Friday, July 31, 2015

राष्ट्रीय खेल किस आधार पर चुना जाता है?

क्या हर देश का राष्ट्रीय खेल होता है? राष्ट्रीय खेल किस आधार पर चुना जाता है? क्या बुल फाइटिंग हमारे और बाकी देशों में बैन है?
राष्ट्रीय खेल से तात्पर्य उस खेल से होता है जो उस देश में सर्वाधिक लोकप्रिय हो. चुनने का तरीका भी कोई नहीं है. आमतौर पर खेल का चयन किसी संवैधानिक व्यवस्था से नहीं होता. पर कुछ देशों में कानूनन राष्ट्रीय खेल भी होते हैं जैसे कनाडा में लैक्रोसे और आइस हॉकी हैं. बांग्लादेश में कबड्डी और श्रीलंका में वॉलीबॉल सरकारी तौर पर घोषित राष्ट्रीय खेल हैं. अमेरिका में बेसबॉल को राष्ट्रीय खेल माना जाता है, पर इसकी कोई कानूनी व्यवस्था नहीं है. स्पेन में सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल है पर बुलफाइटिंग को वहाँ का राष्ट्रीय खेल माना जाता है. एक अर्थ में वह खेल है भी नहीं. स्पेन में ही उसका विरोध होता है. स्पेन के स्वायत्त क्षेत्र कैटालोनिया में इस पर रोक लगा दी गई है और इसी साल 25 सितम्बर को कैटालोनिया की राजधानी बार्सिलोना में आखिरी बुलफाइट हुई थी. इसके बाद उसपर वहाँ रोक लगा दी गई. यह खेल स्पेन की कॉलोनियों में ही लोकप्रिय है. मैक्सिको में भी इस पर रोक है. भारत में इसपर रोक नहीं है तो इसकी अनुमति की जानकारी भी हमें नहीं है. दक्षिण भारत के कुछ शहरों में परम्परा से बुलफाइट जैसा समारोह होता है, इसे जल्लीकट्टु कहते हैं. हमारे देश में हॉकी को राष्ट्रीय खेल माना जाता है, पर सरकार ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया है.

फांसी की सजा का प्रावधान कितने देशों से हटा लिया गया?

भारत दुनिया के उन 58 देशों में है, जहाँ फाँसी की सजा प्रचलन में है. 103 देशों ने फाँसी की सजा खत्म कर दी है और 50 देशों में पिछले दस साल में मौत की सजा का कोई मौका नहीं आया. किसी भी अपराध के लिए मौत की सजा खत्म करने वाले देश हैं 103. मामूली अपराधों के लिए मौत की सजा खत्म करने वाले देश 06. व्यावहारिक रूप से मौत की सजा न देने वाले देश 36. इस प्रकार 145 देशों में मौत की सजा या तो खत्म हो गई है या व्यावहारिक रूप से नहीं दी जाती. जिन देशों में मौत की सजा दी जाती है और काफी प्रचलन में हैं ऐसे देशों की संख्या 58 है. दुनिया के ज्यादातर देशों में ऐसे व्यक्तियों को मौत की सज़ा नहीं दी जाती, जो अपराध के समय 18 वर्ष से कम उम्र के थे. अंतरराष्ट्रीय कानूनों में भी यह व्यवस्था शामिल है. अलबत्ता ईरान, सऊदी अरब और सूडान में 18 से कम उम्र के अपराधियों को सजाएं दी गई हैं.

पहला टेस्ट ट्यूब बेबी कितने साल का है? आजकल क्या कर रहा है?

कर रहा है नहीं कर रही है. पुरुष पहले आया या स्त्री इसका पता नहीं, पर टेस्ट ट्यूब बेबी के रूप में सबसे पहले लड़की का जन्म हुआ था. 25 जुलाई 1978 को ग्रेट ब्रिटेन में लेज़्ली ब्राउन ने दुनिया के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिया था. इस बेबी का नाम है लुइज़ जॉय ब्राउन. इस समय उनकी उम्र है 37 साल. इनके पिता का नाम है जॉन ब्राउन. इनके माता-पिता के विवाह के नौ साल बाद तक संतान नहीं होने पर उन्होंने डॉक्टरों से सम्पर्क किया. डॉक्टर रॉबर्ट जी एडवर्ड्स कई साल से ऐसी तकनीक विकसित करने के प्रयास में थे, जिसे इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन कहा जाता है. डॉक्टर एडवर्ड्स को बाद में चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार भी दिया गया. टेस्ट ट्यूब बेबी लुइज़ वे एक बच्चे की माँ हैं. उनके बेटे का नाम केमरन है, जिसकी उम्र साढ़े आठ साल है. लुइज़ का विवाह सन 2004 में वेस्ली मलिंडर से हुआ था. और 20 दिसम्बर 2006 को केमरन का जन्म सामान्य तरीके से हुआ.

ऑटोग्राफ देने का रिवाज़ कैसे शुरू हुआ?

ऑटोग्राफ शब्द का अर्थ है हस्तलेख. ऑटोस यानी स्व और ग्राफो यानी लिखना. यानी जो आपने स्वयं लिखा है. पुराने वक्त में टाइपिंग या छपाई होती नहीं थी. केवल हाथ से लिखा जाता था, पर जो जो पत्र, दस्तावेज़ या लेख व्यक्ति स्वयं लिखता उसे ऑटोग्राफ कहते. ऐसा भी होता कि दस्तावेज़ कोई और लिखता और उसके नीचे उसे अधिकृत करने वाला अपने हाथ से अपना नाम लिख देता. यह नाम उसकी पहचान था. ऑटोग्राफ इस अर्थ में दस्तखत हो गया. किसी को याद रखने का सबसे अच्छा तरीका उसके हस्तलेख या ऑटोग्राफ हासिल करना भी हो गया. राजाओं, राष्ट्रपतियों, जनरलों, कलाकारों, गायकों वगैरह के दस्तखत अपने पास जमा करके रखने का चलन बीसवीं सदी में बढ़ा है. इस शौक को फिलोग्राफी कहते हैं.

Wednesday, July 29, 2015

कैसा होगा टेक्नोट्रॉनिक दौर का युद्ध?

युद्ध की अनुपस्थिति माने शांति. दुनिया में पहले शांति आई या युद्ध? पहले शांति थी और बाद में युद्ध शुरू हुए तो क्यों? युद्ध क्यों होते हैं? क्या हथियारों और सेना की वजह से लड़ाइयाँ होती हैं? इन्हें खत्म कर दिया जाए तो क्या अमन-चैन कायम हो जाएगा? ऐसा नहीं है. जब से दुनिया बनी है इंसान युद्ध कर रहा है. उसे अपनी खुशहाली के लिए भी युद्ध करना पड़ता है, शांति के लिए भी.

लड़ाई की विनाशकारी प्रवृत्तियों के बावजूद तीसरे विश्व-युद्ध का खतरा हमेशा बना रहेगा. अमेरिकी लेखक पीटर सिंगर और ऑगस्ट के ताजा नॉवेल ‘द गोस्ट फ्लीट’ का विषय तीसरा विश्व-युद्ध है, जिसमें अमेरिका, चीन और रूस की हिस्सेदारी होगी. उपन्यास के कथाक्रम से ज्यादा रोचक है उस तकनीक का वर्णन जो इस युद्ध में काम आई. यह उपन्यास भविष्य के युद्ध की झलक दिखाता है. आने वाले वक्त की लड़ाई में शामिल सारे योद्धा परम्परागत फौजियों जैसे वर्दीधारी नहीं होंगे. काफी लोग कम्प्यूटर कंसोल के पीछे बैठकर काम करेंगे. काफी लोग नागरिकों के भेस में होंगे, पर छापामार सैनिकों की तरह महत्वपूर्ण ठिकानों पर हमला करके नागरिकों के बीच मिल जाएंगे. काफी लोग ऐसे होंगे जो अराजकता का फायदा उठाकर अपने हितों को पूरा करेंगे.

