Saturday, September 28, 2013

मेट्रो की बत्तियाँ गुल क्यों हो जाती हैं?

मेट्रो में सफर करते समय मैंने एक बात पर गौर किया है कि करौलबाग पहुंचते ही मेट्रो कोच की बत्तियाँ गुल हो जाती हैं ,ऐसा क्यों ? –दिलीप

आपके सवाल का सही जवाब तो मेट्रो के अधिकारी ही दे सकते हैं, पर यदि यह बत्ती गुल होना किसी एक खास जगह होता है तो इसका कारण पावर न्यूट्रल जोन है। रेलवे की लाइनों के ऊपर चलने वाले बिजली के तारों को एक से ज्यादा स्रोतों से बिजली मिलती है। ऐसे में एक सब स्टेशन से दूसरे सब स्टेशन की लाइन शुरू होती है, तब थोडी सी दूरी तक ऊपर करेंट नहीं होता। इसे पावर न्यूट्रल जोन कहते हैं। यहाँ गाड़ी रुकती नहीं है, क्योंकि अपनी गति से बढ़ती जाती है। चूंकि पावर सोर्स खत्म हो जाता है तब बत्ती गुल हो जाती है और केवल बैटरी पर आधारित लाइट जली रह जाती है। ऐसा रेलवे लाइनों में भी होता है। दिल्ली मेट्रो की अलग-अलग लाइनों में यह कहीं न कहीं होता होगा।

स्थगन प्रस्ताव क्या होता है? संसद क्यों, और एक दिन में कितनी बार स्थगित हो सकती है? –राखी

हमारी संसद के दोनों सदनों के नियमों में सार्वजनिक महत्‍व के मामले बिना देरी किए उठाने की कई व्‍यवस्‍थाएं हैं, इनमें कार्य स्थगन प्रस्ताव भी है। इसके द्वारा लोक सभा के नियमित काम-काज को रोककर तत्‍काल महत्‍वूपर्ण मामले पर चर्चा कराई जासकती है। इसके अलावा कई और तरीके हैं जैसे कि ध्‍यानाकर्षण, आपातकालीन चर्चाएं, विशेष उल्‍लेख, प्रस्‍ताव (मोशन), संकल्‍प, अविश्‍वास प्रस्‍ताव, निंदा प्रस्‍ताव वगैरह। आपने यह भी पूछा है कि दिन में कितनी बार सदन स्थगित हो सकता है। यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

पुनर्विचार याचिका क्या है? – मधु
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 137 और 145 के तहत अपीलीय अदालतों यानी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के बारे में कोई पक्ष पुनर्विचार याचिका दायर कर सकता है। यह याचिका अदालत के निर्णय के बाद तीस दिन के भीतर दाखिल की जानी चाहिए। पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद भी वह पक्ष उपचार याचिका या क्यूरेटिव पेटीशन दाखिल कर सकते है।

संसद की कार्यवाही में किसी भाषण के समय कुछ चीजें रिकॉर्ड से बाहर क्यों कर दी जाती है? –ज़ोया
यह संसद का अधिकार है कि वह कुछ खास शब्दों, अभिव्यक्तियों, विचारों या घटनाओं को आधिकारिक दस्तावेजों में नहीं रखना चाहती तो उसे रिकार्ड से बाहर कर दे। इस अधिकार का इस्तेमाल सामान्यतः पीठासीन अधिकारी के माध्यम से होता है।

नेशनल म्यूज़ियम दिल्ली में हम क्या कुछ देख सकते हैं ? –अभिषेक
दिल्ली का नेशनल म्यूजियम देश के सबसे बड़े संग्रहालयों में से एक है। इसकी स्थापना 1949 में हुई थी। इसमें प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक युग तक के लगभग 5000 साल के कालखंड की दो लाख कलाकृतियाँ तथा अन्य वस्तुएं रखी गईं है। यानी मोहेन-जोदाड़ो की वस्तुओं से लेकर गांधार कला की कृतियाँ और हाल के वर्षों तक की चीजें रखी हैं। इसका संचालन भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत होता है।
रानी पद्मिनी कौन थी ,वे इतिहास में क्यों और किस घटना के लिए याद की जाती है?- केवल

रानी पद्मिनी, चित्तौड़ की रानी थी। सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी पद्मिनी चित्तौड़ के राजा रतनसिंह के साथ ब्याही गई थी। रानी पद्मिनी बहुत खूबसूरत थी और उनकी खूबसूरती पर एक दिन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नजर पड़ गई। अलाउद्दीन किसी भी कीमत पर रानी पद्मिनी को हासिल करना चाहता था, इसलिए उसने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। रानी पद्मिनी ने आग में कूदकर जान दे दी, लेकिन अपनी आन-बान पर आँच नहीं आने दी। जनश्रुति है कि सन 1303 में चित्तौड़ के लूटने वाले अलाउद्दीन खिलजी की कामना रानी पद्मिनी को पाने की थी। श्रुति यह है कि उसने दर्पण में रानी की प्रतिबिंब देखा था और उसके सम्मोहित करने वाले सौंदर्य को देखकर अभिभूत हो गया था। लेकिन रानी ने लज्जा को बचाने के लिए जौहर करना बेहतर समझा। इनकी कथा कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अवधी भाषा में पद्मावत ग्रंथ रूप में लिखी है।

जेट लैग क्या होता है ? –वैभव

जेट लैग एक मनो-शारीरिक दशा है, जो शरीर के सर्केडियन रिद्म में बदलाव आने के कारण पैदा होती है। इसे सर्केडियन रिद्म स्लीप डिसॉर्डर भी कहते हैं। इसका कारण लम्बी दूरी की हवाई यात्रा खासतौर से पूर्व से पश्चिम या पश्चिम से पूर्व एक टाइम ज़ोन से दूसरे टाइम ज़ोन की यात्रा होती है। अक्सर शुरुआत में नाइट शिफ्ट पर काम करने आए लोगों के साथ भी ऐसा होता है। आपका सामान्य जीवन एक खास समय के साथ जुड़ा होता है। जब उसमें मूलभूत बदलाव होता है तो शरीर कुछ समय के लिए सामंजस्य नहीं बैठा पाता। अक्सर दो-एक दिन में स्थिति सामान्य हो जाती है। इसमें सिर दर्द, चक्कर आना, उनींदा रहना, थकान जैसी स्थितियाँ पैदा हो जाती है।
आरक्षण क्या है ? क्या ये ज़रूरी है ? –महेंद्र कुमार
आरक्षण का मतलब है किसी जगह, पद में किसी के लिए जगह सुरक्षित करना। आपका आशय सेवाओं और शिक्षा में आरक्षण से है। इसकी जरूरत तब पड़ती है जब किसी कारण से पीछे रह गए वर्ग विशेष को ताकत देना। भारत में अजा-जजा तथा शिक्षा और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है। इसी प्रकार महिलाओं के लिए जन-प्रतिनिधि सदनों में आरक्षण की बात भी है, पर वह हो नहीं पाया है। मेरी समझ से पिछड़े तबकों के लिए आरक्षण व्यवस्था होनी चाहिए।

 
UGC नेट की परीक्षा जनसंचार और पत्रकारिता विषय में देना चाहता हूँ। किन किताबों को और कैसे तैयारी करूँ? –मयूर
सबसे पहला सुझाव यही है कि आप अपना सामान्य अध्ययन अच्छा रखें। पत्रकारिता के सिद्धांत और व्यवहार, इतिहास, नैतिकता और कानून तथा जनसंचार से जुड़े तमाम सवाल केवल पाठ्य पुस्तकें पढ़ कर ही समझ में नहीं आते। फिर भी कुछ किताबों का सुझाव इस तरह है।1.Mass Communication Theory : Dennis Mcquail, Vistar Publications, New delhi. 2.Journalism : Concept, Approaches and Global Impact : Jaya Chakravarty, Sarup and sons, New Delhi, 3.भारत में समाचार पत्र क्रांतिः रॉबिन जेफ्री, भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली, जनसंचार सिद्धांत और अनुप्रयोगः विष्णु राजगढ़िया, राधाकृष्ण प्रकाशन

चेक बाउंस होने पर फाइन क्यों लगता है? क्या ये फाइन हर बार एक सा रहता है? –हरमिंदर
आपका आशय बैंक के फाइन से है। यह शुल्क तो बैंक इसलिए लेता है, क्योंकि वह उसे क्लियरिंग तक भेजता है और उसपर धनराशि नहीं मिलता। यह राशि अलग-अलग बैंक अलग-अलग लेते हैं। यों बार-बार यह गलती होने पर बैंक आपकी चेकबुक सुविधा वापस ले सकते हैं और खाता बंद भी कर सकते हैं। चेक बाउंस होने के अनेक कारण हो सकते हैं। मसलन खाते में पैसा नहीं है, तारीख गलत लिख दी गई है, खातेदार के हस्ताक्षर नहीं मिलते वगैरह। अलबत्ता जिसने यह चेक दिया है उसकी जिम्मेदारी है कि भुगतान करे। यदि वह चेक में बताई गई राशि का भुगतान नहीं करता तो उसके खिलाफ नेगोशिएबल इंस्ट्मेंट एक्ट की धारा 138 के तहत मुकदमा दायर किया जा सकता है जिसपर उसे सजा या जुर्माना कुछ भी हो सकता है। 

Monday, September 16, 2013

पेटेंट क्या है और यह किस प्रकार दिया जाता है?

