Saturday, October 31, 2015

जीत होने पर दो उंगलियाँ ऊँची क्यों करते है?

हाथ की मध्यमा और तरजनी उंगलियों से बनने वाला अंग्रेजी का ‘वी’ विक्ट्री साइन माना जाता है. यानी विजय. पर इसका मतलब केवल विजय ही नहीं सफलता और शांति भी है. अंतरराष्ट्रीय सद्भाव के आंदोलन काउंटर कल्चर ने सन 1960 में इसे शांति के चिह्न के रूप में स्वीकार किया था. हालांकि इसका कोई नियम नहीं है, पर प्रायः हथेली को बाहर की ओर करके जब यह चिह्न बनाया जाता है तब विजय का सकारात्मक और शांतिपूर्ण अर्थ होता है. जब हथेली को भीतर की ओर करके इस निशान को बनाते हैं तब दम्भ और किसी को पराजित करने का भाव माना जाता है.
एक्यूपंक्चर क्या है?कैसे शुरू हुआ?

दर्द से राहत दिलाने या इलाज के लिए शरीर के विभिन्न बिंदुओं में सुई चुभाने और दबाव डालने की प्रक्रिया है एक्यूपंक्चर. दर्द से राहत दिलाने, सर्जरी के दौरान बेहोशी लाने और चिकित्सा प्रयोजनों के लिए शरीर के विशिष्ट क्षेत्रों की परिधीय नसों में सुई छेदने की यह कला प्राचीन चीन में विकसित हुई है. एक्यूपंक्चर की प्रारंभिक लिखित जानकारी ई.पू. दूसरी सदी के चीनी ग्रन्थ शिजी में मिलती है. यह 20वीं सदी के अंत में काफी लोकप्रिय हुआ है. परंपरागत चिकित्सा-शास्त्र के शोधकर्ताओं और आधुनिक वैज्ञानिकों के बीच इसे लेकर सहमति नहीं है. वैकल्पिक चिकित्सा ग्रंथों का कहना है कि एक्यूपंक्चर तकनीक नर्व्स स्नायविक दशाओं के उपचार और दर्द निवारण में प्रभावी हो सकती है. इस पद्धति का मूल विचार यह है कि शारीरिक क्रियाएं एक ऊर्जा द्वारा नियंत्रित होती है, जिसे छी (Qi) कहते हैं. यह पूरे शरीर में प्रवाहित होती है. इसके प्रवाह में बाधा पड़ने पर ही रोग पैदा होते हैं. एक्यूपंक्चर पद्धति त्वचा के नीचे के कुछ बिन्दुओं को सुई से छेद कर छी को प्रवाहित करने में मदद करती है. शास्त्रीय ग्रंथों में शरीर में बारह मुख्य और आठ अतिरिक्त एक्यूपंक्चर बिन्दु बताए गए हैं.

सैटेलाइट फ़ोन क्या होता है और कैसे काम करता है?

सैटेलाइट फ़ोन पृथ्वी की कक्षा में स्थित सैटेलाइटों के ज़रिए काम करता है इसलिए आप चाहे हिमालय पर हों, अंटार्कटिका में या दुनिया के किसी भी कोने में वह हर जगह काम करता है. ऐसे कोई 24 उपग्रह हैं जो पृथ्वी के हर क्षेत्र से जुड़े हैं. अभी तकनीक इतनी विकसित नहीं हो पाई है कि घर के भीतर से आप सैटेलाइट फ़ोन पर बात कर सकें. इसके लिए आपको खुले स्थान में आना पड़ता है और एक डिश की सहायता से उपग्रह का सिग्नल लेना पड़ता है. जैसे ही सिग्नल मिल जाए आप दुनिया के किसी कोने से कहीं भी बात कर सकते हैं.

पेंग्विन किस वर्ग का जीव है?

पेंग्विन एक प्रकार का पक्षी है जो उड़ नहीं पाता, पर काफी समय पानी के अंदर बिता सकता है. इनकी 17 प्रजातियाँ मिलती हैं. पेंग्विन के नाम पर हमें लगता है कि वे सिर्फ अंटार्कटिका के बर्फीले इलाकों में ही मिलते होंगे. ऐसा नहीं है. वे न्यूजीलैंड-ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में भी मिलते हैं.

एक गिलहरी की उम्र कितनी होती है?

गिलहरी की उम्र ज्यादा से ज्यादा छह साल होती है, पर शहर की गिलहरियाँ अक्सर इसके पहले ही मर जाती हैं. मोटर गाड़ियों या दूसरी दुर्घटनाओं में वे जल्दी फंस जाती हैं.


Thursday, October 29, 2015

‘वंस इन अ ब्लू मून’ मुहावरे का मतलब क्या है?

इस मुहावरे का मतलब है बहुत कम होने वाली घटना जैसे ‘ब्लू मून.’ यहाँ ब्लू मून से आशय नीले रंग के चंद्रमा से नहीं है. ब्लू मून का मतलब है साल में एक अतिरिक्त पूर्णमासी का होना. या किसी महीने में एक के बजाय दो पूर्ण चंद्र. इसी तरह एक मौसम में तीन के बजाय चार पूर्ण चंद्र. चूंकि ऐसा बहुत कम होता है इसलिए इसे मुहावरा बना दिया गया जैसे ‘ईद का चाँद.’ सामान्यतः एक कैलेंडर महीने में एक रात ही पूर्ण चंद्रमा दिखाई देता है. चंद्रवर्ष और सौरवर्ष की काल गणना में संगति बैठाने के लिए प्राचीन यूनानी खगोल-विज्ञानी एथेंस के मेटोन ने गणना करके बताया कि 19 साल में 235 चंद्रमास (228 सौरमास) और 6940 दिन होते हैं. इस प्रकार 19 साल का एक मेटोनिक चक्र होता है. आपने देखा कि इन 19 साल में 234 चंद्रमास हैं जबकि कैलेंडर में 228 महीने हैं. इस प्रकार इन 19 साल में (234-228=7) सात अतिरिक्त पूर्णचंद्र होंगे. इस 19 वर्ष की अवधि में यदि किसी साल फरवरी में पूर्णमासी नहीं होती है (जैसाकि सन 2018 में होगा) तब एक ब्लू मून और बढ़ जाता है.

पिछला ब्लू मून 31 जुलाई 2015 को था. आगे की तारीखें इस प्रकार हैं 31 जनवरी, 2018, 31 मार्च, 2018, 31 अक्तूबर, 2020, 31 अगस्त, 2023, 31 मई, 2026, 31 दिसम्बर, 2028, 30 सितम्बर, 2031, 31 जुलाई, 2034. आपने गौर किया कि 31 जुलाई 205 के ठीक 19 साल बाद उसी तारीख यानी 31 जुलाई 2034 को ब्लू मून होगा.

नील आर्मस्ट्रांग ने चन्द्रमा पर अपना कौन सा पैर पहले बाहर रखा?

नील आर्मस्ट्रांग ने पहले बायां पैर बाहर निकाला और चंद्रमा की सतह पर रखा. उनका दायां पैर लैंडिग पैड पर ही था और कहा, "That's one small step for man, one giant leap for mankind." यह बात 21 जुलाई 1969 की है.