Thursday, July 23, 2015

कौन से देश दो महाद्वीपों तक फैले हैं?

आधिकारिक रूप से दुनिया में आठ देश दो महाद्वीपों में फैले हैं. रूस का दो तिहाई हिस्सा एशिया में है, पर वहाँ की तीन चौथाई आबादी यूरोप वाले हिस्से में रहती है. तुर्की का ज्यादातर हिस्सा एशिया में है, पर बॉस्फोरस खाड़ी के पास का एक टुकड़ा जो पूरे देश का तकरीबन 3 फीसदी है, यूरोप में पड़ता है. मिस्र का ज्यादातर हिस्सा अफ्रीका में है, पर सिनाई प्रायद्वीप एशिया में पड़ता है. यमन गणराज्य पश्चिम एशिया में पड़ता है, पर उसका सोकोत्रा द्वीप अफ्रीका में है. यूरोप के देश स्पेन के सेउता और मेलिल्ला शहर अफ्रीका में हैं. इसी तरह पुर्तगाल का मडेरा द्वीप समूह अफ्रीका में है. इंडोनेशिया में 13,700 द्वीप हैं. पपुआ (जिसे पहले इरियन जावा कहा जाता था) समेत अनेक पूर्वी द्वीप ओसनिया का हिस्सा हैं। ओसनिया क्षेत्र एशिया और अमेरिका महाद्वीपों के बीच प्रशांत महासागर के द्वीपों को कहते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका का काफी बड़ा हिस्सा अमेरिका महाद्वीप में है, पर उसका हवाई राज्य ओसनिया में है.

चीखते समय आँखें बंद क्यों हो जाती हैं?
एक तो आँखों की सुरक्षा व्यवस्था इस प्रकार की है कि किसी प्रकार के दबाव से उसकी रक्षा की जा सके. यों तो चीखते समय आँखें खुली रहती हैं, पर कई बार रोते समय आँखें बंद हो जाती है. उसका कारण आँखों की तरलता को बनाए रखना होता है, दूसरे यह भी कि भीतरी दबाव के कारण आँखें बाहर न निकल जाएं.

इंसाफ की मूर्ति की आँखों पर पट्टी क्यों बँधी होती है?
प्राचीन रोम में न्याय की देवी जस्टीसिया है, जिनके एक हाथ में तराजू, दूसरे में दुधारी तलवार है और आँखों पर पट्टी बँधी होती है. तराजू और दुधारी तलवार न्याय और विवेक के संतुलन को व्यक्त करते हैं और आँखों पर पट्टी का मतलब है कि न्याय करते वक्त यह देखना नहीं चाहिए कि सामने कौन है अपना या पराया. इसके अलावा यह काम निर्भय होकर किया जाना चाहिए.

गुलाबी गैंग कौन-सा है और यह कहाँ सक्रिय है?   
गुलाबी गैंग उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में महिलाओं का एक ग्रुप है जो स्त्रियों के अधिकारों के लिए संघर्ष करता है. सबसे पहले सन 2006 में सम्पत देवी पाल नामक एक महिला ने इसकी शुरूआत की. उस समय उनकी उम्र 59 साल थी. इस ग्रुप की सदस्य बाकायदा लाठी लेकर चलती हैं, और यदि किसी पुरुष के बारे में शिकायत होती है कि वह अपनी पत्नी को सताता है तो वे उसकी पिटाई भी कर देती हैं. यह समूह अब इतना बड़ा हो गया है कि इसकी सदस्यों की संख्या हजारों में हो गई है. इसकी सदस्य गुलाबी साड़ी पहनती हैं, इसलिए इसे गुलाबी गैंग कहते हैं. सम्पत देवी पाल ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता लाने का प्रयास कर रही हैं. वे जातीय भेदभाव के खिलाफ भी लड़ती हैं. इस कार्य को सही एवं सुचारु ढंग से क्रियान्वित करने के लिए सम्पत देवी ने महिलाओं के एक दल का समाजसेवी गठन कर रखा है. सन् 2008 में फ्रांसीसी भाषा में एक पुस्तक प्रकाशित हुई जिसका नाम था-‘मोई, सम्पत पाल: चीफ डी गैंग एन सारी रोज़’ अर्थात् ‘मैं सम्पत पाल: गुलाबी साड़ी दल की मुखिया.’ इसकी लेखिका है एन बर्तोद. इस किताब की वजह से इस गैंग को अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि मिली.

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पृथ्वी से कितनी दूर है?
सामान्यतः यह स्टेशन धरती से 354 किलोमीटर दूर रहता है, इसमें वातावरण के बदलाव के कारण मामूली फर्क पड़ सकता है.

क्या सांप को बीन की आवाज सुनाई देती है?
साँप को कोई आवाज सुनाई नहीं देती. अलबत्ता वे पूरी तरह बहरे नहीं होते, हां उनके सुनने की क्षमता सीमित होती है. उनके बाहरी कान नहीं होते और न ही मध्य कान होते हैं. एक छोटी सी हड्डी होती है जो उनके जबड़े की हड्डी को भीतरी कान की नली से जोड़ती है. सांप ध्वनि को, अपनी त्वचा से ग्रहण करता है और वह जबड़े की हड्डी से होती हुई भीतरी नली तक पहुंचती है. इस तरह वह सुन पाता है. हम 20 से लेकर 20 हज़ार हर्ट्ज़ तक की ध्वनि सुन सकते हैं जबकि सांप केवल 200 से लेकर 300 हर्ट्ज़ की ध्वनि सुन सकते हैं.

ट्रैफिक सिग्नल की शुरुआत सबसे पहले कहां हुई?
ट्रैफिक सिग्नल की शुरूआत रेलवे से हुई है. रेलगाड़ियों को एक ही ट्रैक पर चलाने के लिए बहुत ज़रूरी था कि उनके लिए सिग्नलिंग की व्यवस्था की जाए. 10 दिसम्बर 1868 को लंदन में ब्रिटिश संसद भवन के सामने रेलवे इंजीनियर जेपी नाइट ने ट्रैफिक लाइट लगाई. पर यह व्यवस्था चली नहीं. सड़कों पर व्यवस्थित रूप से ट्रैफिक सिग्नल सन 1912 में अमेरिका सॉल्ट लेक सिटी यूटा में शुरू किए गए. सड़कों पर बढ़ते यातायात के साथ यह व्यवस्था दूसरे शहरों में भी शुरू होती गई.

प्रभात खबर अवसर में प्रकशित

Wednesday, July 22, 2015

अभी कितनी दूर है अंतरिक्ष का जीव?

नासा की मुख्य वैज्ञानिक एलेन स्टोफन ने इस साल अप्रैल में एक सम्मेलन में कहामुझे लगता है कि एक दशक के भीतर हमारे पास पृथ्वी से दूर अन्य ग्रहों पर भी जीवन के बारे में ठोस प्रमाण होंगे.  हम जानते हैं कि कहां और कैसे खोज करनी है. उनकी बात का मतलब यह नहीं कि अगले दस साल में हम विचित्र शक्लों वाले जीवधारियों से बातें कर रहे होंगे. उन्होंने कहा थाहम एलियन के बारे में नहींछोटे-छोटे जीवाणुओं ज़िक्र कर रहे हैं.

