Thursday, October 24, 2019

साइप्रस-विवाद क्या है?


भूमध्य सागर में तीसरा सबसे बड़ा द्वीप है साइप्रस. यह यूरोप, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के बीच की कड़ी है. साइप्रस में यूनानी और तुर्क मूल के लोगों के बीच टकराव है. यहाँ सन 1964 के बाद से शांति स्थापना के लिए संयुक्त राष्ट्र की सेना तैनात है. तुर्की ने 1974 में साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर कब्जा करके उत्तरी साइप्रस के तुर्क गणराज्य के नाम से एक अलग देश बना दिया. भू-राजनीति के लिहाज से यह द्वीप चार हिस्सों में विभाजित है. सबसे प्रमुख है साइप्रस गणराज्य, जिसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है और जिसके अधीन इस द्वीप का 60 फीसदी भूभाग है. यह देश यूरोपियन यूनियन का सदस्य भी है. दूसरा है उत्तरी साइप्रस. जिसे केवल तुर्की की मान्यता है. कुछ समय के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी इसे मान्यता दी थी, लेकिन अमेरिका के दबाव पर उन्होंने मान्यता रद्द कर दी. उत्तरी तुर्की के अधीन द्वीप का 33 फीसदी भूभाग है. दोनों के बीच 4 फीसदी भूभाग पर संयुक्त राष्ट्र की सेना तैनात है. इसके अलावा द्वीप में करीब ढाई सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अक्रोत्तिरी और धेकेलिया के दो ब्रिटिश प्रशासित क्षेत्र हैं, जिनका इस्तेमाल फौजी अड्डे के रूप में होता है.
तुर्की की भूमिका क्या है?
साइप्रस अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से व्यापारिक रास्ते के लिए बेहद अहम था. 333 ईसा पूर्व में यूनानी शासक सिकंदर ने इस पर कब्जा किया.  बाद में रोमनों ने इस पर कब्जा कर लिया. सातवीं सदी के बाद से इसे अरबों के हमले झेलने पड़े. तुर्की के उस्मानिया साम्राज्य ने 1571 में साइप्रस को हथिया लिया. ब्रिटेन ने 1878 में इसपर कब्जा किया. अंततः साइप्रस को 1960 में आजादी मिली, पर उसे ग्रीस में नहीं मिलाया गया.1963 में साइप्रस में रहने वाले ग्रीक और तुर्कों के बीच झगड़ा शुरू हो गया. इसके बाद 1964 में वहाँ संयुक्त राष्ट्र की सेना वहां तैनात कर दी गई. यह सेना वहां अब भी तैनात है. 1974 में तुर्की के हमले के बाद साइप्रस दो हिस्सों में बँट गया. दक्षिण का हिस्सा ग्रीक बोलने वाले लोगों का और उत्तर का तुर्की बोलने वालों का.
यह खबरों में क्यों है?
संयुक्त राष्ट्र में तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान के पाकिस्तान-समर्थक भाषण के बाद हाल में जब पीएम मोदी ने यूनान, आर्मेनिया और साप्रस के राष्ट्र प्रमुखों से भेंट की, तब प्रेक्षकों का ध्यान इस बात पर गया. यह भेंट तुर्की के लिए एक संदेश थी. तीनों देशों की तुर्की के साथ ऐतिहासिक प्रतिस्पर्धा है. साइप्रस के अलावा आर्मेनिया के साथ भी तुर्की का टकराव है. आर्मेनिया भी उस्मानिया साम्राज्य के अधीन था. एक सदी पहले 1915 से 1918 के बीच आर्मेनिया में हुए भीषण नरसंहार के कारण तुर्की के प्रति कड़वाहट है. इस नरसंहार में करीब 15 लाख लोग मारे गए थे.

Sunday, October 20, 2019

संसद के कितने सत्र होते हैं?


आमतौर पर हर साल हमारी संसद के तीन सत्र होते हैं। बजट (फरवरी-मई), मॉनसून (जुलाई-अगस्त) और शीतकालीन (नवंबर-दिसंबर)। संसद के दोनों सदनों की बैठक राष्ट्रपति आमंत्रित करते हैं। हरेक अधिवेशन की अंतिम तिथि के बाद छह मास के भीतर आगामी अधिवेशन के लिए सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करना होता है। सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है, पर व्यवहार में इस आशय के प्रस्‍ताव की पहल सरकार द्वारा की जाती है। इन तीन के अलावा संसद के विशेष सत्र भी बुलाए जा सकते हैं।
इस साल सत्रहवीं लोकसभा के निर्वाचन के बाद पहला सत्र 17 जून से 26 जुलाई तक चलेगा। इसमें नए सदस्यों को शपथ दिलाने के अलावा लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव और दोनों सदनों की बैठक में राष्ट्रपति के सम्बोधन के बाद सबसे महत्वपूर्ण काम बजट का होगा। 4 जुलाई को लोकसभा में सरकार आर्थिक सर्वेक्षण पेश करेगी। 5 जुलाई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पूर्ण बजट पेश करेंगी। इसके पहले वित्त वर्ष 2019-20 के लिए अंतरिम बजट सोलहवीं लोकसभा में तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने एक फरवरी 2019 को पेश किया था।

