Saturday, March 9, 2024

‘वोक’ का मतलब क्या?

अंग्रेजी का ‘वोक’ शब्द वेक यानी जागने का पास्ट टेंस है। इसका अर्थ है ‘जागा हुआ, जाग्रत या जागरूक।’ इस अर्थ में यह व्यक्ति के गुण को बताता है। मूलतः यह अफ्रीकन-अमेरिकन वर्नाक्युलर इंग्लिश (एएवीई) से निकला शब्द है, जिसकी पृष्ठभूमि अमेरिकी जन-जीवन से जुड़ी है। इसका इस्तेमाल रंगभेद और सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध जाग्रति के अर्थ में किया जाता है। यह 1930 के दशक में ही गढ़ लिया गया था। तब इसका अर्थ था अश्वेतों के अधिकारों के पक्ष में जाग्रत।

पिछली सदी के अमेरिकी अश्वेत संगीतकार लीड बैली और हाल के वर्षों में एरिका बैडू ने इसे लोकप्रिय बनाया। अलबत्ता 2010 के शुरुआती वर्षों में इसका इस्तेमाल प्रजातीय, लैंगिक भेदभाव के विरुद्ध और एलजीबीटी अधिकारों के लिए भी होने लगा। तब इसका अर्थ-विस्तार हो गया। यानी केवल रंगभेद या प्रजातीय भेदभाव के अलावा अमेरिकी वामपंथियों ने सामाजिक पहचान, सामाजिक-न्याय के पक्ष में और गोरों की श्रेष्ठता जैसी धारणाओं के विरुद्ध खड़े लोगों के लिए इस विशेषण का इस्तेमाल करना शुरू किया। 2014 में एक अश्वेत व्यक्ति की मौत के बाद शुरू हुए फर्ग्युसन आंदोलन और ब्लैक लाइव्स मैटर जैसे आंदोलनों से यह और लोकप्रिय हुआ। वोक शब्द 2017 में ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में भी शामिल हो गया। इस दौर में इनक्लूसिव या समावेशी धारणाओं, लैंगिक समानता, पर्यावरण-सुरक्षा और राजनीतिक सतह पर धर्मनिरपेक्षता जैसे विचारों की बात होती है। इन विचारों के अंतर्विरोधों को उभारने के लिए वामपंथ के विरोधी इस शब्द का नकारात्मक अर्थ में या मज़ाक में भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।

स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव

स्वतंत्रता के बाद भारत के पहले आम चुनाव 25 अक्तूबर, 1951 से 21 फरवरी, 1952 तक हुए। उसमें लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के लिए जन-प्रतिनिधियों का चुनाव 17 करोड़ 30 लाख अधिकृत मतदाताओं में से 10 करोड़ 60 लाख ने वोट डालकर किया। लोकसभा की 489 सीटों के लिए कुल 1,874 प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें से 533 निर्दलीय प्रत्याशी थे। चुनाव में कुल 53 पार्टियों ने हिस्सा लिया। चुनाव में कांग्रेस के 364 प्रत्याशी जीते, दूसरे स्थान पर कम्युनिस्ट पार्टी रही, जिसके 16 और तीसरे स्थान पर सोशलिस्ट पार्टी के 12 प्रत्याशी जीते। जनसंघ को कुल तीन सीटें मिलीं और डॉ भीमराव आंबेडकर की पार्टी शेड्यूल्‍ड कास्ट फेडरेशन को दो सीटें मिलीं। डॉ आंबेडकर स्वयं चुनाव हार गए थे।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