आपने फिल्म ईटी देखी होगी. नहीं तो टीवी सीरियल देखे होंगे जिनमें सुदूर अंतरिक्ष में रहने वाले जीवों की कल्पना की गई है. परग्रही प्राणियों से मुलाकात की कल्पना हमारे समाजलेखकोंफिल्मकारों और पत्रकारों को रोमांचित करते रही है. अखबारों मेंटीवी में उड़न-तश्तरियों की खबरें अक्सर दिखाई पड़ती हैं. हॉलीवुड से बॉलीवुड तक फिल्में बनी हैं. परग्रही जीवन के संदर्भ में वैज्ञानिक अब नए प्रश्न पूछ रहे हैं. परग्रही जीवन कैसा होता होगाकितने समय में उसका पता चलेगा और हम इसे कैसे पहचानेंगेहाल के निष्कर्ष हैं कि यह जीवन हमारे काफी करीब है. वह धरती के आसपास के ग्रहों या उनके उपग्रहों में हो सकता है.

ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग ने सोमवार को 10 करोड़ डॉलर की जिस परियोजना का सूत्रपात किया है वह मनुष्य जाति के इतिहास के सबसे रोमांचक अध्याय पर से पर्दा उठा  सकती है. यह परियोजना रूसी मूल के अमेरिकी उद्यमी और सिलिकॉन वैली तकनीकी निवेशक यूरी मिलनर ने की है. मिलनर सैद्धांतिक भौतिक-विज्ञानी भी हैं. इस परियोजना में कारोबार कम एडवेंचर ज्यादा है. कोई वैज्ञानिक विश्वास के साथ नहीं कह सकता कि अंतरिक्ष में जीवन है. किसी के पास प्रमाण नहीं है. पर कार्ल सागां जैसे अमेरिकी वैज्ञानिक मानते रहे हैं कि अंतरिक्ष की विशालता और इनसान की जानकारी की सीमाओं को देखते हुए यह भी नहीं कहा जा सकता कि जीवन नहीं है.

Tuesday, July 21, 2015

इमोजी यानी पढ़ो नहीं देखो, मन के भावों की भाषा

पढ़ना और लिखना बेहद मुश्किल काम है. इंसान ने इन दोनों की ईज़ाद अपनी जरूरतों के हिसाब से की थी. पर यह काम मनुष्य की प्रकृति से मेल नहीं खाता. भाषा का विकास मनुष्य ने किस तरह किया, यह शोध का विषय है. भाषाएं कितने तरह की हैं यह जानना भी रोचक है. पर यह सिर्फ संयोग नहीं कि दुनिया भर में सबसे आसानी से चित्र-लिपि को ही पढ़ा और समझा जाता है. सबसे पुरानी कलाएं प्रागैतिहासिक गुफाओं में बनाए गए चित्रों में दिखाई पड़ती हैं. और सबसे आधुनिक कलाएं रेलवे स्टेशनों, सार्वजनिक इस्तेमाल की जगहों और हवाई अड्डों पर आम जनता को रास्ता दिखाने वाले संकेत चिह्नों के रूप में मिलती हैं. इन्हें दुनिया के किसी भी भाषा-भाषी को समझने में देर नहीं लगती.

देखना मनुष्य की स्वाभाविक क्रिया है. कम्प्यूटर को लोकप्रिय बनाने में बड़ी भूमिका उसकी भाषा और मीडिया की है. पर कम्प्यूटर अपने साथ नई भाषा लेकर भी आया है. मीडिया हाउसों के लिए सन 1985 में ऑल्डस कॉरपोरेशन ने जब अपने पेजमेकर का पहला वर्ज़न पेश किया तब इरादा किताबों के पेज तैयार करने का था. उन्हीं दिनों पहली एपल मैकिंटॉश मशीनें तैयार हो रहीं थीं, जो इस लिहाज से क्रांतिकारी थीं कि उनकी कमांड स्क्रीन पर देखकर दी जाती थीं. ये कमांड की-बोर्ड की मदद से दी जा रहीं थीं और माउस की मदद से भी.

Sunday, July 19, 2015

नोटों पर महात्मा गांधी की फोटो कब से और क्यों?

नोटों पर महात्मा गांधी की फोटो कब से लगाई गई और क्यों?
अमित कुमार नामदेव, amitsmart330@gmail.com


नोटों पर राष्ट्रीय नेताओं के चित्र लगाने की परम्परा दुनिया भर में है। महात्मा गांधी हमारे देश के सबसे सम्मानित महापुरुषों में एक हैं, इसलिए उनका चित्र लगाया जाता है। नोटों की वर्तमान सीरीज़ को महात्मा गांधी या एमजी सीरीज़ कहा जाता है। इन नोटों को जाली नोटों से अलग रखने के लिए इनकी कास तरह की छपाई की गई है। यह 1996 से चल रही है। शुरू में 10 और 500 रुपए के नोट इस सीरीज़ में आए थे। अब 5 से 1000 तक नोट इस सीरीज़ में आ रहे हैं। कुछ समय के लिए इन्हें रोका गया था, पर 2009 में इन्हें फिर से शुरू कर दिया गया। इस विषय पर और अधिक जानकारी पाने के लिए रिजर्व बैंक की इस साइट पर जाएं
https://www.rbi.org.in/currency/FAqs.html


क्या अंतरिक्ष यान में पेंसिल लेकर नहीं जा सकते?

इंटरनेट पर इस आशय की कहानियाँ देखी जा सकती हैं, जिनके अनुसार अंतरिक्ष यान में पेंसिल लेकर नहीं जा सकते। ऐसा नहीं है। समस्या यह थी कि गुरुत्वहीनता की स्थिति में पेन के रिफिल में मौजूद स्याही बाहर नहीं निकल पाती थी। ऐसे में पेंसिल ही लिखने के लिए बेहतर विकल्प था, जिसकी मदद से किसी भी स्थिति में लिखा जा सकता है। एक समय तक अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री पेंसिल लेकर जाते थे। पर उसके कुछ खतरे थे। पेंसिल कार्बन से बनती है। अंतरिक्ष में कार्बन के टूटकर बिखरने का खतरा होता है। ऐसा होने पर वह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में जा सकता है, जिससे पूरी उड़ान खतरे में आ सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए नासा ने सन 1965 में एक कम्पनी से विशेष पेन बनवाए थे। सन 1965 में पॉल सी फिशर नाम के एक वैज्ञानिक ने एक खास तरह के पेन का आविष्कार किया था, जो गुरुत्वहीनता की स्थिति में भी काम कर सकता था। इसे एंटी ग्रेविटी पेन कहा गया। नए विशेष पेन में अंदर से स्याही पर दबाव डालकर उसे बाहर पम्प किया जा सकता था। सन 1967 अपोलो-1 यान में आग लगने के बाद नासा ने इस एंटी ग्रेविटी पेन का परीक्षण किया और उसे अंतरिक्ष यात्रा के लिए स्वीकार कर लिया।

मधुमक्खी के काटने से हमें तीखी जलन का एहसास क्यों होता है?

मधुमक्खी जब डंक मारती है तो एपिटॉक्सिन और फेरोमोंस दो रसायन छोड़ती है। दरअसल मधुमक्खी डंक मारना नहीं चाहती। वह डंक तभी मारती है जब या तो उसपर हमला हो या उसके छत्ते पर। एपिटॉक्सिन से जलन होती है। फेरोमोंस से दूसरी मक्खियों को सावधान किया जाता है। ताकि हमला होने पर उसकी रक्षा के लिए दूसरी मक्खियाँ आ जाएं।

नींद आने पर हमारी आँखें क्यों बंद हो जाती हैं?