विश्व अध्यापक दिवस मनाने का फैसला कब हुआ? भारत में शिक्षक दिवस अलग क्यों है?

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन युनेस्को ने सन 1994 में निर्णय किया कि हर साल 5 अक्टूबर को विश्व अध्यापक दिवस मनाया जाएगा. तबसे यह मनाया जा रहा है. भारत में शिक्षक दिवस मनाने की परम्परा उसके 32 साल पहले ही शुरू हो चुकी थी. सन 1962 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्ट्रपति बने. उस साल उनके कुछ छात्र और मित्र 5 सितम्बर को उनके जन्मदिन का समारोह मनाने के बाबत गए. इस पर डॉ राधाकृष्णन ने कहा, मेरा जन्मदिन यदि शिक्षक दिवस के रूप में मनाओ तो बेहतर होगा. मैं शिक्षकों के योगदान की ओर समाज का ध्यान खींचना चाहता हूँ. और तब से 5 सितम्बर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है.

बच्चों के मंदबुद्धि होने का क्या मतलब है? इसका कारण क्या होता है?

इसके कारणों पर आज भी एक राय नहीं है. चाहे वह जन्मजात कारणों से उत्पन्न हो चाहे रोग अथवा चोट से. स्टेनफर्ड-बिनेट परीक्षण में व्यक्ति की योग्यता देखी जाती है और अनुमान किया जाता है कि उतनी योग्यता कितने वर्ष के बच्चे में होती है. इसको उस व्यक्ति की मानसिक आयु कहते हैं. उदाहरणतः यदि शरीर के अंगों के स्वस्थ रहने पर भी कोई बालक अपने हाथ से सफाई के साथ नहीं खा सकता, तो उसकी मानसिक आयु चार वर्ष मानी जा सकती है. यदि उस व्यक्ति की साधारण आयु 16 वर्ष है तो उसका बुद्धि गुणांक (इंटेलिजेंस कोशेंट, स्टेनफर्ड-बिनेट) 4/16X 100, अर्थात् 25, माना जाएगा. इस गुणांक के आधार पर अल्पबुद्धि को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है. यदि यह गुणांक 20 से कम है तो व्यक्ति को मूढ़ (अंग्रेजी में ईडियट) कहा जाता है; 20 और 50 के बीच वाले व्यक्ति को न्यूनबुद्धि (इंबेसाइल) कहा जाता है और 50 से 70 के बीच दुर्बलबुद्धि (फ़ीबुल माइंडेड), परंतु यह वर्गीकरण अनियमित है, क्योंकि अल्पबुद्धिता अटूट रीति से उत्तरोत्तर बढ़ती है. मंदबुद्धि के कारणों का पता नहीं है. आनुवंशिकता (हेरेडिटी) तथा गर्भावस्था अथवा जन्म के समय अथवा बचपन में रोग अथवा चोट संभव कारण समझे जाते हैं. गर्भावस्था में माता को बीमारी या माता-पिता के रुधिरों में परस्पर विषमता के कारण भी ऐसा हो सकता है.

गोलमेज वार्ता क्या होती है?
गोलमेज वार्ता जैसा नाम है वह बताता है काफी लोगों की बातचीत जो एक-दूसरे के आमने सामने हों. अंग्रेजी में इसे राउंड टेबल कहते हैं, जिसमें गोल के अलावा यह ध्वनि भी होती है कि मेज पर बैठकर बात करना. यानी किसी प्रश्न को सड़क पर निपटाने के बजाय बैठकर हल करना. अनेक विचारों के व्यक्तियों का एक जगह आना. माना जाता है कि 12 नवम्बर 1930 को जब ब्रिटिश सरकार ने भारत में राजनीतिक सुधारों पर अनेक पक्षों से बातचीत की तो उसे राउंड टेबल कांफ्रेस कहा गया. इस बातचीत के कई दौर हुए थे. मेज का आकार यों तो कैसा भी हो सकता है, पर गोल रखने पर सभी पक्ष आमने-सामने आ जाते हैं.

प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

Monday, October 26, 2015

बन रहे हैं रात में रोशनी देने वाले या चमकने वाले पेड़-पौधे

कुछ समय पहले अमेरिका और हॉलैंड के कुछ वैज्ञानिकों ने चमकदार पौधे बनाने का अभियान शुरू किया है। वे कामयाब रहे तो जल्द ही दुनिया की सड़कों पर बिजली के खंभों के स्थान पर रोशनी देने वाले पेड़ नजर आएंगे। वैज्ञानिकों ने जुगनू और इस तरह के रात में चमकने वाले जीव-जंतुओं के जीन पौधों में डाल दिए हैं। वैज्ञानिकों टीम ने पहले जीनोम कंप्लायर सॉफ्टवेयर से पौधे के डीएनए की पहचान की। इसके बाद आर्बीडोपसिस पौधे में जीन मिलाए गए। पौधों में जगमग उत्पन्न करने वाले जीन सिमेंस को 'लुसिफेरास' कहते हैं। जुगनू में इसी जीन सिमेंस से रोशनी पैदा होती है। जुगनुओं, जेली फिश व कुछ बैक्टीरिया के जीन में 'लुसिफेरास' नामक प्रोटीन एन्जाइम होता है। वैज्ञानिकों ने पहले इन जीवों से तकनीक की सहायता से खास किस्म का प्रोटीन एन्जाइम हासिल किया। फिर जेनोम कम्पाइलर नामक सॉफ्टवेयर बनाकर यह जांचा गया कि पौधे इस जीन को ग्रहण कर पाएंगे या नहीं। इसके बाद कई पौधों पर प्रयोग कर किया। अंतत: कुछ ऐसे पौधे बनाने में सफलता मिली है जो रात में चमकते हैं। पेड़-पौधों के बाद वैज्ञानिक चमकने वाले पक्षी बनाने का प्रयास भी कर रहे हैं।

इसके बारे में कुछ और जानकारी यहाँ से हासिल करें http://www.iflscience.com/plants-and-animals/bioluminscent-trees-could-light-our-streets

ओलंपिक के झंडे में कितने रिंग होते हैं और क्यों होते हैं?
इन पुराने खेलों की परम्परा में आधुनिक खेलों को जन्म देने का श्रेय फ्रांस के शिक्षाशास्त्री पियरे द कूबर्तिन को जाता है। आज चार तरीके के ओलिम्पिक खेल होते हैं। एक गर्मियों के ओलिम्पिक, दूसरे सर्दियों के ओलिम्पिक, एक पैरालिम्पिक, यानी शारीरिक रूप विकल खिलाड़ियों के ओलिम्पिक और एक यूथ ओलिम्पिक। ओलिम्पिक खेलों का सूत्रवाक्य है सिटियस, एल्टियस, फोर्टियस। इन लैटिन शब्दों का अंग्रेजी में अर्थ है फास्टर, हायर एंड स्ट्रांगर। माने तीव्रतर, उच्चतर और दृढ़तर। यानी नई से नई सीमाएं पार करो।