पेटेंट क्या है और यह किस प्रकार दिया जाता है? बासमती चावल के पेटेंट का विवाद क्या था कृपया बताएं।
बौद्धिक सम्पदा अधिकार मस्तिष्क की उपज हैं और इनमे सबसे महत्वपूर्ण हैं - पेटेंट। पेटेंटी, पेटेंट का उल्लंघन करने वाले तरीके या उत्पाद के निर्माण को न्यायालय द्वारा रुकवा सकता है। ‘पेटेंट’ शब्द लैटिन से आया है। पुराने जमाने में शासको या सरकारों के द्वारा पदवी‚ हक‚ विशेष अधिकार पत्र के द्वारा दिया जाता है। आजकल पेटेंट शब्द का प्रयोग आविष्कारों के संबंध में होता है। इस तरह का प्रयोग पहली बार 15वीं शताब्दी के आस-पास आया। सर्वप्रथम, पेटेंट कानून जैसा इसे आज समझा जाता हैं, 14 मार्च, 1474 को वियना सिनेट के द्वारा को पारित किया गया। भारत में पहला पेटेंट सम्बन्धित कानून, 1856 में पारित अधिनियम था। तब से अब तक यह कई तरीके के बदलावों से गुजर चुका है। राइस टेक एक अमेरिकन कम्पनी है यह बासमती और टैक्समती के नाम से चावल बेच रही थी। 1994 में राइस टेक ने 20 तरह के बासमती चावल के लिए पेटेंट प्राप्त करने के लिए यूएस पेटेंट एण्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन (यूएसपीटीओ) में एक आवेदन पत्र दाखिल किया। यूएसपीटीओ ने 1997 में सभी पेटेंटों को मंजूर कर दिया। भारत ने अप्रैल 2000 में तीन पेटेंटों की पुन: परीक्षा के लिए एक आवेदन पत्र प्रस्तुत किया। राइसटेक ने इन तीन के साथ एक और पेटेंट को वापस ले लिया। बाद में राइसटेक से 11 अन्य पेटेंटों को भी वापस लेने के लिए भी कहा गया जो कि उसने वापस ले लिया। राइसटेक को पेटेंट का नाम भी बासमती राइस लाइन्स एंड ग्रेन्स से बदल कर बीएएस 867 आरटी 1121 और आरटी 117 करना पड़ा।

ब्लूचिप कंपनी क्या होती है ?
ब्लू चिप शब्द पोकर के खेल से आया है जिसमें कई रंग के बाज़ी लगाने वाले डिस्क होते है, जिन्हें चिप कहते हैं। पोकर के खेल में और कसीनो में नकदी की जगह इस्तेमाल होने वाले टोकनों में सबसे ज्यादा कीमत नीले डिस्क की होती है। मान लें सफेद चिप की कीमत 1 रुपया है, लाल का पाँच रुपया तो नीले की होगी 10 रुपया। यह शब्द शेयर बाजार में इस्तेमाल होता है तब माना जाता है श्रेष्ठ-मजबूत कंपनियों के शेयर। किसी कंपनी का ब्लू चिप होने का अभिप्राय यह है कि उसके शेयर निवेशकों के लिए पसंदीदा शेयर हैं। इस प्रकार की कंपनियों में सौदे भी काफी होते हैं, उतार-चढ़ाव भी काफी होता है और उनमें निवेशकों का आकर्षण भी खूब बना रहता है।ब्लू चिप का मतलब है राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त, सर्वसम्पन्न और स्थिर अर्थव्यवस्था वाली कंपनी। यह एक तरह से मापदंड होता है जिसमें किसी कंपनी को हम ब्लू चिप तभी कहते हैं जब वह ढलती अर्थव्यवस्था में भी सामान्य ढंग से व्यापार कर सके और मुनाफ़ा कमा सके।

शेयरों की कीमत कैसे घटती-बढती है? स्टॉक इंडेक्स या शेयर सूचकांक क्या है?
शेयर का सीधा सा अर्थ होता है हिस्सा। शेयर बाजार की भाषा में बात करें तो शेयर का अर्थ है कंपनियों में हिस्सा। उदाहरण के लिए एक कंपनी ने कुल 10 लाख शेयर जारी किए हैं। आप कंपनी के प्रस्ताव के अनुसार जितने अंश खरीद लेते हैं आपका उस कंपनी में उतने का मालिकाना हक हो गया जिसे आप किसी अन्य खरीददार को जब भी चाहें बेच सकते हैं। इस खरीद फरोख्त में शेयर के भाव बढ़ते और घटते हैं। 10 रु के शेयर की कीमत चार-पाँच सौ तक हो जाती है। इन कंपनियों के शेयरों का मूल्य शेयर बाजार में दर्ज होता है। सभी कंपनियों का मूल्य उनकी लाभदायक क्षमता के अनुसार कम-ज्यादा होता है। भारत में इस पूरे बाजार में नियंत्रण भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) का होता है। इसकी अनुमति के बाद ही कोई कंपनी अपना प्रारंभिक निर्गम इश्यू (आईपीओ) जारी कर सकती है। शेयर बाजार में लिस्टेड होने के लिए कंपनी को बाजार से लिखित समझौता करना पडता है, जिसके तहत कंपनी अपने हर काम की जानकारी बाजार को समय-समय पर देती रहती है, खासकर ऐसी जानकारियां, जिससे निवेशकों के हित प्रभावित होते हों। इन्हीं जानकारियों के आधार पर कंपनी का मूल्यांकन होता है और इस मूल्यांकन के आधार पर मांग घटने-बढ़ने से उसके शेयरों की कीमतों में उतार-चढाव आता है। अगर कोई कंपनी लिस्टिंग समझौते के नियमों का पालन नहीं करती, तो उसे डीलिस्ट करने की कार्रवाई सेबी करता है।

ऑटोग्राफ देने का रिवाज़ कैसे शुरू हुआ?
ऑटोग्राफ शब्द का अर्थ है हस्तलेख। ऑटोस यानी स्व और ग्राफो यानी लिखना। यानी जो आपने स्वयं लिखा है। पुराने वक्त में टाइपिंग या छपाई होती नहीं थी। केवल हाथ से लिखा जाता था, पर जो जो पत्र, दस्तावेज़ या लेख व्यक्ति स्वयं लिखता उसे ऑटोग्राफ कहते। ऐसा भी होता कि दस्तावेज़ कोई और लिखता और उसके नीचे उसे अधिकृत करने वाला अपने हाथ से अपना नाम लिख देता। यह नाम उसकी पहचान था। ऑटोग्राफ इस अर्थ में दस्तखत हो गया। किसी को याद रखने का सबसे अच्छा तरीका उसके हस्तलेख या ऑटोग्राफ हासिल करना भी हो गया। राजाओं, राष्ट्रपतियों, जनरलों, कलाकारों, गायकों वगैरह के दस्तखत अपने पास जमा करके रखने का चलन बीसवीं सदी में बढ़ा है। इस शौक को फिलोग्राफी कहते हैं।






Thursday, September 12, 2013

आपको याहू का पूरा नाम मालूम है?

याहू बड़ा विचित्र नाम है। इसे किसने स्थापित किया?