हालांकि कुछ लोग आँखें खोलकर भी सो सकते हैं और कुछ लोग नींद में चलते भी हैं, पर सोते वक्त आँखें बंद करने के जो मोटे कारण समझ में आते हैं वे इस प्रकार हैः- सोने का काम दिमाग करते है, पर आवाजें और रोशनी दिमाग को अटकाए रखतीं हैं। दिमाग को सोने का संकेत देने के लिए हमें रोशनी और आवाजों से दूर जाना होता है। आँख बंद करने से विजुअल इनपुट कम हो जाता है। सोते समय कोई बाहरी चीज़ आँख में न चली जाए या आँखें सूख न जाएं, इसलिए भी आँखों को बंद करना होता है।

भारत में कुल कितने गाँव हैं?
सन 2011 की जनगणना के अनुसार हमारे देश में गाँवों की संख्या 6,38,000 है।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

Saturday, July 18, 2015

Two Indian supercomputers in world’s top 100 list

Sahasra T
Eleven Indian machines have found a place in the latest list of the world’s 500 most powerful supercomputers

China, which ranks third, has 37 systems, and is also home to the world’s most powerful 

Eleven Indian machines have found a place in the latest list of the world’s 500 most powerful supercomputers, including two in the top 100.
But India’s achievement pales when compared to the top country in terms of overall systems, the US, which has 233 on the list.
China, which ranks third, has 37 systems, and is also home to the world’s most powerful supercomputer, Tianhe-2. Tianhe-2, which means Milky Way-2, is a system developed by China’s National University of Defense Technology and is deployed in Guangzhou. It has retained its top rank for the fifth consecutive time and has a performance level of 33.86 petaflops (quadrillions of calculations per second).
The Chinese supercomputer is followed by Titan, a Cray XK7 system installed at the US Department of Energy’s Oak Ridge National Laboratory, which is also the world’s most energy efficient supercomputer.
The only new entry in the top 10 is at No. 7—Shaheen II, a Cray XC40 system installed at King Abdullah University of Science and Technology in Saudi Arabia.
India has made a minor improvement from nine supercomputers in the list released last year to 11 in the list released on Monday. The two new supercomputers include the one at the Supercomputer Education and Research Centre at the Indian Institute of Science in Bengaluru and the one at the National Centre for Medium Range Forecast in Noida.

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INDIA's Rank in Top500

As of June 2015, India has 11 systems on the Top500 list ranking 79, 96, 116, 174, 194, 200, 211, 215, 265, 278 and 422.[5]
RankSiteNameRmax
(TFlop/s)
Rpeak
(TFlop/s)
79Indian Institute of ScienceSahasraT (SERC - Cray XC40)901.51244.2
96Indian Institute of Tropical MeteorologyAaditya (iDataPlex DX360M4)719.2790.7
116Tata Institute of Fundamental ResearchTIFR - Cray XC30558.8730.7
174Centre for Development of Advanced ComputingPARAM Yuva - II388.4520.4
194Indian Institute of Technology KanpurCluster Platform SL230s Gen8344.3359.6
200CSIR Centre for Mathematical Modelling and Computer SimulationCluster Platform 3000 BL460c Gen8334.3362.0
211National Centre for Medium Range Weather ForecastingiDataPlex DX360M4318.4350.1
215IT Services ProviderCluster Platform SL250s Gen8316.8373.2
265Network CompanyCluster Platform 3000 BL460c Gen8271.0388.6
278IT Services ProviderCluster Platform SL210T256.3372.7
422Vikram Sarabhai Space CentreISROSAGA - Z24XX/SL390s Cluster188.7394.8

Comparison (November 2013)[6]
CountryTotal Rmax
(Gflops)
Number of
computers
in TOP500
System Share (%)
India3,040,297122.4
China48,549,0936312.6
France9,489,912224.4
Germany13,696,834204
Japan22,472,218285.6
Russia1,846,61351
Poland455,90920.4
South Korea1,258,06051
UK9,058,329234.6
USA118,261,59626452.8
Canada2,077,842102
Italy2,665,60951
Australia2,180,15151

China’s Milkyway 2 Ranked Fastest Supercomputer for Fifth Time

China’s Milkyway 2 has ranked as the fastest high-performance computing system in the world for a fifth consecutive time on the bi-annual Top500 list of the most powerful supercomputers in the world.

Also known as Tianhe-2, it remained at 33.86 petaflops (quadrillions of calculations per second), which was almost double that of system that took second spot — the US Department of Energy’s Titan supercomputer.

There has been little change among the 10 fastest supercomputers on the list in recent years.

The only change in the June 2015 edition was in the seventh spot — the Shaheen II Cray XC40 system installed at King Abdullah University of Science and Technology. The Saudi Arabian system achieved 5.536 petaflops to become the highest-ranked Middle East system in the history of the Top500 list and first from the region to break into the top 10.

The number of supercomputers on the list using accelerators, such as Intel’s Xeon Phi chips or Nvidia’s GPUs, grew to 88 systems. Phi powered Milkyway 2 and Stampede, the Texas Advanced Computing Center’s system at the University of Texas at Austin that came in second. Nvidia GPUs were used in Titan and Piz Daint, the system at the Swiss National Supercomputing Center in the sixth spot.

More than 86 percent of Top500 systems are using Intel processors.

The Linpack benchmark used to rank the Top500 list has given way in recent years to the High Performance Conjugate Gradients (HPCG) benchmark, which hopes to make a more relevant metric for evaluating HPC systems.

According to a website Data Center Knowledge A list of fastest supercomputers according to the HPCG benchmark had its third edition was released this week as well. It is mostly a mix of similar Top500 systems and also has the Milkyway 2 system in the top.

New developments in supercomputing
In November 2014, it was announced that the United States was developing two new supercomputers to dethrone China's Tianhe-2 from its position as world's fastest supercomputer. The two computers, Sierra and Summit, will each exceed Tianhe-2's 55 peak petaflops. Summit, the more powerful of the two, will deliver 150-300 peak petaflops. On 10 April 2015, US government agencies banned Intel Corporation from providing Xeon chips to China under the fears of nuclear research.

Highlights of  45th Top 500 list
Top 500

Thursday, July 16, 2015

युनाइटेड किंगडम, इंग्लैंड और ग्रेट ब्रिटेन में अंतर क्या है?

युनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड नॉर्दर्न आयरलैंड को युनाइटेड किंगडम, यूके और ब्रिटेन भी कहते हैं. कई बार लोग इसे इंग्लैंड भी कहते हैं. दरअसल यूके, ग्रेट ब्रिटेन और इंग्लैंड एक ही जगह के नाम नहीं हैं. युनाइटेड किंगडम एक स्वतंत्र सम्प्रभु देश है. ग्रेट ब्रिटेन एक द्वीप है और इंग्लैंड द्वीप का एक हिस्सा है. यूके में ऐतिहासिक कालक्रम में चार देश शामिल हो गए. इनके नाम हैं इंग्लैंड, नॉर्दर्न आयरलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स. यूके में संसदीय राजतंत्र है, जिसकी एक संसद है. इसकी राजधानी लंदन है. इसमें ग्रेट ब्रिटेन द्वीप के अलावा आयरलैंड द्वीप का उत्तरी हिस्सा शामिल है. उत्तरी आयरलैंड को छोड़कर शेष यूके की जमीनी सीमा किसी दूसरे देश की सीमा से नहीं मिलती. उत्तरी आयरलैंड की सीमा आयरलैंड गणराज्य से मिलती है.

इस देश का यह नाम सन 1927 से प्रचलन में है. इसके पहले 1801 में युनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड बना था. पर 1922 तक आयरलैंड का काफी हिस्सा इससे अलग हो चुका था. इसके पहले सन 1707 में किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन बना था जिसमें किंगडम ऑफ इंग्लैंड तथा किंगडम ऑफ स्कॉटलैंड का विलय हुआ था. आपने देखा होगा कि कॉमनवैल्थ गेम्स में यूके के चारों देशों की टीमों ने हिस्सा लिया था. हाल के वर्षों तक उत्तरी आयरलैंड की स्वायत्तता को लेकर हिंसक आंदोलन भी चलता रहा. उत्तरी आयरलैंड के नेशनलिस्ट, जो रोमन कैथलिक थे इसे आयरलैंड का हिस्सा बनाना चाहते थे और यूनियनिस्ट्स जो प्रोटेस्टेंट थे इसे यूके के साथ रखना चाहते थे. फिलहाल 1998 के गुडफ्रायडे समझौते के बाद उत्तरी आयरलैंड में सशस्त्र संग्राम खत्म हो गया.

