Wednesday, December 31, 2014

रेव पार्टी का मतलब क्या है?

मिस्र के पिरामिडों का निर्माण कैसे हुआ? 
मिस्र के पिरामिड वहां के तत्कालीन फराऊन (सम्राट) के लिए बनाए गए स्मारक स्थल हैं। इनमे राजाओं और उनके परिवार के लोगों के शवों को दफनाकर सुरक्षित रखा गया है। इन शवों को ममी कहा जाता है। उनके शवों के साथ भोजन सामग्री, पेय पदार्थ, वस्त्र, गहने, बर्तन, वाद्य यंत्र, हथियार, जानवर एवं कभी-कभी तो सेवक सेविकाओं को भी दफना दिया जाता था।

मिस्र के सबसे पुराने पिरामिड एक पुराने प्रांत की राजधी मैम्फिस के पश्चिमोत्तर में स्थित सक्कारा में मिले हैं। इनमें सबसे पुराना जोसर का पिरामिड है, जिसका निर्माण ईसा पूर्व 2630 से 2611 के बीच हुआ होगा। पिरामिडों को देखकर उन्हें बनाने की तकनीक, सामग्री और इस काम में लगे मजदूरों की संख्या की कल्पना करते हुए हैरत होती है। एक बड़े पिरामिड का निर्माण करने में पचास हजार से एक लाख लोग तक लगे हों तब भी आश्चर्य नहीं। मिस्र में 138 पिरामिड हैं। इनमें काहिरा के उपनगर गीज़ा का ‘ग्रेट पिरामिड’ शानदार है। यह प्राचीन विश्व के सात अजूबों की सूची में है। उन सात प्राचीन आश्चर्यों में यही एकमात्र ऐसा स्मारक है जिसे समय के थपेड़े खत्म नहीं कर पाए। यह पिरामिड 450 फुट ऊंचा है।
43 सदियों तक यह दुनिया की सबसे ऊंची इमारत रही। 19वीं सदी में ही इसकी ऊंचाई का कीर्तिमान टूटा। इसका आधार 13 एकड़ में फैला है जो करीब 16 फुटबॉल मैदानों जितना है। यह 25 लाख शला खंडों से निर्मित है जिनमें से हर एक का वजन 2 से 30 टन के बीच है। ग्रेट पिरामिड को इतनी गणितीय परिशुद्धता से बनाया गया है कि आज भी इसे बनाना आसान नहीं है। कुछ साल पहले तक (लेसर किरणों से माप-जोख का उपकरण ईजाद होने तक) वैज्ञानिक इसकी सूक्ष्म सममिति (सिमिट्रीज) का पता नहीं लगा पाए थे। ऐसा दूसरा पिरामिड बनाने की बात छोडिए। प्रमाण बताते हैं कि इसका निर्माण करीब 2560  वर्ष ईसा पूर्व मिस्र के शासक खुफु के चौथे वंश ने कराया था। इसे बनाने में करीब 23 साल लगे।

पिरामिड कैसे बनाए गए होंगे यह हैरानी का विषय है। इसमें लगे विशाल पत्थर कहाँ से लाए गए होंगे, कैसे लाए गए होंगे और किस तरस से उन्हें एक-दूसरे के ऊपर रखा गया गया होगा? यहाँ आसपास सिर्फ़ रेत है। यह माना जाता है कि पहले चारों ओर ढालदार चबूतरे बनाए गए होंगे, जिनपर लट्ठों के सहारे पत्थक ऊपर ले जाए गए होंगे। पत्थरों की जुड़ाई इतनी साफ है कि नोक भर दोष नजर नहीं आता।

रेव पार्टी का क्या अर्थ है?
अंग्रेजी शब्द रेव का मतलब है मौज मस्ती। टु रेव इसकी क्रिया है यानी मस्ती मनाना। पश्चिमी देशों में भी यह शब्द बीसवीं सदी में ही लोकप्रिय हुआ। ब्रिटिश स्लैंग में रेव माने ‘वाइल्ड पार्टी।’ इसमें डिस्क जॉकी, इलेक्ट्रॉनिक म्यूज़िक का प्राधान्य होता है। अमेरिका में अस्सी के दशक में एसिड हाउस म्यूज़िक का चलन था। रेव पार्टी का शाब्दिक अर्थ हुआ 'मौज मस्ती की पार्टी'। इसमें ड्रग्स, तेज़ पश्चिमी संगीत, नाचना, शोर-गुल और सेक्स का कॉकटेल होता है। भारत में ये मुम्बई, दिल्ली से शुरू हुईं। अब छोटे शहरों तक पहुँच गई हैं, लेकिन नशे के घालमेल ने रेव पार्टी का उसूल बदल दिया है। पहले यह खुले में होती थीं अब छिपकर होने लगी हैं।

भारत की पहली मासिक पत्रिका

नवविवाहिता द्वारा गृहप्रवेश पर अनाज से भरे कलश को पाद-प्रहार से गिराने का क्या औचित्य है?

धर्म ग्रंथों के अनुसार वधू को लक्ष्मी का रूप माना गया है। उसके गृह-प्रवेश को लक्ष्मी का प्रवेश माना जाता है। यह प्रवेश शुभ मुहूर्त में होना चाहिए। नव-वधू पहले अपना दाहिना पैर घर की देहरी पर रखती है और प्रायः अलग-अलग प्रांतों की परम्परा के अनुसार चावल या अनाज से भरे पात्र को पैर से लुढ़काती है। इससे चावल चारों और बिखर जाते हैं। धान समृद्धि के प्रतीक हैं। नव-वधू का प्रवेश घर में सुख और समृद्धि के प्रवेश से जोड़ा जाता है।

भोजन करने के तुरंत बाद नींद या झपकी क्यों आती है? इसका वैज्ञानिक कारण क्या है?
कार्बोहाइड्रेट, चिकनाई और शक्कर के सेवन के बाद जैसे ही ये पदार्थ हमारे पेट के भीतर छोटी आंत तक पहुँचते हैं दिमाग पूरे शरीर को संदेश भेजता है कि आराम करो। इसे पैरासिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम कहते हैं। इसका मतलब है कि अब भोजन पचाने का समय है शरीर को दूसरे कामों के रोको। शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क के हाइपोथैल्मस क्षेत्र में ओरेक्सिन न्यूरॉन्स का पता लगाया है जो ग्लूकोज का स्तर बढ़ते ही सक्रिय हो जाते हैं। ये न्यूरॉन प्रोटीन ओरेक्सिन तैयार करते हैं जो दिमाग की जागृत अवस्था को कम करता है ताकि शरीर आराम करे।


हमारा दिमाग और आंतें दो ऐसे अंग हैं, जिन्हें अच्छे तरीके से काम करने के लिए ऊर्जा की बड़ी मात्रा की चाहिए। जब हम अधिक कैलोरी वाला भोजन करते हैं तो मस्तिष्क ऊर्जा को पाचन की ओर स्थानांतरित करता है। इसके लिए वह लाल रक्त कोशिकाओं को भोजन तोड़ने शरीर में पोषक तत्वों ले जाने के लिए भेजता है। जिस कारण शरीर सुस्त पड़ जाता है और नींद आती है। इसका मतलब यह भी है कि यदि आप जल्द पचने वाला भोजन करें तो सुस्ती कम हो। होमियोस्टेटिक नींद ड्राइव और बॉडी साइकिल (सरकाजियन) भी नींद का  कारण हैं। दरअसल स्लीप ड्राइव मस्तिष्क के भीतर एक रसायन एडेनोसाइन के क्रमिक निर्माण के कारण होती है। जितनी देर इंसान जागा हुआ रहता है, एडेनोसाइन उसके भीतर सोने की उतनी इच्छा प्रेरित करता है। एडेनोसाइन रात को सोने के पहले व दोपहर को ज्यादा होता है। दोनों समय हमारे भोजन के भी हैं।

अपने देश की सर्वप्रथम प्रकाशित हुई मासिक पत्रिका कौन-सी है तथा उसके संपादक कौन रहे?
देश का पहला मासिक पत्र ओरिएण्टल मैगजीन ऑर कैलकटा एम्यूज़मेंट कोलकाता से 6 अप्रैल 1785 को शुरू हुआ। अंग्रेजी की इस पत्रिका का प्रकाशन मैसर्स गॉर्डन एंड हे ने किया था। सन 1799-1805 के बीच लॉर्ड वेलेज़ली ने जब प्रेस नियम लागू किए उसके पहले इसका प्रकाशन बंद हो चुका था।

