Friday, November 23, 2018

चाबहार बंदरगाह कहाँ है?

चाबहार बंदरगाह ओमान की खाड़ी में ईरान के दक्षिण पूर्व में स्थित है. यह ईरान का गहरे सागर का एकमात्र बंदरगाह है. इसमें दो बंदरगाह हैं. एक है शहीद कलंतारी और दूसरा शहीद बेहश्ती. दोनों में पाँच-पाँच बर्थ हैं. यह बंदरगाह भारत-ईरान और अफ़ग़ानिस्तान तीन देशों के समझौते के अधीन विकसित किया जा रहा है. यह एक दीर्घकालीन परियोजना है, जो बाद में इस इलाके को अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर के मार्फत मध्य एशिया के रास्ते यूरोप तक से जोड़ने का कार्य कर सकती है. इस बंदरगाह के विकास की परिकल्पना सन 1973 में ईरान के अंतिम शाह ने की थी. सन 1979 की ईरानी क्रांति के बाद इसका काम धीमा पड़ गया था. इसका पहला चरण सन 1983 में पूरा हुआ. इस बंदरगाह में ईरान की दिलचस्पी की एक वजह यह थी कि इराक़ के साथ युद्ध के कारण ईरान ने अपने समुद्री व्यापार को पूर्व की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया था. शहीद बेहश्ती बंदरगाह को विकसित करने के लिए भारत और ईरान के बीच समझौता 2003 में हुआ था.

अमेरिकी पाबंदियाँ

सन 1979 की ईरानी क्रांति के बाद से अमेरिका और ईरान के रिश्ते बिगड़ते गए जिनके कारण अमेरिका ने ईरान पर कई बार पाबंदियाँ लगाईं. हाल में अमेरिका ने 5 नवंबर से ईरान पर फिर से बड़ी पाबंदियाँ लगाने का फैसला किया है. पर उसने चाबहार बंदरगाह का विकास करने के भारतीय कार्यक्रम को उन पाबंदियों से छूट दी है. मई 2016 में भारत और ईरान के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत भारत शहीद बेहश्ती बंदरगाह की एक बर्थ के पुनरुद्धार और 600 मीटर लंबे एक कंटेनर क्षेत्र का पुनर्निर्माण करेगा. भारत इस बंदरगाह के कंटेनर रेलवे ट्रेक का निर्माण भी कर रहा है और चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे लाइन भी तैयार कर रहा है. इसके बाद ज़ाहेदान से अफ़ग़ानिस्तान के ज़रंज तक रेलवे लाइन का विस्तार होगा. ईरान में भारत अंतरराष्ट्रीय उत्तरी-दक्षिणी कॉरिडोर को बनाने की योजना पर भी काम कर रहा है. यह परिवहन कॉरिडोर 7,200 किलोमीटर लंबा नेटवर्क होगा, जिसमें पोत, रेल और सड़क मार्ग से माल का परिवहन होगा. इस परियोजना पर 16 मई 2002 को भारत, रूस और ईरान के बीच समझौता हुआ था. यह नेटवर्क भारत, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया के रास्ते यूरोप को जोड़ेगा.

अफ़ग़ानिस्तान की भूमिका

अमेरिका मानता है कि युद्ध-प्रभावित अफ़ग़ानिस्तान के हितों की रक्षा के लिए चाबहार बंदरगाह का विकास करना जरूरी है. चूंकि अफ़ग़ानिस्तान के पास समुद्र तट नहीं है, इसलिए यह उसके व्यापार के लिए महत्वपूर्ण बंदरगाह साबित होगा. भारत के सीमा सड़क संगठन ने अफ़ग़ानिस्तान में जंरंज से डेलाराम तक 215 किलोमीटर लम्बे मार्ग का निर्माण पूरा कर लिया है, जो निमरोज़ प्रांत की पहली पक्की सड़क है. पिछले साल अक्तूबर में भारत ने चाबहार के रास्ते अफ़ग़ानिस्तान को गेहूँ की पहली खेप भेजकर इस व्यापार मार्ग की शुरुआत कर भी दी है.


Friday, November 2, 2018

मानव विकास सूचकांक

मानव विकास सूचकांक या ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स मानव विकास के तीन बुनियादी आयामों (दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन, ज्ञान तक पहुँच तथा जीवन के एक सभ्य स्तर) द्वारा प्रगति का आकलन करने का एक वैश्विक मानक है, जिसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) हर साल जारी करता है। इसमें कई तरह की सूचनाओं के आधार पर हरेक देश को अंक दिए जाते हैं। मसलन शिक्षा, स्वास्थ्य, स्त्रियों की स्थिति, आर्थिक स्थिति, जीवन स्तर, संचार के साधन वगैरह। इसके आधार पर अलग-अलग देशों का तुलनात्मक अध्ययन सम्भव होता है। यह सूचकांक अलग-अलग शहरों या अलग-अलग प्रदेशों के तुलनात्मक अध्ययन के लिए भी तैयार किया जा सकता है। इस साल यह रिपोर्ट 14 सितम्बर, 2018 को जारी हुई। सन 1990 से यह रपट जारी हो रही है। इसे बनाने की पहल पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूबुल हक ने की थी। इसमें भारत के अमर्त्य सेन के अलावा पॉल स्ट्रीटेन, फ्रांसिस स्टीवर्ट, गुस्ताव रेनिस और कीथ ग्रिफिथ जैसे अर्थशास्त्री भी जुड़े रहे हैं।

