलिए उन्हें युद्धबंदी कहना भी ठीक नहीं होगा. भारत और पाकिस्तान की सीमा पर अक्सर इधर या उधर के लोग भटक कर आ जाते हैं. इनमें औसतन तीन-चार सैनिक होते हैं. दोनों देशों में जिनीवा संधि के अलावा अनौपचारिक सहमति है और ऐसे व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ते में वापस अपने देश में भेज दिए जाते हैं. यों जिनीवा संधि के तहत इसकी कोई समय सीमा तय नहीं है. सन 1999 में हुए करगिल कांड के समय भारतीय वायुसेना के पायलट के नचिकेता इसी तरह पाकिस्तानी क्षेत्र में पकड़े गए थे. उनकी वापसी आठ दिन में हो गई थी.

पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान?


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पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान उन्हें कहते हैं, जिनका विकास 21वीं सदी के शुरूआती वर्षों में हुआ है. कुछ विशेषताओं के कारण उन्हें पाँचवीं पीढ़ी के विमान माना जाता है. अमेरिकी कम्पनी लॉकहीड मार्टिन के अनुसार पाँचवीं पीढ़ी के विमान पूरी तरह स्टैल्थ होने चाहिए. स्टैल्थ या लोपन क्षमता यानी नजर में न आना. लो प्रोबेबिलिटी ऑफ इंटरसेप्ट रेडार (एलपीआईआर), उच्च क्षमतावान एयरफ्रेम, एडवांस्ड एवियॉनिक्स फीचर और उच्च क्षमतावान इंटीग्रेटेड कम्प्यूटर सिस्टम्स जो युद्धक्षेत्र में जमीन पर स्थित केन्द्रों, साथ में चल रहे विमानों, टोही विमानों और शत्रु के विमानों पर नजर रखने वाले एवॉक्स से निरंतर जुड़े रहें. इस परिभाषा के हिसाब से दुनिया के पाँचवीं पीढ़ी का विमान लॉकहीड मार्टिन का एफ-22 रैप्टर, उनका ही एफ-35 लाइटनिंग-2, चीन का चेंग्दू जे-20, शेनयांग जे-31, जापान का मित्सुबिशी एक्स-2 शिनशिन और रूस का सुखोई-57 और तुर्की का टीएआई टीएफएक्स आता है. इनमें से ज्यादातर विमान विकास के दौर में हैं. भारत में तेजस के बाद बनने वाले एडवांस मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट में भी ये सुविधाएं होंगी. व्यावहारिक रूप से अमेरिकी एफ-22 रैप्टर और एफ-35 को ही पूरी तरह पाँचवीं पीढ़ी के विमान माना जा सकता है. 

पीढ़ी निर्धारण कैसे?

पहली पीढ़ी के लड़ाकू विमान सबसोनिक थे. यानी कि उनकी स्पीड आवाज की गति से कम होती थी. ये सब 1950 के पहले के विमान थे. 1950 के बाद ट्रांससोनिक विमान आए, जिनकी गति आवाज की गति के आसपास थी. तीसरी पीढ़ी में अमेरिका के एफ-100 और एफ-8 और रूस के मिग-19 जैसे विमानों को शामिल किया जाता है, जो सुपरसोनिक थे. साठ के दशक के बाद अमेरिका के एफ-104, रूस के मिग-21 और फ्रांस के मिराज-3 को सुपरसोनिक शृंखला में चौथी पीढ़ी के विमान कहा जा सकता है, जो ध्वनि से दुगनी और ज्यादा गति से उड़ान भरने के अलावा कई प्रकार के मिसाइलों से लैस थे. इसके बाद विमानों में एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैंड एरे (एईएसए) रेडार, बियांड विजुअल रेंज (बीवीआर) मिसाइलों, फ्लाई बाई वायर और नेटवर्क सेंट्रिक वॉरफेयर का जमाना आया. इनके कारण इन्हें 4+ पीढ़ी के विमान कहा जाता है. हमारा तेजस भी ऐसा ही विमान है, जिसमें एईएसए रेडार, बीवीआर मिसाइल, हवा में ही ईंधन भरने की सुविधा और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सूट जैसी सुविधाएं हैं.

क्या छठी पीढ़ी भी है?