ओलिम्पिक खेलों का प्रतीक चिह्न है पाँच रंगों के पाँच वृत्त जो एक-दूसरे से जुड़े हैं। सफेद पृष्ठभूमि पर नीले, पीले, काले, हरे और लाल रंग के पाँच वृत्त दुनिया के पाँच महाद्वीपों प्रतिनिधित्व भी करते हैं। इन वृत्तों की रचना स्वयं कूर्बतिन ने 1912 में की थी, पर इन्हें आधिकारिक रूप से ओलिम्पिक चिह्न बनाने में समय लगा और पहली बार 1920 के एंटवर्प खेलों में इन्हें ओलिम्पिक ध्वज में जगह मिली। इस झंडे को आज भी एंटवर्प फ्लैग कहा जाता है।

जंतर-मंतर का निर्माण क्यों किया गया? क्या दिल्ली के अलावा यह कहीं और भी है?
जंतर-मंतर वेधशाला है। यानी अंतिरिक्षीय घटनाओं के निरीक्षण का स्थान। दिल्ली में इसका निर्माण सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1724 में करवाया था। यह इमारत प्राचीन भारतीय अंतरिक्षीय ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के समन्वय का अच्छा उदाहरण है। जय सिंह ने ऐसी वेधशालाओं का निर्माण जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में भी किया था। ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं। सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से वक्त और ग्रहों की स्थिति की जानकारी देता है। मिस्र यंत्र वर्ष के सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन को नाप सकता है। राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताता है।

रेलगाड़ी या बस में चलते हुए हमें बिजली के तार ऊपर-नीचे होते हुए क्यों नजर आते हैं?
तार तो अपनी जगह पर ही होते हैं, पर धरती की सतह पर वे समान ऊँचाई पर नहीं होते। सामान्य स्थिति में या धीरे-धीरे चलने पर हमें उनके उतार-चढ़ाव का ज्ञान नहीं हो पाता। हम तेज गति से चलते हैं तो उन तारों का ऊँच नीच हमें तेजी से दिखाई पड़ता है।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

अंपायर और रैफरी में क्या अंतर है?


अंपायर तथा रैफरी के मध्य अगर अंतर है तो वह क्या है?
एम.पी. वर्मा, एम.आई.जी-11, पदमनाभपुर, दुर्ग-491004 (छत्तीसगढ़) 


यह केवल खेल की शब्दावली का मामला है। इसका कोई सीधा कारण नहीं है। कुछ खेलों में जज भी होते हैं। खेल के विकास के साथ जो शब्द इस्तेमाल में आया वह चलता चला गया। मूलतः निर्णायक यह दो स्पर्धियों के बीच तटस्थ भाव से निर्णय तक पहुँचने में मददगार व्यक्ति रैफरी या अंपायर होते हैं। एक धारणा है कि हॉकी और फुटबॉल जैसे कॉण्टैक्ट गेम्स में रैफरी और क्रिकेट या बेसबॉल जैसे नॉन कॉण्टैक्ट गेम्स में, जिनमें खिलाड़ी एक-दूसरे से सीधे नहीं भिड़ते अंपायर होते हैं। पर यह बात भी पूरी तरह किसी एक खेल पर लागू नहीं होती। लॉन टेनिस में कुर्सी पर बैठने वाले अंपायर और लाइन पर खड़े रैफरी होते हैं। अमेरिकन फुटबॉल, जो हमारे देश में खेली जाने वाली फुटबॉल से अलग होती है रैफरी के साथ-साथ अंपायर भी होते हैं। इसी तरह क्रिकेट में जब अम्पायरों के अलावा एक और निर्णायक की जरूरत हुई तो उसे मैच रेफरी कहा गया। यह अंतर काम के आधार पर है और हरेक खेल के साथ बदलता रहता है।

नाटक को आगे बैठकर और फिल्म को पीछे बैठकर क्यों देखा जाता है?
अंशुला अग्रवाल, जैसमीनियम अपार्टमेंट्स, सेक्टर-45, फ्लैट नं.: 505, देहली पब्लिक स्कूल के पीछे, गुड़गांव-122003 (हरियाणा)


नाटक में आगे बैठे दर्शक अभिनेताओं की भाव-भंगिमा को बेहतर ढंग से देख सकते हैं। उनके संवाद भी आगे से ज्यादा आसानी से सुने जाते हैं। इसलिए रंगमंच में आगे की सीटें बेहतर मानी जाती हैं। सिनेमा के बड़े प्रेक्षागृह में दूर तक बैठे सभी दर्शकों तक तस्वीर और आवाज पहुँचाने के लिए जो व्यवस्था की जाती है, उसमें आगे बैठने वाले दर्शकों को पर्दे की तेज रोशनी, अस्वाभाविक रूप से बड़े चित्र और तेज आवाज मिलती है। यह असुविधाजनक होता है, इसलिए सिनेमा हॉल में पीछे की सीटें बेहतर मानी जाती हैं।

स्वतंत्रता के बाद पहले आम चुनाव में कितनी राजनीतिक पार्टियाँ मान्यता प्राप्त थीं। अब इनकी संख्या कितनी है?
कविता जैन, 19 अबुल फजल रोड, बंगाली मार्केट, नई दिल्ली-110001


सन 1951 के चुनाव में हमारे यहाँ 14 राष्ट्रीय और 39 अन्य मान्यता प्राप्त पार्टियाँ थीं। सन 2009 के लोकसभा चुनाव में 363 पार्टियाँ उतरीं थीं। इनमें 7 राष्ट्रीय, 34 प्रादेशिक और 242 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियाँ थीं। सन 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले चुनाव आयोग की 10 मार्च 2014 की अधिसूचना के अनुसार देश में मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय पार्टियों की संख्या 6 थी और राज्य स्तर की मान्यता प्राप्त पार्टियों की संख्या 53 थी। इनके अलावा पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों की संख्या 1593 थी।

कार्बन कॉपी की शुरुआत कब, क्यों और किसलिए हुई। इनके दैनिक जीवन में प्रयोग के बारे में बताइए?
मेवा लाल शर्मा, ग्राम: बीमापार हडवरिया चौक, पोस्ट: मेहदावल, जिला: संत कबीर नगर-272271


कार्बन कॉपी का मतलब है किसी दस्तावेज को तैयार करते वक्त उसके नीचे कार्बन पेपर लगाकर उसकी एक और प्रति तैयार करना। कार्बन का आविष्कार एक दौर तक दुनिया का महत्वपूर्ण आविष्कार था और उस जमाने में कार्बन पेपर को, जिसे कार्बोनेटेड पेपर भी कहते थे, स्टेशनरी में सबसे महत्वपूर्ण स्थान मिला हुआ था। हाथ से लिखने में और बाद में टाइपराइटर के इस्तेमाल के कारण कार्बन पेपर ने कम से कम दो सदी तक दुनिया पर राज किया। इस पेपर का आविष्कार इंग्लैंड के रैल्फ वैजवुड ने किया था। इसके लिए उन्होंने सन 1806 में पेटेंट हासिल किया था। उन्होंने इस पेपर को स्टाइलोग्रैफिक राइटर कहा। सन 1808 में इटली के पैलेग्रीनो तुर्री ने टाइपराइटिंग मशीन की ईज़ाद कर ली थी। टाइप मशीन में लगाने के लिए उन्होंने इसी किस्म के पेपर की ईजाद कर ली थी। वस्तुतः उन्होंने और वैजवुड ने भी नेत्रहीनों की लिखने में मदद करने के लिए आस तरह के कागज को बनाया था जो बाद में दस्तावेजों की प्रतियाँ बनाने के काम में आया। कागज के एक तरफ स्याही लगाकर उसे सुखाया। फिर किसी तख्ती पर नीचे कागज और उसके ऊपर कार्बन पेपर लगाकर और धातु की पट्टियों या तार क्षैतिज लगाकर उनके बीच धातु के या सैकड़ों साल से चले आ रहे परम्परागत कलम यानी पक्षियों के पंख के पीछे वाले कड़े हिस्से की मदद से नेत्रहीनों से लिखवाना उनका उद्देश्य था। तकरीबन यह योजना टाइपिंग मशीन में थी। पैलेग्रीनो तुर्री की प्रेमिका युवावस्था में किसी कारण से अपनी आँखें खो बैठी थी। उसकी मदद करने के प्रयास में यह मशीन बनी। इस प्रक्रिया में कार्बन पेपर भी तैयार हो गया।