Thursday, March 7, 2024

संसद के उच्च सदन को जानिए

दुनिया के काफी देशों में एक सदन वाली संसदीय व्यवस्था काम करती है। हमारे पड़ोस में श्रीलंका और बांग्लादेश में एक सदनात्मक व्यवस्था है। पश्चिम एशिया और अफ्रीका के देशों में बड़ी संख्या में एक सदन ही हैं। इंडोनेशिया में एक सदन है और स्कैंडिनेवियाई देशों में भी। दुनिया में एक सदन वाले देशों की संख्या ज्यादा हैकरीब दो तिहाई, पर इंग्लैंडफ्रांसअमेरिकाकनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में दो सदनों की व्यवस्था है। अतीत में कुछ देशों ने तीन सदनों वाली व्यवस्था भी शुरू की थी। दो सदन होने पर एक को उच्च सदन और दूसरे को निम्न सदन कहते हैं। सामान्यतः निम्न सदनों का आकार और प्रतिनिधित्व प्रत्यक्ष होता है। उसके पास अधिकार भी ज्यादा होते हैं। कार्यपालिका की जवाबदेही उनके प्रति होती है। उच्च सदन की भूमिका प्रायः सलाह देने की होती है। कुछ देशों में उच्च सदन काफी प्रभावशाली होता है। अमेरिकी सीनेट के पास प्रशासन को चलाने की काफी शक्तियाँ होती हैं। नीदरलैंड्स में उच्च सदन किसी प्रस्ताव को रोक सकता है। भारत में राज्यसभाअमेरिकाऑस्ट्रेलिया और कनाडा में सीनेटयुनाइटेड किंगडम में लॉर्डसभामलेशिया में दीवान नेगाराजर्मनी में बुंडेसराट और फ्रांस में सीने उच्च सदन हैं। इटली की सीनेट के पास वही अधिकार होते हैंजो निम्न सदन के पास हैं। 

सीएजी क्या होता है?

भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक जिसे अंग्रेजी में कंप्ट्रोलर ऑडिटर जनरल कहते हैं, जिसका संक्षिप्त रूप है सीएजी। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 द्वारा स्थापित एक प्राधिकारी है जो भारत सरकार, सभी प्रादेशिक सरकारों तथा सरकारी पूँजी से बने सभी सार्वजनिक उपक्रमों और संस्थाओं के सभी तरह के हिसाब-किताब की परीक्षा करता है। उसकी रिपोर्ट पर संसद की लोकलेखा समिति (पीएसी) तथा सार्वजनिक उपक्रमों की समिति विचार करती है। यह एक स्वतंत्र संस्था है, जिसपर सरकार का नियंत्रण नहीं होता। सीएजी की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। सीएजी ही भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा का भी मुखिया होता है। सीएजी से सम्बद्ध व्यवस्थाएं हमारे संविधान के अनुच्छेद 148 से 151 तक की गईं हैं। देश के वरीयता अनुक्रम में सीएजी का स्थान नौवाँ होता है, जो सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश के बराबर है। देश के वर्तमान सीएजी हैं गिरीश चंद्र मुर्मू, जिन्होंने 8 अगस्त, 2020 को कार्यभार संभाला था। वे देश के 14वें सीएजी हैं। उनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की उम्र, जो भी पहले होगा,  तक के लिए होता है।

डाक टिकट पर देश का नाम नहीं

यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड के डाक टिकटों पर देश का नाम नहीं होता। इसकी वजह यह है कि इन देशों में ही डाक टिकटों की शुरूआत हुई थी और इन्होंने तब अपने देशों के नाम टिकट पर नहीं डाले थे। यह परंपरा अब भी चली आ रही है। अलबत्ता इन टिकटों पर देश के राजतंत्र की छवि ज़रूर होती है।

यूरोस्टार क्या है?

यूरोस्टार यूरोप में चलने वाली अंतरराष्ट्रीय ट्रेन सेवा है जो बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड्स और ब्रिटेन को जोड़ती है। यह ट्रेन ब्रिटेन और यूरोप के बीच के सागर इंग्लिश चैनल के नीचे बनी एक सुरंग से होकर जाती है। यह ट्रेन 300 किलोमीटर प्रति घंटा की अधिकतम रफ्तार से चलती है और सामान्यतः इसे लंदन से पेरिस पहुंचने में 2 घंटे 35 मिनट लगते हैं।

प्रोटोकॉल क्या होता है?