याहू डॉट कॉम की स्थापना अमरीका के स्टैनफ़र्ड विश्वविद्यालय में इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी कर रहे दो छात्रों, डेविड फ़िलो और जैरी यांग ने 1994 में की थी। यह वेबसाइट जैरी ऐन्ड डेविड्स गाइड टू द वर्ल्ड-वाइड-वैब के नाम से शुरु हुई थी लेकिन फिर उसे एक नया नाम मिला, यट अनदर हाइरार्किकल ऑफ़िशियस ओरैकिल ("Yet Another Hierarchical Officious Oracle")। जिसका संक्षिप्त रूप बनता है याहू। इसमें हायरार्किकल से आशय है कि परत दर परत काम। जैरी और डेविड ने इसकी शुरुआत इंटरनेट पर अपनी व्यक्तिगत रुचियों के लिंकों की एक गाइड के रूप में की थी लेकिन फिर वह बढ़ती चली गई। फिर उन्होंने उसे श्रेणीबद्ध करना शुरु किया। जब वह भी बहुत लम्बी हो गई तो उसकी उप-श्रेणियां बनाईं। कुछ ही समय में उनके विश्वविद्यालय के बाहर भी लोग इस वेबसाइट का प्रयोग करने लगे। अप्रैल 1995 में सैकोया कैपिटल कम्पनी की माली मदद से याहू को एक कम्पनी के रूप में शुरू किया गया। इसका मुख्यालय कैलिफ़ोर्निया में है और यूरोप, एशिया, लैटिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका में इसके कार्यालय हैं। comScore, Inc. के अनुसार जुलाई 2013 में याहू की वैबसाइट पर अमेरिका के विजिटरों की संख्या गूगल से ज्यादा थी।

तेरह की संख्या को खराब क्यों माना जाता है?

एक कारण यह है कि साल में बारह महीने, बारह चंद्रमा होते हैं। इसलिए 13 वाँ अनिश्चित और रहस्यमय मान लिया गया। तेरह को मूलतः ईसाई परम्परा में मनहूस माना जाता है। ईसाई इसे इसलिए अशुभ मानते हैं क्योंकि ईसा मसीह ने अपने अनुयायियों के साथ जो अंतिम भोज किया था उसमें जूडस समेत तेरह लोग थे। कहते हैं कि जूडस ने ईसा के साथ विश्वासघात किया जिसके फलस्वरूप ईसा को सूली चढ़ाया गया। चूंकि ईसा मसीह को शुक्रवार के दिन सूली पर चढ़ाया गया था इसलिए शुक्रवार को भी शुभ दिन नहीं माना जाता। शुक्रवार के दिन 13 तारीख़ पड़े तो उसे और भी अशुभ मानते हैं। संयोग से 13 सितम्बर 2013 को शुक्रवार है।  कई होटलों में 13 नम्बर के कमरे नहीं होते। बिल्डिंगों में तेरहवीं मंजिल नहीं होती। 12 के बाद 12-ए या सीधे 14 नम्बर आ जाता है। बहरहाल ऐसे लोग भी हैं, जिनके लिए 13 लकी नम्बर है।

दिल्ली राज्य कब बना और उसके पहले मुख्यमंत्री कौन थे?

दिल्ली की स्थिति देश में सबसे अलग है। केन्द्र शासित क्षेत्र होते हुए भी इसकी विधानसभा है और इसके शासन प्रमुख मुख्यमंत्री होते हैं। दिल्ली में सबसे पहले विधानसभा 17 मार्च 1952 को बनी थी। उस समय यहाँ के पहले मुख्यमंत्री थे चौधरी ब्रह्म प्रकाश। राज्यों के पुनर्गठन के बाद 1956 में इसे केन्द्र शासित क्षेत्र बना दिया और विधानसभा खत्म हो गई। इसके बाद 1991 में संविधान के 69 वें संशोधन के बाद 1993 में यहाँ विधानसभा की पुनर्स्थापना हुई। दिल्ली को नेशनल कैपिटल टैरिटरी बनाया गया। सन 1991 में भारतीय संसद में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम पास हुआ जिसके अधीन दिल्ली को राज्य का दर्जा मिला। केवल क़ानून और व्यवस्था केंद्र सरकार के हाथों में रही। ये अधिनियम 1993 में लागू हुआ और विधानसभा के चुनाव हुए जिसमें भारतीय जनता पार्टी विजयी रही और पहले मुख्यमंत्री बने मदन लाल खुराना।

लिपस्टिक का इतिहास क्या है? यह कैसे बनाई जाती है? इसमें लगी चीजें पेट में चले जाने से कोई नुक़सान तो नहीं होता?

लिपस्टिक या होठों को रंगने का काम सभ्यता के पहले से हो रहा है। प्राचीन मेसोपोटामिया में स्त्रियाँ कीमती रत्नों को पीसकर उनका लेप होठों पर लगाती थीं। सिंधु घाटी की सभ्यता और प्राचीन मिस्र की सभ्यता में भी होठों को सजाने की वस्तुएं मिलीं हैं। इस्लाम के स्वर्णयुग में अरबी हकीम और जर्राह अबू अल कासिम अल बहराबी ने खुशबूदार बत्तियाँ बनाईं जिनसे होंठ सजाए जाते। यूरोप में ईसाई चर्च होठों को सजाने के विरोधी थे। पर इंग्लैंड में 16 वीं सदी में एलिजाबेथ प्रथम अपने होंठ लाल रंग से रंगतीं थीं। धीरे-धीरे यूरोप ने भी इसे स्वीकार कर लिया।
लिपस्टिक में कई तरह के मोम, तेल, रंग और त्वचा को मुलायम बनाने वाले पदार्थ होते हैं। इन्हें बारीक पीसा जाता है, उसमें कई तरह के मोम और तेल, जिसमें पैट्रोलेटम भी शामिल है मिलाए जाते हैं और फिर उस घोल को गर्म किया जाता है। उसके बाद इसे धातु के खांचों में ढालकर ठंडा किया जाता है। जब लिप्स्टिक जम जाती है तो उसे आधा सेकेंड के लिए आग की लपट दिखाई जाती है जिससे वह चिकनी हो जाए। लिप्स्टिक शरीर के तापमान से पिधल न जाए इसके लिए सैट्ल ऐलकोहल मिलाया जाता है। लेकिन इसमें प्रयोग होने वाले रसायनों से कोई नुक़सान नहीं होता क्योंकि ये बहुत कम मात्रा में होते हैं।

मल्टी मीडिया क्या है?

मल्टी का मतलब है विविध और मीडिया का अर्थ है प्रसार माध्यम। यानी कई तरह के प्रसार माध्यमों को मल्टी मीडिया कहा जाता है। लेकिन मल्टी मीडिया शब्द का प्रयोग कम्प्यूटर के संदर्भ में अधिक होता है। मल्टी मीडिया उसे कहते हैं जिसमें लिखित शब्द, चित्र, ध्वनि, बोली, विडियो और कम्प्यूटर प्रोग्रामों में से दो या दो से ज़्यादा तत्व हों। रेडियो में ध्वनि और बोली का प्रयोग होता है, अख़बारों और पत्रिकाओं में लिखित शब्द और चित्र का और टेलिविज़न में लिखित शब्द, ध्वनि, बोली और चित्र का समावेश होता है। टेलिविज़न एकतरफ़ा माध्यम है, जबकि कम्प्यूटर का प्रयोग करने वाला इटर-एक्टिटी क्रिया प्रतिक्रिया कर सकता है, जब चाहे जैसे चाहे उसका उपयोग कर सकता है।

हरित क्रांति क्या है? इसका इतिहास क्या है? भारत से इसका सम्बन्ध क्या है?

दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जब विजयी अमरीकी सेना जापान पहुंची तो उसके साथ कृषि अनुसंधान सेवा के ऐस सिसिल सैल्मन भी थे। तब सबका ध्यान इस बात लगा कि जापान का पुनर्निर्माण कैसे हो। सैल्मन का ध्यान खेती पर था। उन्हें नोरिन-10 नामकी गेंहू की एक क़िस्म मिली जिसका पौधा कम ऊँचाई का होता था और दाना काफ़ी बड़ा होता था। सैल्मन ने इसे और शोध के लिए अमेरिका भेजा। तेरह साल के प्रयोगों के बाद 1959 में गेन्स नाम की क़िस्म तैयार हुई। अमेरिकी कृषि विज्ञानी नॉरमन बोरलॉग ने गेहूँ कि इस किस्म का मैक्सिको की सबसे अच्छी क़िस्म के साथ संकरण किया और एक नई क़िस्म निकाली।
उधर भारत में अनाज की उपज बढ़ाने की सख़्त ज़रूरत थी। भारत को बोरलॉग और गेहूं की नोरिन क़िस्म का पता चला। भारत में आईआर-8 नाम का बीज लाया गया जिसे इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने विकसित किया था। पूसा के एक छोटे से खेत में इसे बोया गया और उसके अभूतपूर्व परिणाम निकले। 1965 में भारत ने गेंहू की नई क़िस्म के 18 हज़ार टन बीज आयात किए। कृषि क्षेत्र में ज़रूरी सुधार लागू किए, कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से किसानों को जानकारी उपलब्ध कराई, सिंचाई के लिए नहरें बनवाईं और कुंए खुदवाए, किसानों को दामों की गारंटी दी और अनाज को सुरक्षित रखने के लिए गोदाम बनवाए। देखते ही देखते भारत अपनी ज़रूरत से ज़्यादा अनाज पैदा करने लगा। नॉरमन बोरलॉग हरित क्रांति के प्रवर्तक माने जाते हैं लेकिन भारत में हरित क्रांति लाने का श्रेय कृषिमंत्री सी सुब्रमण्यम को भी जाता है। हरित क्रांति शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल युनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएड) के पूर्व डायरेक्टर विलियम गॉड ने सन 1968 में किया।

सैटेलाइट फ़ोन क्या होता है और कैसे काम करता है?