कादम्बिनी के अक्तूबर 2015 अंक में प्रकाशित

Sunday, October 25, 2015

साबुन शब्द कहाँ से आया?

साबुन शब्द किस भाषा का है और इसका शाब्दिक अर्थ क्या होता है?
38, बैचलर्स आश्रम, निकट आईटी कॉलेज, निराला नगर, लखनऊ-20 (उ.प्र.)
हिन्दी शब्दों के मूल पर शोध करने वाले अजित वडनेरकर के अनुसार साबुन शब्द मूलतः यूरोपीय भाषाओं में इस्तेमाल होने वाला शब्द है। माना जाता है कि दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में साबुन शब्द पुर्तगालियों की देन है। एशिया-अफ्रीका-यूरोप में इसके साबू, साबन, साबुन, सेबॉन, सेवन, सोप, साबौन, सैबुन, सबुनी आदि रूप मिलते हैं जो भारत की तमाम भाषाओं सहित अरब, इराक, ईरान, मलेशिया, श्रीलंका, सिंगापुर, कम्बोडिया, जावा और जापान आदि क्षेत्रों की विभिन्न बोलियों में प्रचलित हैं। उनके अनुसार दक्षिण-पूर्वी एशिया में चाहे साबुन शब्द पुर्तगालियों के जरिए पहुंचा होगा परंतु भारत में इसके पीछे पुर्तगाली नहीं रहे होंगे। यह मानने का कारण है कबीर का यह दोहा- निन्दक नियरे राखिए, आँगन कुटी छबाय। बिन पानी साबुन बिना, निरमल करै सुभाय।।

भारत में वास्को डी गामा पहला पुर्तगाली माना जाता है जो 1498 में कालीकट के तट पर उतरा था। जबकि कबीर का जन्म इससे भी सौ बरस पहले 1398 का माना जाता है। कुछ विद्वान उन्हें 1440 की पैदाइश भी मानते हैं तो भी साफ है कि पुर्तगालियों के आने से पहले कबीर साबुन शब्द का प्रयोग कर चुके थे। कबीर के वक्त तक हिन्दी में अरबी-फारसी शब्द घुल-मिल चुके थे। लगता है कि हिन्दी में साबुन शब्द अरबी-फारसी के रास्ते आया है।  

साबुन के मूल रूप में एक शब्द सोप भी है जो अंग्रेजी का है। यह पुरानी अंग्रेजी में सेप था। प्रोटो जर्मेनिक में सेपॉन, डच में ज़ीप। इसमें धुलाई, धार, टपकना आदि भाव समाए थे। फ्रेंच में इसका रूप है सेवन। लैटिन में इसका रूप हुआ सैपो-सैपोनिस। अर्थ है खिज़ाब या हेयर डाई। लैटिन से यह शब्द ग्रीक में बना सैपोन। इतालवी में सैपोन और स्पेनिश में जबॉन बना। अरबी में बना साबुन और हिब्रू में सैबोन। पुर्तगाली में लैटिन से गया सैपो शब्द सबाओ बना। भारत की पश्चिमी तटवर्ती भाषाओं कन्नड़ कोंकणी, मराठी, गुजराती में इसके सबाओ, साबू, सबू जैसे रूप भी हैं जो इस इलाके पर पुर्तगाली प्रभाव बताते हैं। शेष भारत में अरबी रूप साबुन ही प्रचलित हुआ। अरबों से भारत के कारोबारी रिश्ते काफी पुराने हैं, पर साबुन शब्द संस्कृत ने ग्रहण नहीं किया।

विनोबा भावे के बारे में कृपया विस्तार से बताइए? उनके योगदान को युवा पीढ़ी कितना विश्लेषण कर आत्मसात कर पाई है?
अशोक कुमार ठाकुर, ग्राम: मालीटोल, पोस्ट: अदलपुर, जिला: दरभंगा (बिहार)
आचार्य विनोबा भावे (11 सितम्बर 1895 - 15 नवम्बर 1982) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता तथा महात्मा गांधी के अनुयायी थे। स्वतंत्रता के बाद चलाए गए भूदान आंदोलन के लिए उन्हें खासतौर से याद किया जाता है। उनका मूल नाम विनायक नरहरि भावे था। नरहरि उनके पिता का नाम था। विनोबा नाम गांधी जी ने दिया था। महाराष्ट्र में नाम के पीछे ‘बा’ लगाने का चलन है। वैसे ही जैसे तुकोबा, विठोबा और विनोबा। विनोबा ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष पुनार, महाराष्ट्र के आश्रम मे गुजारे।
महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में उनका पैतृक गाँव है, गागोदा। 1915 में उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की। उन दिनों इंटर की परीक्षा के लिए मुंबई जाना पड़ता था। विनोबा 25 मार्च 1916 को मुंबई जाने वाली रेलगाड़ी में सवार हुए। उस समय उनका मन डांवांडोल था। पूरा विश्वास था कि परीक्षा पास कर ही लेंगे, पर उसके बाद क्या? जब गाड़ी सूरत पहुंची, विनोबा उससे नीचे उतर आए। दूसरे प्लेटफॉर्म पर पूर्व की ओर जाने वाली रेलगाड़ी खड़ी थी।
विनोबा को लगा कि हिमालय उन्हें आमंत्रित कर रहा है। हिमालय की ओर यात्रा के बीच में काशी का पड़ाव आया। जिन दिनों विनोबा सत्यान्वेषण के लिए काशी में भटक रहे थे, उन्हीं दिनों भारत को पहचानने और उससे आत्मीयता का रिश्ता कायम करने के लिए दक्षिण अफ्रीका से भारत आए महात्मा गांधी देश का भ्रमण करने निकले थे। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हुए एक सम्मेलन में गांधी जी ने धनवानों से कहा कि अपने धन का सदुपयोग राष्ट्र निर्माण के लिए करें। उसको गरीबों के कल्याण में लगाएं। यह क्रांतिकारी अपील थी। विनोबा ने समाचारपत्र के माध्यम से गांधी जी के बारे में जाना। उन्हें लगा कि जिस लक्ष्य की खोज में वे घर से निकले हैं, वह पूरी हुई।
उन्होंने गांधी जी के नाम पत्र लिखा। जवाब आया। गांधी जी के आमंत्रण के साथ। वे अहमदाबाद स्थित गांधी जी के कोचरब आश्रम की ओर रवाना हो गए। 7 जून 1916 को विनोबा की गांधी से पहली भेंट हुई। उसके बाद वे गांधी जी के ही होकर रह गए। बाद में गांधी जी ने उन्हें वर्धा आश्रम में भेजा। बहुत ज्यादा काम करने के कारण जब उनका स्वास्थ्य गिरने लगा और किसी पहाड़ी स्थान पर जाने की डाक्टर ने सलाह दी, तब 1937 में वे पवनार आश्रम में गए। तब से जीवन पर्यन्त उनका यही केन्द्रीय स्थान रहा।
विनोबा ने सन 1951 में भूदान आंदोलन शुरू किया। यह स्वैच्छिक भूमि सुधार आन्दोलन था। वे चाहते थे कि भूमि का पुनर्वितरण केवल सरकारी कानूनों के जरिए नहीं हो, बल्कि एक आंदोलन के माध्यम से इसकी कोशिश की जाए। उन्होंने सर्वोदय समाज की स्थापना की। 18 अप्रैल 1951 को जमीन का पहला दान मिला था। उन्हें यह जमीन तेलंगाना क्षेत्र में स्थित पोचमपल्ली गांव में मिली थी। विनोबा पदयात्राएं करते और गांव-गांव जाकर बड़े भूस्वामियों से अपनी जमीन का कम से कम छठा हिस्सा भूदान के रूप में भूमिहीनों के बीच बांटने के लिए देने का अनुरोध करते थे। तब पांच करोड़ एकड़ जमीन दान में हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था जो भारत में 30 करोड़ एकड़ जोतने लायक जमीन का छठा हिस्सा था। मार्च 1956 तक दान के रूप में 40 लाख एकड़ से भी अधिक जमीन बतौर दान मिल चुकी थी। पर इसके बाद आंदोलन का बल बिखरता गया।