प्रोटोकॉल का सामान्य अर्थ शिष्टाचार या कुछ मान्य सिद्धांत है। जैसे डिप्लोमेसी में काम करने के तौर-तरीके होते हैं। प्रोटोकॉल का एक आशय संधियों और समझौते भी है। इसके अलावा चिकित्सा, सरकारी कार्यों और सेना जैसी सेवाओं में कुछ कार्यों के निश्चित नियम भी प्रोटोकॉल कहलाते हैं। जैसे कोविड-19 के इलाज का प्रोटोकॉल। इसका एक अर्थ मर्यादाओं से भी है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 24 फरवरी, 2024 को प्रकाशित

Wednesday, February 21, 2024

रणजी ट्रॉफी क्या है?

रणजी ट्रॉफी भारत की प्रथम श्रेणी घरेलू क्रिकेट चैम्पियनशिप है, जिसमें क्षेत्रीय क्रिकेट संघों के साथ रेलवे और सेना की टीमें भाग लेती हैं। देश में नए खिलाड़ियों को तैयार करने में इस प्रतियोगिता की सबसे बड़ी भूमिका है। वर्तमान समय में इसमें 38 टीमें शामिल होती हैं। इनमें 28 राज्यों की टीमें और आठ केंद्र शासित क्षेत्रों में से चार की टीमें शामिल होती हैं। इनके अलावा चार ऐसी टीमें हैं, जो किसी राज्य का एक इलाका है। जैसे महाराष्ट्र से मुंबई और विदर्भ तथा गुजरात से सौराष्ट्र और बड़ौदा। इनके अलावा रेलवे और सेना की टीम है। हैदराबाद की टीम तेलंगाना का प्रतिनिधित्व करती है।

यह प्रतियोगिता नवानगर (वर्तमान में जामनगर) स्टेट के महाराजा कुमार श्री रणजीतसिंहजी जाडेजा के नाम पर है, जो रणजी नाम से प्रसिद्ध थे और बहुत अच्छे क्रिकेट खिलाड़ी थे। वे भारत के पहले क्रिकेटर थे, जिन्हें इंग्लैंड की क्रिकेट टीम की ओर से खेलने का मौका मिला था। प्रतियोगिता पहली बार 1934-35 में खेली गई। जुलाई 1934 में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की एक बैठक के बाद इसे देश की राष्ट्रीय चैंपियनशिप के रूप में शुरू किया गया था। पहले साल इसका नाम क्रिकेट चैंपियनशिप ऑफ इंडिया था। 1935 में इसका नाम रणजी इसकी ट्रॉफी को पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह ने दान में दिया था।

प्रतियोगिता का पहला मैच 4 नवंबर 1934 को तत्कालीन मद्रास और अब चेन्नई में चेपक के मैदान पर मद्रास और मैसूर के बीच खेला गया। पहली चैंपियनशिप बंबई की टीम ने जीती। फाइनल में उसने उत्तर भारत की टीम को पराजित किया। 2022-23 की विजेता सौराष्ट्र की टीम रही। कोविड के कारण 2020-21 की प्रतियोगिता नहीं हो पाई। इसका फॉर्मेट बदलता रहा है। पहले यह पाँच क्षेत्रों में विभाजित थी। 2002-03 से जोनल सिस्टम खत्म करके प्रतियोगिता को दो स्तरों में बाँट दिया गया। एक सुपर लीग और दूसरा प्लेट वर्ग। इसमें भी बदलाव होता रहा। 2018-19 से यह प्रतियोगिता तीन स्तरीय हो गई है।