सैटलाइट फ़ोन पृथ्वी की कक्षा में स्थित सैटेलाइटों के ज़रिए काम करता है इसलिए आप चाहे हिमालय पर हों, अंटार्कटिका में या दुनिया के किसी भी कोने में वह हर जगह काम करता है। ऐसे कोई 24 उपग्रह हैं जो पृथ्वी के हर क्षेत्र से जुड़े हैं। अभी तकनोलॉजी इतनी विकसित नहीं हो पाई है कि घर के भीतर से आप सैटलाइट फ़ोन पर बात कर सकें। इसके लिए आपको खुले स्थान में आना पड़ता है और एक डिश की सहायता से उपग्रह का सिग्नल लेना पड़ता है। जैसे ही सिग्नल मिल जाए आप दुनिया के किसी कोने से कहीं भी बात कर सकते हैं।

हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे क्या है?

हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे, समुद्र का वैज्ञानिक मानचित्र होता है। इसमें यह पता लगाया जाता है कि समुद्र की गहराई कितनी है, उसकी क्या आकृति है, उसका तल कैसा है, उसमें किस दिशा से और कितनी गति की धाराएं बहती हैं और उसमें कब और कितना ऊँचा ज्वार आता है। इसका उद्देश्य है नौसंचालन को सुरक्षित बनाना। समुद्र के अलावा झीलों और नदियों का भी हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे किया जाता है लेकिन केवल उस स्थिति में जब इनमें जहाज़ चलते हों। भारत में 1 जनवरी 1954 को नेवल हाइड्रोग्राफिक ऑफिस देहरादून में खोला गया। भारत के पास इस समय देश में ही बने आठ सर्वे पोत हैं, चार सर्वे मोटर बोट और दो हैलिकॉप्टर हैं।
 
अमिताभ बच्चन की पहली फ़िल्म कौन सी थी? 

अमिताभ बच्चन ने सबसे पहले जिस फिल्म में काम किया उसमें उनका अभिनय नहीं सिर्फ आवाज थी। वह फिल्म थी मृणाल सेन की भुवन शोम, जिसमें उन्होंने दृश्य वर्णन या नैरेशन का काम किया। यह 1969 की बात है और उसी साल अभिनय के लिहाज से उनकी पहली फ़िल्म आई सात हिंदुस्तानी। इसे ख़्वाजा अहमद अब्बास ने लिखा और उन्होंने ही इसका निर्देशन किया। इसमें अलग अलग धर्मों के सात हिन्दुस्तानी गोआ को पुर्तगाली शासन से मुक्त कराने का प्रयास करते हैं। अमिताभ बच्चन ने अनवर अली अनवर नाम के एक शायर की भूमिका निभाई थी।

एफएमगोल्ड के कार्यक्रम बारिश सवालों की में शामिल

Wednesday, September 11, 2013

उल्का पिंड के कारण बनी थी महाराष्ट्र की लोनार झील



लोनार झील कहाँ है और इसकी विशेषता क्या है?

महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के लोनार शहर में समुद्र तल से 1,200 मीटर ऊँची सतह पर लगभग 100 मीटर के वृत्त में फैली हुई है। इस झील का व्यास दस लाख वर्ग मीटर है। इस झील का मुहाना गोलाई लिए एकदम गहरा है, जो 100 मीटर की गहराई तक है। 50 मीटर की गहराई गर्द से भरी है। यह 5 से 8 मीटर तक खारे पानी से भरी हुई है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आकाशीय उल्का पिंड की टक्कर से के कारण यह झील बनी है। अनुमान है कि क़रीब दस लाख टन का उल्का पिंड यहाण गिरा था। क़रीब 1.8 किलोमीटर व्यास की इस झील की गहराई लगभग पांच सौ मीटर है। आज भी इस विषय पर शोध जारी है कि लोनार में जो टक्कर हुई, वो उल्का पिंड और पृथ्वी के बीच हुई या फिर कोई ग्रह पृथ्वी से टकराया था। बहरहाल वह शिलाखंड तीन हिस्सों में टूट चुका था और उसने लोनार के अलावा अन्य दो जगहों पर भी झील बना दी। पूरी तरह सूख चुकी अम्बर और गणेश नामक इन झीलों का अब विशेष महत्व नहीं है। स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ वाशिंगटन, भारत और अमेरिका के भूगर्भ सर्वक्षण विभागों को प्रमाण मिले थे कि लोनर का निर्माण पृथ्वी पर उल्का पिंड के टकराने से ही हुआ था।

ऑटोग्राफ देने का रिवाज़ कैसे शुरू हुआ?

ऑटोग्राफ शब्द का अर्थ है हस्तलेख। ऑटोस यानी स्व और ग्राफो यानी लिखना। यानी जो आपने स्वयं लिखा है। पुराने वक्त में टाइपिंग या छपाई होती नहीं थी। केवल हाथ से लिखा जाता था, पर जो जो पत्र, दस्तावेज़ या लेख व्यक्ति स्वयं लिखता उसे ऑटोग्राफ कहते। ऐसा भी होता कि दस्तावेज़ कोई और लिखता और उसके नीचे उसे अधिकृत करने वाला अपने हाथ से अपना नाम लिख देता। यह नाम उसकी पहचान था। ऑटोग्राफ इस अर्थ में दस्तखत हो गया। किसी को याद रखने का सबसे अच्छा तरीका उसके हस्तलेख या ऑटोग्राफ हासिल करना भी हो गया। राजाओं, राष्ट्रपतियों, जनरलों, कलाकारों, गायकों वगैरह के दस्तखत अपने पास जमा करके रखने का चलन बीसवीं सदी में बढ़ा है। इस शौक को फिलोग्राफी कहते हैं।

पेटेंट क्या है और यह किस प्रकार दिया जाता है? बासमती चावल के पेटेंट का विवाद क्या था कृपया बताएं।

बौद्धिक सम्पदा अधिकार मस्तिष्क की उपज हैं और इनमे सबसे महत्वपूर्ण हैं - पेटेंट। पेटेंटी, पेटेंट का उल्लंघन करने वाले तरीके या उत्पाद के निर्माण को न्यायालय द्वारा रुकवा सकता है। ‘पेटेंट’ शब्द लैटिन से आया है। पुराने जमाने में शासको या सरकारों के द्वारा पदवी‚ हक‚ विशेष अधिकार पत्र के द्वारा दिया जाता है। आजकल पेटेंट शब्द का प्रयोग आविष्कारों के संबंध में होता है। इस तरह का प्रयोग पहली बार 15वीं शताब्दी के आस-पास आया। सर्वप्रथम, पेटेंट कानून जैसा इसे आज समझा जाता हैं, 14 मार्च, 1474 को वियाना सिनेट के द्वारा को पारित किया गया। भारत में पहला पेटेंट सम्बन्धित कानून, 1856 में पारित अधिनियम था। तब से अब तक यह कई तरीके के बदलावों से गुजर चुका है। राइस टेक एक अमेरिकन कम्पनी है यह बासमती और टैक्समती के नाम से चावल बेच रही थी। 1994 में राइस टेक ने 20 तरह के बासमती चावल के लिए पेटेंट प्राप्त करने के लिए यूएस पेटेंट एण्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन (यूएसपीटीओ) में एक आवेदन पत्र दाखिल किया। यूएसपीटीओ ने 1997 में सभी पेटेंटों को मंजूर कर दिया। भारत ने अप्रैल 2000 में तीन पेटेंटों की पुन: परीक्षा के लिए एक आवेदन पत्र प्रस्तुत किया। राइसटेक ने इन तीन के साथ एक और पेटेंट को वापस ले लिया। बाद में राइसटेक से 11 अन्य पेटेंटों को भी वापस लेने के लिए भी कहा गया जो कि उसने वापस ले लिया। राइसटेक को पेटेंट का नाम भी बासमती राइस लाइन्स एंड ग्रेन्स से बदल कर बीएएस 867 आरटी 1121 और आरटी 117 करना पड़ा।

शेयरों की कीमत कैसे घटती-बढती है? स्टॉक इंडेक्स या शेयर सूचकांक क्या है?