विनोबा ने जब देख लिया कि वृद्धावस्था ने उन्हें आ घेरा है तो उन्होंने अन्न-जल त्याग दिया। उन्होंने कहा, मृत्यु का दिवस विषाद का नहीं उत्सव का दिवस है। उन्होंने अपनी मृत्यु के लिए दीपावली दिन चुना। अन्न जल त्यागने के कारण एक सप्ताह के अन्दर 15 नवम्बर 1982 को  वर्धा में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। युवा वर्ग ने उनकी शिक्षा को कितना आत्मसात किया, कहना मुश्किल है। लगता है काफी लोगों का उनके जीवन से परिचय भी नहीं है।
कादम्बिनी के सितम्बर 2015 अंक में प्रकाशित

सीबीआई की स्थापना कब और किसने की?

सीबीआई भारत सरकार की प्रमुख जाँच एजेंसी है. यह आपराधिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हुए भिन्न-भिन्न प्रकार के मामलों की जाँच करने के लिये लगाई जाती है. इसके अधिकार एवं कार्य दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापन अधिनियम (Delhi Special Police Establishment Act), 1946 से परिभाषित हैं. इसकी शुरुआत भारत सरकार द्वारा 1941 में स्थापित विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (एस्टेब्लिशमेंट) से हुई है. उस समय विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का काम द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय युद्ध और आपूर्ति विभाग में घूसखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करना था. विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का अधीक्षण युद्ध विभाग के जिम्मे था. युद्ध समाप्ति के बाद भी, केन्द्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा घूसखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने हेतु एक केन्द्रीय सरकारी एजेंसी की जरूरत महसूस की गई. इसीलिए 1946 में दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान अधिनियम लागू किया गया. इस अधिनियम के द्वारा विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का अधीक्षण गृह विभाग को हस्तांतरित हो गया और इसके कामकाज को विस्तार करके भारत सरकार के सभी विभागों को कवर कर लिया गया. विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान का क्षेत्राधिकार सभी संघ राज्य क्षेत्रों तक विस्तृत कर दिया गया और सम्बन्धित राज्‍य सरकार की सहमति से राज्यों तक भी इसका विस्तार किया जा सकता था. दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्‍ठान को इसका नाम सीबीआई 1 अप्रेल 1963 को मिला. 

क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप कौन सा है?

यदि आपका आशय महाद्वीप से नहीं है तब ग्रीनलैंड सबसे बड़ा द्वीप है जिसका क्षेत्रफल 21,30,800 वर्ग किलोमीटर है. इसके बाद न्यूगिनी है जिसका क्षेत्रफल 7,85, 753 वर्ग किलोमीटर है. इसके बाद बोर्नियो और मैडागास्कर द्वीप हैं. सबसे छोटे महाद्वीप ऑस्ट्रेलिया का क्षेत्रफल 76,00,000 वर्ग किलोमीटर है.

दुनिया का सबसे छोटा शहर कौन सा है और उसका क्षेत्रफल क्या है?

वैटिकन सिटी दुनिया का सबसे छोटा देश होने के साथ-साथ सबसे छोटा शहर भी है. क्षेत्रफल .44 वर्ग किलोमीटर. आबादी 1000 से भी कम. इसके अलावा उत्तर पूर्वी क्रोआसिया का हुम (Hum) शहर भी इस श्रेणी में रखा जा सकता है. सन 2001 की जनगणना में इस शहर की आबादी 17 थी. इसे आधिकारिक रूप से शहर की श्रेणी में रखा जाता है.

रेलवे की छोटी और बड़ी लाइन में क्या अंतर है?
भारतीय रेलवे में तीन तरह की पटरियां बिछी हुई हैं, ये हैं- बड़ी लाइन (Broad guage) 1.67 मीटर 5 फुट 6 इंच. छोटी लाइन (Meter guage) 1.00 मीटर 3 फुट सवा तीन इंच, संकरी लाइन (Narrow guage)76.2 सेमी दो फुट 6 इंच. 61 सेमी दो फुट. इनमें से बड़ी लाइन की पटरियों का संजाल भारत के अधिकांश हिस्सों में फैला हुआ है. अधिकतर गा‍ड़ियां इसी पटरी पर चलती हैं. छोटी लाइन की पटरियां अब धीरे-धीरे कम होती जा रही हैं. शिमला, ऊटी, कांगड़ा, माथेरान में नैरो गेज गाड़ियाँ चलतीं हैं.