ज़ाहिर है कि पाँचवीं पीढ़ी के बाद जो तकनीकी विकास होगा, वह छठी पीढ़ी के खाते में जाएगा. पाँचवीं पीढ़ी के विमानों में धातुओं और एलॉय के मुकाबले कम्पोज़िट मैटीरियल का इस्तेमाल ज्यादा होता है. इससे उनका वज़न कम होता है साथ ही रेडार क्रॉस सेक्शन यानी कि रेडार की पकड़ कम होती है. इनमें सेंसर लगे हैं, जो आने वाले मिसाइलों की पहचान करके उन्हें रास्ते में ही ध्वस्त करते हैं. अमेरिकी कम्पनियों को उम्मीद है कि वे 2025-30 के बीच छठी पीढ़ी के विमान तैयार कर लेंगी. हाल में मानव रहित विमानों की तकनीक विकसित होने के बाद सम्भावना है कि छठी पीढ़ी के विमान मानव-रहित हों.



सीएजी क्या होता है?


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भारत का नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक जिसे अंग्रेजी में कम्प्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल कहते हैं, जिसका संक्षिप्त रूप है सीएजी. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 द्वारा स्थापित एक प्राधिकारी है जो भारत सरकार, सभी प्रादेशिक सरकारों तथा सरकारी पूँजी से बने सभी सार्वजनिक उपक्रमों और संस्थाओं के सभी तरह के हिसाब-किताब की परीक्षा करता है. उसकी रिपोर्ट पर संसद की लोकलेखा समिति (पीएसी) तथा सार्वजनिक उपक्रमों की समिति विचार करती है. यह एक स्वतंत्र संस्था है, जिसपर सरकार का नियंत्रण नहीं होता. सीएजी की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं. सीएजी ही भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा का भी मुखिया होता है. सीएजी से सम्बद्ध व्यवस्थाएं हमारे संविधान के अनुच्छेद 148 से 151 तक की गईं हैं. देश के वरीयता अनुक्रम में सीएजी का स्थान नौवाँ होता है, जो सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश के बराबर है. देश के वर्तमान सीएजी हैं राजीव महर्षि, जिन्होंने 25 सितम्बर 2017 को पदभार संभाला था. वे देश के 13वें सीएजी हैं. इसका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की उम्र, जो भी पहले होगा, की अवधि के लिए होता है. उसे उसके पद से केवल उसी रीति से और उन्ही आधारों पर हटाया जा सकता है, जिस रीति से और जिन आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है. अपने पद पर न रह जाने के पश्चात या तो सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन वह किसी और पद का पात्र नहीं होगा.

सीएजी का काम क्या है?

संघ और राज्यों और किसी अन्य प्राधिकरण या निकाय के खातों के संबंध में संविधान का अनुच्छेद 149 कैग को शक्तियां अथवा अधिकार प्रदान करता है. इस संस्था के कर्तव्यों और शक्तियों को निर्दिष्ट करने के लिए संसद ने सीएजी (कर्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) अधिनियम 1971 पास किया था. इस अधिनियम में 1976 में संशोधन भी किया गया था. सीएजी वस्तुतः सार्वजनिक धन का प्रहरी है. वह उस खर्च की गई धनराशि की जांच करता है, जिसे कार्यपालिका एक समान रूप से कानून द्वारा स्थापित और संसद के दिशा-निर्देशों के अनुसार उपलब्ध कराती है. वह केवल संसद के प्रति जवाबदेह है जो कार्यपालिका के प्रभाव से उसको स्वंतत्र बनाती है. वह निम्नलिखित रिपोर्टें राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है: 1.विनियोग खातों पर ऑडिट रिपोर्ट, 2.वित्तीय खातों का ऑडिट रिपोर्ट, 3.सार्वजनिक उपक्रमों पर लेखा-परीक्षा रिपोर्ट.

रिपोर्ट देने के बाद?