‘घुटने टेको’ आंदोलन
अमेरिका में जातीय अन्याय के खिलाफ संघर्ष इन दिनों ‘टेक द नी’ या घुटने टेको आंदोलन की शक्ल में सामने आ रहा है। बराक ओबामा जब अमेरिका के राष्ट्रपति बने तब कहा जा रहा था कि अमेरिका में नए युग की शुरुआत हो गई है। ओबामा के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में अश्वेतों की शिकायतें बढ़ी हैं। उनके चुनाव में अश्वेतों ने उनके खिलाफ वोट दिया था। धीरे-धीरे यह चर्चा ठंडे बस्ते में दब भी गई थी लेकिन हाल में अमेरिकी फुटबॉलर कॉलिन कैपरनिक को प्रतीक बनाकर यह चर्चा फिर से शुरू हुई है। सोशल मीडिया के कारण यह आंदोलन बड़ी तेजी से फैल रहा है। अभी तक हाथ में मोमबत्तियाँ लेकर विरोध विरोध जताया जाता था। अब राष्ट्रीय गीत के दौरान एक घुटना जमीन पर टिकाकर विरोध जताने का नया तरीका सामने आया है। माना जाता है कि देश से बढ़कर कुछ नहीं, पर राष्ट्रगीत के दौरान ऐसा करने का मतलब है व्यक्ति हर उस चीज का विरोध कर रहा है जिसके कारण उसे अपने ही देश से नाराजगी है।

नाइके की पहल
हाल में खेल से जुड़ी चीजें, खासतौर से स्पोर्ट्स शूज़ बनाने वाली अमेरिकी कम्पनी नाइके ने कॉलिन कैपरनिक को एक लम्बे विज्ञापन अभियान के लिए अनुबंधित किया है। कॉलिन 2011 से इस कम्पनी के साथ जुड़े हैं, पर इस नए अनुबंध के राजनीतिक निहितार्थ हैं। कम्पनी के इस अभियान को समर्थन मिला है, इसे देश-विरोधी गतिविधि माना जा रहा है। नाइके के उत्पादों को जलाया जा रहा है। कॉलिन ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ (बीएलएम) नामक अंतरराष्ट्रीय आंदोलन के समर्थक भी हैं, जो अमेरिकी-अफ्रीकी समुदाय के सवालों को उठाता है। सन 2013 से सोशल मीडिया पर ‘हैशटैग ब्लैक लाइव्स मैटर’ नाम से अभियान भी चल रहा है। 
http://epaper.patrika.com/1862427/Me-Next/Me-Next#dual/2/1

ग्रीन पटाखों का मतलब?

अदालत ने जिन ग्रीन और सेफ पटाखों की बात कही है उसका मतलब है कि उन्हें बनाने में ऐसी सामग्री का इस्तेमाल किया जाएगा, जो कम खतरनाक होती है. ऐसे पटाखों की घोषणा इस साल जनवरी में विज्ञान और तकनीकी मंत्री हर्ष वर्धन ने की थी. ग्रीन पटाखों की इस अवधारणा को देश की वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं ने आगे बढ़ाया. इनमें कौंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर), सेंट्रल इलेक्ट्रो केमिकल इंस्टीट्यूट, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी, नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट और नेशनल केमिकल लैबोरेटरी शामिल हैं. सीएसआईआर के नेशनल एनवायरनमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉ राकेश कुमार इस परियोजना के कोऑर्डिनेटर हैं. उन्होंने बताया कि हमने तीन-चार रासायनिक सूत्र तैयार किए हैं, जिनमें 30 से 40 फीसदी ऐसी नुकसानदेह सामग्री कम की जा सकती है. इनसे पर्यावरण-मित्र अनार और बिजली क्रैकर बनाए जा सकते हैं.

ई-पटाखे कैसे काम करते हैं?

वैज्ञानिकों ने ऐसे बम बनाए हैं, जो आवाज करते हैं, पर माहौल में सल्फर डाईऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं करते. ये धुएं की जगह भाप या हवा छोड़ते हैं. पेट्रोलियम और विस्फोटकों की सुरक्षा से जुड़ा संगठन इनपर परीक्षण कर रहा है. एक अवधारणा ई-क्रैकर या इलेक्ट्रॉनिक पटाखों की भी है. इनमें हाई वोल्टेज माइक्रो जेनरेटर काम करते हैं, जो रह-रहकर तेज आवाज करते हैं. इनमें तार से जुड़े पटाखों की लड़ी होती है, जिसके साथ एलईडी लाइट भी होती है. धमाके के साथ चमक भी होती है. यह तकनीक महंगी है. भारतीय बाजारों में विदेशी ई-क्रैकर उपलब्ध हैं, पर उनकी कीमत काफी ज्यादा है. चीनी ई-पटाखे भी तीन हजार रुपये या उससे भी ज्यादा दाम के हैं. भारतीय प्रयोगशालाओं ने भी तकनीक विकसित की है, जिनका सीएसआईआर की पिलानी प्रयोगशाला में परीक्षण चल रहा है. वैज्ञानिकों को लगता है कि इन्हें लोग पसंद नहीं करेंगे, क्योंकि ये धमाकों की रिकॉर्डिंग जैसे लगेंगे.