टी-20 डकवर्थ-लुईस

क्रिकेट के टी-20 मैच में एक टीम अपने पूरे 20 ओवर खेल लेती है और दूसरी टीम पूरे 20 ओवर नहीं खेल पाती है, तो एक नियम के तहत बचे हुए ओवरों में नया लक्ष्य निर्धारित किया जाता है इस लक्ष्य निर्धारण को एक स्टैटिस्टिकल टेबल की मदद से निकाला जाता है। इस नियम का विकास इंग्लैंड के दो सांख्यिकी विद्वानों फ्रैंक डकवर्थ और टोनी लुईस ने किया था, इसलिए इसे डकवर्थ-लुईस पद्धति कहा जाता है। टी-20 में इसका सहारा तभी लिया जाता है जब दूसरी पाली में 20 में से कम से कम 5 ओवरों का खेल हो चुका हो।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 17 फरवरी, 2024 को प्रकाशित

Sunday, December 31, 2023

दुनिया का सबसे पुराना शहर

दुनिया के कई शहर सबसे पुराना होने का दावा करते हैं। इनमें सीरिया का दमिश्क, लेबनॉन का बाइब्लोस, अफगानिस्तान का बल्ख और फलस्तीन के जेरिको का नाम भी है। पर मैं अपने वाराणसी का नाम लूँगा, जो सम्भवतः दुनिया के उन सबसे पुराने शहरों में एक है जो आज भी आबाद हैं। जनश्रुति है कि इसे भगवान शिव ने बसाया।  इसमें दो राय नहीं कि यह शहर तीन से चार हजार साल पुराना है। मार्क ट्वेन ने इस शहर के बारे में लिखा है,‘वाराणसी, इतिहास से पुराना, परम्पराओं से पुराना, किंवदंतियों से पुराना है और इन सबको मिलाकर भी उनसे दुगना पुराना है।

5000 वर्ष पुरानी सोने की खान

जर्मन शहर बोखुम के माइनिंग म्यूजियम के खनन पुरातत्वशास्त्रियों को हैरानी है कि इतनी नीचे जाने के लिए उन्होंने कौन सा रास्ता चुना. खदान का मुहाना खोजते समय इन पुरातत्वशास्त्रियों को एक और आश्चर्यजनक चीज मिली वह थे, पत्थरों के औजार. इन्हीं धारदार औजारों से उस समय इंसान ने खुदाई की थी. पुरातत्वशास्त्री थोमास श्टोएल्नेर बताते हैं, "उनके लिए यह मुश्किल भरा रहा होगा, इस तरह के हथौड़े से पत्थरों को तोड़ना और इतनी संकरी जगह पर खनन करना. हमें बहुत खास हथौड़े मिले जो साफ तौर पर ऐसी संकरी खदान के लिए बनाए गए."

सिर्फ पत्थर को औजार बनाकर प्राचीन काल में लोगों ने यहां 70 मीटर की सुरंग बना डाली. बहुत ही संकरी जगह पर पहले बच्चों को भेजा गया. मृतकों के अवशेष बताएंगे कि इतना जोखिम क्यों उठाया गया. नमूनों में सोने के अंश मिले हैं. नंगी आंखों से इसे देखना मुमकिन नहीं. धीरे धीरे पुरातत्वशास्त्री उस तकनीक तक पहुंच रहे हैं जो सबसे पहले सोना निकालने वालों ने अपनाई. टीम को शोध के दौरान पांच हजार साल पुराना तारकोल भी मिला है.