शेयर का सीधा सा अर्थ होता है हिस्सा। शेयर बाजार की भाषा में बात करें तो शेयर का अर्थ है कंपनियों में हिस्सा। उदाहरण के लिए एक कंपनी ने कुल 10 लाख शेयर जारी किए हैं। आप कंपनी के प्रस्ताव के अनुसार जितने अंश खरीद लेते हैं आपका उस कंपनी में उतने का मालिकाना हक हो गया जिसे आप किसी अन्य खरीददार को जब भी चाहें बेच सकते हैं। इस खरीद फरोख्त में शेयर के भाव बढ़ते और घटते हैं। 10 रु के शेयर की कीमत चार-पाँच सौ तक हो जाती है। इन कंपनियों के शेयरों का मूल्य शेयर बाजार में दर्ज होता है। सभी कंपनियों का मूल्य उनकी लाभदायक क्षमता के अनुसार कम-ज्यादा होता है। भारत में इस पूरे बाजार में नियंत्रण भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) का होता है। इसकी अनुमति के बाद ही कोई कंपनी अपना प्रारंभिक निर्गम इश्यू (आईपीओ) जारी कर सकती है। शेयर बाजार में लिस्टेड होने के लिए कंपनी को बाजार से लिखित समझौता करना पडता है, जिसके तहत कंपनी अपने हर काम की जानकारी बाजार को समय-समय पर देती रहती है, खासकर ऐसी जानकारियां, जिससे निवेशकों के हित प्रभावित होते हों। इन्हीं जानकारियों के आधार पर कंपनी का मूल्यांकन होता है और इस मूल्यांकन के आधार पर मांग घटने-बढ़ने से उसके शेयरों की कीमतों में उतार-चढाव आता है। अगर कोई कंपनी लिस्टिंग समझौते के नियमों का पालन नहीं करती, तो उसे डीलिस्ट करने की कार्रवाई सेबी करता है।

ब्लूचिप कंपनी क्या होती है ?

ब्लू चिप शब्द पोकर के खेल से आया है जिसमें कई रंग के बाज़ी लगाने वाले डिस्क होते है, जिन्हें चिप कहते हैं। पोकर के खेल में और कसीनो में नकदी की जगह इस्तेमाल होने वाले टोकनों में सबसे ज्यादा कीमत नीले डिस्क की होती है। मान लें सफेद चिप की कीमत 1 रुपया है, लाल का पाँच रुपया तो नीले की होगी 10 रुपया। यह शब्द शेयर बाजार में इस्तेमाल होता है तब माना जाता है श्रेष्ठ-मजबूत कंपनियों के शेयर। किसी कंपनी का ब्लू चिप होने का अभिप्राय यह है कि उसके शेयर निवेशकों के लिए पसंदीदा शेयर हैं। इस प्रकार की कंपनियों में सौदे भी काफी होते हैं, उतार-चढ़ाव भी काफी होता है और उनमें निवेशकों का आकर्षण भी खूब बना रहता है।ब्लू चिप का मतलब है राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त, सर्वसम्पन्न और स्थिर अर्थव्यवस्था वाली कंपनी। यह एक तरह से मापदंड होता है जिसमें किसी कंपनी को हम ब्लू चिप तभी कहते हैं जब वह ढलती अर्थव्यवस्था में भी सामान्य ढंग से व्यापार कर सके और मुनाफ़ा कमा सके।

मोबाइल सिम कार्ड आगे से क्रॉसकट क्यों होता है?


मोबाइल सिम कार्ड आगे से क्रॉसकट क्यों होता है?
यह सिर्फ एलाइनमेंट को ठीक रखने के लिए है। बाएं और दाएं कट के अलावा एक कट कर्णवत या डायगोनल होने से सिम और मोबाइल फोन की पिनें एक दूसरे से ठीक तरह से मिल जाती हैं। फोन के सॉकेट में भी वैसा ही कट होता है।

लोकतंत्र व गणतंत्र में क्या अंतर है ?
रोहित शर्मा, जयपुर
लोकतंत्र एक व्यवस्था का नाम है, जिसकी एक संवैधानिक व्यवस्था भी हो। जब शासन पद्धति पर यह लागू हो तो शासन व्यवस्था लोकतांत्रिक होती है। इसमें हिस्सा लेने वाले या तो आमराय से फैसले करते हैं और यदि ऐसा न हो तो मत-विभाजन से करते हैं। ये निर्णय सामान्य बहुमत से और कई बार ज़रूरी होने पर विशेष बहुमत से भी होते हैं। मसलन कुछ परिस्थितियों में दो तिहाई मत से भी निर्णय किए जाते हैं। गणतंत्र का अर्थ वह शासन पद्धति जहाँ राज्यप्रमुख का निर्वाचन सीधे जनता करे या जनता के प्रतिनिधि करें। यानी राष्ट्रप्रमुख वंशानुगत या तानाशाही तरीके से सत्ता पर कब्जा करके न आया हो। कुछ ऐसे देश भी हैं, जहाँ शासन पद्धति लोकतांत्रिक होती है, पर राष्ट्राध्यक्ष लोकतांत्रिक तरीके से नहीं चुना जाता। जैसे युनाइटेड किंगडम, जहाँ राष्ट्राध्यक्ष सम्राट होता है, जिसके परिवार के सदस्य ही राष्ट्राध्यक्ष बनते हैं। भारत में लोकतांत्रिक सरकार है और राष्ट्रपति का चुनाव होता है इसलिए यह गणतंत्रात्मक व्यवस्था है।

नक्सलवाद व आतंकवाद में क्या अंतर है ?
रोहित शर्मा, जयपुर 
rohit_dude58@yahoo.com
नक्सलवाद मोटे तौर पर भारत की मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी की विचारधारा के लिए प्रयुक्त होने वाला शब्द है। यह पार्टी नब्बे के दशक में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से टूटकर बनी थी। नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई है जहाँ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 मे सत्ता के खिलाफ़ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की। मजूमदार चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ जे दुंग के समर्थक थे। इन्हें "नक्सलवादी" कहा गया। यह आंदोलन बाद में कई छोटे-छोटे संगठनों में बँट गया।

आज कई नक्सली संगठन वैधानिक रूप से स्वीकृत राजनीतिक पार्टी बन गए हैं और संसदीय चुनावों में भाग भी लेते है। लेकिन बहुत से संगठन अब भी सशस्त्र आंदोलन चला रहे हैं। इनमें माओवादी संगठन हैं जिनका पुराने नक्सलवाद से सीधा सम्बन्ध नहीं है, पर अपनी हिंसक गतिविधियों के कारण वे नक्सलवादी माने जाते हैं। आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ, उड़ीसा, झारखंड, और बिहार इनके प्रभाव में हैं। आतंकवाद भी एक राजनीतिक विचारधारा है, जिसमें हिंसा और भय का सहारा लेकर व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ते हैं। आतंकवाद के अनेक रूप हैं और दुनिया भर में कई तरह के संगठनों की रणनीति आतंक फैलाने की है। नक्सलवादी आंदोलन में हिंसा और भय का तत्व भी उसे आतंकवाद की ओर ले जाता है। पर कुछ पुराने नक्लवादी संगठन हिंसा की रणनीति त्याग कर संसदीय लोकतंत्र में शामिल हो गए हैं।

