Sunday, April 19, 2020

गज़ल और नज्म में क्या फर्क है?


ham se puuchho ki Gazal kyaa hai Gazal kaa fan kyaa - Sherनज़्म मोटे तौर पर कविता या पद्य है। उर्दू में गज़ल का एक खास अर्थ है, इसलिए नज़्म माने गज़ल से इतर पद्य है, जो तुकांत भी हो सकता है अतुकांत भी। छंदेतर नज़्म को आज़ाद नज़्म कहते हैं। गज़ल एक ही बहर और वज़न के शेरों का समूह है। एक गज़ल में पाँच या पाँच से ज़्यादा शेर हो सकते हैं।  गज़ल अरबी काव्यशास्त्र की एक शैली है। यह शैली अरबी से फारसी में आई। वहाँ से उर्दू में आई। अब तो दूसरी भारतीय भाषाओं में गज़लें लिखी जाने लगीं हैं। गज़ल का प्रत्येक शेर अपने अर्थ और भाव की दृष्टि से पूर्ण होता है। हरेक शेर में समान विस्तार की दो पंक्तियाँ या टुकडे़ होते हैं, जिन्हें मिसरा कहा जाता है। प्रत्येक शेर के अंत का शब्द प्राय: एक सा होता है और रदीफ कहलाता है। तुक व्यक्त करने वाला शब्द काफिया कहलाता है। 

गज़ल के पहले शेर को मत्ला कहते हैं। गज़ल के आखिरी शेर को जिसमें शायर का नाम या उपनाम आता है उसे मक्ता कहते हैं।  नीचे लिखी गज़ल के मार्फत हम कुछ बातें समझ सकते हैं:-

कोई उम्मीद बर नहीं आती। कोई सूरत नज़र नहीं आती।1।
मौत का एक दिन मुअय्यन है। नींद क्यों रात भर नहीं आती।2।
पहले आती थी हाले दिल पे हँसी। अब किसी बात पर नहीं आती।3।
हम वहाँ हैं जहाँ से हमको भी। कुछ हमारी खबर नहीं आती।4।
काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब। शर्म तुमको म़गर नहीं आती।5।

इस गज़ल का काफिया बर, नज़र, भर, खबर, म़गर हैं। रदी़फ है नहीं आती। सबसे आखिरी शेर गज़ल का मक्ता है क्योंकि इसमें त़खल्लुस है। शेर की पंक्तियों की लम्बाई के अनुसार गज़ल की बहर नापी जाती है। इसे वज़न या मीटर भी कहते हैं। हर गज़ल उन्नीस प्रचलित बहरों में से किसी एक पर आधारित होती है। तुकांत गज़लें दो प्रकार की होती हैं। मुअद्दस, जिनके शेरों में रदीफ और काफिया दोनों का ध्यान रखा जाता है। मुकफ्फा, जिनमें केवल काफिया का ध्यान रखा जाता है। 

उत्तर भारत में सबसे पहले ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने गज़ल की रचना की। दक्षिण में बीजापुर के बादशाह इब्राहीम अली आदिलशाह ने गज़लें लिखीं। सबसे ज्यादा लोकप्रियता मुहम्मद कुली कुतुबशाह को मिली। हिन्दी में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने गज़ल लिखने का प्रयास किया। प्रसाद की कविता भूल गज़ल शैली में लिखी गई है। 
गज़ल का मूल विषय प्रेमालाप है। इसमें लौकिक प्रेम के साथ तसव्वुफ यानी भक्ति परक रचनाएं भी होतीं हैं। इनमें प्रेयसी के लिए हमेशा पुल्लिंग का प्रयोग किया जाता है।

Sunday, April 5, 2020

आईआईपी क्या है?


औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (इंडेक्स ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन या आईआईपी) किसी अर्थव्यवस्था के औद्योगिक क्षेत्र में किसी खास अवधि में उत्पादन के स्थिति के बारे में जानकारी देता है. भारत में हर महीने इस सूचकांक के आँकड़े जारी किए जाते हैं. ये आंकड़े आधार वर्ष के मुकाबले उत्पादन में बढ़ोतरी या कमी के संकेत देते हैं. औद्योगिक सूचकांक तैयार करने की परम्परा ज्यादातर देशों में है, पर इस सिलसिले में पहल भारत ने की है और अन्य देशों के पहले यह हमारे यहाँ शुरू हो गया था. सबसे पहले भारत ने 1937 के आधार वर्ष को मानते हुए यह सूचकांक तैयार करना शुरू किया था, जिसमें 15 उद्योगों को शामिल किया गया था. देश का आईआईपी सन 1950 से जारी किया जा रहा है. सन 1951 में केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन की स्थापना के बाद से यह संगठन इसे तैयार कर रहा है. सन 1937 के बाद आधार वर्ष 1946, 1951, 1956, 1960, 1970, 1980-81, 1993-94, 2004-05 और 2011-12 माने गए. यह सूचकांक उद्योग क्षेत्र में हो रही बढ़ोतरी या कमी को बताने का सबसे सरल तरीका है. चूंकि यह सूचकांक है, इसलिए यह विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों के उत्पादन की मात्रा के आधार पर प्रतिशत सुधार या गिरावट को दर्शाता है. इसके लिए अलग-अलग सेक्टर बनाए गए हैं उनमें विनिर्माण, खनन और ऊर्जा तीन उप-क्षेत्र हैं.
क्या तीनों सेक्टर समान हैं?
नहीं, विनिर्माण को सबसे ज्यादा 77.6 प्रतिशत स्थान (वेटेज) दिया जाता है, उसके बाद खनन को 14.4 और ऊर्जा को 8 प्रतिशत. इनमें भी आठ कोर उद्योगों को 40.27 प्रतिशत वेटेज दिया गया है. ये कोर उद्योग हैं बिजली, इस्पात, रिफाइनरी, खनिज तेल, कोयला, सीमेंट, प्राकृतिक गैस और उर्वरक. एक बास्केट के औद्योगिक उत्पादन की तुलना उसके पहले की उसी अवधि के उत्पादन से की जाती है. औद्योगिक प्रगति को अलग-अलग सेक्टरों के साथ-साथ सकल औद्योगिक उत्पादन के रूप में भी देखा जा सकता है. एक वर्गीकरण उपयोग आधारित (यूज़ बेस्ड) भी है, जिसमें छह वर्ग होते हैं. ये हैं प्राथमिक सामग्री (खनन, विद्युत, ईंधन और उर्वरक), पूँजीगत सामग्री (मशीनरी), माध्यमिक सामग्री (धागा, रसायन, अर्ध निर्मित इस्पात की वस्तुएं वगैरह), इंफ्रास्ट्रक्चर सामग्री (पेंट, सीमेंट, केबल, ईंटें, टाइल्स, रेल सामग्री वगैरह), उपभोक्ता सामग्री (परिधान, टेलीफोन, यात्री वाहन इत्यादि), उपभोक्ता अल्पजीवी वस्तुएं (खाद्य सामग्री, दवाएं, टॉयलेटरी).
सूचकांक क्या बता रहा है?
नवीनतम आँकड़ों के अनुसार विनिर्माण क्षेत्र में नरमी रहने के कारण दिसंबर 2019 दौरान देश के औद्योगिक उत्पादन 0.3 फीसदी की गिरावट आई. एक साल पहले इसी महीने में देश के औद्योगिक उत्पादन में 2.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी. विनिर्माण क्षेत्र में बीते दिसंबर में 1.2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जबकि एक साल पहले इसी महीने में 2.9 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी. बिजली क्षेत्र का उत्पादन दिसंबर में 0.1 फीसदी घटा. केवल खनन क्षेत्र में ही सुधार देखा गया, जिसकी वृद्धि दर 5.4 फीसदी रही जबकि नवंबर में इसमें 1.7 फीसदी का इजाफा हुआ था.



Friday, April 3, 2020

कोरोनावायरस क्या है?


