Friday, July 26, 2019

दल-बदल कानून पर चर्चा?



इन दिनों कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन से जुड़े कुछ सदस्यों के इस्तीफों के कारण दल-बदल कानून का मसला फिर से उठा है. इन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया है, पर पीठासीन अधिकारी ने इन इस्तीफों पर अपना कोई फैसला नहीं सुनाया है. देश में दल-बदल की बीमारी भी उतनी ही पुरानी है, जितना पुराना हमारा लोकतंत्र है. सन 1950 में जब भारतीय लोकतंत्र जन्म ही ले रहा था, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के 23 विधायकों ने पार्टी छोड़कर जन कांग्रेस के नाम से अलग पार्टी बनाई, पर यह समस्या के रूप में बड़े स्तर पर पहली बार यह बात 1967 के आम चुनाव के बाद सामने आई. उस साल जिन 16 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव हुए, उनमें से 8 में कांग्रेस ने बहुमत खो दिया और 7 में सरकार बनाने में असमर्थ रही. इसके साथ गठबंधन राजनीति की शुरुआत भी हुई, पर सबसे महत्वपूर्ण बात थी दल-बदल की प्रवृत्ति. सन 1967 से 1971 के बीच के चार वर्षों में देश की संसद में दल-बदल के 142 और राज्यों की विधानसभाओं में 1969 मामले हुए. 32 सरकारें गिरीं और बनीं और 212 दल-बदलुओं को मंत्रिपद मिले. मुख्यमंत्री पद पाने तक के लिए दल-बदल हुए. हरियाणा विधानसभा के एक सदस्य गया लाल ने एक पखवाड़े में तीन बार दल बदला और भारतीय राजनीति में ‘आया राम, गया राम’ की प्रसिद्ध लोकोक्ति उनके कारण ही जुड़ी.

कानून कब बना?

लम्बे समय तक देश में चर्चा के बाद सन 1985 में 52वें संविधान संशोधन के तहत दल-बदल कानून लाया गया, जिसके अंतर्गत संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई, जिसमें दल परिवर्तन के आधार पर सदस्यों की निरर्हता के बारे में प्रक्रिया बताई गई है. पहले इस कानून के तहत व्यवस्था की गई थी कि यदि किसी दल के सदस्यों में से एक तिहाई दल छोड़कर दूसरे दल में जाना चाहें, तो उसे विलय माना जा सकता है. सन 2003 में संविधान के 91 वें संशोधन के बाद पार्टियों के विलय के लिए एक तिहाई के बजाय दो तिहाई सदस्यों वाली व्यवस्था लागू हो गई.

अदालती हस्तक्षेप?

मूल कानून में व्यवस्था थी कि इस सिलसिले में पीठासीन अधिकारी के निर्णय को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती. पर सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में किहोता होलोहन बनाम जाचिल्हू मामले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी कि इन मामलों की न्यायिक समीक्षा सम्भव है. साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि जब तक पीठासीन अधिकारी आदेश जारी नहीं करते, अदालत हस्तक्षेप नहीं करेगी. पीठासीन अधिकारी अपना फैसला करने में कितना समय लेंगे, इसकी कोई समय सीमा नहीं है. हाल में कर्नाटक में सदस्यों के इस्तीफे का विवाद सुप्रीम कोर्ट तक गया है. अदालत ने सदस्यों के इस्तीफे पर फैसला करने के स्पीकर के अधिकार को स्वीकार किया है, पर 17 जुलाई को फैसला किया कि शक्ति परीक्षण के दौरान बागी विधायक अनुपस्थित रह सकते हैं.

प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित




Friday, July 19, 2019

जीरो बजट क्या है?