TRP क्या है और किस प्रकार काम करती है?
आशुतोष सोनी,ग्राम- कनवास, जिला- कोटा (राजस्थान)
ashutoshsoni7@gmail.com
टारगेट रेटिंग पॉइंट(टीआरपी) का उद्देश्य टेलीविज़न के दर्शकों की संख्या का अनुमान लगाना है। इसका सबसे प्रचलित तरीका है फ्रीक्वेंसी मॉनीटरिंग। कुछ सैम्पल घरों में पीपुल मीटर लगाए जाते हैं, जो टीवी पर देखे जा रहे कार्यक्रमों की फ्रीक्वेंसी दर्ज करते हैं। इसे डिकोड करके पता लगाया जाता है कि किस चैनल को कितना देखा गया। अब फ्रीक्वेंसी की जगह तस्वीर को रिकॉर्ड करने की तकनीक भी स्तेमाल में लाई जा रही है। भारत में इंडिया टेलीविज़न ऑडियंस मैज़रमेंट या इनटैम इस काम को करने वाली एजेंसी है। इसका उद्देश्य विज्ञापनदाताओं को यह बताना है कि किस चैनल की और किस कार्यक्रम की ज्यादा लोकप्रियता है।

मध्यमान सागर स्तर (मीन सी लेवल) क्या है?
त्रिलोक नायक, triloknayak07@gmail.com

आप जानते ही हैं कि सागर का स्तर समान नहीं रहता। ज्वार-भाटा के साथ बढ़ता या घटता है। मध्यमान सागर स्तर का मतलब है सागर की सतह का औसत स्तर। यानी ज्वार के उच्चतम स्तर और भाटा के निम्नतम स्तर के बीच की स्थिति।

एक क्यूसेक में कितने लीटर होते हैं?
हरीश, सीकर

क्यूसेक बहते पानी या तरल का पैमाना है और लिटर स्थिर तरल का। क्यूसेक माने होता है क्यूबिक फीट पर सेकंड। यानी एक फुट चौड़े, एक फुट लम्बे और एक फुट गहरे स्थान से क सेकंड में जितना पानी निकल सके। सामान्यतः एक क्यूसेक में 28.317 लिटर पानी होता है।

भारत में मेट्रो का इतिहास क्या है? इसके बारे में जानकारी दें।sukhram5694@gmail.com
भारत में सबसे पहले मेट्रो गाड़ी कोलकाता में शुरू हुई। कोलकाता मेट्रो भूमिगत रेल प्रणाली है, जिसे सोवियत संघ की मदद से शुरू किया गया था। यह भारतीय रेलवे के अंतर्गत आती है और इसे मंडलीय रेलवे का स्तर प्रदान किया गया है। 1984 में शुरू हुई यह भारत की प्रथम भूमिगत एवं मेट्रो प्रणाली थी। इसके बाद दिल्ली मेट्रो 2002 में आरंभ हुई थी। दिल्ली मेट्रो रेल दिल्ली मेट्रो रेल निगम कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) द्वारा संचालित है। 24 दिसंबर 2002 को शाहदरा- तीस हजारी लाइन से इसकी शुरूआत हुई। प्रारंभिक योजना यह छह मार्गों पर चलाई गई, जो दिल्ली के ज्यादातर हिस्से को जोड़ते थे। इस प्रारंभिक चरण को 2006 में पूरा किय़ा गया। बाद में इसका विस्तार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से सटे शहरों गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुड़गाँव और नोएडा तक किया गया। इस परिवहन व्यवस्था की सफलता से प्रभावित होकर भारत के दूसरे राज्यों में भी इस पर काम चल रहा है जैसे जयपुर, मुम्बई, बेंगलुरू, हैदराबाद, चेन्नई, कोच्चि वगैरह। बेंगलुरू मेट्रो शुरू भी हो गई है।

क्रिकेट खिलाड़ियों की ड्रेस पर शर्ट पीछे लिखे नम्बर का क्या मतलब है?
अंकित मौर्य, ललित बडेरा ru9lalit@gmail.com
फुटबॉल और हॉकी जैसे खेलों में परम्परा से खिलाड़ियों की जर्सी पर लिखे नम्बरों से उनकी पोज़ीशन का पता लगता था। जैसे कि गोली का नम्बर 1 होता था, फुलबैक का 2 और हाफ बैक का 3 वगैरह। पर धीरे-धीरे मैच के दौरान इतने बदलाव होने लगे और खिलाड़ियों की पोज़ीशन तेजी से बदलने लगीं कि वह व्यवस्था चल नहीं पाई। अलबत्ता नम्बर होने से खिलाड़ी को पहचानना आसान होता है, इसलिए प्रतियोगिताओं में जर्सी नम्बर दिए जाते हैं। क्रिकेट में जर्सी नम्बर नहीं होते थे। हाँ क्रिकेट में टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले खिलाड़ियों को नम्बर देने की परम्परा है। जैसे कि 15 मार्च 1887 को इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले गए पहले टेस्ट मैच के खिलाड़ी टॉमस आर्मिटेज इंग्लैंड के नम्बर एक टेस्ट खिलाड़ी हैं। यह नम्बर उन्हें अकारादिक्रम में ए से नाम होने के कारण मिला। इसी तरह 20 अगस्त 2009 को इंग्लैंड की टीम में शामिल हुए जोनाथन ट्रॉट इंग्लैंड के 645 नम्बर के टेस्ट खिलाड़ी थे। प्रायः यह संख्या टेस्ट खिलाड़ी की टोपी या कमीज पर बने टीम के चिह्न के नीचे लिखी जाती थी। यह बहुत छोटे अक्षरों में होती थी और दूर से पढ़ी भी नहीं जाती थी। पीठ के पीछे लिखी संख्याएं 1995-96 में ऑस्ट्रेलिया में पहली बार शुरू हुई वर्ल्ड सीरीज़ एकदिनी क्रिकेट के दौरान इस्तेमाल में लाईं गईं। खेल को रोचक बनाने का क तरीका यह भी था। इसमें खिलाड़ियों को नम्बर दिए जाते थे और कई बार खिलाड़ी अपनी पसन्द का नम्बर खुद चुनते। खिलाड़ियों के नाम भी पीठ पर लिखे जाने लगे। विश्व कप क्रिकेट में खिलाड़ियों के नम्बरों का पहला इस्तेमाल 1999 के विश्व कप से शुरू हुआ। इसमें कप्तान 1 नम्बर की जर्सी पहनते और शेष खिलाड़ियों को 2 से 15 तक के नम्बर मिलते। पर इसमें भी कोई नियमितता नहीं थी। मसलन दक्षिण अफ्रीका के कप्तान हैंसी क्रोन्ये 5 नम्बर की जर्सी पहनते और ओपनर गैरी कर्स्टन 1 नम्बर की। अब यह फैशन में भी है। कुछ जर्सी नम्बर मशहूर हैं जैसे सचिन तेन्दुलकर का 10, महेन्द्र सिंह धोनी का 7 या क्रिस गेल का 333।




































खान मजदूरों को लिए बना था जींस का पहनावा




जीन्स (jeans) जो फैशन के तौर पर पहने जाते हैं, इनकी शुरुआत कब, कहाँ,और किस उद्देश्य से हुई? 

हितेन्द्र कुमार शर्मा झाब, सांचोर
जीन्स का पहनावा मूल रूप से मेहनतकशों और कारखाने में काम करने वाले श्रमिकों और नाविकों से ताल्लुक रखता है। औद्योगीकरण के बाद यूरोप में कामगारों और नाविकों के लिए ऐसे परिधानों की ज़रूरत महसूस की गई जो मजबूत हों और देर से फटें। 16 वीं सदी में यूरोप ने भारतीय मोटा सूती कपडा़ मँगाना शुरू किया, जिसे डुंगारी कहा जाता था। बाद मे इसे नील के रंग में रंग कर मुंबई के डोंगारी किले के पास बेचा गया था। नाविकों ने इसे अपने अनुकूल पाया और इससे बनी पतलूनें वे पहनने लगे। कंधे से लेकर पाजामे तक का यह परिधान डंगरी कहलाता है। लगभग ऐसा ही परिधान कार्गो सूट होता है, जिसे नाविक और वायुसेवाओं के कर्मचारी पहनते हैं।