मॉनसून केरल से ही क्यों शुरू होता है?
मॉनसून तो केरल के पहले भी होता है, पर चूंकि दक्षिण से उत्तर की ओर उठते बादलों से भारत की पहली मुलाकात केरल में होती है, इसलिए माना जाता है कि मॉनसून केरल से शुरू होता है। यों तो भारत का सबसे दक्षिणी किनारा ग्रेट निकोबार द्वीप का इंदिरा पॉइंट है, जिसे पहले पिग्मेलियन पॉइंट कहते थे। अकसर यहाँ मॉनसून की बारिश केरल के पहले हो जाती है। इस साल 20 मई को हो गई थी, जबकि केरल में मॉनसून 6 जून को पहुँचा। पिछले साल यहाँ 18 मई को बारिश हो गई थी। पर मोटे तौर पर देश की मुख्य ज़मीन पर मॉनसून केरल के मार्फत ही प्रवेश पाता है। 

राजस्थान पत्रिका के मी नेक्स्ट में प्रकाशित 07 दिसम्बर 2014

Tuesday, December 30, 2014

ब्रिक्स, दक्षेस, जी-8 और जी-20


ब्रिक्स, दक्षेस, जी-8 और जी-20 की विशेषताएं, कार्य, वैश्विक पटल पर इनके योगदान आदि के बारे में बताइए?
आपने कुछ देशों के औपचारिक-अनौपचारिक संगठनों और समूहों के नाम गिनाए हैं। ये समूह विभिन्न उद्देश्यों को लेकर बने हैं। संक्षेप में इनका परिचय इस प्रकार हैः-
ब्रिक्स (BRICS). ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के अंग्रेज़ी में नाम के प्रथमाक्षरों से इस समूह का यह नामकरण हुआ है। सन 2010 में दक्षिण अफ्रीका के इसमें शामिल होने से पहले इसका नाम "ब्रिक"। रूस को छोडकर इस समूह के सभी सदस्य विकासशील या नव औद्योगिक देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। यह समूह बनाने के लिए शुरुआती चार ब्रिक देशों ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन के विदेश मंत्री सितंबर 2006 में न्यूयॉर्क शहर में मिले और उच्च स्तरीय बैठकों की एक श्रृंखला की शुरुआत की। इसके बाद 16 मई 2008 एक बड़ा सम्मेलन येकतेरिनबर्ग, रूस में आयोजित किया गया था। इसके बाद 16 जून 2009 को ब्रिक समूह का पहला औपचारिक शिखर सम्मेलन, येकतेरिनबर्ग में ही हुआ। इसमें लुइज़ इनासियो लूला डा सिल्वा (ब्राजील), दिमित्री मेदवेदेव(रूस), डॉ मनमोहन सिंह (भारत) और हू जिन्ताओ (चीन) शामिल हुए। यह समूह आपसी सहयोग के अलावा वैश्विक अर्थ-व्यवस्था की दशा-दिशा पर विचार-विमर्श करता है। ब्रिक्स का छठा शिखर सम्मेलन 15-16 जुलाई, 2014 को ब्राज़ील के फोर्टालेज़ा और ब्रासीलिया में आयोजित किया गया। इसका मुख्य विषय था, ”समावेशी वृद्धि, सतत विकास।”

साउथ एशियन एसोसिएशन ऑफ रीजनल को-ऑपरेशन–सार्क, जिसका हिन्दी में संक्षेप नाम दक्षेस है, दक्षिण एशिया के आठ देशों का आर्थिक और राजनीतिक संगठन है। इसकी स्थापना 8 दिसम्बर 1985 को भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव और भूटान ने मिलकर की थी। अप्रैल 2007 में संघ के 14 वें शिखर सम्मेलन में अफ़ग़ानिस्तान इसका आठवाँ सदस्य देश बना।
जी-8. ग्रुप ऑफ 8 दुनिया की आठ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का मंच है। इसका न तो कोई मुख्यालय है और न कोई औपचारिक संगठन। जी-8 बनाने के पीछे सोच यह था कि लंबे-चौड़े तामझाम से बचकर इन देशों के शीर्ष नेता सीधे-सीधे अनौपचारिक तरीके एक दूसरे से बात कर सकें। जी-8 का मेज़बान देश ही सम्मेलन की तैयारियाँ करता है और उसका ख़र्च उठाता है। 1970 के दशक में तेल संकट और आर्थिक मंदी के माहौल के बीच महसूस किया गया कि दुनिया के अहम देशों के नेताओं के लिए खुलकर बात करने का कोई मंच होना चाहिए। इसी के बाद 1975 में फ्रांस में जी-6 की स्थापना हुई। इसके छह सदस्य थे– फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका. 1976 में कनाडा और 1998 में रूस भी इनके साथ जुड़ा और बन गया जी-8। हाल में यूक्रेन के संकट के बाद 24 मार्च को इस फोरम से जुड़े देशों ने रूस को इससे बाहर करने का फैसला किया। इस प्रकार अब यह जी-7 है।

जी-20. 25 सितंबर 1999 को अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में विश्व के सात प्रमुख देशों के संगठन जी-7 ने एक नया संगठन बनाने की घोषणा की थी। उभरती आर्थिक ताक़तों की बुरी वित्तीय स्थिति से बने चिंता के माहौल के बीच गठित इस संगठन का नाम दिया गया-जी 20। उस वक्त यह विश्व की 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों के संगठन के रूप में सामने आया था, जिसमें 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल थे। इन देशों के अलावा इसके सम्मेलनों में दुनिया भर के तमाम संगठनों और देशों को समय-समय पर निमंत्रित किया जाता है। वस्तुतः इस समय दुनिया की आर्थिक परिघटनाओं, खासतौर से वैश्विक मंदी के मद्दे-नजर यह सबसे प्रभावशाली संगठन है। इस संगठन का कोई स्थायी सचिवालय नहीं है, पर अब प्रयास किया जा रहा है कि स्थायी सचिवालय बने। इसकी अध्यक्षता हर साल बदलती है। इस समय ऑस्ट्रेलिया के पास है। इस साल इसका शिखर सम्मेलन नवम्बर में ब्रिसबेन, ऑस्ट्रेलिया में हुआ और अगले साल शिखर सम्मेलन तुर्की में होगा। अध्यक्षता भी तुर्की के पास होगी।


Friday, December 26, 2014

पहला टेस्ट ट्यूब बेबी कितने साल का है? आजकल क्या कर रहा है?




            

पहला टेस्ट ट्यूब बेबी कितने साल का है? आजकल क्या कर रहा है?
लुइज़ ब्राउन अब
कर रहा है नहीं कर रही है। पुरुष पहले आया या स्त्री इसका पता नहीं, पर टेस्ट ट्यूब बेबी के रूप में सबसे पहले लड़की का जन्म हुआ था। 25 जुलाई 1978 को ग्रेट ब्रिटेन में लेज़्ली ब्राउन ने दुनिया के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिया था। इस बेबी का नाम है लुइज़ जॉय ब्राउन। इनके पिता का नाम है जॉन ब्राउन। इनके माता-पिता के विवाह के नौ साल बाद तक संतान नहीं होने पर उन्होंने डॉक्टरों से सम्पर्क किया। डॉक्टर रॉबर्ट जी एडवर्ड्स कई साल से ऐसी तकनीक विकसित करने के प्रयास में थे, जिसे इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन कहा जाता है। डॉक्टर एडवर्ड्स को बाद में चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार भी दिया गया। टेस्ट ट्यूब बेबी लुइज़ आज 34 वर्ष की हैं और वे एक बच्चे की माँ हैं। उनके बेटे का नाम केमरन है, जिसकी उम्र पाँच साल है। लुइज़ का विवाह सन 2004 में वेस्ली मलिंडर से हुआ था। और 20 दिसम्बर 2006 को केमरन का जन्म सामान्य तरीके से हुआ। 

भारत का नाम भारत कैसे पड़ा?
भारतवर्ष का नामकरण कैसे हुआ इस संबंध में मतभेद हैं। भारतवर्ष में तीन भरत हुए एक भगवान ऋषभदेव के पुत्र, दूसरे राजा दशरथ के और तीसरे दुश्यंत- शकुंतला के पुत्र भरत। भारत नाम की उत्पति का संबंध प्राचीन भारत के चक्रवर्ती सम्राट राजा मनु के वंशज भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत से है। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र मनु ने व्यवस्था सम्हाली। ऋषभदेव मनु से पांचवीं पीढ़ी में इस क्रम में हुए- स्वयंभू मनु, प्रियव्रत, आग्नीध्र, नाभि और फिर ऋषभ। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे। विष्णु पुराण में उल्लेख आता है "ततश्च भारतवर्ष तल्लो केषु गीयते" अर्थात् "तभी से इस देश को भारत वर्ष कहा जाने लगा"। वायु पुराण भी कहता है कि इससे पहले भारतवर्ष का नाम हिमवर्ष था। पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत की गणना 'महाभारत' में वर्णित सोलह सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। कालिदास कृत महान संस्कृत ग्रंथ 'अभिज्ञान शाकुंतलम' के एक वृत्तांत अनुसार राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के पुत्र भरत के नाम से भारतवर्ष का नामकरण हुआ।

थ्री-डी फिल्म की शुरूआत कैसे हुई? कम्प्यूटर से या कैमरा से थ्री-डी इफेक्ट कैसे दिया जाता है?