संघ के खातों से सम्बद्ध रिपोर्ट राष्ट्रपति को और राज्यों के खातों से सम्बद्ध रिपोर्ट सीएजी सम्बद्ध राज्यपालों को देते हैं. इसके बाद ये रिपोर्टें संसद या सम्बद्ध राज्य विधानसभाओं के पास भेजी जाती हैं. संसद और विधानसभाओं की समितियाँ जैसे लोकलेखा समिति, और कमेटी ऑन पब्लिक अंडरटेकिंग्स रिपोर्ट पर विचार करती हैं और यह देखती हैं कि क्या सरकारी व्यय में नीतियों का पालन किया गया है. वहाँ यह भी देखा जाता है कि किसी सरकारी निकाय की तरफ से कोई गड़बड़ी तो नहीं की गई है. फिर मामले को चर्चा के लिए संसद में पेश किया जाता है और उस पर कार्रवाई की जाती है.

रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति?


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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अर्थशास्त्रियों को चौंकाते हुए पिछले हफ्ते गुरुवार को नीतिगत दरों में 25 आधार अंक की कटौती की घोषणा की है. बैंक  के नए गवर्नर शक्तिकांत दास के कार्यकाल में बैंक की मोनीटरी पॉलिसी कमेटी की यह पहली बैठक थी. इसमें फैसला 4-2 वोट से हुआ. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 में वित्तीय अधिनियम, 2016 के तहत संशोधन करके इस मोनीटरी पॉलिसी कमेटी का प्रावधान किया गया था. इसके तीन सदस्य रिजर्व बैंक से होते हैं और शेष तीन केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त. अगस्त 2016 में भारत के गजट में भारत सरकार ने आरबीआई की सलाह से 31 मार्च 2021 तक के लिए मुद्रास्फीति का लक्ष्य 4 फीसदी का रखा है. इस दर में अधिकतम और न्यूनतम सहनीय दरें 2 और 6 फीसदी रखी गईं हैं. मौद्रिक नीति की समीक्षा द्विमासिक आधार पर की जाती है. केंद्रीय बैंक ने रेपो दर में 18 महीनों में पहली बार कटौती की है और अब यह 6.25 फीसदी हो गई है. बैंक ने अपने 'नपे तुले सख्त' रुख को बदलकर 'तटस्थ' कर दिया. ब्याज की दरें घटने के कारण मुद्रा-प्रसार का अंदेशा रहता है, पर बैंक ने महंगाई के बारे में अपने अनुमान को भी कम किया है. उसका मानना है कि मार्च 2019 में समाप्त होने वाली चौथी तिमाही में यह 2.8 फीसदी रहेगी. वर्ष 2019-20 की पहली छमाही में इसके 3.2 से 3.4 फीसदी और तीसरी तिमाही में 3.9 फीसदी रहने का अनुमान है.

रेपो रेट होता क्या है?

रेपो रेट रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों के बीच धनराशि के आदान-प्रदान पर दिए जाने वाले ब्याज की दर है. रिजर्व बैंक जब धनराशि देता है, वह दर रेपो और जब वह दूसरे बैंकों से लेता है तब रिवर्स रेपो दर कहलाती है. बाजार में मुद्रा की स्थिति को संतुलित बनाए रखने के लिए अक्सर रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों के बीच यह आदान-प्रदान होता है. बैंकों को अपने कामकाज के लिए अक्सर बड़ी रकम की जरूरत होती है. वे रिजर्व बैंक से ओवरनाइट कर्ज लेते हैं. इस कर्ज पर ब्याज-दर को रेपो रेट कहते हैं. रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी को नियंत्रित करने में काम आता है. बाजार में जब भी बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा कराएं. बैंकिंग नियमों के तहत हरेक बैंक को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है. इसे कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर) या नकद आरक्षित अनुपात कहते हैं.

कुछ अन्य दरें

जिस दर पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते है, उसे एसएलआर (स्टेट्यूयरी लिक्विडिटी रेशियो) कहते हैं. नकदी को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. कॉमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है. आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बगैर बाजार में नकदी कम करना चाहता है तो वह सीआरआर बढ़ा देता है, इससे बैंकों के पास लोन देने के लिए कम रकम बचती है. आरबीआई ने पहली बार वित्त वर्ष 2011-12 में सालाना मॉनीटरी पॉलिसी रिव्यू में एमएसएफ (मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी) रेट का जिक्र किया था. यह अवधारणा मई 2011 को लागू हुई. इसमें सभी शेड्यूल्‍ड कॉमर्शियल बैंक एक रात के लिए अपने कुल जमा का 1 फीसद तक लोन ले सकते हैं.