सबसे पहले यह समझ लिया जाना चाहिए कि जीरो बजट और जीरे बेस्ड बजट दो अलग-अलग अवधारणाएं हैं. भारत के संदर्भ में जीरो बजटशब्द का इस्तेमाल हाल में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में किया. तकनीकी दृष्टि से इसे जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (शून्य बजट प्राकृतिक खेती) कहना उचित होगा. यानी कि ऐसी खेती जो रासायनिक उर्वरकों, हाइब्रिड बीजों और कीटनाशकों पर आधारित नहीं है. जिसमें किसान को कोई भी चीज बाहर से खरीदनी न पड़े. परम्परागत खेती की वापसी. इस अवधारणा को महाराष्ट्र के कृषि विज्ञानी सुभाष पालेकर ने जन्म दिया. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन ने इसे जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (शून्य बजट प्राकृतिक खेती) नाम देकर मान्यता भी प्रदान की है. सुभाष पालेकर को सन 2016 में अपनी अवधारणाओं के कारण पद्मश्री से अलंकृत किया गया. सन 2017 में उन्हें आंध्र प्रदेश सरकार ने जीरो बजट फार्मिंग के लिए अपना सलाहकार नियुक्त किया. हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक की राज्य सरकारों ने भी जीरो बजट फार्मिंग में दिलचस्पी दिखाई है.
इसे महत्व क्यों मिला?
किसानों की आत्महत्या की खबरें बढ़ने के कारण खेती की इस पद्धति को बढ़ावा देने की जरूरत महसूस की जा रही है. सुभाष पालेकर ने कर्नाटक राज्य रैयत संघ के साथ मिलकर इसे आंदोलन के रूप में चलाया. इसमें सफलता भी मिली. दक्षिण के दूसरे राज्यों में भी इसका प्रसार हुआ है. इस पद्धति में किसान देशी खाद बनाते हैं जिसका नाम ‘घनजीवामृत’ रखा है. यह खाद गाय के गोबर, गोमूत्र, चने के आटे, गुड़, मिट्टी तथा पानी से बनती है. रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर नीम, गोबर और गोमूत्र से बने ‘नीमास्त्र’ का इस्तेमाल करते हैं. इससे फसल में कीड़ा नहीं लगता है. संकर प्रजाति के बीजों के स्थान पर देशी बीज डालते हैं. सिंचाई, मड़ाई और जुताई का सारा काम बैलों की मदद से किया जाता है. डीजल से चलने वाले संसाधनों का प्रयोग नहीं होता. इससे खर्च बचते हैं.
क्या यह सफल है?
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश के 1,63,034 किसान ऐसी खेती कर रहे हैं, जबकि सुभाष पालेकर का अनुमान है कि यह संख्या 50 लाख से ज्यादा है. भारत में आज भी पश्चिमी औद्योगिक तर्ज पर खेती नहीं होती. छोटे और मझोले किसान ही खेती करते हैं. राजस्थान में सीकर जिले के प्रयोगधर्मी किसान कानसिंह कटराथल ने प्राकृतिक खेती में सफलता हासिल की है. पहले वे रासायनिक एवं जैविक खेती करते थे, लेकिन जीरो बजट खेती फायदेमंद साबित हो रही है. पालेकर के अनुसार ऑर्गेनिक खेती, रासायनिक खेती से भी खतरनाक है. फसल की बुवाई से पहले वर्मिकम्पोस्ट और गोबर खाद खेत में डाली जाती है. उसमें निहित 46 प्रतिशत कार्बन हमारे देश के 36 से 48 डिग्री सेल्सियस तापमान में खाद से मुक्त हो वायुमंडल में उड़ जाते हैं. हमारे यहाँ दिसम्बर से फरवरी केवल तीन महीने ही ऐसे है, जब तापमान उस  खाद के लिए ठीक रहता है. वर्मिकम्पोस्ट बनाने में आयातित जीव केंचुआ न होकर आयसेनिया फिटिडा है, जो काष्ठ पदार्थ और गोबर खाता है, जबकि देशी केंचुआ मिट्टी और जमीन में मौजूद कीटाणु एवं जीवाणुओं को खाकर खाद में बदलता है.


Saturday, July 13, 2019

स्टार्टअप क्या होता है?