थ्री-डी फिल्म मूवी की एक तकनीक है, जिसमें छवियां वास्तविक लगती हैं। इसमें चित्रों को रिकॉर्ड करने के लिए विशेष मोशन पिक्चर कैमरे का प्रयोग किया जाता है। यह तकनीक नई नहीं है। सन 1890 के दौरान भी इनका प्रदर्शन होता था, पर उस समय के इन फिल्मों को थिएटर पर दिखाया जाना काफी महंगा काम होता था। मुख्यत: 1950 से 1980 के बीच अमेरिकी सिनेमा में ये फिल्में प्रमुखता से दिखने लगी।
मोशन पिक्चर का स्टीरियोस्कोपिक युग 1890 के दशक के अंतिम दौर में आरंभ हुआ जब ब्रिटिश फिल्मों के पुरोधा विलियम ग्रीन ने थ्री-डी प्रक्रिया का पेटेंट फाइल किया। फ्रेडरिक युजीन आइव्स ने स्टीरियो कैमरा रिग का पेटेंट 1900 में कराया। इस कैमरे में दो लैंस लगाए जाते थे जो एक दूसरे से तीन-चौथाई इंच की दूरी पर होते थे। 27 सितंबर, 1922 को पहली बार दर्शकों को लॉस एंजेलस के एंबेसडर थिएटर होटल में द पावर ऑफ लव का प्रदर्शन आयोजित किया गया था। सन 1952 में पहली कलर स्टीरियोस्कोपिक फीचर, वान डेविल बनाई गई। इसके लेखक, निर्माता और निर्देशक एमएल गुंजबर्ग थे। स्टीरियोस्कोपिक साउंड में बनी पहली थ्री-डी फीचर फिल्म हाउस ऑफ वैक्स थी। 
सिनेमा में तीसरा आयाम जोड़ने के लिए उसमें अतिरिक्त गहराई जोड़ने की जरूरत होती है। वैसे असल में यह केवल छद्म प्रदर्शन मात्र होता है। फिल्मांकन के लिए प्रायः 90 डिग्री पर स्थित दो कैमरों का एक-साथ प्रयोग कर चित्र उतारे जाते हैं और साथ में दर्पण का भी प्रयोग किया जाता है। दर्शक थ्री-डी चश्मे के साथ दो चित्रों को एक ही महसूस करते हैं और वह उसे त्रि-आयामी या थ्री-डायमेंशनल लगती है। ऐसी फिल्में देखने के लिए कुछ समय पहले तक एक खास तरीके के चश्मे को पहनने की आवश्यकता होती है। हाल ही निर्माता-निर्देशक स्टीवन स्पीलर्ब ने एक ऐसी तकनीक का पेटेंट कराया है, जिसमें थ्री-डी फिल्म देखने के लिए चश्मे की कोई जरूरत नहीं रहेगी। भारत में भी कई थ्री-डी फिल्में बन चुकी हैं। सन 1985 में छोटा चेतन और शिवा का इन्साफ रिलीज़ हुई थी। रंगीन चश्मे के साथ फिल्म देखने का अनुभव एकदम नया था। भारत में अब 20-25 पुरानी फिल्मों को थ्री-डी में बदला जा रहा है।  

वॉट्सएप की शुरूआत किसने की और कब की? इस एप का कोई फुल फॉर्म है?
वॉट्सएप स्मार्टफोन पर इंटरनेट के मार्फत संदेश भेजने की सेवा है। इसमें टेक्स्ट के अलावा फोटो, ऑडियो और वीडियो फाइलें भी भेजी जा सकती हैं। यह गूगल एंड्रॉयड, ब्लैकबेरी, एपल, नोकिया सीरीज़ 40 और माइक्रोसॉफ्ट विंडो प्लेटफॉर्म पर काम करता है। वॉट्सएप इनकॉरपोरेट की स्थापना सन 2009 में अमेरिकी ब्रायन एक्टन और यूक्रेन के जैन काऊम ने की थी। ये दोनों याहू के पूर्व कर्मचारी थे। यह कम्पनी माउंटेन व्यू, सेंटा क्लारा काउंटी, कैलिफोर्निया में है। वॉट्सएप के मुकाबले कुछ और सेवाएं इस बीच आ गईं हैं। इनमें लाइन, काकाओ टॉक, वीचैट और ज़ालो भी शामिल हैं। जो काम एसएमएस ने मोबाइल फोन पर और स्काइप ने कम्प्यूटर पर किया, तकरीबन वैसा ही काम वॉट्सएप ने किया है। यह नाम रखने के पीछे मंशा वॉट्सअप और एप्लीकेशंस के एप को जोड़ने की रही होगी। वॉट्सएप आमतौर पर अंग्रेजी में ‘क्या चल रहा है’ के लिए कहा जाता है। 

हमारे राष्ट्रीय ध्वज को किसने डिजाइन किया?
तिरंगे झंडे का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जाना चाहिए। इसका विकास हुआ है और इसमें कई लोगों का योगदान है। माना जाता है कि सबसे पहले आंध्र प्रदेश के देशभक्त कृषि विज्ञानी पिंगली वैंकैया ने इसकी परिकल्पना की थी। उन्होंने गांधी जी को एक राष्ट्रीय ध्वज का सुझाव दिया था। गांधी जी ने सबसे पहले 1921 में कांग्रेस के अपने झंडे की बात की थी। इस झंडे को पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था। इसमें दो रंग थे लाल रंग हिन्दुओं के लिए और हरा रंग मुस्लिमों के लिए। बीच में एक चक्र था। बाद में इसमें अन्य धर्मों के लिए सफेद रंग जोड़ा गया। कांग्रेस के ध्वज में बीच में चरखा था। ध्वज को उसके वर्तमान रूप में 15 अगस्त 1947 के कुछ ही दिन पूर्व 22 जुलाई, 1947 को आयोजित भारतीय संविधान-सभा की बैठक में अपनाया गया था। इसमें चरखे की जगह अशोक चक्र ने ली। इस नए झंडे की देश के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने फिर से व्याख्या की। 
इससे भी पहले 1904  में स्वामी विवेकानन्द की शिष्या भगिनी निवेदिता ने एक ध्वज बनाया था। 7 अगस्त, 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में इसे कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया था। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। ऊपर की ओर हरी पट्टी में आठ कमल थे और नीचे की लाल पट्टी में सूरज और चाँद बनाए गए थे। बीच की पीली पट्टी पर वंदेमातरम् लिखा गया था। द्वितीय ध्वज को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों ने फहराया था। कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार यह 1905 की बात है। यह भी पहले ध्वज के समान था; सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल था, किंतु सात तारे सप्तऋषियों को दर्शाते थे। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था। 1917 में डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान एक और ध्वज फहराया। इस ध्वज में ५ लाल और ४ हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि के प्रतीक रूप में सात सितारे बने थे। ऊपरी किनारे पर बाईं ओर यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।

ऐ मेरे वतन के लोगो, गीत किसने लिखा? इस गाने के कितने वर्ष हो गए?
सबसे पहले लता मंगेशकर ने कवि प्रदीप के लिखे इस गाने को गाया था 27 जनवरी 1963 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के सामने। 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत की बुरी हार हुई थी। पूरे देश का मनोबल गिरा हुआ था. ऐसे में सबकी निगाहें फ़िल्म जगत और कवियों की तरफ़ जम गईं कि वे कैसे सबके उत्साह को बढ़ाने का काम कर सकते हैं। कवि प्रदीप ने एक जगह बताया है कि उस दौर में तीन महान आवाज़ें हुआ करती थीं. मोहम्मद रफ़ी, मुकेश और लता मंगेशकर. उसी दौरान नौशाद भाई ने तो मोहम्मद रफ़ी से 'अपनी आज़ादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं', गीत गवा लिया, जो बाद में फ़िल्म 'लीडर' में इस्तेमाल हुआ। राज साहब ने मुकेश से 'जिस देश में गंगा बहती है' गीत गवा लिया. तो इस तरह से रफ़ी और मुकेश तो पहले ही रिज़र्व हो गए. अब बचीं लता जी. उनकी मखमली आवाज़ में कोई जोशीला गाना फिट नहीं बैठता। यह बात मैं जानता था। तो मैंने एक भावनात्मक गाना लिखने की सोची। इस तरह से 'ऐ मेरे वतन के लोगों' का जन्म हुआ, जिसे लता ने पंडित नेहरू के सामने गाया और उनकी आंखों से भी आंसू छलक आए।