Thursday, March 14, 2019

महिला आरक्षण विधेयक क्या है?


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महिला आरक्षण विधेयक 6 मई, 2008 को राज्यसभा में पेश किया था, 108वाँ संविधान संशोधन विधेयक था, जो 9 मार्च, 2010 को राज्यसभा से पास हो गया था, पर लोकसभा में इसपर मतदान नहीं हुआ और सन 2014 में 15वीं लोकसभा के भंग होने के साथ यह लैप्स हो गया. स्त्रियों को जन-प्रतिनिधित्व में आरक्षण देने पर संविधान सभा में भी विचार हुआ था. जब सन 1952 में पहली लोकसभा में केवल 4.4 फीसदी महिला सदस्य ही चुनकर आईं, तब इस विचार को बल मिला. सन 1974 में महिलाओं की स्थिति पर तैयार की गई एक रिपोर्ट में कहा गया कि राजनीतिक संस्थाओं में महिलाओं की बेहद कम संख्या को देखते हुए उन्हें पंचायतों और नगरपालिकाओं में आरक्षण दिया जाए. महिलाओं की राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (1988–2000) में पंचायतों, पालिकाओं और पार्टियों में 30 फीसदी स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित करने का सुझाव दिया गया. सन 1993 में संसद ने स्थानीय निकायों से जुड़े 73वें और 74वें संविधान संशोधन विधेयकों के तहत पंचायतों और नगरपालिकाओं में एक तिहाई सीटों महिलाओं के लिए आरक्षित कर दीं. सन 1996, 1998 और 1999 में भी संसद में महिला आरक्षण विधेयक पेश किए गए, पर तीनों पास नहीं हो पाए.

विधेयक की व्यवस्थाएं?

सन 2001 को महिला सशक्तिकरण वर्ष के रूप में घोषित किया गया था. उसी साल ‘राष्‍ट्रीय महिला अधिकारिता नीति’ लागू हुई, जिसमें उच्चस्तरीय सदनों में भी आरक्षण देने की बात कही गई. सन 2008 में पेश विधेयक के अंतर्गत लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने की व्यवस्था थी. इसमें कहा गया कि अजा, जजा के लिए आरक्षित सीटों में से एक तिहाई उन्हीं वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. इन सीटों के लिए चुनाव क्षेत्रों का रोटेशन होता रहेगा. विधेयक के अनुसार यह आरक्षण लागू होने की तिथि से पन्द्रह वर्ष तक रहेगा. हालांकि सभी दल मानते हैं कि महिलाओं के लिए सकारात्मक कदम उठाए जाने चाहिए, पर वे एक तिहाई सीटें महिलाओं को देने पर सहमत नहीं हैं. एक धारणा है कि इस आरक्षण का लाभ सामाजिक रूप से अगड़े वर्गों की महिलाओं को ही मिलेगा, क्योंकि महिलाओं के बीच वे आगे हैं. सन 1996 के विधेयक (81वाँ संविधान संशोधन विधेयक) पर विचार के लिए एक संयुक्त समिति बनाई गई थी, जिसने कहा था कि पिछड़े वर्ग को भी आरक्षण दिया जाए, जिसके बाद उस वर्ग की स्त्रियों को उसके भीतर आरक्षण दिया जाए.

आरक्षण के अलावा?


स्त्री अधिकारिता के लिए सीटों पर आरक्षण के स्थान पर दूसरे तरीके अपनाने के कुछ सुझाव भी हैं. एक सुझाव है कि राजनीतिक दलों के भीतर प्रत्याशियों की संख्या तय करते समय आरक्षण हो. स्वीडन, अर्जेंटीना, नॉर्वे, कनाडा, यूके और फ्रांस में ऐसी व्यवस्था है. दूसरे दोहरी सदस्यता. यानी कि कुछ चुनाव क्षेत्र एक के बजाय दो प्रतिनिधियों का चुनाव करें. इनमें से एक स्त्री हो. शुरू में भारत में भी बहु-सदस्यीय चुनाव क्षेत्र होते थे, पर सन 1961 के एक अधिनियम के बाद सभी चुनाव क्षेत्र एक-सदस्यीय हो गए. ऐसा महसूस किया गया था कि चुनाव क्षेत्र बहुत बड़े थे और अजा, जजा प्रतिनिधियों का महत्व तभी बढ़ेगा, जब वे ही समूचे क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेंगे.