टीम ने दुनिया की अब तक की सबसे पुरानी सोने की खान खोज निकाली. माना जा रहा है कि यह शुरुआती कांस्य युग की निशानी है. खदान में सोने की कितनी मात्रा है, वह कहां है, इसका पता लगाने के लिए मोबाइल लेजर स्कैनर से सुरंग का खाका बनाया गया. "यह पहली ऐसी सुरंग है जिसके जरिए हम खनन की पुरानी तकनीक के बारे में जान रहे हैं. यहां हमें पहली बार एक बहुत उच्च स्तर की तकनीक का पता चला. ऐसी तकनीक जो खोज के हजार साल बाद लोकप्रिय हुई. जरा सोचिए, यहां जमीन के 25 मीटर नीचे एक सुरंगों वाली खदान है, यह विश्व स्तर की कामयाबी है. यह देखना रोमांचक है कि सोने के खनन में उन्होंने किस तरह की विशेषता का इस्तेमाल किया." दावे साबित कर रहे हैं कि आज से 5000 साल पहले कॉकेशस में इंसान ने चट्टानों को चूर कर सोना निकालना शुरू कर दिया था. यानी इंसान तभी से सोने के मोह में डूबा है. 

जर्मन रेडियो से साभार

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 30 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित

Wednesday, December 20, 2023

धन विधेयक और वित्त विधेयक में क्या अंतर होता है?

संविधान के अनुच्छेद 109 के अनुसार धन विधेयक राज्यसभा में पुरःस्थापित (इंट्रोड्यूस) नहीं किया जाएगा। लोकसभा से उसके पास होने के बाद राज्यसभा की सिफारिशों के लिए भेजा जाएगा, जहाँ से चौदह दिन की अवधि के भीतर राज्यसभा अपनी सिफारिशों के साथ उसे लोकसभा को लौटा देगी। लोकसभा उन सिफारिशों को स्वीकार कर भी सकती है और नहीं भी कर सकती है। अनुच्छेद 110 मे वर्णित एक या अधिक मामलों से जुड़ा धन विधेयक कहलाता है। ये मामले हैं -किसी कर को लगाना,हटाना, नियमन, धन उधार लेना या कोई वित्तीय जिम्मेदारी जो भारत की संचित निधि से धन की निकासी/जमा करना, संचित निधि से धन का विनियोग, ऐसे व्यय जिन्हें भारत की संचित निधि पर भारित घोषित करना हो, संचित निधि से धन निकालने की स्वीकृति लेना वगैरह। वित्त विधेयक (फाइनेंशियल बिल) वह विधेयक जो धन विधेयक (मनी बिल) के एक या अधिक प्रावधानों से पृथक हो तथा गैर मनी मामलों से भी संबंधित हो। जो राजस्व और व्यय से जुड़ा हो सकता है। वित्त विधेयक में धन प्रावधानों के साथ सामान्य विधायन से जुड़े मामले भी होते है। इस प्रकार के विधेयक को पारित करने की शक्ति दोनों सदनों मे समान होती है। यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस पर लोक सभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा।

गोलमेज वार्ता क्या होती है?

गोलमेज वार्ता माने जैसा नाम है काफी लोगों की बातचीतजो एक-दूसरे के आमने-सामने हों। यहाँ पर गोलमेज प्रतीकात्मक है। गोलमेज में ही सब आमने-सामने होते हैं। अंग्रेजी में इसे राउंड टेबल कहते हैंजिसमें गोल के अलावा यह ध्वनि भी होती है कि मेज पर बैठकर बात करना। यानी किसी प्रश्न को सड़क पर निपटाने के बजाय बैठकर हल करना। अनेक विचारों के व्यक्तियों का एक जगह आना। माना जाता है कि 12 नवम्बर 1930 को जब ब्रिटिश सरकार ने भारत में राजनीतिक सुधारों पर अनेक पक्षों से बातचीत की तो उसे राउंड टेबल कांफ्रेंस कहा गया। इस बातचीत के कई दौर हुए थे।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 16 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित

Wednesday, December 6, 2023

शक संवत क्या है?