कॉरोनावायरस कई तरह के वायरसों का एक समूह है, जो मनुष्यों और पशुओं में भी साधारण सर्दी-जुकाम से लेकर गम्भीर सार्स और मर्स जैसी बीमारियाँ फैलता है. हालांकि इस वायरस की पहचान 1960 के दशक में ही कर ली गई थी, पर इन दिनों जिस नोवेल कॉरोनावायरस (एनकोव या nCoV) के मनुष्यों में फैलने की खबरें हैं, उसकी पहचान 2019 में ही हुई है. कोरोनावायरस ज़ूनोटिक (zoonotic) हैं, यानी उनका पशुओं और मनुष्यों के बीच संक्रमण होता है. इन्हें लैटिन शब्द कोरोना से यह नाम मिला, जिसका अर्थ होता है किरीट (क्राउन) या आभा मंडल. जब इन्हें सूक्ष्मदर्शी से देखा जाता है, तो इनके चारों ओर सूरज के आभा मंडल जैसा बनता है. सांसों की तकलीफ़ बढ़ाने वाले इस वायरस की पहचान चीन के वुहान शहर में पहली बार 17 नवम्बर 2019 को हुई. तेज़ी से फैलने वाला ये संक्रमण निमोनिया जैसे लक्षण पैदा करता है. चीन में इस संक्रमण के अध्ययन से पता लगा है कि इस वायरस का असर स्त्रियों के मुकाबले पुरुषों पर ज्यादा होता है और बच्चों पर सबसे कम.
वायरस होता क्या है?
वायरस परजीवी होते हैं, इनके संक्रमण से जीवों में अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं और ये एक पोषी से दूसरे पर फैलते हैं. वायरस अकोशिकीय परजीवी हैं जो केवल जीवित कोशिका में ही वंश वृद्धि कर सकते हैं. ये नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से मिलकर गठित होते हैं, शरीर के बाहर तो ये मृत-समान होते हैं परंतु शरीर के अंदर जीवित हो जाते हैं. यह सैकड़ों साल तक सुशुप्तावस्था में रह सकता है और जब भी एक जीवित मध्यम या धारक के संपर्क में आता है उस जीव की कोशिका को भेद कर फैल जाता है और जीव बीमार हो जाता है. लैटिन में ‘वायरस’ शब्द का अर्थ है विष. उन्नीसवीं सदी के शुरू में इस शब्द का प्रयोग रोग पैदा करने वाले किसी भी पदार्थ के लिए किया जाता था. अब वायरस शब्द का प्रयोग रोग पैदा करने वाले कणों के लिए भी किया जाता है.
क्या ये उपयोगी भी हैं?
वायरस से रोग होते हैं परन्तु इनका उपयोग लाभदायक कार्यों के लिए भी किया जाता है. अनेक वायरस ऐसे हैं, जिनका इस्तेमाल इलाज के लिए किया जा सकता है. इनका इस्तेमाल कीटनाशकों की तरह हो रहा है, साथ ही ऐसी फसल और पौधों को तैयार करने में भी हो रहा, जिनमें रोग प्रतिरोधक, तेज गर्मी को सहन करने और कम पानी के इस्तेमाल से भी बढ़ने की क्षमता पैदा होती है. वायरसों की सहायता शरीर में रोग-प्रतिरोध क्षमता पैदा करने के लिए भी ली जा रही है. प्रयोगशाला में सुधार करके कुछ वायरसों का इस्तेमाल कैंसर पैदा करने वाली कोशिकाओं को नष्ट करने में भी किया जा रहा है. इसके अलावा कई तरह की जेनेटिक बीमारियों को रोकने में भी इनकी मदद ली जा रही है. वस्तुतः वायरोथिरैपी नाम से एक नया विज्ञान उभर कर सामने आ रहा है.


धर्म और विज्ञान

Cartoon Movement - Religion Versus Science

सृष्टि क्या है, मनुष्य क्या है, जीव जगत क्या है और मनुष्य समाज का प्रकृति से रिश्ता क्या है? ऐसे सवालों के जवाब शुरू में करीब-करीब सभी धर्मों और पंथों ने देने और समझने की कोशिश की थी. इन्हीं कोशिशों में से विज्ञान का जन्म हुआ, जिसने सत्यान्वेषण के तरीके विकसित किए. विज्ञान ने असहमतियों को सम्मान दिया और असहमत विचार की पुष्टि होने पर उसे स्वीकार करना जारी रखा. इसके विपरीत धर्म अपनी धारणाओं पर स्थिर रहे. असहमतियों को अस्वीकार किया गया. धर्मों ने नैतिकता को बचाए रखा है, ऐसी धारणा कितनी सही है, इसकी जानकारी इतिहास के पन्नों में देखें. भावी दिशा क्या है, इसके बारे में आप खुद सोचें.

