Sunday, June 16, 2024

ग्रैंड स्लैम के भी कई नाम हैं

ग्रैंड स्लैम का मतलब है दुनिया में टेनिस की चार सबसे बड़ी प्रतियोगिताओं में विजय हासिल करना। ये चार प्रतियोगिताएं हैं ऑस्ट्रेलिया ओपन, फ्रेंच ओपन, विंबलडन और यूएस ओपन। अब प्रोफेशनल टेनिस की प्रतियोगिताओं में एटीपी टुअर सीरीज़ भी होती है, जिसका वर्ष के अंत में एटीपी वर्ल्ड टुअर फाइनल होता है। यह प्रतियोगिता परंपरागत ग्रैंड स्लैम प्रतियोगिता नहीं है, पर प्रतिष्ठित प्रतियोगिता जरूर है। ग्रैंड स्लैम को कई नाम मिल गए हैं:-

मुख्य या कैलेंडर ग्रैंड स्लैम तब होता है जब कोई खिलाड़ी एक कैलेंडर वर्ष में सभी चार प्रमुख टूर्नामेंट जीतता है।

गैर-कैलेंडर वर्ष ग्रैंड स्लैम तब होता है जब खिलाड़ी लगातार सभी चार प्रमुख प्रतियोगिताओं में चैंपियन बनता है, पर ऐसा वह दो कैलंडर वर्ष में करता है। उदाहरण के लिए, वह 2005 में विंबलडन और यूएस ओपन में जीते और फिर 2006 में ऑस्ट्रेलिया और फ्रेंच ओपन। 1983-84 में मार्टिना नवरातिलोवा ने, 1993-94 में स्टेफी ग्राफ ने, 2002-03 में सेरेना विलियम्स ने और 2015-16 में नोवा जोकोविच ने ऐसे ही जीता। 

करियर ग्रैंड स्लैम यानी खिलाड़ी अपने करियर में कम से कम एक बार चारों प्रमुख प्रतियोगिताएं जीते।

गोल्डन स्लैम यानी खिलाड़ी उस साल के ग्रीष्मकालीन ओलिंपिक में स्वर्ण पदक के साथ-साथ सभी चार प्रमुख प्रतियोगिताएं जीते।

•सुपर स्लैम यानी कि खिलाड़ी सभी चार प्रमुख टूर्नामेंट जीते और साल के अंत

में एटीपी वर्ल्ड टुअर फाइनल भी जीते

• बॉक्स्ड सेट ग्रैंड स्लैम एक कैलेंडर वर्ष में खिलाड़ी सिंगल्स, डबल्स, और मिक्स्ड डबल्स ग्रैंड स्लैम जीते। ऐसा कभी हुआ नहीं है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 15 जून, 2024 को प्रकाशित

 

 

Saturday, June 8, 2024

ऑपरेशन ब्लॉकआउट क्या है?

ब्लॉकआउट-2024, जिसे हैशटैग के साथ लिखा जाता है, सोशल मीडिया पर इन दिनों चल रहा एक ऑनलाइन अभियान है। यह अभियान अमेरिका में ज्यादा लोकप्रिय है। इसमें ऐसे सेलेब्रिटीज़ या संगठनों को सोशल मीडिया पर ब्लॉकआउट करने की अपील की जाती है, जो गज़ा में चल रही लड़ाई में इसराइली कार्रवाई को लेकर मौन हैं, या कार्रवाई का समर्थन कर रहे हैं। हाल में जब भारत की आलिया भट्ट, प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण और विराट कोहली जैसे सितारों के नाम ब्लैकआउट लिस्ट में डाले गए, तो हमारे यहाँ इसकी तरफ ध्यान गया।

इसकी शुरुआत 6 मई, 2024 को टिकटॉक पर सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर हेली कैलिल की एक पोस्ट से हुई थी। हाल में अमेरिकी विश्वविद्यालयों में इसराइली कार्रवाई के विरुद्ध चले आंदोलन के दौरान यह अभियान काफी लोकप्रिय हुआ। टिकटॉक पर हेली कैलिल की पोस्ट के बाद @ब्लॉकआउट2024 (@BlockOut2024) नाम से एक एकाउंट तैयार हो गया। अब ऐसे कई एकाउंट सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। ये उन सेलेब्रिटीज़ को लक्ष्य करते हैं, जो इसराइली कार्रवाई के खिलाफ बोल नहीं रहे हैं। इस अभियान के दबाव में कुछ सेलेब्रिटीज़ ने इसराइल की निंदा करना शुरू कर दिया है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 8 जून, 2024 को प्रकाशित

Saturday, June 1, 2024

अल-नीनो और ला-नीना क्या हैं?

इस साल भारत के मौसम कार्यालय ने वर्षा-ऋतु में सामान्य से अधिक बारिश की संभावना व्यक्त की है, क्योंकि अगस्त-सितंबर के महीने में पूर्वी प्रशांत महासागर में ला-नीना परिस्थिति पैदा होने की संभावना है। इसके विपरीत जब भी अल-नीनो परिस्थिति पैदा होती है, तब बारिश कम होने की संभावना होती है। अल-नीनो और ला-नीना, मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में हुई बढ़ोत्तरी या गिरावट के मानक के रूप में स्थापित हो गए हैं। इनके आधार पर मौसम विज्ञानी जलवायु का अनुमान लगाते हैं।

दुनिया के किसी एक हिस्से में समुद्र का तापमान औसत से ज़्यादा गर्म या ठंडा होना, पूरी दुनिया के मौसम को प्रभावित कर सकता है। प्रशांत महासागर में सामान्य परिस्थितियों के दौरान, व्यापारिक हवाएँ भूमध्य रेखा के
साथ पश्चिम की ओर बहती हैं
, जो गर्म पानी को दक्षिण अमेरिका से एशिया की ओर ले जाती हैं। उस गर्म पानी को बदलने के लिए, ठंडा पानी गहराई से ऊपर उठता है-एक प्रक्रिया जिसे अपवैलिंग (उत्स्रवण) कहा जाता है।

अल-नीनो और ला-नीना दो विपरीत जलवायु पैटर्न हैं जो सामान्य स्थितियों में बदलाव लाते हैं। वैज्ञानिक इसे अल नीनो सदर्न ऑसिलेशन (ईएनएसओ) कहते हैं। हर दो से सात साल में मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर की सतह का तापमान सामान्य से एक से तीन डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा गर्म हो जाता है। इसके विपरीत ला-नीना तब माना जाता है, जब पूर्वी प्रशांत में महासागर की सतह का तापमान सामान्य से ज्यादा ठंडा हो जाता है। इससे पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के ऊपर जोरदार दबाव बन जाता है। अल नीनो और ला नीना के एपिसोड आम तौर पर नौ से 12 महीने तक चलते हैं, लेकिन कभी-कभी वर्षों तक भी रह सकते हैं। ये पैटर्न हर दो से सात साल में अनियमित रूप से आगे-पीछे बदलते रहते हैं। अल-नीनो का प्रभाव अक्सर दिसंबर के दौरान चरम पर होता है। भारत में मानसून के इतिहास को देखें तो जितने भी साल यहां अल-नीनो प्रभाव रहा है, इसकी वजह से मानसून प्रभावित हुआ है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 1 जून, 2024 को प्रकाशित

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