कुछ लोगों के गाल में हँसते समय डिंपल क्यों पड़ते हैं?
गालों के गड्ढे फेशियल मसल्स की डिफॉर्मिटी है. कोई कमी रह जाती है गाल की मसल में कि गड्ढा बन जाता है, पर हम इसे सौन्दर्य के रूप में देखते हैं. सभी के इसलिए नहीं पड़ते क्योंकि कुदरत ने सब के गाल जैसे बनाने चाहे वैसे ही बने. कही-कहीं उससे गलती हो गई.

ह्वाइट कॉलर जॉब किसे कहते हैं?
ह्वाइट कॉलर शब्द एक अमेरिकी लेखक अपटॉन सिंक्लेयर ने 1930 के दशक में गढ़ा. औद्योगीकरण के साथ शारीरिक श्रम करने वाले फैक्ट्री मजदूरों की यूनीफॉर्म डेनिम के मोटे कपड़े की ड्रेस हो गई. शारीरिक श्रम न करने वाले कर्मचारी सफेद कमीज़ पहनते. इसी तरह खदानों में काम करने वाले ब्लैक कॉलर कहलाते. सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़े कर्मियों के लिए अब ग्रे कॉलर शब्द चलने लगा है.

क्या कोई ऐसा देश भी है जहाँ जेल नहीं हैं?
वैटिकन सिटी में जेल नहीं है. अलबत्ता वहाँ पुलिस व्यवस्था है और न्याय व्यवस्था भी. यहाँ किसी व्यक्ति को सजा होती भी है तो उसे इटली की जेलों में रखा जाता है. वैटिकन सिटी को सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य की मान्य परिभाषाओं में रखा जा सकता है, पर वह संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं केवल स्थायी पर्यवेक्षक है. इस देश की अपनी सेना नहीं है.

वकील काले कोट क्यों पहनते हैं?
अदालतों की वेशभूषा हमारे यहाँ अंग्रेजी राज की निशानी है. यूरोप में न्यायाधीश और वकील लबादे पहनते हैं. ये लबादे पुराने राज दरबारों और गिरजाघरों के पादरी भी पहनते हैं. दरबारों में इनके रंग लाल, काले और सफेद भी होते हैं. विश्वविद्यालयों के दीक्षा समारोहों में भी से लबादे पहने जाते हैं. ये लबादे उत्तम कर्म यानी नोबेल प्रोफेशन से जुड़े हैं. न्यायाधीश लबादों के अलावा सिर पर खास प्रकार की टोपी भी पहनते थे.

बहरहाल इन परिधानों में दुनिया भर में बदलाव हो रहे हैं. हमारे यहाँ भी ऐसी माँग उठती है कि वकीलों के परिधान में बदलाव किया जाए. हमारे वकील सफेद कपड़ों पर काले कोट और सफेद रंग की नेकटाई लगाते हैं, जिसमें दो पट्टियाँ सामने की ओर होती हैं. इसे अब वकील अब अपने चिह्न की तरह इस्तेमाल में लाते हैं. इस काले और सफेद के पीछे कुछ कारण बताए जाते हैं. सबसे बड़ा कारण हैं इस व्यवसाय की अंतर्विरोधी प्रवृत्ति का. न्याय से जुड़े लोगों को दो विपरीत धारणाओं के बीच में से न्यायपूर्ण निर्णय को निकालना होता है. सफेद और काले रंग विपरीत धारणाओं के प्रतीक है. एक बात यह भी कही जाती है कि काला रंग सुरक्षा का रंग है. वकील अपने मुवक्किल की रक्षा का प्रयास करता है.

प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

Wednesday, July 15, 2015

Selfie stick

Hiroshi Ueda with selfie stick

The selfie stick has an interesting history. It is not actually new as we think it to be. Like any other contraptions, this was also invented and re-invented by people from different places in different time periods. The selfie stick was there before the mobile phone gained popularity and even the word selfie was invented. The earliest known model of the selfie sticks owes its origin to a Japanese engineer named Hiroshi Ueda (photo above). He made the device in the 1980s, while he was working for the Minolta camera company. Ueda was a keen photographer and had a habit of taking numerous photos on tours. The idea got into his head when he wanted to take a photo of himself and his wife but couldn’t trust anyone else due to his bitter experiences with passers-by in past. He designed and extendable stick with a tripod screw to hold a small camera in place. He added a mirror to the front of the camera so that photographers could see themselves and make sure they were alright.

The product was introduced in market by the Minolta Company with the camera Minolta Disc-7. However, the device was not all that successful. It was listed in the 1995 book '101 Un-Useless Japanese Inventions: the Art of Chindogu'.

The patent of Ueda run out in 2003, and that was when the modern selfie stick was invented. Unaware of Ueda's device, Canadian inventor Wayne Fromm patented his version of the selfie stick, named 'Quik Pod', in 2005. Both inventors see themselves as the real inventors of the device, as it continues to both attract and annoy the people.

Thursday, July 9, 2015

एस्ट्रोनॉट्स स्पेस में क्या या कैसा खाना खाते हैं?

अब अंतरिक्ष यात्राएं काफी लम्बी होने लगी हैं. कई-कई महीने तक यात्रियों को अंतरिक्ष स्टेशन पर रहना पड़ता है. उनके लिए खाने की व्यवस्था करने के पहले देखना पड़ता है कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति से मुक्त स्पेस में उनके शरीर को किस प्रकार के भोजन की जरूरत है. साथ ही उसे स्टोर किस तरह से किया जाए. सबसे पहले अंतरिक्ष यात्री यूरी गागारिन को भोजन के रूप में टूथपेस्ट जैसी ट्यूब में कुछ पौष्टिक वस्तुएं दी गईं थीं। उन्हें गोश्त का पेस्ट और चॉकलेट सॉस भी दिया गया. 1962 में अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री जॉन ग्लेन ने भारहीनता की स्थिति में भोजन करने का प्रयोग किया था. शुरू में लगता था कि भारहीनता में इंसान भोजन को निगल पाएगा या नहीं. इसके बाद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए टेबलेट और तरल रूप में भोजन बनाया गया. धीरे-धीरे उनके भोजन पर रिसर्च होती रही. उन्हें सैंडविच और टोस्ट दिए जाने लगे. अब उन्हें कई तरह के पेय पदार्थ और खाने की चीजें भेजी जाती हैं. अलबत्ता वहाँ स्वाद की समस्या होती है. भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स हाल में जब कुछ साल पहले भारत आईं थी तो उन्होंने बताया था कि वे अंतरिक्ष में समोसे लेकर गई थीं। साथ ही वे पढ़ने के लिए उपनिषद और गीता भी लेकर गईं थी. 

सबसे ज्यादा ऑक्सीजन पैदा करने वाला पेड़ या पौधा कौन सा है?
पेड़ या पौधे ऑक्सीजन तैयार नहीं करते बल्कि वे फोटो सिंथेसिस या प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को पूरा करते हैं। पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करते हैं और उसके दो बुनियादी तत्वों को अलग करके ऑक्सीजन को वातावरण में फैलाते हैं. एक माने में वातावरण को इंसान के रहने लायक बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं. कौन सा पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन पैदा करते है? इसे लेकर अधिकार के साथ कहना मुश्किल है, पर तुलसी, पीपल, नीम और बरगद के पेड़ काफी ऑक्सीजन तैयार करते हैं और हमारे परम्परागत समाज में इनकी पूजा होती है. यों पेड़ों के मुकाबले काई ज्यादा ऑक्सीजन तैयार करती है.