नवोन्मेष, नवाचार से मिलता-जुलता शब्द है स्टार्ट-अप. अंग्रेजी में इसके माने हैं अचानक उदय होना, उगना, आगे बढ़ना वगैरह. इसके कारोबारी माने हैं नये और अनजाने बिजनेस मॉडल की खोज. इस अर्थ में नये किस्म के कारोबार में जुड़ी नयी कम्पनियों को स्टार्ट-अप कम्पनी कहते हैं. भारत में ई-रिटेल से जुड़ी ज्यादातर नयी कम्पनियाँ स्टार्ट-अप हैं. इनके मालिक और प्रबंधक नये हैं. उनका काम करने का तरीका नया है. यह शब्द बीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में डॉट-कॉम ‘बूम’ और ‘बबल’ के वक्त ज्यादा लोकप्रिय हुआ. इन कम्पनियों के साथ विफलता और सफलता का भारी उतार-चढ़ाव और जोखिम भी जुड़ा है. साथ ही इसके साथ इंटरनेट की नयी तकनीक का इस्तेमाल भी जुड़ा है. भारत में यह नया चलन है. अमेरिका में बिजनेस प्लान करना, नयी कम्पनी बनाना, उसके मार्फत भारी सफलता पाने का चलन पहले से है. अमेरिका के बिजनेस और इंजीनियरी संस्थानों से निकल कर छात्र कारोबार शुरू करने के बारे में सोचता है. भारत में अभी तक नौजवान नौकरी को वरयता देते हैं. अब स्थितियाँ बदल रहीं हैं. परम्परागत की जगह नए कारोबार के आविष्कार में फायदे की गुंजाइश भी ज्यादा है.
स्टार्टअप इंडिया क्या है?
स्टार्टअप इंडिया भारत सरकार की एक पहल है. 15 अगस्त, 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालकिले से अपने भाषण में इसका उल्लेख किया था. औपचारिक रूप से यह 16 जनवरी, 2016 को शुरू हुआ. यह कार्यक्रम मूलतः तीन आधारों पर टिका है: 1. सरलीकरण और सहायता, 2.आर्थिक सहयोग और प्रोत्साहन, 3.उद्योग और शैक्षणिक संस्थाओं की भागीदारी. इस पहल के साथ-साथ इस बात का प्रयास भी हो रहा है कि ऐसी गतिविधियाँ रोकी जाएं, जो उद्यमियों की राह में रोड़े अटकाती हैं. मसलन लाइसेंस, भूमि अधिग्रहण की अनुमति, पर्यावरणीय स्वीकृति वगैरह. गत 1जनवरी, 2019 को संशोधित स्टार्टअप इंडिया की परिभाषा में ऐसे उद्योग आते हैं, जिनका मुख्यालय भारत में हो और जो दस साल से कम समय पहले शुरू हुए हों और जिनका सालाना कारोबार 100 करोड़ रुपये से कम का हो. सरकार ने नए आइडिया के साथ कारोबार शुरू करने वालों के लिए ‘स्‍टार्टअप इंडिया स्‍टैंडअप इंडिया’ का नारा दिया है. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा कि स्टार्टअप के लिए एक नया टीवी चैनल शुरू किया जाएगा.
इसमें सुविधाएं क्या हैं?
स्टार्टअप के लिए सेल्‍फ सर्टिफिकेशन आधारित कंप्‍लायंस होगा. पेटेंट एप्‍लीकेशन फीस में 80 पर्सेंट की छूट मिलेगी. सरकार देशभर में इन्‍क्‍यूबेशन सेंटर खोलेगी. तीन साल तक स्‍टार्टअप का कोई इंस्‍पेक्‍शन नहीं किया जाएगा. शेयर मार्केट वैल्‍यू से ऊपर के इन्‍वेस्‍टमेंट पर टैक्‍स में छूट मिलेगी. लाभ होने पर भी तीन साल तक स्‍टार्टअप्‍स को आयकर में छूट मिलेगी. प्रमुख शहरों में पेटेंट के लि‍ए कंसल्टेशन की फ्री व्‍यवस्‍था की जाएगी. सार्वजनि‍क और सरकारी खरीद में स्‍टार्टअप को छूट मि‍लेगी. फास्‍ट एक्‍जि‍ट पॉलिसी बनाई जाएगी. कैपि‍टल गेन टैक्‍स की छूट मिलेगी. 10 हजार करोड़ रुपए का फंड बनाया जाएगा, जिसमें से प्रत्‍येक साल 2500 करोड़ रुपए का फंड स्टार्टअप्स को मिलेगा. अटल इनोवेशन मिशन  की शुरुआत. इसके तहत स्‍टार्टअप को प्रतियोगी बनाना होगा. सरकार बच्‍चों में इनोवेशन बढ़ाने के लिए भी कार्यक्रम शुरू करेगी. इसके लिए इनोवेशन कोर प्रोग्राम शुरू होगा.