विश्व में अंग्रेजी बोलने वाले कितने देश हैं? विश्व के कुल कितने प्रतिशत लोग अंग्रेजी बोलते हैं? इस मामले में हिंदी का स्थान कौन सा है?
इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड अंग्रेजी बोलने वाले सबसे प्रमुख देश ये हैं. इनके अलावा दक्षिण एशिया के भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश में काफी अंग्रेजी बोली जाती है. दुनिया में लगभग 100 करोड़ लोग अंग्रेजी बोलते हैं. 115 करोड़ लोग चीनी बोलते हैं. दुनिया की आबादी लगभग सात अरब है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है. भारत में हिन्दी बोलने वालों की संख्या 2001 की जनगणना के अनुसार 42 करोड़ से ऊपर थी. 2011 की जनगणना के भाषा से जुड़े आँकड़े अभी जारी नहीं हुए हैं. बहरहाल मोटे तौर पर 60 करोड़ से ज्यादा हिन्दी भाषी हैं. भारत और पाकिस्तान के उर्दू भाषियों को इसमें जोड़ लें तो वैश्विक स्तर पर यह संख्या 100 करोड़ के आसपास पहुँचेगी. भारत के बाहर भी तकरीबन दो करोड़ लोग हिन्दी बोलते हैं.प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

Monday, October 12, 2015

जिस तरह माउंट एवरेस्ट दुनिया की सबसे ऊंची जगह है, उसी तरह दुनिया की सबसे निचली जगह कौन सी है?

दक्षिण अफ्रीका में एम्पोनेंग सोने की खान को आप सबसे नीची जगह कह सकते हैं जो समुद्र तल से 4000 मीटर नीचे है। चूंकि इसे इंसान ने खोदा है, इसलिए इसे प्राकृतिक रूप से सबसे गहरी जगह नहीं कहा जा सकता। प्राकृतिक रूप से जॉर्जिया की वेरोन्या गुफा सबसे गहरी जगह है, जो 2193 मीटर गहरी है।

शूटिंग स्टार क्या  होता है?
शूटिंग स्टार के अनेक अर्थ हो सकते हैं। सबसे पहला अर्थ तो अंतरिक्ष का है। आपने अक्सर चारा टूटते देखा है। दरअसल ये तारे का टूटना नहीं है, बल्कि उल्का हैं। हमारे सौर मंडल में अब भी चट्टानें घूमती रहती हैं। इन्हें मीटरॉइड्स और एस्ट्रॉइड्स कहते हैं। हिन्दी में उल्का। धरती के वायुमंडल में प्रवेश करते ही ये रगड़ खाकर जलने लगती हैं। शूटिंग स्टार शेयर बाजार में प्रयुक्त होने वाला शब्द भी है। कई शेयर बाजार खुलने के बाद तेजी से बढ़ते हैं और बाजार बंद होने तक उनका दाम गिर जाता है। यानी बुझ जाते हैं। शूटिंग स्टार संकेत देता है कि अपट्रेंड की समाप्ति होने वाली है और वक्त डाउनट्रेंड का आ रहा है।

क्या जानवरों के हमारी तरह आँसू निकलते हैं?
हाँ पशुओं के भी आँसू निकलते हैं, पर ये आँसू हमारे आँसुओं की तरह भावनाओं के कारण नहीं निकलते बल्कि आँख को साफ रखने के लिए निकलते हैं। आँखों में अश्रुग्रंथियाँ होती हैं। इनसे निकलने वाला पानी आँखों की सुरक्षा करता है। जब हम पीड़ित होते हैं तब मस्तिष्क का एक इलाका जिसे एंटेरियर सिंग्युलेट कॉर्टेक्स कहते हैं, वह सक्रिय होता है। इसके साथ ही वेगस नर्व सक्रिय हो जाती है जो गर्दन, सीने और पेट को जोड़ती है। इससे सीने में दर्द और पेट में भी दर्द होता है। इसके साथ ही आँखों की लैक्रिमल ग्लैंड्स को भी मस्तिष्क सक्रिय करता है जिससे आँसू निकलते हैं। ज्यादा खुश और दुखी होने पर भी मस्तिष्क इन ग्रंथियों को संकेत भेजता है और आँसू निकल आते हैं। सर्दी-जुकाम और किसी तीखी गैस और धुएं में भी आँसू निकलते हैं, पर यह एक सुरक्षात्मक उपाय है।

ब्रैड में छोटे-छोटे छेद क्यों होते हैं?
दरअसल ब्रैड को बनाने के पहले मैदा और पानी या दूध से बने उसके डो को या तो कुछ देर के लिए अलग रख देते हैं या उसमें खमीर मिलाते हैं। इससे उस मैदा या आटे के भीतर गैस के बुलबुले बन जाते हैं। इन बुलबुलों के कारण डबलरोटी स्पंज जैसी बनती है। जिस भट्टी में इसे पकाया जाता है वह इस गैस को आसानी से बाहर नहीं जाने देती। इसके कारण यह गैस वहीं पर गर्म होकर जगह बना देती है। साथ ही रोटी को सेंकने में मदद भी करती है।

क्या चीटियाँ अंधी होती हैं?

चीटियों की कई प्रजातियाँ होती हैं। सभी पूरी तरह अंधी नहीं होतीं। उनकी आँख होती है, पर ज्यादातर की नजर कमजोर होती है। अलबत्ता ऑस्ट्रेलिया में मिलने वाली बुलडॉग चींटी की नजर खासी अच्छी होती है। जमीन के नीचे ही रहने वाली कुछ चींटियाँ पूरी तरह अंधी भी होती हैं। दरअसल उनका काम देखे बगैर चल जाता है।


राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

Thursday, October 8, 2015

एशेज ट्रॉफी का सम्बन्ध किस खेल से है?

एशेज ट्रॉफी इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेली जाने वाली क्रिकेट श्रृंखला का नाम है. दोनों देशों के बीच यह 1882 से खेली जा रही है. इस सीरीज का नामकरण ब्रिटिश मीडिया ने किया था. इसकी शुरुआत 1882 में हुई जब ऑस्ट्रेलिया ने ओवल में पहली बार इंग्लैंड टीम को उसी की धरती पर हराया. ऑस्ट्रेलिया से मिली इस करारी हार को ब्रिटिश मीडिया बर्दाश्त नहीं पाया. एक अखबार द स्पोर्ट्स टाइम्स ने एक शोक संदेश छापा जिसमें लिखा था- “ इंग्लिश क्रिकेट का देहान्त हो चुका है. तारीख 29 अगस्त 1882, ओवल और अब इनका अंतिम संस्कार के बाद राख (एशेज) ऑस्ट्रेलिया ले जाई जाएगी. जब 1883 में इंग्लिश टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर रवाना हुई तो इसी लाइन को आगे बढ़ाते हुए इंग्लिश मीडिया ने एशेज वापस लाने की बात रखी ‘क्वेस्ट टु रिगेन एशेज.’ बाद में विकेट की बेल्स को जलाकर जो राख बनी उसको ही राख रखने वाले बर्तन में डाल कर इंग्लैंड के कप्तान इवो ब्लिग को दिया गया. वहीं से परम्परा चली आई और आज भी एशेज की ट्रॉफी उसी राख वाले बर्तन को ही माना जाता है और उसी की एक बड़ी डुप्लीकेट ट्रॉफी बना कर दी जाती है. बारह से अठारह माह के अंतराल में होने वाली एशेज सीरीज में पाँच टेस्ट खेले जाते हैं.