खर्राटे क्यों आते हैं? क्या यह कोई बीमारी है या उसका कोई लक्षण है? 
सोते समय गले का पिछला हिस्सा थोड़ा सँकरा हो जाता है। साँस जब सँकरी जगह से जाती है तो आसपास के टिशुओं में स्पंदन होता है, जिससे आवाज आती है। यही हैं खर्राटे। यह सँकरापन नाक एवं मुँह में सूजन के कारण भी हो सकता है। यह सूजन एलर्जी, संक्रमण, धूम्रपान, शराब पीने या किसी दूसरे कारण से हो सकती है। इससे फेफड़ों को कम आक्सीजन मिलती है, जिससे मस्तिष्क के न्यूरोट्रांसमीटर ज्यादा ऑक्सीजन माँगने लगते हैं। ऐसे में नाक एवं मुँह ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं, जिससे खर्राटे की आवाज आने लगती है। बच्चों में एडीनॉयड ग्रंथि में सूजन एवं टांसिल से भी खर्राटे आते हैं। मोटापे के कारण भी गले की नली में सूजन से रास्ता संकरा हो जाता है, और सांस लेने में आवाज आने लगती है। जीभ का बढ़ा आकार भी खर्राटे का बड़ा कारण है। ब्राज़ील में हुए एक शोध के अनुसार भोजन में नमक की अध‌िकता शरीर में ऐसे फ्लूइड का निर्माण करती है जिससे नाक के छिद्र में व्यवधान होता है। 
बहरहाल खर्राटे या तो खुद बीमारी हैं या बीमारी का लक्षण हैं। खर्राटे से अचानक हृदय गति रुकने का खतरा रहता है। मधुमेह एवं मोटापे की बीमारी के कारण खर्राटे के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं। खर्राटे के दौरान शरीर में रक्त संचार अनियमित हो जाता है, जो दिल के दौरे का बड़ा कारण है। दिमाग में रक्त की कम आपूर्ति से पक्षाघात तक हो सकता है। इससे फेफड़ों पर भी दबाव पड़ता है। खर्राटे के रोगियों को पॉलीसोमनोग्राफी टेस्ट करवाना चाहिए। यह टेस्ट व्यक्ति के सोते समय की शारीरिक स्थितियों की जानकारी देता है।

विश्व का सबसे ऊँचा पेड़ कौन सा है?

विश्व का सबसे ऊँचा पेड़ कौन सा है?
दुनिया का सबसे ऊँचा जीवित पेड़ है रेडवुड नेशनल पार्क, कैलिफोर्निया में खड़ा कोस्ट रेडवुड जिसकी ऊँचाई है 115.66 मीटर यानी 379 फुट। कुतुब मीनार से भी ऊँचे इस पेड़ की तुलना कुछ और चीजों से करें तो पाएंगे कि यह अमेरिकी संसद भवन और स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से भी ज्यादा ऊँचा है। और सबसे बड़ा यानी सबसे ज्यादा जगह घेरने वाला सिंगल स्टैम पेड़ है जनरल शर्मन। आसानी से समझने के लिए सबसे ज्यादा लकड़ी देने वाला पेड़। जनरल शर्मन पेड़ अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य के सेक्योवा नेशनल पार्क में मौजूद है। यह इतिहास में ज्ञात जीवित पेड़ों में सबसे ऊँचा नहीं है। दरअसल यह मनुष्यों को ज्ञात सबसे विशाल वृक्ष भी नहीं है। ट्रिनिडाड, कैलिफोर्निया के पास क्रैनेल क्रीक जाइंट पेड़ जनरल शर्मन के मुकाबले 15 से 25 प्रतिशत ज्यादा बड़ा था। पर उस पेड़ को 1940 के दशक में काट डाला गया।

विश्व में कहाँ पर स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया जाता?
स्वतंत्रता दिवस वही देश मनाएगा, जो कभी परतंत्र रहा हो। यूके, रूस, फ्रांस, नेपाल, थाईलैंड, जापान, चीन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे अनेक देश नहीं मनाते। फिर भी फ्रांसीसी क्रांति की याद में बास्तील दिवस मनाता है। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका पर बाहर से आए लोगों का शासन है। पर वे अब भी इन देशों के निवासी हैं, इसलिए स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाते। चीन 1 अक्तूबर को कम्युनिस्ट शासन की शुरूआत को मनाता है। नेपाल 29 मई 2008 को संप्रभुता सम्पन्न गणतंत्र बना। इस दिन यहाँ से राजशाही का खात्मा हुआ। नेपाल में लोकतंत्र दिवस हर साल फाल्गुन सप्तमी को मनाया जाता है। इस रोज सन 1951 में राजा त्रिभुवन ने देश को राणाशाही के हाथों से निकाल कर लोकतंत्र की स्थापना की थी। पर देश में लोकतंत्र 1960 में आया जब राजा महेन्द्र ने पंचायत प्रणाली की स्थापना की।

ग्रेट विक्टोरिया रेगिस्तान कहाँ है?
ग्रेट विक्टोरिया रेगिस्तान ऑस्ट्रेलियन रेगिस्तानों में से एक है। इस रेगिस्तान का क्षेत्रफल 338,000 वर्ग किमी है। इस विशाल रेगिस्तान में रेतीले टीलों की भरमार है। इस रेगिस्तान की यह विशेषता है कि यहाँ वनस्पति बहुतायत से होती है। ब्रिटेन ने 1952 में जब एटम बम बनाया तो उसका परीक्षण यहाँ आकर किया।

ट्यूबलाइट में चोक का क्या इस्तेमाल होता है?
ट्यूबलाइट मूलतः मर्करी वैपर लैम्प है। इसमें मर्करी वैपर को चार्ज करने के लिए बिजली के हाई वोल्टेज प्रवाह की जरूरत होती है। चोक और स्टार्टर प्रेरक या inductor या reactor का काम करते हैं। प्रेरक को साधारण भाषा में 'चोक' (choke) और 'कुण्डली' (coil) भी कहते हैं। ट्यूबलाइट आदि को जलाने के लिए हाई वोल्ट पैदा करने एवं जलने के बाद उससे बहने वाली धारा को सीमित रखने के लिए इसका इस्तेमाल होता है। पुरानी कारों एवं स्कूटरों आदि में स्पार्क पैदा करने के लिए इग्नीशन क्वायल की भी यही भूमिका होती है।

शीशे का आविष्कार कब और कैसे हुआ और इसका पहली बार किस रूप में उपयोग किया गया?
शीशे से आपका आशय दर्पण से है तो वह प्रकृति ने हमें ठहरे हुए पानी के रूप में दिया था। पत्थर युग में चिकने पत्थर में भी इंसान को अपना प्रतिबिंब नज़र आने लगा था। इसके बाद यूनान, मिस्र, रोम, चीन और भारत की सभ्यताओं में धातु को चमकदार बनाकर उसका इस्तेमाल दर्पण की तरह करने की परंपरा शुरू हुई। पर प्रकृति ने उससे पहले उन्हें एक दर्पण बनाकर दे दिया था। यह था ऑब्सीडियन। ज्वालामुखी के लावा के जमने के बाद बने कुछ काले चमकदार पत्थर एकदम दर्पण का काम करते थे। बहरहाल धातु युग में इंसान ने ताँबे की प्लेटों को चमकाकर दर्पण बना लिए। प्राचीन सभ्यताओं को शीशा बनाने की कला भी आती थी। ईसा की पाँचवीं सदी में चीन के लोगों ने चाँदी और मरकरी से शीशे के एक और कोटिंग करके दर्पण बना लिए थे। हमारे यहाँ स्त्रियों के गहनों में आरसी भी एक गहना है, जो वस्तुतः चेहरा देखने वाला दर्पण है।