क्या देश में पटाखों पर पूरी रोक है?

व्यावहारिक रूप से पूरी रोक है. पिछली 23 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की बिक्री और पटाखे चलाने से सम्बद्ध कुछ दिशा निर्देश जारी किए हैं. अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को जो निर्देश दिए हैं उनके अनुसार कम उत्सर्जन वाले पटाखों को दागा जा सकेगा. केवल ग्रीन और सेफ पटाखे ही बेचे जाएंगे. इसके साथ ही ऑनलाइन पटाखों की बिक्री पर भी रोक लगा दी गई है. पटाखों की बिक्री से जुड़े ये निर्देश सभी त्योहारों तथा शादियों पर भी लागू होंगे. दीवाली के अवसर पर पटाखे रात को 8 बजे से 10 बजे के बीच ही चलाए जा सकेंगे. नए साल पर रात में 11.55 से 12.30 तक ही पटाखे जलाए जा सकेंगे। यह समय सीमा पूरे देश पर लागू होगी. जिस याचिका पर अदालत ने यह फैसला सुनाया है, उसपर 28 अगस्त को जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण ने दलील पूरी होने के बाद फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था.





Thursday, November 1, 2018

तीन समझदार बंदर?


जापान के निक्को स्थि‍त तोशोगु की समाधि पर ये तीनों बंदर बने हैं. वहाँ से ही वे दुनियाभर में प्रसिद्ध हुए. ये बंदर बुरा न देखो, बुरा न सुनो, बुरा न बोलो की समझदारी को दर्शाते हैं. मूलतः यह शिक्षा ईसा पूर्व के चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस की थी. वहाँ से यह विचार जापान गया. उस समय जापान में शिंटो संप्रदाय का बोलबाला था. शिंटो संप्रदाय में बंदरों को काफी सम्मान दिया जाता है. शायद इसीलिए इस विचारधारा को बंदरों का प्रतीक दे दिया गया. ये बंदर युनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है. ऐसे ही विचार जापान के कोशिन मतावलम्बियों के हैं जो चीनी ताओ विचार से प्रभावित हैं. जापानी में इन बंदरों के नाम हैं मिज़ारू, किकाज़ारू और इवाज़ारू. महात्मा गांधी ने इन तीन के मार्फत नैतिकता की शिक्षा दी, इसलिए कुछ लोग इन्हें गांधीजी के बंदर भी कहते हैं.

सीता-स्वयंवर का धनुष

इसे शिव-धनुष कहते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार यह शिव का प्रिय धनुष था जिसका नाम पिनाक था. इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना इसलिए खास था क्योंकि यह धनुष स्वयं शिव का था और बहुत अधिक वजनी था. धनुष के वजन के संबंध में तुलसी दास ने लिखा है कि स्वयंवर में उपस्थित हजारों राजा एक साथ मिलकर भी उस धनुष को हिला तक नहीं पाए थे. वहीं श्रीराम ने शिव धनुष की प्रत्यंचित किया. स्वयंवर में इतनी कठिन शर्त रखने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं. शास्त्रों के अनुसार विश्वकर्मा ने दो दिव्य धनुष बनाए थे एक विष्णु के लिए और एक शिव के लिए. एक का नाम शारंग तथा दूसरे का नाम पिनाक था. उन्होंने शारंग भगवान विष्णु को तथा पिनाक भगवान शिव को दिया था. इसके अलावा भी कहानियाँ हैं. शिव ने यह धनुष परशुराम को भेंट में दिया था. परशुराम ने इस धनुष को जनक के पूर्वज देवराज के यहां रखवा दिया था. राजा जनक के यहां बचपन में सीता ने इस धनुष को उठा लिया. यह देखकर जनक समझ गए कि सीता असाधारण कन्या है. इसका विवाह किसी असाधारण वर से होगा.

रावण क्यों दशानन?

वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ ब्रह्म ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था. कुछ विद्वान मानते हैं कि रावण के दस सिर नहीं थे किंतु वह दस सिर होने का भ्रम पैदा कर देता था इसी कारण लोग उसे दशानन कहते थे. कुछ के अनुसार वह छह दर्शन और चारों वेद का ज्ञाता था इसीलिए उसे दसकंठी कहा जाता था. दसकंठी कहे जाने के कारण प्रचलन में उसके दस सिर मान लिए गए. जैन शास्त्रों में उल्लेख है कि रावण के गले में बड़ी-बड़ी गोलाकार नौ मणियां होती थीं. उक्त नौ मणियों में उसका सिर दिखाई देता था जिसके कारण उसके दस सिर होने का भ्रम होता था.
http://epaper.prabhatkhabar.com/1869938/Awsar/Awsar#page/6/1
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