डंगरी के कपड़े और जीन्स में फर्क यह होता है कि जहाँ डंगरी में धागा रंगीन होता है वहीं जीन्स वस्त्र को तैयार करने के बाद रंगा जाता है। आमतौर पर जीन्स नीले, काले और ग्रे के शेड़्स में होते हैं। इन्हें जिस नील से रंगा जाता था वह भारत या अमेरिका से आता था। पर जीन्स का जन्म यूरोप में हुआ। सन 1600 की शुरुआत मे इटली के कस्बे ट्यूरिन के निकट चीयरी में जीन्स वस्त्र का उत्पादन किया गया। इसे जेनोवा के हार्बर के माध्यम से बेचा गया था, जेनोवा एक स्वतंत्र गणराज्य की राजधानी थी जिसकी नौसेना काफी शक्तिशाली थी। इस कपडे़ से सबसे पहले जेनोवा की नौसेना के नाविको की पैंट बनाई गईं। नाविको को ऐसी पैंट की ज़रूरत थी जिन्हें सूखा या गीला भी पहना जा सके तथा जिनके पौचों को पोत के डेक की सफाई के समय उपर को मोडा़ जा सके। इन जीन्सों को सागर के पानी से एक बडे़ जाल में बाँध कर धोया जाता था। समुद्र के पानी उनका रंग उडा़कर उन्हें सफेद कर देता था। इस तरह कई लोगों के अनुसार जीन्स नाम जेनोवा पर पडा़ है। जीन्स बनाने के लिए कच्चा माल फ्रांस के निम्स शहर से आता था जिसे फ्रांसीसी मे दे निम कहते थे इसीलिए इसके कपडे़ का नाम डेनिम पड़ गया।

उन्नीसवीं सदी में अमेरिका में सोने की खोज का काम चला। उस दौर को गोल्ड रश कहते हैं। सोने की खानों में काम करने वाले मजदूरों के लिए भी मजबूत कपड़ों के परिधान की ज़रूरत थी। सन 1853 में लेओब स्ट्रॉस नाम के एक व्यक्ति ने थोक में वस्त्र सप्लाई का कारोबार शुरू किया। लेओब ने बाद में अपना नाम लेओब से बदल कर लेवाई स्ट्रॉस कर दिया। लेवाई स्ट्रॉस को जैकब डेविस नाम के व्यक्ति ने जीन्स नामक पतलून की पॉकेटों को जोड़ने के लिए मेटल के रिवेट इस्तेमाल करने की राय दी। डेविस इसे पेटेंट कराना चाहता था, पर इसके लिए उसके पास पैसा नहीं था। 1873 में लेवाई स्ट्रॉस ने कॉपर के रिवेट वाले ‘वेस्ट ओवरऑल’ बनाने शुरू किए। तब तक अमेरिका में जीन्स का यही नाम था। 1886 में लेवाई स्ट्रॉस ने इस पतलून पर चमड़े के लेबल लगाने शुरू कर दिए। इन लेबलों पर दो घोड़े विपरीत दिशाओं में जाते हुए एक पतलून को खींचते हुए दिखाई पड़ते थे। इसका मतलब था कि पतलून इतनी मजबूत है कि दो घोड़े भी उसे फाड़ नहीं सकते। बीसवीं सदी में हॉलीवुड की काउब्वॉय फिल्मों ने जीन्स को काफी लोकप्रिय बनाया। पर यह फैशन में बीसवीं सदी के आठवें दशक में ही आई।

यूरोज़ोन संकट क्या है?देवेन्दर सिंह, bhativikassingh@gmail.com, सूरतगढ़

यूरोपीय संघ अपने किस्म का सबसे बड़ा राजनीतिक-आर्थिक संगठन है। 27 देशों के इस संगठन की एक संसद है। और एक मुद्रा भी, जिसे 17 देशों ने स्वीकार किया है। इस मुद्रा का नाम है यूरो। यूरो को स्वीकार करने वाले देशों के नाम हैं ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, सायप्रस, एस्तोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, आयरलैंड, इटली, लक्ज़ेम्बर्ग, माल्टा, नीदरलैंड्स, पुर्तगाल, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, स्पेन। दूसरे विवश्वयुद्ध के बाद इन देशों के राजनेताओं ने सपना देखा था कि उनकी मुद्रा यूरो होगी। सन 1992 में मास्ट्रिख्ट संधि के बाद यूरोपीय संघ के भीतर यूरो नाम की मुद्रा पर सहमति हो गई। इसे लागू होते-होते करीब दस साल और लगे। इसमें सारे देश शामिल भी नहीं हैं। यूनाइटेड किंगडम का पाउंड स्टर्लिंग स्वतंत्र मुद्रा बना रहा। मुद्रा की भूमिका केवल विनिमय तक सीमित नहीं है। यह अर्थव्यवस्था को जोड़ती है। अलग-अलग देशों के बजट घाटे, मुद्रास्फीति और ब्याज की दरें इसे प्रभावित करती हैं। समूचे यूरोप की अर्थव्यवस्था एक जैसी नहीं है। दुनिया की अर्थव्यवस्था इन दिनों दो प्रकार के आर्थिक संकटों से घिरी है। एक है आर्थिक मंदी और दूसरा यूरोज़ोन का संकट। दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं। यूरोज़ोन के ज्यादातर देश इन दिनों कर्ज में डूबे हुए हैं। मसलन ग्रीस सरकार पर आय के मुकाबले 113 फीसदी कर्ज हो गया। यूरोपीय बैंक और यूरोपीय संघ के दबाव के कारण प्रायः सभी देश किफायतशारी यानी ऑस्टैरिटी में लगे हैं। पिछले साल यूरोज़ोन के वित्त मंत्रियों ने मिलकर 500 अरब यूरो का एक स्थायी बेलआउट कोष बनाया है। ग्रीस, आयरलैंड, पुर्तगाल, स्पेन और इटली जैसे देश भुगतान के संकट से घिरे हैं। फ्रांस भी आर्थिक मंदी का शिकार है। जर्मनी की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है, पर वह भी धीरे-धीरे शून्य विकास की ओर बढ़ रहा है। दिक्कत यह है कि यूरोप के अलग-अलग इलाके अलग-अलग किस्म की परेशानियों के शिकार हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 10 अक्तूबर को तोक्यो में वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जारी की। इसमें कहा गया है कि वैश्विक वित्तीय बाज़ार में सबसे मुख्य जोखिम यूरो ज़ोन में रहा है। हाल के महीनों में यूरोप के नीति-निर्धारकों द्वारा कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने से कुछ हद तक बाजार में स्थिरता आई है। लेकिन वित्तीय बाज़ार की स्थिरता कायम रखने के लिए और अधिक कदम उठाने की ज़रूरत है। ब्रिक्स दल में शामिल पाँच देशों ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिणी अफ़्रीका ने घोषणा की है कि वे अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के खजाने को भरने के लिए 75 अरब डॉलर देने को तैयार हैं। इस वर्ष जून में मैक्सिको में हुए जी-20 के शिखर-सम्मेलन में यह घोषणा की गई। यूरोपीय संकट का समाधान करने के लिए चीन सबसे ज़्यादा मदद देने को तैयार है। उसने 43 अरब डॉलर देने की इच्छा दिखाई। रूस, भारत और ब्राज़ील ने इसके लिए दस-दस अरब डॉलर देने पर सहमति व्यक्त की। दक्षिणी अफ़्रीका भी 2 अरब डॉलर देने के लिए तैयार है।

भारतीय रुपए की तुलना हमेशा अमेरिकी डॉलर से क्यों की जाती है?
त्रिलोक नायक, triloknayak07@gmail.com


आप चाहें तो इसकी तुलना किसी दूसरी करेंसी से भी कर सकते है, पर चूंकि दुनिया में सबसे मजबूत करेंसी इस वक्त डॉलर है, इसलिए आमतौर पर तुलना डॉलर से की जाती है। दुनिया की मजबूत मुद्राओं को हार्ड करेंसी कहते हैं। डॉलर के अलावा विश्व में यूरो, पौंड स्टर्लिंग, जापानी येन और स्विस फ्रैंक को हार्ड करेंसी की श्रेणी में रख सकते हैं। इन करेंसियों के मार्फत दुनिया के तमाम देश एक-दूसरे से व्यापार करते हैं। इस वक्त दुनिया के ज्यादातर देशों के पास मुद्रा कोष के नाम पर सबसे बड़ा भंडार डॉलर का है। हमारे देश में भी जब विदेशी मुद्रा कोष की बात होती है तो डॉलर का नाम ही लिया जाता है।

मोबाइल जेमर कैसे काम करता है?