Thursday, July 4, 2019

डेटा प्रवाह क्या है?


आमतौर पर मैसेज, सोशल मीडिया पोस्ट, ऑनलाइन ट्रांसफर और इंटरनेट सर्च हिस्ट्री आदि के लिए डेटा शब्द का उपयोग किया जाता हैं. यानी किसी किस्म की सूचनाएं, जिन्हें कंप्यूटर में एकत्र करके रखा जाता है और जरूरत के अनुसार उनका इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसी सूचनाएँ जो लोगों की आदतों और ज़रूरतों को बताती हैं. उनका कारोबारी महत्व भी होता है. कंपनियाँ लोगों की आदतों को ध्यान में रखकर विज्ञापन जारी करती हैं. सरकारें और पार्टियाँ अपनी नीतियों को बनाने में और चुनाव में विजय प्राप्त करने के लिए ऐसी सूचनाओं का उपयोग करते हैं. डेटा का प्रवाह और परिवहन ऐसी जटिल प्रक्रिया है जिस पर अंकुश लगाना कठिन होता है. इसका एक स्थान से दूसरे स्थान तथा एक देश से दूसरे देश तक प्रवाह बहुत तेजी से होता है. ऐसे में डेटा का विनियमन जरूरी होता है. भारत और चीन डेटा स्थानीयकरण के पक्ष में हैं, तो अमेरिकी सरकार तथा कंपनियाँ निर्बाध डेटा प्रवाह के पक्ष में हैं. अभी हमारा डेटा-क्षेत्र बहुत बड़ा नहीं है लेकिन भारत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, जिसमें भविष्य को लेकर अधिक संभावनाएँ हैं.
भारत की नीति क्या है?
भारत डेटा स्थानीयकरण के पक्ष में है. यानी कोई कंपनी भारतीय डेटा को बाहर न ले जाए और न उसका उपयोग करे. देश में अभी इस विषय पर कोई कानून नहीं है, लेकिन 2018 में एक कानून का मसौदा तैयार किया गया था. यह मसौदा न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में बनी समिति के सुझावों पर आधारित है. सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) एवं दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने हाल में सीआईआई के एक कार्यक्रम में कहा कि प्रस्तावित कानून के तहत सूचनाओं को देश से बाहर ले जाने की मंजूरी दी जा सकती है. भारत के डेटा संरक्षण विधेयक का दुनियाभर में इंतजार है. इस कानून से भारत में फेसबुक, गूगल और अमेज़न जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भारत के लोगों की सूचनाओं का संचय और प्रोसेसिंग भारत में ही करनी होगी. चीन पहले से ही ऐसे कानून बना चुका है.
वैश्विक स्थिति
गत 28-29 जून को हुए जी-20 के शिखर सम्मेलन के दौरान भारत ने डिजिटल अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निर्बाध वैश्विक डेटा प्रवाह के लिए तैयार किए गए ओकासा घोषणापत्र पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया. अमेरिका और जापान सहित दुनिया के विकसित देशों ने इसपर दस्तखत किए हैं, पर भारत और चीन ने इसपर दस्तखत करने से इनकार कर दिया है. दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया जैसे विकासशील देश भी भारत के साथ हैं. भारत का कहना है कि पूँजी और दूसरे माल की तरह डेटा भी सम्पदा है. उसके निर्बाध प्रवाह से हमारे राष्ट्रीय हितों को ठेस लग सकती है. इस विषय पर विश्व व्यापार संगठन को नियम बनाने चाहिए.

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