प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है जिसमें पौधे अपने हरे रंग वाले अंगों जैसे पत्ती, द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बन डाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O2) बाहर निकालते हैं. इस प्रक्रिया में आक्सीजन एवं ऊर्जा से भरपूर कार्बोहाइड्रेट (सक्रोज, ग्लूकोज, स्टार्च आदि) का निर्माण होता है तथा आक्सीजन गैस बाहर निकलती है. प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण जैव रासायनिक क्रियाओं में से एक है. सीधे या परोक्ष रूप से दुनिया के सभी सजीव इस पर आश्रित हैं.

शीशे का आविष्कार कब और कैसे हुआ और इसका पहली बार किस रूप में उपयोग किया गया?

शीशे से आपका आशय दर्पण से है तो वह प्रकृति ने हमें ठहरे हुए पानी के रूप में दिया था. पत्थर युग में चिकने पत्थर में भी इंसान को अपना प्रतिबिंब नज़र आने लगा था. इसके बाद यूनान, मिस्र, रोम, चीन और भारत की सभ्यताओं में धातु को चमकदार बनाकर उसका इस्तेमाल दर्पण की तरह करने की परंपरा शुरू हुई. पर प्रकृति ने उससे पहले उन्हें एक दर्पण बनाकर दे दिया था. यह था ऑब्सीडियन. ज्वालामुखी के लावा के जमने के बाद बने कुछ काले चमकदार पत्थर एकदम दर्पण का काम करते थे. बहरहाल धातु युग में इंसान ने ताँबे की प्लेटों को चमकाकर दर्पण बना लिए. प्राचीन सभ्यताओं को शीशा बनाने की कला भी आती थी. ईसा की पाँचवीं सदी में चीन के लोगों ने चाँदी और मरकरी से शीशे के एक ओर कोटिंग करके दर्पण बना लिए थे. हमारे यहाँ स्त्रियों के गहनों में आरसी भी एक गहना है, जो वस्तुतः चेहरा देखने वाला दर्पण है.

हिंदी फिल्मों का सबसे लम्बा गाना कौन सा है?

अभी तक माना जाता था कि सन 1958 में बनी फिल्म अल हिलाल की कव्वाली ‘हमें तो लूट लिया मिल के हुस्न वालों ने’ सबसे लम्बा गीत है. यह 11 मिनट का गाना था. पर 2012  में फिल्म मस्तान में 21 मिनट का गाना 'मोरा मन मान ना' िरकॉर्ड किया गया. जयपुर मूल के संगीतकार तोषी साबरी ने अपनी फिल्म "मस्तान" के लिए 21 मिनट लम्बा गीत रिकॉर्ड किया है. रॉकी खन्ना के निर्देशन में बनी इस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह और उनका छोटा बेटा वीवान एक साथ काम कर रहे हैं. हाल में पता लगा है कि ‘अब तुम्हारे हवाले वतन सारा’ नाम की फिल्म में 20 मिनट का गीत है, जिसे कैलाश खेर, सोनू निगम, अलका याग्निक और उदित नारायण ने गाया है.

कहते हैं कि नॉर्वे में आधी रात तक सूरज चमकता है. क्या यह बात सही है?

नॉर्वे उत्तरी ध्रुव के काफी करीब है. इस इलाके में गर्मियों में रात के बारह बजे के बाद तक सूरज चमकता है. रातें कुछ घंटे की होती हैं, उस दौरान भी सूरज क्षितिज के करीब होता है इसलिए रातें अंधियारी नहीं होतीं. इसलिए इसे अर्धरात्रि के सूर्य वाला देश कहते हैं.

प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

‘स्मार्ट सिटी’ क्या होता है?

स्मार्ट सिटी’ क्या होता है? हमारे देश में इसकी क्या उपयोगिता है?
मंजुलता, 115 जी., मालवीय  रोड, जॉर्ज टाउन, इलाहाबाद-211002
स्मार्टफोन और स्मार्ट टीवी की तरह स्मार्ट सिटी का रिश्ता मूलतः तकनीक से है। यह इक्कीसवीं सदी की अवधारणा है, जो अभी शक्ल ले ही रही है। किसी भी शहर की रूपरेखा में प्रशासन, ऊर्जा-पानी, भवन, रोज़गार, पर्यटन, यातायात, स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा जैसी बातें खास होती हैं। हम स्मार्ट सिटी को इन बिंदुओं की कसौटी पर परख सकते हैं। इन कार्यों में यदि हम तकनीक का इस्तेमाल करके जहाँ बेहतर लाभ ले पाएं और नियंत्रण-मॉनिटरिंग कर पाएं वही है स्मार्ट सिटी। भविष्य के शहर में बिजली के ग्रिड से लेकर सीवर पाइप, सड़कें, कारें और इमारतें हर चीज़ नेटवर्क से जुड़ी होगी। इमारत अपने आप बिजली बंद करेगी,  कारें खुद अपने लिए पार्किंग ढूंढेंगी। यहां तक कि कूड़ेदान भी स्मार्ट होगा। ये शहर पर्यावरण के लिहाज से भी सुरक्षित होंगे।
ये शहर संस्कृति विहीन नहीं होंगे, इनमें कला दीर्घाएं होंगी, थिएटर होंगे और पुस्तकालय भी होंगे, जो तकनीक के जरिए सीधे नागरिक से जुड़े होंगे। भारत जैसे देश में जहाँ शहरीकरण अपने शुरुआती दैर में है, इसका मतलब है नई तकनीक और सुविधाओं से लैस आधुनिक शहर। एक शहर, जो अपने निवासियों को पूरी सहूलियत, सुविधाएं और अवसर दे पाए, वही सिटी स्मार्ट है। सिद्धांततः इनमें समावेशी विकास के अवसर भी होंगे। झुग्गी-झोपड़ियाँ नहीं होंगी। पानी, बिजली की बरबादी नहीं होगी। अक्षय ऊर्जा, डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक तकनीक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल होगा। सूचना और संचार की यह तकनीक सरकारी काम-काज का जरिया भी होगी। ऐसे शहर पर्यावरण, सफाई और सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवहन और शिक्षा सुविधाओं में भी सामान्य शहरों से बेहतर, तेज और कार्य-कुशल होंगे।
दुनिया में एम्स्टर्डम (हॉलैंड), बार्सिलोना (स्पेन), स्टॉकहोम (स्वीडन), सुवान और सोल (द कोरिया), वॉटरलू, ओंटारियो और कैलगैरी (कनाडा), न्यूयॉर्क, ला ग्रेंज और जॉर्जिया (यूएसए), ग्लासगो ( स्कॉटलैंड, यूके), ताइपेह (ताइवान), मिताका (जापान) और सिंगापुर जैसे शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की कोशिशें हों रही हैं। स्मार्ट सिटी में पर्याप्त बिजली, पानी, आवास, परिवहन, स्वास्थ्य सेवाएं तथा रोज़गार होंगे। स्मार्ट शहर सड़कों के कुशल इस्तेमाल को बढ़ा सकते हैं। वे लोगों को सड़कों पर कार अथवा अन्य किसी वाहन के बजाय पैदल यात्रा अथवा साइकिल से चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। व्यक्तिगत वाहनों को हतोत्साहित करके दक्षिण कोरिया की राजधानी  सोल ने सड़कों के विस्तार पर रोक लगाई है। बार्सिलोना में ऐसी एकीकृत प्रणाली बनाई गई है ताकि यात्रा की दूरी कम से कम हो।