चुनाव की अवधारणा?


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व्यापक स्तर पर यह व्यवस्था 18वीं सदी में बड़े स्तर पर सामने आई, जब यूरोप और उत्तरी अमेरिका में सांविधानिक व्यवस्थाओं के तहत प्रतिनिधियों के चुनाव की जरूरत महसूस की गई. यों चुनाव-पद्धति का विकास हो ही रहा है और तकनीकी-विकास के साथ इसका रूप बदल रहा है. चुनाव प्राचीन यूनान, रोम और भारत में भी होते थे, पर वे आधुनिक चुनाव जैसे नहीं थे. बादशाह और धर्मगुरु यानी पोप के चुनाव होते थे. वैदिक युग में भारत में गण (यानी जनजाति) के प्रमुख के रूप में राजा के चुनाव का वर्णन मिलता है. पाल राजा गोपाल (750-770 के बीच शासन) का चुनाव सामंतों ने किया था. शब्द-व्युत्पत्ति पर लिखने वाले अजित वडनेरकर के अनुसार हिंदी में निर्वाचन की जगह चुनाव शब्द का इस्तेमाल ज्यादा होता है. चुनाव शब्द बना है चि धातु से जिससे चिनोति, चयति, चय जैसे शब्द बनते हैं, जिनमें उठाना, चुनना, बीनना, ढेर लगाना जैसे भाव हैं. निश्चय, निश्चित जैसे शब्द भी इसी कड़ी के हैं जो निस् उपसर्ग के प्रयोग से बने हैं जिनमें तय करना, संकल्प करना, निर्धारण करना शामिल है. संस्कृत में निर्वचन शब्द का मतलब है व्याख्या, व्युत्पत्ति या अभिप्राय लगाना. गूढ़ वचनों में छिपे संदेश को चुनना. स्पष्ट है कि निर्वचन में चुनने का भाव ही प्रमुख है.



जनमत-संग्रह और चुनाव में अंतर?

दोनों प्रक्रियाएं जनता की राय से जुड़ी हैं, पर दोनों के उद्देश्यों में बुनियादी अंतर है. सामान्यतः चुनाव एक समयबद्ध सांविधानिक-प्रक्रिया है, जबकि जनमत-संग्रह प्रश्न-विशेष या विषय पर केन्द्रित है. जैसे कि सन 2015 में ब्रिटेन की जनता ने यूरोपियन यूनियन से हटने का फैसला जनमत-संग्रह के माध्यम से किया. शुरू में सांविधानिक-व्यवस्थाओं को स्वीकार करने के लिए व्यापक स्तर पर जनमत-संग्रह की व्यवस्था ने भी जन्म लिया. ऑस्ट्रेलिया और स्विट्जरलैंड में अब तक दर्जनों जनमत-संग्रह हो चुके हैं. जनमत-संग्रह के लिए अंग्रेजी में रेफरेंडम (Referendum) शब्द का इस्तेमाल होता है. कई बार इसके लिए प्लेबिसाइट (Plebiscite) शब्द का इस्तेमाल भी होता है. कई जगह इन दोनों में अंतर किया जाता है. मसलन ऑस्ट्रेलिया में संविधान में बदलाव के लिए होने वाले जनमत-संग्रह को रेफरेंडम कहते हैं, और जो जनमत-संग्रह संविधान को प्रभावित नहीं करता, उसे प्लेबिसाइट. आयरलैंड में संविधान को अंगीकार करने के लिए जो पहला जनमत-संग्रह हुआ, उसे रेफरेंडम कहा गया. फिर संविधान में बदलाव के लिए जो हुआ, उसे प्लेबिसाइट.



मताधिकार क्या है?