एंटी ऑक्सीडेंट क्या होते हैं और ये शरीर पर क्या प्रभाव डालते हैं?
हमारे शरीर की खरबों कोशिकाओं को पोषण की कमी और संक्रमण का ही खतरा नहीं होता है, बल्कि फ्री रेडिकल्स भी कोशिकाओं को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। यह फ्री रेडिकल्स भोजन को ऊर्जा में बदलने की प्रक्रिया में उप-उत्पाद के रूप में निकलते हैं। इसके अलावा कुछ उस भोजन में होते हैं जो हम खाते हैं, कुछ उस हवा में तैरते रहते हैं जो हमारे आसपास मौजूद होती है। फ्री रेडिकल्स अलग-अलग आकार, माप और रासायनिक संगठन के होते हैं। फ्री रेडिकल्स कोशिकाओं को नष्ट करके हृदय रोगों, कैंसर और दूसरी बीमारियों की आशंका बढ़ा सकते हैं। एंटी ऑक्सीडेंट फ्री रेडिकल्स के प्रभाव से कोशिकाओं को बचाते हैं। भोजन को पचाने में कई क्रियाएं होती हैं। शरीर भोजन से अपने लिए जरूरी तत्वों को ले लेता है लेकिन उन तत्वों को अलग कर देता है जो नुकसानदेह हैं। ये विषैले तत्व कई बार शरीर से आसानी से नहीं निकलते। ऐसे में एंटी ऑक्सीडेंट उन्हें शरीर से बाहर करता है और शरीर की सफाई करता है।
एंटी ऑक्सीडेंट वह अणु होते हैं जो दूसरे अणुओं के ऑक्सीडेशन को रोकते हैं। सैकड़ों नहीं हजारों पदार्थ एंटी ऑक्सीडेंट की तरह कार्य करते हैं। यह विटामिन, मिनरल्स और दूसरे कई पोषक तत्व होते हैं। बीटा कैरोटिन, ल्युटिन लाइकोपीन, फ्लैवोनाइड, लिगनान जैसे एंटी ऑक्सीडेंट हमारे लिए बहुत जरूरी और महत्वपूर्ण हैं। इनके अलावा मिनरल सेलेनियम भी एक एंटी ऑक्सीडेंट की तरह कार्य करता है। विटामिन ए, विटामिन सी और विटामिन ई की एक एंटी ऑक्सीडेंट के रूप में हमारे शरीर में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

एंटी ऑक्सीडेंट ताजे फल और सब्जियों में सबसे अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इन्हें स्कैवेंजर भी कहते हैं, क्योंकि यह फ्री रेडिकल्स को खाकर शरीर की सफाई करते हैं। गाजर शक्तिशाली एंटी ऑक्सीडेंट बीटा-कैरोटिन से भरपूर होती है। यह शकरकंद, शलजम और पीली एवं नारंगी रंग की सब्जियों में होता है। टमाटर में लाइकोपीन होता है। यह फेफड़े, बड़ी आंत और स्तन कैंसर से बचाता है और मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को दुरुस्त रखता है। चाय हमें कैंसर, हृदय रोगों, स्ट्रोक और दूसरी बीमारियों से बचाती है। हरी और काली दोनों चाय काफी लाभदायक होती हैं। लहसुन एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर होता है जो कैंसर और हृदय रोगों से लड़ने में मददगार होता है और बढ़ती उम्र के प्रभावों को कम करता है।

नक्षत्र क्या होते हैं? क्या हम नक्षत्रों तक जा सकते हैं, जैसे कि चाँद पर?
नक्षत्र यानी स्टार या सितारे जो ऊर्जा पैदा करते हैं। जैसे हमारा सूर्य। संपूर्ण सूर्य के गोले में 13 लाख पृथ्वियां समा सकती है। सूर्य की सतह का तापमान 6000 डिग्री सैल्शियस है और केंद्र में 1.5 डिग्री सैल्शियस है। किसी भी प्राणी या यंत्र का वहाँ तक पहुँचना सम्भव नहीं। उनका अध्ययन दूर से करते हैं।


हिंदी फिल्मों का सबसे लम्बा गाना कौन सा है?


प्रकृति में सबसे ज्यादा ऑक्सीजन पैदा करने वाला पेड़ या पौधा कौन सा है?



पेड़ या पौधे ऑक्सीजन तैयार नहीं करते बल्कि वे फोटो सिंथेसिस या प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को पूरा करते हैं। पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करते हैं और उसके दो बुनियादी तत्वों को अलग करके ऑक्सीजन को वातावरण में फैलाते हैं। एक माने में वातावरण को इंसान के रहने लायक बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं। कौन सा पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन पैदा करते है? इसे लेकर अधिकार के साथ कहना मुश्किल है, पर तुलसी, पीपल, नीम और बरगद के पेड़ काफी ऑक्सीजन तैयार करते हैं और हमारे परम्परागत समाज में इनकी पूजा होती है। यों पेड़ों के मुकाबले काई ज्यादा ऑक्सीजन तैयार करती है।
प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है जिसमें पौधे अपने हरे रंग वाले अंगों जैसे पत्ती, द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बन डाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O2) बाहर निकालते हैं। इस प्रक्रिया में आक्सीजन एवं ऊर्जा से भरपूर कार्बोहाइड्रेट (सूक्रोज, ग्लूकोज, स्टार्च आदि) का निर्माण होता है तथा आक्सीजन गैस बाहर निकलती है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण जैव रासायनिक क्रियाओं में से एक है। सीधे या परोक्ष रूप से दुनिया के सभी सजीव इस पर आश्रित हैं।

हिंदी फिल्मों का सबसे लम्बा गाना कौन सा है?
अभी तक माना जाता था कि सन 1958 में बनी फिल्म अल हिलाल की कव्वाली हमें तो लूट लिया मिल के हुस्न वालों ने सबसे लम्बा गीत है। यह 11 मिनट का गाना था। पर इस साल बनी फिल्म मस्तान में 21 मिनट का गाना है मोरा मन मान ना। जयपुर मूल के संगीतकार तोषी साबरी ने हाल ही में अपनी आने वाली फिल्म "मस्तान" के लिए 21 मिनट लम्बा गीत रिकॉर्ड किया है। रॉकी खन्ना के निर्देशन में बनी इस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह और उनका छोटा बेटा वीवान एक साथ काम कर रहे हैं। हाल में पता लगा है कि अब तुम्हारे हवाले वतन सारा नाम की फिल्म में 20 मिनट का गीत है, जिसे कैलाश खेर, सोनू निगम, अलका याग्निक और उदित नारायण ने गया है।

एस्ट्रोनॉट्स स्पेस में क्या या कैसा खाना खाते हैं?
अब अंतरिक्ष यात्राएं काफी लम्बी होने लगी हैं। कई-कई महीने तक यात्रियों को अंतरिक्ष स्टेशन पर रहना पड़ता है। उनके लिए खाने की व्यवस्था करने के पहले देखना पड़ता है कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति से मुक्त स्पेस में उनके शरीर को किस प्रकार के भोजन की जरूरत है। साथ ही उसे स्टोर किस तरह से किया जाए। सबसे पहले अंतरिक्ष यात्री यूरी गागारिन को भोजन के रूप में टूथपेस्ट जैसी ट्यूब में कुछ पौष्टिक वस्तुएं दी गईं थीं। उन्हें गोश्त का पेस्ट और चॉकलेट सॉस भी दिया गया। 1962 में अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री जॉन ग्लेन ने भारहीनता की स्थिति में भोजन करने का प्रयोग किया था। शुरू में लगता था कि भारहीनता में इंसान भोजन को निगल पाएगा या नहीं। इसके बाद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए टेबलेट और तरल रूप में भोजन बनाया गया। धीरे-धीरे उनके भोजन पर रिसर्च होती रही। उन्हें सैंडविच और टोस्ट दिए जाने लगे। अब उन्हें कई तरह के पेय पदार्थ और खाने की चीजें भेजी जाती हैं। अलबत्ता वहाँ स्वाद की समस्या होती है। भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स हाल में जब भारत आईं थी तो उन्होंने बताया था कि वे अंतरिक्ष में समोसे लेकर गई थीं। साथ ही वे पढ़ने के लिए उपनिषद और गीता भी लेकर गईं थी।