ब्लैक फॉरेस्ट यानी काला जंगल कहाँ है?
ब्लैक फॉरेस्ट (जर्मन भाषा में श्वार्जवाल्ड) दक्षिण-पश्चिम जर्मनी के बाडेन-वुर्टेमबर्ग में स्थित एक वनाच्छादित पर्वत श्रृंखला है. इसकी दक्षिणी और पश्चिमी सीमाओं पर राइन घाटी स्थित है. 1493 मीटर (4898 फुट) की ऊंचाई के साथ फेल्डबर्ग इसका सबसे उंचा शिखर है. 200 किलोमीटर (120 मील) लंबाई तथा 60 किमी (37 मील) चौड़ाई के साथ यह क्षेत्र लगभग पूरी तरह से आयताकार है. इसलिए इसका क्षेत्रफल लगभग 12,000² (4600 वर्ग मील) है. इसे श्वार्जवाल्ड नाम (अर्थात ब्लैक फॉरेस्ट) रोमनों द्वारा दिया गया है जो वहां स्थित घने जंगलों वाले पर्वत को सिल्वा निग्रा अर्थात "ब्लैक फॉरेस्ट" कहते थे क्योंकि उसके अंदर के घने शंकुवृक्षों के कारण वन में प्रकाश प्रवेश नहीं कर पाता था. यों अमेरिका के कोलोरेडो में भी ब्लैक फॉरेस्ट है. यह एक बस्ती है, पर चीड़ के सघन वन की वजह से उसे ब्लैक फॉरेस्ट कहा जाता है.

फिल्मों में ‘सिनेमास्कोप’ और ‘ईस्टमैन कलर’ का क्या मतलब होता है..?
सिनेमास्कोप शब्द वाइडस्क्रीन शूटिंग के लिए प्रयुक्त होता है. आपने देखा होगा कि अमूमन फिल्मों में स्क्रीन 3:2 के अनुपात में होते हैं. पर सिनेमास्कोप में पर्दे की ऊँचाई के मुकाबले चौड़ाई दुगनी से तिगुनी तक होती है. इसमें कैमरे के लैंस की भूमिका होती है. हॉलीवुड की कम्पनी ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स ने 1953 में सिनेमास्कोप फिल्में बनाना शुरू किया. ईस्टमैन कलर रंगीन फिल्मों की प्रोसेसिंग का नाम था. सन 1950 में इसे कोडक ने विकसित किया था. इसी तरह टेक्नीकलर, गेवाकलर वगैरह प्रोसेंसिग के नाम हैं. अब जब फिल्म मेकिंग डिजिटल हो रही है ये नाम इतिहास बनते जा रहे हैं.

क्या कुछ प्राणी कलर ब्लाइंड होते हैं?
जो देखता है उसे कोई न कोई रंग तो दीखता ही है. इसलिए कलर ब्लाइंड का मतलब है कुछ जानवरों को सारी चीजें एक रंग में या दो रंगों में नजर आती हैं. चमगादड़ को ध्वनि की तरंगें बेहतर तरीके से समझ आती है. पर वह कलर ब्लाइंड होते हैं. पर बंदरों में तीन रंग देखने की क्षमता होती है. इंसान एक करोड़ तक रंगों को अलग-अलग पहचान सकता है. कुछ तो इससे ज्यादा रंगों का भेद कर पाते हैं. कुछ पक्षियों में रंग देखने की बेहतरीन क्षमता होती है वे अल्ट्रा वॉयलेट रंग भी देख लेते हैं.

क्या चींटियाँ अंधी होती हैं?
चींटियों की कई प्रजातियाँ होती हैं. सभी पूरी तरह अंधी नहीं होतीं. उनकी आँख होती है, पर ज्यादातर की नजर कमजोर होती है. अलबत्ता ऑस्ट्रेलिया में मिलने वाली बुलडॉग चींटी की नजर खासी अच्छी होती है. जमीन के नीचे ही रहने वाली कुछ चींटियाँ पूरी तरह अंधी भी होती हैं. दरअसल उनका काम देखे बगैर चल जाता है.

हमारे सौरमंडल के सारे ग्रहों और सूर्य के द्रव्यमान का अनुपात क्या है?
पूरे सौरमंडल का 99.86 प्रतिशत द्रव्यमान सूर्य में है. यानी शेष सभी ग्रह और उनके चन्द्रमा और उल्का पिंड मिलाकर 0.14 प्रतिशत हैं. उसके इसी द्रव्यमान के कारण उसकी गुरुत्व शक्ति है कि सारे ग्रह उसके चारों ओर घूमते हैं.
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

Sunday, October 4, 2015

स्वस्तिक को पुण्य का प्रतीक क्यों माना जाता है?


स्वस्तिक शब्द सु+अस्ति+क  से बना है. यानी शुभ करने वाला. यह चिह्न विश्व की अनेक प्राचीन सभ्यताओं में मिलता है. इसमें चारों दिशाओं में जाती रेखाएं होती हैं जो दाईं ओर मुड़ जाती हैं. हिन्दुओं के व्रतों, पर्वों, त्यौहारों, पूजा एवं हर मांगलिक अवसर पर कुंकुम से स्वास्तिक अंकित किया जाता है. इसका सामान्य अर्थ शुभ, मंगल एवं कल्याण करने वाला है. जैन और बौद्ध सम्प्रदाय में लाल, पीले एवं श्वेत रंग से अंकित स्वस्तिक का प्रयोग होता रहा है. सिन्धु घाटी की सभ्यता में ऐसे स्वास्तिक चिह्न मिले हैं. स्वस्तिक श्रीगणेश का प्रतीक भी है. इस प्रकार सभी मंगल-कार्यों में सबसे पहले बनाया जाता है. इसे रसोईघर, तिजोरी, स्टोर, प्रवेशद्वार, मकान, दुकान, पूजास्थल एवं कार्यालय हर जगह बनाते हैं. भारतीय संस्कृति में लाल रंग का महत्व है और सिंदूर, रोली या कुंकुम से इसे बनाया जाता है. धन चिह्न बनाकर उसकी चारों भुजाओं के कोने से समकोण बनाने वाली एक रेखा दाहिनी ओर खींचने से स्वास्तिक बन जाता है. रेखा खींचने का कार्य ऊपरी भुजा से प्रारम्भ करना चाहिए.

क्या कुछ लोगों को मच्छर ज्यादा काटते हैं? ऐसा क्यों?
हाँ ऐसा देखा गया है कि मच्छर कुछ लोगों के प्रति ज्यादा आकर्षित होते हैं. वैज्ञानिक 300 से 400 ऐसी गंधों को खोज रहे हैं जो हमारे शरीर से निकलती हैं और जिनके प्रति मच्छर आकर्षित होते हैं. वैज्ञानिकों ने पाया है कि मच्छरों के सिर या उनके बदन पर बने एंटेना जैसे अंगों पर ऐसे प्रोटीन होते हैं जो मनुष्य की त्वचा से निकलने वाले कुछ खास रसायनों या गंध के प्रति ज्यादा आकर्षित होते हैं. ये रसायन हमारे शरीर की स्वाभाविक क्रिया के कारण बनते हैं, पर ये मच्छरों के लिए ऐसे नियॉन साइन जैसा काम करते हैं जो अंधेरे में भी चमकते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारी साँस से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड, शरीर के तापमान, गर्भवती स्त्रियों, नशे का सेवन करने वालों और रक्त के प्रति भी मच्छर आकर्षित होते हैं. रक्त के अलग-अलग वर्गों से निकलने वाली गंध भी अलग-अलग होती है. गर्भवती स्त्रियाँ सामान्य स्त्री की तुलना में ज्यादा कार्बन डाई ऑक्साइड साँस से छोड़ती हैं. इसके कारण मच्छर ज्यादा आकर्षित होते हैं. इस प्रकार के अध्ययन अभी चल ही रहे हैं. 