राष्ट्रीय शाके अथवा शक संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है। इसका प्रारम्भ 78 वर्ष ईसा पूर्व माना जाता है। यह संवत भारतीय गणतंत्र का सरकारी तौर पर स्वीकृत अपना राष्ट्रीय संवत है। ईसवी सन 1957 (चैत्र 1, 1879 शक) को भारत सरकार ने इसे देश के राष्ट्रीय पंचांग के रूप में मान्यता प्रदान की थी। इसीलिए राजपत्र (गजट), आकाशवाणी और सरकारी कैलेंडरों में ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ इसका भी प्रयोग किया जाता है। विक्रमी संवत की तरह इसमें चंद्रमा की स्थिति के अनुसार काल गणना नहीं होती, बल्कि सौर गणना होती है। यानी महीना 30 दिन का होता है। इसे शालिवाहन संवत भी कहा जाता है। इसमें महीनों का नामकरण विक्रमी संवत के अनुरूप ही किया गया है, लेकिन उनके दिनों का पुनर्निर्धारण किया गया है। इसके प्रथम माह (चैत्र) में 30 दिन हैं, जो अंग्रेजी लीप ईयर में 31 दिन हो जाते हैं। वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण एवं भाद्रपद में 31-31 दिन एवं शेष 6 मास में यानी आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन में 30-30 दिन होते हैं।

बर्गर की शुरूआत कब हुई?

कहा जाता है कि सन 1904 में सेंट लुई के वर्ल्ड फेयर में पहली बार हैम्बर्गर नज़र आया। पर यह खाद्य पदार्थ उसके पहले से दुनिया में मौजूद था। अठारहवीं सदी में जर्मनी के प्रसिद्ध बंदरगाह से गुजरने वाले नाविक हैम्बर्ग स्टीक लाते थे। इसमें कई तरह के गोश्त के कीमे की परतें होतीं थी। दरअसल बर्गर का नाम ही उस हैम्बर्गर पर पड़ा है। इसके बारे में कुछ कहानियाँ और है। कहते हैं कि किसी के दिमाग में आया कि गोश्त को ब्रैड के दो पीसों के बीच रखकर खाया जाए तो आसानी होगी। और देखते ही देखते यह लोकप्रिय हो गया। सैंडविच और पैटी जैसी इस चीज़ में अलग-अलग किस्म के स्वाद भी पैदा किए जा सकते थे। अमेरिका की ह्वाइट कैसल हैम्बर्गर चेन को इसे लोकप्रिय बनाने का श्रेय जाता है। ह्वाइट कैसल के अनुसार जर्मनी के ओटो क्लॉस ने 1881 में हैम्बर्गर का आविष्कार किया। पर उनके अलावा भी चार्ली नेग्रीन, तुईस लासेन और ऑस्कर वैबर बिल्बी जैसे नाम भी हैं, जिन्हें इसका आविष्कारक माना जाता है। बहरहाल आज फास्टफूड के ज़माने में इसका आविष्कार सहज था। हमारे देश में वैजीटेबल बर्गर की तमाम प्रजातियाँ विकसित हुईं हैं। मैकडॉनल्ड का आलू टिक्की बर्गर भारतीय आविष्कार ही माना जाएगा।

ज्यादातर फल गर्मियों में ही क्यों आते हैं?

सर्दियों में भी फल आते हैं। अलबत्ता गर्मी में आने वाले लगभग सभी फल रसीले होते हैं जैसे तरबूज लीची, लुकाट, आड़ू, आलूबुखारा, शहतूत, संतरा, खरबूजा, सेब, खुबानी, आड़ू आदि। इनके मीठे रस में शरीर को लू से बचाने की अद्भुत क्षमता के कारण ही शायद प्रकृति ने गर्मी में पैदा किया। इसका सबसे बड़ा कारण है सूर्य की रोशनी और गरमाहट। वनस्पति का मूलाधार गर्मी है। आपने देखा होगा सर्दियों में पौधों का बाहरी विकास रुक जाता है। उन दिनों पौधों की जड़ें बढ़ती हैं। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 2 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित

Monday, October 30, 2023

रोड सिग्नल में लाल ऊपर, रेलवे में नीचे क्यों?