Thursday, April 2, 2020

‘हर्ड इम्यूनिटी’ किसे कहते हैं?


कोविड-19 के सिलसिले में यह शब्द हाल में ही ज्यादा सुनाई पड़ा है. हाल में ब्रिटिश सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार सर पैट्रिक वैलेंस ने संकेत दिया था कि हमारी रणनीति यह हो सकती है कि हम देश की 60 फीसदी जनसंख्या को कोरोना वायरस का संक्रमण होने दिया जाए, ताकि एक सीमा तक हर्ड इम्यूनिटीविकसित हो जाए. अंग्रेजी के हर्ड शब्द का अर्थ होता है झुंड या समूह. हर्ड इम्यूनिटी का अर्थ है सामूहिक प्रतिरक्षण. जब किसी वायरस या बैक्टीरिया का संक्रमण होता है, तब शरीर के अंदर उससे लड़ने या प्रतिरक्षण की क्षमता भी जन्म लेती है. सिद्धांत यह है कि यदि बड़ी संख्या में लोगों के शरीर में प्रतिरक्षण क्षमता पैदा हो जाए, तो बीमारी का प्रसार सम्भव नहीं है, क्योंकि तब समाज में उसके प्रसार की संख्या कम हो जाती है. अनेक बीमारियों से लड़ने की क्षमता समाज में इसी तरह पैदा होती है. इसके पीछे का वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि यदि समाज में बड़ी संख्या में ऐसे लोग होंगे, जिनके शरीर में प्रतिरक्षण क्षमता है, तो वे ऐसे व्यक्तियों तक रोग को जाने ही नहीं देंगे, जो प्रतिरक्षित नहीं हैं.
इसे नामंजूर क्यों किया गया?
पहले लगता था कि यह जानलेवा बीमारी नहीं है, इसलिए इसका प्रभाव मामूली होगा. बाद में इम्पीरियल कॉलेज, लंदन ने बीमारी के भयानक विस्फोट की सम्भावना को दर्शाया और कहा कि इसपर काबू नहीं पाया गया, तो मुश्किल पैदा हो जाएगी. फिलहाल रोग रोकने का एकमात्र तरीका है कि इसके रोगियों को शेष लोगों से दूर रखा जाए. महामारी विज्ञान से जुड़े विशेषज्ञ इसके लिए बेसिक रिप्रोडक्टिव नम्बर (आरओ) की गणना करते हैं. यानी एक व्यक्ति के संक्रमित होने पर कितने व्यक्ति बीमार हो सकते हैं. वैज्ञानिक सिद्धांत है कि खसरे से पीड़ित एक व्यक्ति 12-18 व्यक्तियों तक और इंफ्लूएंजा से पीड़ित व्यक्ति 1.2-4.5 लोगों को संक्रमित कर सकता है. कोविड-19 एकदम अपरिचित वायरस होने के कारण जोखिम नहीं उठाए जा सकते हैं.
संक्रमण कैसे रोक सकते हैं?
हमारा शरीर वायरस को विदेशी हमलावर की तरह देखता है और संक्रमण होने के बाद वायरस को ख़त्म करने के लिए साइटोकाइन नाम का केमिकल छोड़ना शुरू करता है. वैज्ञानिकों ने तमाम किस्म के संक्रमणों को रोकने के लिए टीके बनाए हैं. अब उन्होंने कोविड-19 का टीका भी बना लिया है, पर उसका परीक्षण होते-होते समय लगेगा. हर्ड इम्यूनिटीसिद्धांत वैक्सीनेशन या टीकाकरण से जुड़ा है. टीकाकरण का उद्देश्य बड़ी संख्या में लोगों के शरीर में प्रतिरक्षण पैदा करना होता है. इसके बाद बाकी लोगों का टीकाकरण न भी हो, तब भी बीमारी नहीं फैलती. पोलियो के टीके के संदर्भ में यही बात कही जाती है. पर कोविड-19 का तो टीका ही पूरी तरह विकसित नहीं हुआ है.