बॉडी मास इंडेक्स क्या होता है?
बॉडी मास इंडेक्स यानी बीएमआई का मतलब है वह सूचकांक जो व्यक्ति की ऊँचाई और वजन का संतुलन बताता है. इससे पता लगता है कि व्यक्ति का वजन जरूरत से कम या ज्यादा तो नहीं. इसका आविष्कार बेल्जियम के वैज्ञानिक एडॉल्फ केटेलेट ने सन 1830 से 1850 के बीच कभी किया था. इसे निकालने का आसान तरीका है कि व्यक्ति अपने वजन को अपनी ऊँचाई के वर्ग मीटर से भाग दे तो जो अंक आएगा वह उसका बीएमआई होगा. आमतौर पर यह 18.5 से 25 के बीच रहना चाहिए. 18.5 से कम का मतलब है व्यक्ति का वजन जरूरत से कम है और 25 से ज्यादा का मतलब है कि ज्यादा है. आदर्श बीएमआई 20.85 है.

हरी मिर्च से मुँह क्यों जलता है?
मुँह तो मिर्च से भी जलता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके तीखेपन के पीछे ‘कैपसाईपिनोइड’ पदार्थ है जो मिर्च को फफूंद से बचाता है. इंडियाना यूनिवर्सिटी के डेविड हाक के नेतृत्व में शोध करने वाले दल ने बोलीविया जाकर मिर्च के पौधे में कैपसाइसिन या ‘कैपसाईपिनोइड’ तत्व की जांच की. उन्होंने पाया कि उत्तरी क्षेत्र में मात्र 15 से 20 प्रतिशत मिर्च में ही यह तीखा पदार्थ मौजूद था. वहीं दूसरी ओर दक्षिणी हिस्से में स्थिति अलग थी. इस इलाके में करीब 100 प्रतिशत मिर्च के पौधों में इस तीखे पदार्थ के होने से मिर्च बहुत तीखी थी. यह तीखापन अलग-अलग मिर्चों में अलग-अलग होता है.  मिर्च में अमीनो एसिड, एस्कॉर्बिक एसिड, फॉलिक एसिड, साइट्रिक एसिड, ग्लीसरिक एसिड, मैलिक एसिड जैसे कई तत्व होते है जो हमारे स्वास्थ्य के साथ–साथ शरीर की त्वचा के लिए भी काफी फायदेमंद होते हैं.

रेलगाड़ी या बस में चलते हुए हमें बिजली के तार ऊपर-नीचे होते हुए क्यों नजर आते हैं?
तार तो अपनी जगह पर ही होते हैं, पर धरती की सतह पर वे समान ऊँचाई पर नहीं होते. चूंकि सामान्य स्थिति में या धीरे-धीरे चलने पर हमें उनके उतार-चढ़ाव का ज्ञान नहीं हो पाता. पर हम तेज गति से चलते हैं तो उन तारों का ऊँच नीच हमें तेजी से दिखाई पड़ता है.

प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

Thursday, October 1, 2015

वीटो पावर कितने देशों के पास है? इसका मतलब क्या है?

लैटिन में वीटो का मतलब है ‘मैं असहमत हूँ।’ या मेरी अनुमति नहीं है। इसकी अवधारणा ईसा से सात सौ साल पहले रोमन राज-व्यवस्था में चुने गए सर्वोच्च पदाधिकारी को प्राप्त अधिकार से है, जो रोमन सीनेट से पास किसी भी प्रस्ताव को लागू होने से रोक सकते थे। कालांतर में ब्रिटिश राजा के पास भी संसद के प्रस्ताव को रोकने की शक्ति थी, जिसका धीरे-धीरे लोप होता गया। इन दिनों हम वीटो पावर का आमतौर पर मतलब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों को मिले विशेषाधिकार से लगाते हैं। ये सदस्य हैं चीन, रूस, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन। इनमें से कोई भी सदस्य किसी प्रस्ताव को पास होने से रोक सकता है। इसके पहले सन 1920-1946 तक रहे संयुक्त राष्ट्र के पूर्ववर्ती संगठन लीग ऑफ नेशंस की लीग काउंसिल के सदस्यों के पास भी वीटो पावर होती थी। फर्क यह था कि उसके 4 स्थायी और 4 अस्थायी सदस्यों के पास वीटो अधिकार था। सन 1936 में लीग काउंसिल के अस्थायी सदस्यों की संख्या बढ़कर 11 हो गई और वीटो अधिकार 15 देशों के पास आ गया।

लीग ऑफ नेशंस की विफलता या निष्क्रियता का एक कारण वीटो अधिकार भी था। बावजूद इसके सन 1944 में जब एक नए अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना पर विचार-विमर्श चल रहा था तब अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और चीन के साथ-साथ फ्रांस को भी अधिकार देने का फैसला कर लिया गया था, हालांकि उस समय फ्रांस पर जर्मनी का अधिकार था। माना जाता है कि आज भी संयुक्त राष्ट्र कई मामलों में कार्रवाई इसीलिए नहीं कर पाता है क्योंकि उसके पाँच स्थायी सदस्यों के पास वीटो अधिकार है। पर अब इसका इस्तेमाल बहुत कम होता है। सन 1945 से 2015 तक कुल मिलाकर 236 बार इसका इस्तेमाल हुआ है। सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के इस अधिकार और सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने के प्रस्ताव पर इन दिनों दुनिया भर में बहस चल रही है।

कहते हैं उल्लू रात में देखता है, कैसे?
उल्लू बहुत कम रोशनी में भी देख लेता है। उल्लुओं की अधिकतर प्रजातियाँ रात में देखने वाली हैं। उनकी आँखों में कई प्रकार की अनुकूलन क्षमता होती है। खासतौर से आँखों का आकार दूसरे पक्षियों के मुकाबले काफी बड़ा होता है। उनके रेटिना में प्रकाश संवेदनशील कोशिकाएं होती हैं। कॉर्निया भी बड़ा होता हैं। पर वे दूरदर्शी होते हैं। पास की कई चीजें अच्छी तरह देख नहीं पाते।

महिलाओं को मताधिकार देने वाला पहला देश कौन सा था?
सन 1893 में महिलाओं को वोट का अधिकार देने वाला पहला देश न्यूज़ीलैंड बना।

प्रकाश की गति क्या होती है?
वैक्यूम या शून्य में प्रकाश की गति 2 लाख 99 हजार 792.458 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है।

कहते हैं कि ब्ल्यू ह्वेल का दिल बहुत बड़ा होता है, कितना बड़ा?
आमतौर पर एक ब्ल्यू ह्वेल 30 मीटर के आसपास यानी तकरीबन 100 फुट तक लम्बी होती है। उसका वजन 170 टन या उससे भी ज्यादा होता है। उसकी जीभ ही तकरीबन 3 टन की होती है। इसका दिल तकरीबन 600 किलो का होता है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित
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