लाल रंग को खतरे के निशान के रूप में सबसे पहले समुद्री जहाजों ने अपनाया। प्रकाश की किरणों में लाल रंग की वेवलेंग्थ ज्यादा होने की वजह से भी यह फैसला किया गया। उन्नीसवीं सदी के शुरू में ब्रिटेन ने रेलवे में सिग्नलिंग की व्यवस्था की। रेलगाड़ियों का एक ही ट्रैक होता था, इसलिए ज़रूरी था कि उनके लिए सिग्नलिंग की व्यवस्था की जाए। लाल रंग को तब तक खतरे के निशान के रूप में स्वीकार किया जा चुका था।

चूंकि हरा रंग लाइन क्लियर के लिए सोचा गया था, इसलिए रेलवे सिग्नल में उसे ऊपर रखा गया। वैसे भी रेलवे के शुरू के सिग्नल कई तरह के सोचे गए थे। इनमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय डाउन और अप सिग्नल हुए। उनके साथ रंगीन शीशे की प्लेट होती थीं, जिनके पीछे रात में लालटेन लगाई जाती थी। उसमें एक ही रंग दिखाई पड़ता था। रेलवे में लाइन क्लियर ज्यादा महत्वपूर्ण होता है और सड़क पर नियंत्रण और सावधानी।

सड़कों पर ट्रैफिक के संचालन के लिए 9 दिसम्बर 1868 को लंदन में ब्रिटिश संसद भवन के सामने रेलवे इंजीनियर जेपी नाइट ने ट्रैफिक लाइट लगाई। यह सिग्नल भी रेलवे जैसा ही था। पर वह व्यवस्था चली नहीं। सड़कों पर व्यवस्थित रूप से ट्रैफिक सिग्नल सन 1912 में अमेरिका सॉल्ट लेक सिटी यूटा में शुरू किए गए। सड़कों के ट्रैफिक सिग्नल तय करते वक्त सोचा गया कि ये संकेतक ज्यादा ऊँचाई पर नहीं होंगे, इसलिए लाल रंग को ऊपर रखना ही बेहतर होगा। वैज्ञानिक अध्ययनों से यह भी पता लगा कि जो रंग सबसे ज्यादा ध्यान खींचता है, वह लाल नहीं बल्कि लालिमा युक्त पीला रंग या केसरिया रंग है। इस रंग को भी ट्रैफिक सिग्नल में जगह दी गई है।

ओलिंपिक में क्रिकेट?

1896 में एथेंस में हुए पहले ओलिंपिक खेलों में क्रिकेट को भी शामिल किया गया था, पर पर्याप्त संख्या में टीमें न आ पाने के कारण, क्रिकेट प्रतियोगिता रद्द हो गई। सन 1900 में पेरिस में हुए दूसरे ओलिम्पिक में चार टीमें उतरीं, पर बेल्जियम और नीदरलैंड्स ने अपना नाम वापस ले लिया, जिसके बाद सिर्फ फ्रांस और इंग्लैंड की टीमें बचीं। उनके बीच मुकाबला हुआ, जिसमें इंग्लैंड की टीम चैम्पियन हुई। पिछले दिनों कॉमनवैल्थ गेम्स में और हाल में एशियाई खेलों में टी-20 क्रिकेट प्रतियोगिता भी हुई थी। फिलहाल 2024 के पेरिस ओलिंपिक खेलों में क्रिकेट शामिल नहीं है, पर 2028 के लॉस एंजेलस ओलिंपिक में क्रिकेट को शामिल करने का फैसला हो गया है। अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक कमेटी (आईओसी) के अध्यक्ष थॉमस बाख के नेतृत्व में गत 16  अक्तूबर को मुंबई में हुई बैठक में यह फैसला किया गया। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 28 अक्तूबर, 2023 को प्रकाशित

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