भारत में एक रुपये का नोट भारत सरकार द्वारा तथा अन्य बड़े नोट यानी 10-20 रु. आदि के नोट भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी क्यों किए जाते हैं? इस प्रथा के चलन का कारण क्या है, जबकि दो अलग-अलग स्थानों पर छपाई एवं प्रबंधन व्यय बढ़ता है। कृपया बताएं कि इसका कारण एवं नियम क्या है?
उषा गुप्ता, महाराजा रेजीडेंसी, फ्लैट नं.-102, विंचूरकर की गोठ, ग्वालियर-474001
रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट 1934 के अंतर्गत बैंकनोट के मूल्य के बराबर धन देने का दायित्व रिज़र्व बैंक का है। रिज़र्व बैंक के गवर्नर की और से धारक को नोट में वर्णित राशि देने का वचन दिया जाता है। इंडियन कॉइनेज एक्ट 2011 के अनुसार देश की मुद्रा का वितरण रिज़र्व बैंक करता है। पर इन नियमों के तहत एक रुपए के नोट या सिक्के ज़ारी करने का दायित्व भारत सरकार का है। रिज़र्व बैंक के पास 5,10,20,50,100,500 और 1000 रुपए को नोट ज़ारी करने का अधिकार है। इसके अलावा भारत सरकार के पास किसी भी मूल्य का सिक्का ज़ारी करने का अधिकार है। इस माने में देखें तो भारत सरकार रुपया ज़ारी करती है। रुपया अपने आप में सम-मूल्य सम्पदा है या सम्पूर्ण मुद्रा है, जो हमारी करेंसी की मूल इकाई भी है। इसके तहत एक रुपए का नोट भी मुद्रा या कॉइन है। उसपर सिक्के की प्रतिकृति होती है। सरकार 1000 रुपए तक के सिक्के भी जारी कर सकती है। दूसरी ओर रिज़र्व बैंक कागजी मुद्रा का सम-मूल्य देने का वचन देता है। वे वचन-पत्र (प्रॉमिज़री नोट) हैं, जबकि सिक्का मुद्रा है।
हाल में इंडियन कॉइनेज अधिनियम 2011 के पास होने के बाद एक भ्रम पैदा हुआ कि सरकार एक रुपए का करेंसी नोट नहीं निकाल सकती। सन 1994 के बाद से सरकार ने एक रुपए का नोट छापना बंद कर दिया था। सरकार इस साल अब एक रुपए का नया नोट जारी कर रही है। नोटों को छापने की अलग व्यवस्था नहीं है। भारतीय प्रतिभूति मुद्रण तथा मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड (एसपीएमसीआईएल) बैंक नोट, सिक्कों, कोर्ट फीस स्टाम्प, सिक्योरिटी पेपर, डाक के लिफाफों वगैरह की छपाई करता है। इसके अधीन सिक्के ढालने वाली टकसालें भी हैं।

सामान खरीदने के साथ गारंटी/वारंटी मिलती है। दोनों में क्या अंतर है?
नेहा अग्रवाल, टेलीफोन एक्सचेंज के पास, राजगढ़, जिला: अलवर-301408
सामान्य अर्थ में गारंटी है किसी वस्तु की पूरी जिम्मेदारी। वह खराब हो तो या तो दुरुस्त करने या पूरी तरह बदलने का आश्वासन। वॉरंटी का मतलब है एक कीमत लेकर उस वस्तु को कारगर बनाए रखने का वादा। इसके तहत एक खास अवधि तक उस वस्तु, मशीनरी या उपकरण में आई खराबी को दूर करने का आश्वासन दिया जाता है। मसलन किसी वॉटर हीटर में पानी गरम करने वाले हीटिंग एलीमेंट पर चार साल तक और इनर टैंक पर सात साल की गारंटी होने का मतलब है उस अवधि में खराबी होने पर उसे बदला जाएगा। एक ही उपकरण के अलग-अलग अंगों को लेकर अलग-अलग वादे हो सकते हैं। यही वॉरंटी है।
  
थॉमस कप का संबंध किस खेल से है? तथा इसे सर्वप्रथम  किसे दिया गया?
खुशी कुमारी द्वारा: सुधीर कुमार, रेलवे रोड, साड़ी सुहाग, अलीगढ़-202001

थॉमस कप बैडमिंटन की पुरुष टीम चैम्पियनशिप है। इसे विश्व चैम्पियनशिप माना जा सकता है। इसका सुझाव अपने समय के श्रेष्ठ ब्रिटिश खिलाड़ी सर जॉर्ज एलन टॉमस या थॉमस ने दिया था। उनके नाम पर ही इस प्रतियोगिता का नाम है। पहली प्रतियोगिता सन 1948-49 में हुई थी। पहले यह हर तीन साल में होती थी, पर सन 1982 से यह हर दो साल में होने लगी है। सबसे पहली चैम्पियनशिप मलेशिया ने जीती। 
कादम्बिनी के जुलाई 2015 अंक में प्रकाशित

Sunday, July 5, 2015

धरती से कितने ऊपर अंतरिक्ष शुरू होता है?

हालांकि ऐसी कोई सीमा नहीं है जहाँ से अंतरिक्ष की शुरुआत मानी जाए, पर सामान्यतः समुद्र की सतह से 100 किमी की ऊँचाई के बाद हम अंतरिक्ष की शुरूआत मानने लगे हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1967 में पारित वाह्य अंतरिक्ष संधि में भी यही सीमा मानी गई है। इसे कामान रेखा कहा जाता है।

क्या किसी मंदिर में भारत माता की पूजा की जाती है?
देश में कई जगह भारता माता मंदिर बनाए गए हैं। वाराणसी में राजघाट पर स्थित अपने ढंग का अनोखा भारतमाता मंदिर है। इस मंदिर की आराध्य भारत माता हैं। यहां पर पूजा, कर्मकाण्ड या दूसरे मंदिरों जैसे घंटा घड़ियाल नहीं बजते हैं और न ही पंडितों पुरोहितों की खींचतान होती है। यह मंदिर हिन्दू, मुस्लिम, सिख एवं ईसाई जैसे जाति या साम्प्रदायिक और उन्मादी धार्मिक भावना से कोसों दूर सर्वधर्म समभाव का संदेश देता है। मंदिर का उद्घाटन 25 अक्टूबर 1931 को महात्मा गांधी ने किया था। मंदिर के 81 वर्ष पूरे हो गए हैं। मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर महात्मा गांधी ने कहा था कि इस मंदिर में किसी देवता या देवी की मूर्ति नहीं है, यहां संगमरमर पर उभरा हुआ भारत का एक मानचित्र भर है। मध्य प्रदेश के इंदौर में एक ऐसा मंदिर है, जहां भारत माता की पूजा होती है। इस मंदिर में कोई आरती नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति गीतों की गूंज सुनाई देती है। सद्गुरु धार्मिक एवं परमार्थिक ट्रस्ट ने आम जन में राष्ट्रीय भावना जागृत करने के मकसद से सुखलिया इलाके में भारत माता मंदिर का निर्माण कराया है। मंदिर में बॉर्डर वाली गहरे रंग की साड़ी पहने हाथ में तिरंगा थामे भारत माता की प्रतिमा के पीछे भारत का नक्शा बना हुआ है। इस मंदिर में कोई पुजारी नहीं। हिसार की एम.सी. कॉलोनी में भी एक भारत माता मंदिर बनाया गया है।

क्या पेंगुइन सामूहिक आत्महत्या करते हैं? क्यों?
हाँ ऐसी खबरें मिली हैं कि अंटार्कटिक में पेंग्विन बड़ी संख्या में किसी बर्फीली चोटी पर खड़े होकर बड़ी संख्या में सागर में कूदकर जान दे रही हैं। यों जानवर उस तरह आत्महत्या नहीं करते जिस तरह इंसान करते हैं। केवल वे अपनी मौत के वक्त खुद को इस स्थिति में ले आते हैं कि जान चली जाए। मसलन खरगोश खुले में आ जाते हैं ताकि कोई चील उन्हें उठा ले जाए। असम के पेंग्विन की मौतों के पीछे ग्लोबल वार्मिंग है या कोई और बात है अभी कहना मुश्किल है।