कुल कितनी कैटेगरी के लिए नोबेल पुरस्कार दिया जाता है? वे कौन सी हैं?
नोबेल पुरस्कार की स्थापना स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड बर्नहार्ड नोबेल की याद में 1901 में की गई थी। उनका जन्म 1833 ई. में स्वीडन के शहर स्टॉकहोम में हुआ था। उन्होंने 1866 में डाइनामाइट की खोज की। स्वीडिश लोगों को 1896 में उनकी मृत्यु के बाद ही पुरस्कारों के बारे में पता चला, जब उन्होंने उनकी वसीयत पढ़ी, जिसमें उन्होंने अपने धन से मिलने वाली सारी वार्षिक आय पुरस्कारों की मदद करने में दान कर दी थी। शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में बेहतरीन काम करने वालों को हर साल यह पुरस्कार दिया जाता है। पहले नोबेल पुरस्कार पाँच विषयों में कार्य करने के लिए दिए जाते थे। अर्थशास्त्र के लिए पुरस्कार स्वेरिजेश रिक्स बैंक, स्वीडिश बैंक द्वारा अपनी 300वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में 1967 में आरम्भ किया गया और इसे 1969 में पहली बार प्रदान किया गया। इसे अर्थशास्त्र में नोबेल स्मृति पुरस्कार भी कहा जाता है।

सूक्ष्मदर्शी यंत्र क्या है? इसका आविष्कार कब, कैसे और कहाँ हुआ तथा अत्याधुनिक सूक्ष्मदर्शी यंत्र के बारे में बताएं।
सूक्ष्मदर्शी या माइक्रोस्कोप वह यंत्र है जिसकी सहायता से आँख से न दिखने योग्य सूक्ष्म वस्तुओं को भी देखा जा सकता है। सामान्य सूक्ष्मदर्शी ऑप्टिकल माइक्रोस्कोप होता है, जिसमें रोशनी और लैंस की मदद से किसी चीज़ को बड़ा करके देखा जाता है। ऐसा माना जाता है सबसे पहले सन 1610 में इटली के वैज्ञानिक गैलीलियो ने सरल सूक्ष्मदर्शी बनाया। पर इस बात के प्रमाण हैं कि सन 1620 में नीदरलैंड्स में पढ़ने के लिए आतिशी शीशा बनाने वाले दो व्यक्तियों ने सूक्ष्मदर्शी तैयार किए। इनके नाम हैं हैंस लिपरशे (जिन्होंने पहला टेलिस्कोप भी बनाया) और दूसरे हैं जैकैरियस जैनसन। इन्हें भी टेलिस्कोप का आविष्कारक माना जाता है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी एक प्रकार का सूक्ष्मदर्शी में प्रकाश के बदले इलेक्ट्रॉन का इस्तेमाल होता है। इलेक्ट्रॉन द्वारा वस्तुओं को प्रकाशित किया जाता है एवं उनका परिवर्धित चित्र बनता है। कुछ इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी वस्तुओं का 20 लाख गुणा बड़ा चित्र बना सकते है। परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र (atomic force microscope, AFM), जिसे scanning force microscope, SFM भी कहा जाता है, एक बेहद छोटी चीजों को यानी नैनोमीटर के अंशों से भी सूक्ष्म स्तर तक दिखा सकता है। एक नैनोमीटर माने एक मीटर का एक अरबवाँ अंश।

पोलर लाइट्स क्या है और इनका रहस्य क्या है?
ध्रुवीय ज्योति (अंग्रेजी: Aurora), या मेरुज्योति, वह चमक है जो ध्रुव क्षेत्रों के वायुमंडल के ऊपरी भाग में दिखाई पड़ती है। उत्तरी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को सुमेरु ज्योति (अंग्रेजी: aurora borealis), या उत्तर ध्रुवीय ज्योति, तथा दक्षिणी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को कुमेरु ज्योति (अंग्रेजी: aurora australis), या दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, कहते हैं। यह रोशनी वायुमंडल के ऊपरी हिस्से थर्मोस्फीयर ऊर्जा से चार्ज्ड कणों के टकराव के कारण पैदा होती है। ये कण मैग्नेटोस्फीयर, सौर पवन से तैयार होते हैं। धरती का चुम्बकीय घेरा इन्हें वायुमंडल में भेजता है। ज्यादातर ज्योति धरती के चुम्बकीय ध्रुव के 10 से 20 डिग्री के बैंड पर होती हैं। इसे ऑरल ज़ोन कहते हैं। इन ज्योतियों का भी वर्गीकरण कई तरह से किया जाता है।


सेना में फील्ड मार्शल किसे कहा जाता है?

सेना में फील्ड मार्शल किसे कहा जाता हैआजकल इस पद पर कौन है?
फील्ड मार्शल पद भारतीय सेना में एक प्रकार से थल सेना का सम्मान का पद है। हमारी सेना का सर्वोच्च पद जनरल और चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ का होता है। सन 1971 में बांग्लादेश-युद्ध में विजय प्राप्त करने वाले जनरल सैम मानेकशॉ (3 अप्रेल 1914-27 जून 2008) को 1 जनवरी सन 1973 में देश का पहला फील्ड मार्शल पद दिया गया। वे भारतीय थलसेना के आठवें चीफ ऑफ स्टाफ थेपर फील्ड मार्शल बनने वाले पहले सेनाधिकारी थे। सैम मानेकशॉ को यह पद देने के बाद सन 1986 में जनरल केएम करियप्पा (29 दिसम्बर 1899-15 मई 1993) को फील्ड मार्शल का ओहदा दिया गया। चूंकि सन 1973 में सैम मानेकशॉ को यह पद दिया जा चुका था। इसलिए देर से ही सही यह ओहदा उन्हें उनके सेवानिवृत्त होने के तकरीबन तीस साल बाद दिया गया। जन करियप्पा 1947 में स्वतंत्रता के बाद भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ थे। उन्हें सम्मान देते हुए फील्ड मार्शल की पदवी दी गई। इस वक्त देश में कोई फील्ड मार्शल नहीं है।

फील्ड मार्शल की तरह वायुसेना में मार्शल ऑफ एयरफोर्स का एक पद बनाया गया। यह पद सन 2002 में वायु सेना प्रमुख अर्जन सिंह को दिया गया। भारतीय वायुसेना में यह पद अब तक केवल उन्हें ही दिया गया है। वे वायुसेना में एयर चीफ मार्शल बनने वाले भी पहले भारतीय थे। उसके पहले तक भारतीय वायुसेनाध्यक्ष का पद था एयर मार्शल। एयर चीफ मार्शल के कंधे पर चार स्टार लगाए जाते हैं, जबकि मार्शल ऑफ एयरफोर्स के कंधे पर पाँच स्टार लगते हैं। नौसेना में भी इसके समकक्ष एक पद होता है एडमिरल ऑफ द फ्लीट। पर भारतीय नौसेना में किसी अधिकारी को यह पद नहीं दिया गया है।

फील्ड मार्शल का पद हमारे देश में ही नहीं कुछ और देशों में भी है। जैसे स्पेनमैक्सिकोपुर्तगाल और ब्राजील में भी है। फ्रांस में इस तरह का रैंक हैजिसे ब्रिगेड कमांड रैंक कहा जाता है। पुराने जमाने में राजा के घुड़सवार दस्ते और सेना के प्रमुख को यह रैंक देने का चलन था। फिर ऐसे लोगों को यह रैंक दिया जाने लगाजिन्होंने युद्ध भूमि में विलक्षण बहादुरी दिखाई या सेना का नेतृत्व करने में सूझ-बूझ का परिचय दिया हो। कई देशों में फील्ड मार्शल जनरल भी कहते हैं। इसी तरह मार्शल ऑफ एयरफोर्स का रैंक भी है। 
राजस्थान पत्रिका के सप्लीमेंट मी नेक्स्ट में प्रकाशित

Tuesday, July 22, 2014

सूर्य प्रातः एवं सायंकाल ही सिंदूरी क्यों दिखाई देता है?