पहले यह समझ लें कि फोन जैमर की ज़रूरत क्यों होती है। इसकी ज़रूरत या तो सुरक्षा कारणों से होती है या अस्पताल जैसी जगह पर जहाँ शांति की ज़रूरत हो। आपने देखा होगा पिछले दिनों चुनाव के दिन भी मोबाइल सेवाएं ब्लॉक की गईं। कई बार पुलों और रक्षा संस्थानों के आसपास फोन जैम हो जाते हैं। उस इलाके से बाहर आने पर फोन फिर से काम करने लगते हैं। युद्ध के समय सीमा पर रेडियो जैमिंग की जाती है ताकि शत्रु के रेडियो संदेश न जा सकें। फोन जैमिंग एक प्रकार से रेडियो जैमिंग है। इसमें जैमिंग डिवाइस उसी फ्रीक्वेंसी पर रेडियो तरंगे प्रवाहित करते हैं, जिसपर आमतौर से फोन डिवाइस काम कर रही हैं। इससे फोन सेवाओं में व्यवधान पैदा हो जाता है और कुछ देर के लिए टावर से सम्पर्क टूट जाता है। इस इलाके से बाहर आने पर सेवा फिर से शुरू हो जाती है।

की-बोर्ड पर अक्षर क्रमवार क्यों नहीं?
मनोज शर्मा, सीकर


की-बोर्ड में अक्षरों को बेतरतीब लगाने का सबसे बड़ा कारण यह है कि वर्णमाला के सारे अक्षरों का समान इस्तेमाल नहीं होता। चूंकि टाइप करने के लिए दोनों हाथों की उंगलियों का इस्तेमाल होता है, इसलिए ऐसी कोशिश की जाती है कि उंगलियों को कम मेहनत करनी पड़े। अंग्रेजी में सबसे ज्यादा क्वर्टी (QWERTY) की-बोर्ड चलता है। यह क्वर्टी की-बोर्ड में अंकों की पंक्ति के नीचे बनी अक्षरों की पहली पंक्ति के पहली छह की हैं। इस की-बोर्ड को सबसे पहले 1874 में अमेरिकी सम्पादक क्रिस्टोफर शोल्स ने पेटेंट कराया जो टाइपराइटर के विकास के काम से भी जुड़े थे। टाइप रायटर कम्पनी रेमिंग्टन ने इस पेटेंट को उसी साल खरीद लिया। तब से अब तक इसमें एकाध बदलाव हुए हैं। यह की-बोर्ड अब दुनिया भर का मानक बन गया है। इसके अलावा भी की-बोर्ड हैं, पर वे विशेष काम के लिए ही इस्तेमाल में आते हैं। कम्प्यूटर के 101/102 की वाले बोर्ड को सन 1982 में मार्क टिडेंस ने तैया किया। इसमें भी बदलाव हो रहे हैं क्योंकि कम्प्यूटर का इस्तेमाल बदलता जा रहा है। हिन्दी में रेमिंग्टन, फोनेटिक, लिंग्विस्ट, लाइनोटाइप, देवनागरी, इनस्क्रिप्ट नाम से कई की-बोर्ड प्रचलित हैं। इनमें किसी एक के मानक न होने से हिन्दी टाइप करने वालों के सामने दिक्कतें आती हैं।

हावड़ा ब्रिज क्या है? इसके बारे में विस्तार से जानकारी दीजिए।
नवीन कुमार फलवारिया, सुजानगढ़, राजस्थान


सत्तर साल से भी पहले निर्मित हावड़ा ब्रिज इंजीनियरिंग का चमत्कार है। यह विश्व के व्यस्ततम कैंटीलीवर ब्रिजों में से एक है। कोलकाता और हावड़ा को जोड़ने वाले इस पुल जैसे अनोखे पुल संसार भर में केवल गिने-चुने ही हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में कोलकाता और हावड़ा के बीच बहने वाली हुगली नदी पर एक तैरते हुए पुल के निर्माण की परिकल्पना की गई। तैरते हुआ पुल बनाने का कारण यह था कि नदी में रोजाना काफी जहाज आते-जाते थे। खम्भों वाला पुल बनाते तो जहाजों का आना-जाना रुक जाता। अंग्रेज सरकार ने सन् 1871 में हावड़ा ब्रिज एक्ट पास किया, पर योजना बनने में बहुत वक्त लगा। पुल का निर्माण सन् 1937 में ही शुरू हो पाया। सन् 1942 में यह बनकर पूरा हुआ। इसे बनाने में 26,500 टन स्टील की खपत हुई। इसके पहले हुगली नदी पर तैरता पुल था। पर नदी में पानी बढ़ जाने पर इस पुल पर जाम लग जाता था। इस ब्रिज को बनाने का काम जिस ब्रिटिश कंपनी को सौंपा गया उससे यह ज़रूर कहा गया था ‍कि वह भारत में बने स्टील का इस्तेमाल करेगा। टिस्क्रॉम नाम से प्रसिद्ध इस स्टील को टाटा स्टील ने तैयार किया। इसके इस्पात के ढाँचे का फैब्रिकेशन ब्रेथवेट, बर्न एंड जेसप कंस्ट्रक्शन कम्पनी ने कोलकाता स्थित चार कारखानों में किया। 1528 फुट लंबे और 62 फुट चौड़े इस पुल में लोगों के आने-जाने के लिए 7 फुट चौड़ा फ़ुटपाथ छोड़ा गया था। सन् 1943 में इसे आम जनता के उपयोग के लिए खोल दिया गया। हावड़ा और कोलकाता को जोड़ने वाला हावड़ा ब्रिज जब बनकर तैयार हुआ था तो इसका नाम था न्यू हावड़ा ब्रिज। 14 जून 1965 को गुरु रवींद्रनाथ टैगोर के नाम पर इसका नाम रवींद्र सेतु कर दिया गया पर प्रचलित नाम फिर भी हावड़ा ब्रिज ही रहा। इसपर पूरा खर्च उस वक्त की कीमत पर ढाई करोड़ रुपया (24 लाख 63,887 पौंड)आया। इस पुल से होकर पहली बार एक ट्रामगाड़ी चली थी।

नीम कड़वा क्यों होता है?

नीम के तीन कड़वे तत्वों को वैज्ञानिकों ने अलग निकाला है, जिन्हें निम्बिन, निम्बिडिन और निम्बिनिन नाम दिए हैं। सबसे पहले 1942 में भारतीय वैज्ञानिक सलीमुज़्ज़मा सिद्दीकी ने यह काम किया। वे बाद में पाकिस्तान चले गए थे। नाम का यह कड़वा तत्व एंटी बैक्टीरिया, एंटी वायरल होता है और कई तरह के ज़हरों को ठीक करने का काम करता है। नीम का सम्पूर्ण भाग कड़वा होता है, किन्तु कोई भी भाग अनुपयोगी नहीं होता। इसकी जड़, छाल, पत्ते, फूल, फल, गोंद, मद, सींक, टहनी एवं लकड़ी और इसकी छाया तथा इससे छनकर आने वाली हवा, सभी में कृषि, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए लाभकर हैं। उपयोगिता के मामले में यह एक प्रकार से भारतीय ग्रामीण औषधालय है। भारत के अलावा बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार तथा पश्चिमी अफ्रीकी देशों का यह घरेलू वृक्ष है। नीम की पत्तियों में 12.40 से 18.27 प्रतिशत तक क्रूड प्रोटीन, 11.40 से 23.08 प्रतिशत तक क्रूड फाइबर, 48 से 51 प्रतिशत तक कार्बोहाइड्रेट्स, 46.32 से 66.66 प्रतिशत तक नाइट्रोजन मुक्त अर्क, 2.27 से 6.24 प्रतिशत तक अन्य अर्क, 0.89 से 3.96 प्रतिशत तक कैल्शियम, 0.10 से 0.30 प्रतिशत तक फास्फोरस और 2.3 से 6.9 प्रतिशत तक वसा पाया जाता है। इसमें लोहा तथा विटामिन `ए' की मात्रा भी पर्याप्त होती है। नीम छाल में फास्फोरस, शर्करा, कांसी तथा गंधक काफी मात्रा में पाया जाता है। नीम फल का गूदा मीठा, हल्का खुमारी लिए होता है। इसके बीज के तेल में स्टिऑरिक एसिड, ओलेक एसिड तथा लारिक एसिड पाए जाते हैं। इस तेल का अंग्रेजी नाम मार्गोसा है।

टेलीविज़न की टीआरपी से टीवी एक्टरों और प्रोड्यूसरों को कैसे फायदा होता है?
प्रीति कुमावत, सीकर


टीआरपी का मतलब है कार्यक्रमों की लोकप्रियता। यदि कार्यक्रम लोकप्रिय होगा तभी तो उसे पेश किया जाएगा। एक लोकप्रिय कार्यक्रम के प्रोड्यूसर और कलाकारों को उस लोकप्रियता के सहारे दूसरे कार्यक्रम बनाने को मिलेंगे। यह तो एक प्रकार का कारोबार है।





Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...