वोट देने का अधिकार भी सबको एक साथ नहीं मिला. नागरिकों के बीच श्वेत-अश्वेत, स्त्री-पुरुष, आयु और सम्पत्ति के आधार पर भेद को खत्म होने में भी लम्बा समय लगा. आधुनिक चुनाव-पद्धतियों में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को मान्यता दी जाती है, पर इस अधिकार को बीसवीं सदी में ही मान्यता मिल पाई. ऑस्ट्रेलिया में मूल निवासियों को सन 1962 में मताधिकार मिला. महिलाओं को मताधिकार देने वाला पहला देश न्यूजीलैंड था, जहाँ 1893 में महिलाओं को वोट का अधिकार मिला. यूरोप में स्विट्जरलैंड आखिरी देश था, जहाँ 1971 में स्त्रियों को वोट देने का अधिकार मिला.





चंद्रयान-2 क्या है?


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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इसे जनवरी और फरवरी के बीच प्रक्षेपित करने की योजना बनाई थी, लेकिन समय की विंडो अब 25 मार्च से अप्रैल के अंत तक की है. इस अभियान के तहत एक लैंडर चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्टलैंड करेगा और मैंजीनस सी  और सिम्पेलियस एन नाम के दो विशाल गड्ढों के बीच के समतल इलाके में एक रोवर विचरण करेगा. छह पहियों पर सौर ऊर्जा के सहारे चलने वाला यह रोवर चन्द्रमा की सतह पर रासायनिक विश्लेषण करेगा और उनका डेटा चन्द्रयान-2 ऑर्बिटर के मार्फत पृथ्वी पर भेजा जाएगा. सरकार ने इसकी स्वीकृति 18 सितम्बर 2008 को हुई कैबिनेट की बैठक में दी थी. ऑर्बिटर और रोवर की जिम्मेदारी इसरो की थी और रूस लैंडर उपलब्ध कराता. जनवरी 2013 में इसके प्रक्षेपण की योजना थी, पर तकनीकी कारणों से उसे 2016 तक के लिए टाल दिया गया. मंगल पर रूसी फोबोस-ग्रंट के फेल हो जाने के बाद उसका अध्ययन करने के लिए रूस ने अपने हाथ इस अभियान से खींच लिए. भारत ने पूरे अभियान की जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली. प्रक्षेपण के लिए मार्च 2018 का समय तय किया गया. फिर उसे अप्रैल और फिर अक्तूबर तक टाला गया. अब इसके प्रक्षेपण का समय अप्रैल 2019 तय किया गया है.



चन्द्रयान-1 कब गया था?

इसके पहले चन्द्रयान-1 सन 2008 में भेजा गया था. चन्द्रयान-1 चंद्रमा की तरफ भेजा गया भारत का पहला अंतरिक्ष यान था. इस अभियान के अन्तर्गत एक मानवरहित यान को 22 अक्तूबर, 2008 को भेजा गया. यह चन्द्रमा की कक्षा में 8 नवम्बर 2008 को स्थापित हुआ और इसका इम्पैक्ट प्रोब 14 नवम्बर 2008 को चन्द्रमा की सतह पर गिराया गया. यह मिशन 29 अगस्त, 2009 तक सक्रिय रहा, फिर इसके साथ सम्पर्क समाप्त हो गया. यह यान पोलर सैटेलाइट लांच वेहिकल (पीएसएलवी) के एक परिवर्धित रॉकेट की सहायता से सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से छोड़ा गया था.



चन्द्रमा पर अन्य देश?

हाल में 3 जनवरी को चीन ने चंद्रमा के अनदेखे हिस्से पर अंतरिक्षयान 'चांग इ-4' उतारा. इस साल फरवरी में एक इसरायली मिशन भी चन्द्रमा पर उतारने की योजना है. यदि यह सफल हुआ तो इसरायल चन्द्रमा पर लैंडर को सॉफ्ट लैंड कराने वाला चौथा देश होगा. चीन ने इस साल के अंत में एक और मिशन चन्द्रमा पर भेजने की योजना बनाई है. वास्तविक अर्थ में चन्द्रमा पर उतरने वाला पहला यान था रूसी लूना-9 जो 31 जनवरी 1966 को उतरा था. हालांकि इसके पहले कई यान या तो चन्द्रमा की कक्षा से गुजरे या चन्द्रमा की सतह से टकराए थे. चन्द्रमा की पहली समानव यात्रा 30 मई को अमेरिकी अपोलो-11 ने की. चीन के चांग इ-3 को 1 दिसम्बर 2013 में चन्द्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता मिली. अप्रैल में भारतीय मिशन सफल हुआ तो उसका नाम भी सॉफ्ट लैंडिग करने वाले देशों की सूची में होगा. जापानी और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने भी चन्द्रमा मिशन भेजे हैं.