सूर्य प्रातः एवं सायंकाल ही सिंदूरी क्यों दिखाई देता है? दोपहर में क्यों नहीं?
कनुप्रिया शर्मा, जी-24, सुभाष नगर, कुन्हाड़ी, कोटा-324008 (राजस्थान)
आसमान का रंग नीला क्यों?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए पहले यह समझना होगा कि आसमान का रंग नीला या आसमानी क्यों होता है। धरती के चारों ओर वायुमंडल यानी हवा है। इसमें कई तरह की गैसों के मॉलीक्यूल और पानी की बूँदें या भाप है। गैसों में सबसे ज्यादा करीब 78 फीसद नाइट्रोजन है और करीब 21 फीसद ऑक्सीजन। इसके अलावा ऑरगन गैस और पानी है। इसमें धूलराख और समुद्री पानी से उठा नमक वगैरह है। हमें अपने आसमान का रंग इन्हीं चीजों की वजह से आसमानी लगता है। दरअसल हम जिसे रंग कहते हैं वह रोशनी है। रोशनी वेव्स या तरंगों में चलती है। हवा में मौजूद चीजें इन वेव्स को रोकती हैं। जो लम्बी वेव्स हैं उनमें रुकावट कम आती है। वे धूल के कणों से बड़ी होती हैं। यानी रोशनी की लालपीली और नारंगी तरंगें नजर नहीं आती। पर छोटी तरंगों को गैस या धूल के कण रोकते हैं। और यह रोशनी टकराकर चारों ओर फैलती है। रोशनी के वर्णक्रम या स्पेक्ट्रम में नीला रंग छोटी तरंगों में चलता है। यही नीला रंग जब फैलता है तो वह आसमान का रंग लगता है। दिन में सूरज ऊपर होता है। वायुमंडल का निचला हिस्सा ज्यादा सघन है। आप दूर क्षितिज में देखें तो वह पीलापन लिए होता है। कई बार लाल भी होता है। सुबह और शाम के समय सूर्य नीचे यानी क्षितिज में होता है तब रोशनी अपेक्षाकृत वातावरण की निचली सतह से होकर हम तक पहुँचती है। माध्यम ज्यादा सघन होने के कारण वर्णक्रम की लाल तरंगें भी बिखरती हैं। इसलिए आसमान अरुणिमा लिए नज़र आता है। कई बार आँधी आने पर आसमान पीला भी होता है। आसमान का रंग तो काला होता है। रात में जब सूरज की रोशनी नहीं होती वह हमें काला नजर आता है। हमें अपना सूरज भी पीले रंग का लगता है। जब आप स्पेस में जाएं जहाँ हवा नहीं है वहाँ आसमान काला और सफेद सूरज नजर आता है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लिए नेताजी शब्द कब, किसने और क्यों इस्तेमाल किया?

रविप्रकाश, एजी-584, शालीमार बाग़, समीप रिंग रोड, दिल्ली-110088
कुछ लोग कहते हैं कि अनुसार सुभाष बोस को सबसे पहले रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने नेताजी का संबोधन दिया। इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। उनके नाम का प्रचलन 1942 में हुआ, जबकि रवीन्द्रनाथ ठाकुर का निधन 1941 में हो गया था। सन 1940 के अंत में सुभाष बोस के मन में देश के बाहर जाकर स्वतंत्रता दिलाने की योजना तैयार हो चुकी थी। वे पेशावर और काबुल होते हुए इतालवी दूतावास के सहयोग से अनेक 28 मार्च 1941 को बर्लिन (जर्मनी) पहुँचे। बर्लिन में उन्होंने स्वतंत्र भारत केन्द्र की स्थापना की। यहाँ उन्होंने सिंगापुर तथा उत्तर अफ्रीका से लाए गए भारतीय युद्धबंदियों को एकत्र करके सैनिक दल का गठन किया। इस सैनिक दल के सदस्य सुभाष को ‘नेताजी’ के नाम से संबोधित करते थे। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि हिटलर ने उन्हें यह संबोधन दिया। पर भारतीय नाम नेताजी तो कोई भारतीय ही दे सकता है। सुभाष ने नियमित प्रसारण हेतु आज़ाद हिंद रेडियो की शुरुआत करवाई। अक्तूबर 1941 से इसका प्रसारण प्रारम्भ हुआ, यहाँ से भारतवासियों तथा पूर्वी एशिया के भारतीयों के लिए अंग्रेजी, हिन्दुस्तानी, बांग्ला, तमिल, तेलुगु, फ़ारसी व पश्तो इन सात भाषाओं में संस्था की गतिविधियों का प्रसारण किया जाता था। उधर फरवरी 1942 में अंग्रेज सेना ने सिंगापुर में जापानी सैनिकों के समक्ष आत्मसमर्पण किया। इनमें भारतीय सेना के अधिकारी और पाँच हज़ार सैनिक थे जिन्हें जापानी सेना ने बंदी बना लिया था। इन्हीं सैनिकों ने आजाद हिंद फौज तैयार की। सुभाष जर्मनी बोस को तार भेजकर जर्मनी से पूर्वी एशिया में आकर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का नेतृत्व स्वीकार करने हेतु बुलाया गया। 8 फरवरी 1943 को जर्मनी से आबिद अली हसन के साथ एक पनडुब्बी में सवार होकर 90 दिन की खतरनाक यात्रा कर 6 मई को सुमात्रा के पेनांग फिर वहाँ से 16 मई 1943 को तोक्यो पहुँचे। 21 जून 1943 को नेताजी ने तोक्यो रेडियो से भाषण दिया। देश का सबसे प्रसिद्ध नारा जैहिन्द नेताजी ने ही दिया था।


दामोदर घाटी निगम के विषय में विस्तार से जानकारी दीजिए।
अशोक कुमार ठाकुर, ग्राम-मालीटोल, पोस्ट-अदलपुर, जिला-दरभंगा (बिहार)
दामोदर घाटी निगम देश की पहली बहु उद्देश्यीय नदी घाटी परियोजना है। यह निगम 7 जुलाई, 1948 को अस्तित्व में आया। दामोदर नदी तत्कालीन बिहार जो अब झारखंड है और पश्चिम बंगाल से होकर तकरीबन 25,000 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैली है। दामोदर नदी झारखंड के लोहरदगा और लातेहार जिले की सीमा पर बसे बोदा पहाड़ के चूल्हापानी नामक स्थान से निकलकर पश्चिम बंगाल के गंगा सागर से कुछ पहले गंगा में हुगली के पास मिलती है। झारखंड में इसकी लंबाई करीब 300 किलोमीटर और पश्चिम बंगाल में करीब 263 किलोमीटर है। दामोदर बेसिन का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 16,93,380 हेक्टेयर है।
आजादी के पूर्व इस नदी को 'बंगाल का शोक' कहा जाता था। झारखंड में यह नदी पहाड़ी और खाईनुमा स्थलों से होकर गुजरती है लेकिन बंगाल में इसे समतल भूमि से गुजरना पड़ता है। बाढ़ आने पर झारखंड को तो खास नुकसान नहीं होता था, लेकिन बंगाल में इसके आसपास की सारी फसलें बरबाद हो जाती थी। 1943 में आई भयंकर बाढ़ ने बंगाल को हिलाकर रख दिया। इस स्थिति से निपटने के लिए वैज्ञानिक मेघनाथ साहा की पहल पर अमेरिका की 'टेनेसी वैली अथॉरिटी' के तर्ज पर 'दामोदर घाटी निगम' की स्थापना की गई। इसके बाद पश्चिम बंगाल का प्रभावित इलाका जल प्रलय से मुक्त होकर उपजाऊ जमीन में परिवर्तित हो गया। झारखंड में इसी नदी पर चार बड़े जलाशयों के निर्माण के बाद यहां विस्थापन की समस्या तो बढ़ी ही ,उपयोगी व उपजाऊ जमीन डूब गई। इस नदी के दोनों किनारे अंधाधुंध उद्योगों का विकास हुआ और इससे नदी का जल प्रदूषित होने लगा। नदी को नियंत्रित करने की योजना अंग्रेजी शासन काल में ही बन गई थी। अप्रैल 1947 तक योजना के क्रियान्वयन के लिए केन्द्रीय, पश्चिम बंगाल तथा बिहार सरकारों के बीच करार हो गया था। मार्च 1948 में दामोदर घाटी निगम के गठन के उद्देश्य हेतु भारत सरकार, पश्चिम बंगाल सरकार और बिहार (अब झारखंड) की संयुक्त सहभागिता को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय विधानमंडल ने दामोदर घाटी निगम अधिनियम (1948 ) पास किया। इस योजना के प्राथमिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं- बाढ़ नियंत्रण व सिचाई, विद्युत उत्पादन, पारेषण व वितरण, पर्यावरण संरक्षण तथा वनीकरण, दामोदर घाटी के निवासियों का सामाजिक-आर्थिक कल्याण
औद्योगिक और घरेलू उपयोग हेतु जलापूर्ति। कोयला, जल तथा तरल र्इंधन तीनों स्रोतों से बिजली पैदा करने वाला भारत सरकार का यह पहला संगठन है। मैथन में भारत का पहला भूमिगत पन बिजली केन्द्र है।