पैंडेमिक घोषणा का अर्थ क्या है?



बुधवार 11 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने कोविड-19 के प्रसार को पैंडेमिक या विश्वमारी घोषित किया है. चीन ने गत 31 दिसम्बर को इस बीमारी के तेज प्रसार की घोषणा की थी. इसके बाद 30 जनवरी उसने सार्वजनिक स्वास्थ्य आपत्काल की घोषणा की. डब्लूएचओ ने 72 दिन तक स्थिति का अध्ययन किया फिर गत 11 मार्च को इसे पैंडेमिक घोषित करते हुए डब्लूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेड्रॉस एडेनॉम गैब्रेसस ने कहा कि इस शब्द का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए. इससे भय पैदा हो सकता है और यह माना जा सकता है कि इसे रोकने में हम नाकामयाब हुए हैं. बीमारियों के बड़े स्तर पर प्रसार को लेकर अंग्रेजी के दो शब्द प्रयुक्त होते हैं. एक है एपिडेमिक (Epidemic) और दूसरा पैंडेमिक (Pandemic). हिंदी में सामान्यतः दोनों के लिए महामारी शब्द का इस्तेमाल हो रहा है. यों एपिडेमिक के लिए महामारी और पैंडेमिक के लिए विश्वमारी और देशांतरगामी महामारी शब्दों का इस्तेमाल तकनीकी शब्दावली में किया गया है, ताकि दोनों के फर्क को बताया जा सके. पैंडेमिक घोषित होने से स्वास्थ्यकर्मियों और डब्लूएचओ की कार्यशैली में कोई अंतर नहीं आएगा. विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे सरकारों का ध्यान जाएगा, साथ ही आवागमन पर रोक लगने से प्रसार की गति रुकेगी. 
यह घोषणा अब क्यों?
डब्लूएचओ के महानिदेशक ने कहा, चूंकि शुरू में इसका प्रभाव केवल चीन तक सीमित था, इसलिए हमने ऐसी घोषणा नहीं की. पिछले दो हफ्तों में चीन के बाहर इससे प्रभावित लोगों की संख्या तेरह गुना और प्रभावित देशों की संख्या तिगुनी हुई है. उदाहरण के लिए 29 फरवरी को इटली में 888 केस थे, जो एक हफ्ते में 4,636 हो गए. वस्तुतः यह शब्द बीमारी की भयावहता से ज्यादा उसके प्रसार क्षेत्र को बताता है. जब कोई बीमारी काफी बड़े भौगोलिक क्षेत्र में फैलती है और बड़ी संख्या के लोगों के शरीर में उस बीमारी से लड़ने की क्षमता नहीं होती है, तब पैंडेमिक की घोषणा की जाती है. बीमारी से होने वाली मौतों से पैंडेमिक की घोषणा नहीं होती, बल्कि उसके प्रसार क्षेत्र से तय होती है.
पहले भी कभी बीमारियाँ फैलीं?
सबसे बड़ा उदाहरण है सन 1918 में फैला स्पेनिश फ्लू. इसमें दो से पाँच करोड़ लोगों की मौत हुई थी. यों सन 1817 से 1975 के बीच कॉलरा को कई बार पैंडेमिक घोषित किया गया है. डब्लूएचओ ने पिछली बार सन 2009 में एच1एन1 के प्रसार को पैंडेमिक घोषित किया था. एबोला वायरस, जिसके कारण पश्चिमी अफ्रीका में हजारों मौतें हो चुकी हैं, महामारी (एपिडेमिक) है. उसे पैंडेमिक नहीं माना गया. मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (2012) मर्स और एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (2002) सार्स जैसी बीमारियाँ क्रमशः 27 और 26 देशों में फैलीं, पर उन्हें पैंडेमिक घोषित नहीं किया गया, क्योंकि उनका प्रसार जल्द रोक लिया गया.  

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