यूनीवर्सल बेसिक इनकम क्या है?


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इसका मतलब है नागरिकों को राज्य की ओर से एक न्यूनतम आय उपलब्ध कराना. सामाजिक कल्याण की यह एक अवधारणा है, जिसपर चार सौ साल से ज्यादा समय से दुनिया विचार कर रही है. सोलहवीं सदी में अंग्रेज न्याय-शास्त्री सर टॉमस मोर ने अपनी किताब यूटोपिया में आदर्श राज्य की परिकल्पना की थी, जिसमें हरेक व्यक्ति को न्यूनतम आय की गारंटी हो. अठारहवीं सदी में अंग्रेज विचारक टॉमस स्पेंस और अमेरिकी चिंतक टॉमस पेन ने ऐसी व्यवस्था का समर्थन किया था. बीसवीं सदी में ब्रिटिश विचारक बरट्रेंड रसेल ने इसका समर्थन किया. सन 1946 में यूनाइटेड किंगडम में बच्चों के नाम पर पारिवारिक एलाउंस देने की व्यवस्था शुरू हुई, जिसे सत्तर के दशक में चाइल्ड बेनिफिट का नाम दिया गया. साठ और सत्तर के दशक में अमेरिका और कनाडा में निगेटिव इनकम टैक्सेशन की व्यवस्था शुरू हुई, जिसमें निर्धारित स्तर से कम आय वाले लोगों को राज्य की ओर से धनराशि देने की व्यवस्था की गई. ब्राजील में सन 2008 से बोल्जा फैमीलिया नाम से एक स्कीम चल रही है.



क्या यह व्यवस्था सफल है?

अक्तूबर 2013 में स्विट्जरलैंड के नागरिकों के बीच एक जनमत संग्रह कराया गया कि क्या हमें अपने देश में ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए. इसपर 76.9 प्रतिशत नागरिकों की राय थी कि इसकी जरूरत नहीं है. इससे जुड़े कई सवाल हैं. मसलन लोगों को बैठे-ठाले पैसा मिलेगा तो वे काम नहीं करेंगे, जिससे राज्य की आय खत्म हो जाएगी. फिर भी दुनिया से गरीबी खत्म करने और एक खुशहाल दुनिया कायम करने की धारणा को पुष्ट करने के लिए इस विचार के पक्ष में आमराय बनाई जा रही है. ऐसे अनेक संगठन हैं, जो इसपर शोध कर रहे हैं. बेसिक इनकम अर्थ नेटवर्क के नाम से एक वैश्विक संस्था इसपर काम कर रही है. जिस तरह समाजवाद की अवधारणा है उसी तरह एक विचार यह भी है कि पूँजीवाद की चरम स्थिति में प्रत्येक नागरिक को एक न्यूनतम आय उपलब्ध होगी.



भारत में इसका संदर्भ क्या है?

खबर है कि भारत सरकार यूनीवर्सल बेसिक इनकम जैसा कोई कार्यक्रम घोषित कर सकती है. सिक्किम ने घोषणा की है कि वह देश का पहला राज्य होगा, जो अपने नागरिकों को न्यूनतम आय उपलब्ध कराएगा. यह कार्यक्रम 2022 से लागू करने की योजना है. इसके पहले भारत में सन 2017-18 का बजट पेश करने के पहले रखी गई 2016-17 की आर्थिक समीक्षा में एक अध्याय इस विषय पर था. इसमें सरकार को सुझाव दिया गया था कि युनीवर्सल बेसिक इनकम स्कीम लागू की जानी चाहिए. यदि यह सभी नागरिकों के लिए सम्भव न हो तो गरीबी की रेखा के नीचे के नागरिकों के लिए शुरू की जा सकती है. पिछले कुछ साल से सरकार सब्सिडी की रकम को व्यक्ति के खाते में डालने का प्रयास कर रही है. क्यों न उसे निश्चित आय की शक्ल दी जाए? ‘आधार’ और ‘जन-धन’ योजना इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं. इसमें मनरेगा को भी जोड़ा जा सकता है.





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