बंदूक चलाने पर पीछे की तरफ झटका क्यों लगता है?
परी चतुर्वेदी. ए-1103, आईडीपीएल कॉलोनी, ऋषिकेश-249201 (उत्तराखंड)
न्यूटन का गति का तीसरा नियम है कि प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है। जब बंदूक की गोली आगे बढ़ती है तब वह पीछे की ओर भी धक्का देती है। गोली तभी आगे बढ़ती है जब बंदूक का बोल्ट उसके पीछे से प्रहार करता है। इससे जो शक्ति जन्म लेती है वह आगे की और ही नहीं जाती पीछे भी जाती है। तोप से गोला दगने पर भी यही होता है। आप किसी हथौड़े से किसी चीज पर वार करें तो हथौड़े में भी पीछे की और झटका लगता है।

रेव पार्टी शब्द आजकल खासा प्रचलन में है। यह शब्द किस अर्थ में आता है?
धीरज कुमार, 38, बैचलर्स आश्रम, निकट आईटी कॉलेज, निराला नगर, लखनऊ-226020
अंग्रेजी शब्द रेव का मतलब है मौज मस्ती। टु रेव इसकी क्रिया है यानी मस्ती मनाना। पश्चिमी देशों में भी यह शब्द बीसवीं सदी में ही लोकप्रिय हुआ। ब्रिटिश स्लैंग में रेव माने वाइल्ड पार्टी। इसमें डिस्क जॉकी, इलेक्ट्रॉनिक म्यूज़िक का प्राधान्य होता है। अमेरिका में अस्सी के दशक में एसिड हाउस म्यूज़िक का चलन था। रेव पार्टी का शाब्दिक अर्थ हुआ 'मौज मस्ती की पार्टी'। इसमें ड्रग्स, तेज़ पश्चिमी संगीत, नाचना, शोर-गुल और सेक्स का कॉकटेल होता है। भारत में ये मुम्बई, दिल्ली से शुरू हुईं। अब छोटे शहरों तक पहुँच गई हैं, लेकिन नशे के घालमेल ने रेव पार्टी का उसूल बदल दिया है। पहले यह खुले में होती थीं अब छिपकर होने लगी हैं।

महामहिम और महामना शब्द से क्या तात्पर्य है?
एसपी बिस्सा, एफ-250, मुरलीधर व्यास नगर, भैरव मंदिर के पास, बीकानेर-334004 (राजस्थान)
शब्दकोश के अनुसार महामना (सं.) [वि.] बहुत उच्च और उदार मन वाला; उदारचित्त; बड़े दिलवाला। [सं-पु.] एक सम्मान सूचक संबोधन। और महामहिम (सं.) [वि.] 1. जिसकी महिमा बहुत अधिक हो; बहुत बड़ी महिमा वाला; महामहिमायुक्त 2. अति महत्व शाली। [सं-पु.] एक सम्मान सूचक संबोधन। आधुनिक अर्थ में हम राजद्वारीय सम्मान से जुड़े व्यक्तियों को महामहिम कहने लगे हैं। मसलन राष्ट्रपति और राज्यपालों को। अब तो जन प्रतिनिधियों के लिए भी इस शब्द का इस्तेमाल होने लगा है। इस शब्द से पुरानी सामंती गंध आती है और शायद इसीलिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को अपने पदनाम से पहले 'महामहिम ' जोड़ना पसंद नहीं है, इसलिए पिछले कुछ समय से उनके कार्यक्रमों से जुड़े बैनर,पोस्टर या निमंत्रण पत्रों में 'महामहिम' नहीं लिखा गया। यहाँ तक, कि उनके स्वागत-सम्मान वाले भाषणों में भी 'महामहिम' संबोधन से परहेज किया गया। अंग्रेजी में भी उनके नाम से पहले 'हिज़ एक्सेलेंसी' नहीं जोड़ा गया। कुछ राज्यपालों ने भी इस दिशा में पहल की है। महामना शब्द के साथ सरकारी पद नहीं जुड़ा है। इसका इस्तेमाल भी ज्यादा नहीं होता। यह प्रायः गुणीजन, उदार समाजसेवियों के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द है और इसका सबसे बेहतरीन इस्तेमाल महामना मदन मोहन मालवीय के लिए होते देखा गया है।

ई-कचरा क्या है? इसका निपटारा कैसे होगा?
सीमा सिंह, ग्रा व पो जलालपुर माफी (चुनार), जनपद-मीरजापुर-231304 (उत्तर प्रदेश)
आपने ध्यान दिया होगा कि घरों से निकलने वाले कबाड़ में अब पुराने अखबारों, बोतल, डिब्बों, लोहा-लक्कड़ के अलावा पुराने कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, सीडी, टीवी, अवन, रेफ्रिजरेटर, एसी जैसे तमाम इलेक्ट्रॉनिक आइटम जगह बनाते जा रहे हैं। पहले बड़े आकार के कम्प्यूटर, मॉनिटर आते थे, जिनकी जगह स्लिम और फ्लैट स्क्रीन वाले छोटे मॉनिटरों ने ले ली है। माउस, की-बोर्ड या अन्य उपकरण जो चलन से बाहर हो गए हैं, वे ई-वेस्ट की श्रेणी में आते हैं। फैक्स, मोबाइल, फोटो कॉपियर, कम्प्यूटर, लैप-टॉप, कंडेंसर, माइक्रो चिप्स, पुरानी शैली के कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, टेलीविजन और इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों तथा अन्य उपकरणों के बेकार हो जाने के कारण इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है। अमेरिका में हरेक घर में साल भर में औसतन छोटे-मोटे 24 इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदे जाते हैं। इन पुराने उपकरणों का फिर कोई उपयोग नहीं होता। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका में कितना इलेक्ट्रॉनिक कचरा निकलता होगा। बदलती जीवन शैली और बढ़ते शहरीकरण के कारण इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का ज्यादा प्रयोग होने लगा है। इससे पैदा होने वाले इलेक्ट्रॉनिक कचरे के दुष्परिणाम से हम बेखबर हैं। ई-कचरे से निकलने वाले रासायनिक तत्त्व लीवर, किडनी को प्रभावित करने के अलावा कैंसर, लकवा जैसी बीमारियों का कारण बन रहे हैं। उन इलाकों में रोग बढ़ने का अंदेशा ज्यादा है जहाँ अवैज्ञानिक तरीके से ई-कचरे की रीसाइक्लिंग की जा रही है। ई-वेस्ट से निकलने वाले जहरीले तत्व और गैसें मिट्टी व पानी में मिलकर उन्हें बंजर और जहरीला बना देते हैं। फसलों और पानी के जरिए ये तत्व हमारे शरीर में पहुंचकर बीमारियों को जन्म देते हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने कुछ साल पहले जब सर्किट बोर्ड जलाने वाले इलाके के आसपास शोध कराया तो पूरे इलाके में बड़ी तादाद में जहरीले तत्व मिले थे, जिनसे वहां काम करने वाले लोगों को कैंसर होने की आशंका जताई गई, जबकि आसपास के लोग भी फसलों के जरिए इससे प्रभावित हो रहे थे।

भारत सहित कई अन्य देशों में हजारों की संख्या में महिला पुरुष व बच्चे इलेक्ट्रॉनिक कचरे के निपटान में लगे हैं। इस कचरे को आग में जलाकर इसमें से आवश्यक धातु आदि भी निकाली जाती हैं। इसे जलाने के दौरान जहरीला धुआँ निकलता है, जो घातक होता है। सरकार के अनुसार 2004 में देश में ई-कचरे की मात्रा एक लाख 46 हजार 800 टन थी जो बढ़कर वर्ष 2012 तक आठ लाख टन से ज्यादा हो गई है। विकसित देश अपने यहाँ के इलेक्ट्रॉनिक कचरे की गरीब देशों को बेच रहे हैं। गरीब देशों में ई-कचरे के निपटान के लिए नियम-कानून नहीं बने हैं।  इस कचरे से होने वाले नुकसान का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसमें 38 अलग प्रकार के रासायनिक तत्व शामिल होते हैं जिनसे काफी नुकसान भी हो सकता है। इस कचरे को आग में जलाकर या तेजाब में डुबोकर इसमें से आवश्यक धातु आदि निकाली जाती है।
यों ई-वेस्ट के सही निपटान के लिए जब तक व्यवस्थित ट्रीटमेंट नहीं किया जाता, वह पानी और हवा में जहर फैलता रहेगा। कुछ समय पहले दिल्ली के एक कबाड़ी बाजार में एक उपकरण से हुए रेडिएशन के बाद इस खतरे की और ध्यान गया है।


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...