ऑडिटोरियम में ग्रीन रूम को ग्रीन रूम क्यों कहते हैं?
कहा जाता है कि सन 1599 में लंदन के ब्लैकफ्रायर्स थिएटर में मंच के ठीक पीछे उन कलाकारों के बैठने की व्यवस्था की गई, जिन्हें बाद में मंच पर जाना था। इस कमरे में हरे रंग की पुताई की गई थी। धीरे-धीरे सका नाम ग्रीन रूम हो गया। एक बात यह भी कही जाती है कि मंच की रोशनी से कलाकारों की आँखें चौंधिया जाती थीं। उन्हें कुछ आराम देने के लिए ऐसे कमरे को हरे रंग से पोतते थे।

भारत में सबसे पहले ई-मेल कब?
15 अगस्त 1995 को भारत के विदेश संचार निगम ने देश में इंटरनेट सेवा की शुरूआत की। तभी से मेल सेवा भी शुरू हुई।

Friday, July 3, 2015

ब्लैक बॉक्स को ब्लैक बॉक्स क्यों कहते हैं? यह किस काम आता है और अपना काम किस तरह करता है?


हवाई जहाज की उड़ान के दौरान उसके बारे में तमाम जानकारियाँ एक जगह दर्ज होती जाती हैं. विमान की गति, ऊँचाई, इंजन तथा अन्य यंत्रों की ध्वनि, यात्रियों और पायलटों की बातचीत आदि, दर्ज होती रहती है। इन सूचनाओं के विश्लेषण द्वारा विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने की स्थिति में दुर्घटना के कारणों की पहचान की जाती है. इसे फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर या फ़्लाइट रिकॉर्डर कहते हैं। इसके अलावा कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर भी होता है। दोनों उपकरणों से बनता है ब्लैक बॉक्स. 1953-1954 में हवाई हादसों की श्रृंखला के बाद हवाई जहाज में एक ऐसा उपकरण लगाने की जरूरत महसूस की गई थी जो कि दुर्घटना के समय या उससे तुरंत पहले वायुयान में होने वाले हलचलों और आँकड़ों को संग्रहीत कर रख सके तथा जो दुर्घटनाओं में सुरक्षित रहे. इसका रंग काला नहीं लाल या नारंगी होता है. इसीलिए शुरू में इसे रेड एगकहा जाता था. इसके शुरुआती प्रारूपों में उसकी भीतरी दीवार को काला रखा जाता था, क्योंकि उसमें फोटो फिल्म आधारित जानकारी भी दर्ज होती थी. वहीं से इसका नाम ब्लैक बॉक्स पड़ा. इसमें क्रैश-प्रूफ मेमरी यूनिट्स होते हैं. इसे इस तरह बनाया जाता है कि तेज आग, भीषण विस्फोट और कई टन मलबे के दबाव के बावजूद नष्ट नहीं होता.

हमारे शरीर में कितना पानी होता है? यानी उसे लिटर में नापें तो कितना?
विश्व प्रसिद्ध शरीर विज्ञानी आर्थर गायटन की पाठ्य पुस्तक मेडिकल फिज़ियॉलॉजी के अनुसार एक सामान्य व्यक्ति के शरीर के वजन का लगभग 57 फीसदी भाग पानी के रूप में होता है. इस हिसाब से 70 किलोग्राम वजन के व्यक्ति के शरीर में लगभग 40 लिटर पानी होता है. नवजात शिशु के शरीर में तो 75 फीसदी तक भार पानी का होता है. इसके बाद दस साल की उम्र तक यह पानी कम होता जाता है और ठोस पदार्थ बढ़ता जाता है. कुछ व्यक्तियों के शरीर में यह घटकर 45 फीसदी तक रह जाता है. शरीर के तरल पदार्थ का आकलन औसत में होता है, इसमें कम-ज्यादा भी हो सकता है.

गंगा धरती पर कब और कैसे आई?
गंगा कब और कैसे आई के दो प्रकार के उत्तर दिए जा सकते हैं. पहला है पौराणिक आख्यान. भगवान राम के कुल में राजा हुए हैं सगर, राम से बहुत पहले. उनके साठ हजार पुत्र कपिल मुनि के तेज में भस्म हो गए थे. उनके मोक्ष के लिए सगर के बेटे अंशुमान, फिर उनके बेटे दिलीप ने ब्रह्मा की तपस्या की. पर ब्रह्मा नहीं माने. अंततः दिलीप के पुत्र भगीरथ ब्रह्मा की तपस्या करके गंगा को धरती पर लाए. इसलिए गंगा का एक नाम भगीरथी है. इस सवाल का भूवैज्ञानिक दृष्टि से देने की कोशिश करें तो पता लगता है कि तकरीबन पाँच से छह करोड़ साल पहले हिमालय की रचना हुई जब हिन्द महासागर में दक्षिण की ओर से एक विशाल भूखंड उत्तर में टकराया और उस टक्कर से ऊँचे पहाड़ बन गए. कालांतर में इन पहाड़ों पर मीठे पानी के ग्लेशियर और झीलें बनीं. इनके बीच से हिमालयी नदियाँ बनीं. यह लाखों साल पहले की घटना है. गंगा नदी अपने रास्ते बदलती हुई लगभग एक लाख साल पहले इस मार्ग पर स्थिर हुई.

नमस्ते बोलना कब से शुरू हुआ?
नमः यानी प्रणाम. नमः+ते = नमस्ते= आपको प्रणाम. नमः+कार=नमस्कार...अर्थात नमन करता हूँ. हिन्दू शास्त्रों में पाँच प्रकार के अभिवादन बतलाए गए है. 1-प्रत्युथान 2-नमस्कार, 3-उपसंग्रहण, 4-साष्टांग और 5-प्रत्याभिवादन यानी अभिनन्दन का अभिनन्दन से जवाब देना. नमस्ते दो शब्दों से बना है नमः+असते . नमः का मतलब होता है  झुक गया और असते मतलब सिर. यह कब से शुरू हुआ होगा, कहना मुश्किल है, पर कम से कम तीन से चार हजार साल पहले शुरू हुआ होगा जब संस्कृत का विकास हुआ.

दुनिया में सबसे पहली मस्जिद कौन सी है? भारत में पहली मस्जिद कब बनी?
इस्लाम के सबसे पवित्र स्थल, काबा को पूरी तरह से घेरने वाली एक मस्जिद है. यह सउदी अरब के मक्का शहर में स्थित है और दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद है. दुनिया भर के मुस्लिम नमाज़ पढ़ते हुए काबे की तरफ़ मुख करते हैं और हर मुस्लिम पर अनिवार्य है कि, अगर वह इसका ज़रिया रखता हो, तो जीवन में कम-से कम एक बार यहाँ हज पर आये और काबा की तवाफ़ (परिक्रमा) करे. दुनिया की पहली मस्जिद मुहम्मद साहब ने बनवाई थी, जो मदीना, मुनव्वराह में मस्जिदे कुबा कहलाती है. भारत की सबसे पुरानी मस्जिद केरल के त्रिशुर जिले में स्थित चेरामन मस्जिद है. इस मस्जिद का निर्माण 629 ईस्वी हुआ था. इस इलाके के तत्कालीन राजा चेरामन पेरुमल ने मक्का की यात्रा की और उन्होंने मुहम्मद साहब से भेंट की थी और इस्लाम धर्म स्वीकार किया था. पेरुमल ने ही मक्का के लोगों को भारत में इस्लाम का प्रचार करने के लिए आमंत्रित किया था. कहा जाता है कि उनके न्योते पर ही मलिक बिन दीनार और मलिक बिन हबीब भारत आए और इस मस्जिद का निर्माण कराया. यह दुनिया की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है.

प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित
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