संसद भवन कब बना?
भारत का संसद भवन नई दिल्ली में स्थित है। सन 1911 में घोषणा की गई कि भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाई जाएगी। मशहूर ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लैंडसीयर लुट्यन्स ने दिल्ली की ज्यादातर नई इमारतों की रूपरेखा तैयार की थी। इसके लिए उन्होंने सर हरबर्ट बेकर की मदद ली। संसद भवन की इमारत 1927 में तैयार हुई। इसे बनने में छह वर्ष लगे थे। इसकी आधारशिला 12 फ़रवरी, 1921 को ड्यूक ऑफ कनॉट ने रखी थी। 18 जनवरी 1927 को तत्कालीन वायसरॉय और गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने इसका उद्घाटन किया।
यह गोलाकार इमारत 560 फुट (170 मीटर) व्यास यानी कि लगभग 6 एकड़ क्षेत्र पर बनी है। इसके निर्माण पर 83 लाख रुपये की लागत आई थी। भवन का केन्द्रीय तथा प्रमुख भाग उसका विशाल वृत्ताकार केन्द्रीय कक्ष है। इसके तीन ओर लोक सभा, राज्य सभा और पूर्ववर्ती ग्रंथालय कक्ष (जिसे पहले प्रिंसेस चैम्बर कहा जाता था) हैं। इन तीनों कक्षों के चारों ओर चार मंजिला वृत्ताकार भवन है, जिसमें मंत्रियों, संसदीय समितियों, राजनीतिक दलों, लोक सभा तथा राज्य सभा सचिवालयों और संसदीय कार्य मंत्रालय के दफ्तर हैं।

संसदीय विशेषाधिकार क्या होते हैं?
संसद के दोनों सदनों, उनके सदस्यों और समितियों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्‍त है। इन्हें इसलिए दिया गया है ताकि वे स्वतंत्र रूप से काम कर सकें। सबसे महत्‍वपूर्ण विशेषाधिकार है सदन और समितियों में स्वतंत्रता के साथ विचार रखने की छूट। सदस्य द्वारा कही गई किसी बात के संबंध में उसके विरूद्ध किसी न्यायालय में कार्रवाई कार्यवाही नहीं की जा सकती। कोई सदस्य उस समय गिरफ्तार नहीं किया जा सकता जबकि उस सदन या समिति की बैठक चल रही हो, जिसका वह सदस्य है। अधिवेशन से 40 दिन पहले और उसकी समाप्ति से 40 दिन बाद भी उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
संसद परिसर में केवल अध्‍यक्ष/सभापति के आदेशों का पालन होता है। विशेषाधिकार भंग करने या सदन की अवमानना करने वाले को भर्त्सना, ताड़ना या निर्धारित अवधि के लिए कारावास की सज़ा दी जा सकती है। सदस्यों के मामले में सदन अन्य दो प्रकार के दंड दे सकता है। सदन की सदस्यता से निलंबन या बर्खास्तगी। दांडिक क्षेत्र सदनों तक और उनके सामने किए गए अपराधों तक ही सीमित न होकर सदन की सभी अवमाननाओं पर लागू होता है।




वॉट्सएप की शुरूआत किसने की?


वॉट्सएप स्मार्टफोन पर इंटरनेट के मार्फत संदेश भेजने की सेवा है। इसमें टेक्स्ट के अलावा फोटो, ऑडियो और वीडियो फाइलें भी भेजी जा सकती हैं। वॉट्सएप इनकॉरपोरेट की स्थापना सन 2009 में अमेरिकी ब्रायन एक्टन और यूक्रेन के जैन काऊम ने की थी। ये दोनों याहू के पूर्व कर्मचारी थे। यह कम्पनी माउंटेन व्यू, सेंटा क्लारा काउंटी, कैलिफोर्निया में है। सन 2014 में वॉट्सएप को फेसबुक ने खरीद लिया। इस दौरान इसके मुकाबले कुछ और सेवाएं इस बीच आ गईं हैं। जो काम एसएमएस ने मोबाइल फोन पर और स्काइप ने कम्प्यूटर पर किया, तकरीबन वैसा ही काम वॉट्सएप ने किया है। यह नाम रखने के पीछे मंशा वॉट्सअप और एप्लीकेशंस के एप को जोड़ने की रही होगी। वॉट्सअप आमतौर पर अंग्रेजी में क्या चल रहा है के लिए बोला जाता है।


सायबरस्पेस शब्द कहाँ से आया?
सायबरस्पेस शब्द का इस्तेमाल विलियम गिब्सन नामक लेखक ने पहली बार सन 1984 में किया था। उनके उपन्यास ‘न्यूरोमेंसर’ में इंसान अपनी चेतना पृथ्वी के कम्प्यूटर ‘मैट्रिक्स’ में जमा करके विचरण करते हैं। सायबरस्पेस केवल कम्प्यूटर नेटवर्क में डिजिटल बिट्स के रूप में है। यों इस शब्द से पहले 1949 में गणितज्ञ नॉर्बर्ट वाइनर ने सायबरनेटिक्स शब्द का प्रयोग किया था। सायबरनेटिक्स एक अवधारणा है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स कंट्रोल सिस्टम्स की तुलना मनुष्य के नाड़ी-तंत्र से की जाती है। आज हम सायबरस्पेस शब्द का इस्तेमाल इंटरनेट के लिए करने लगे हैं। जब आपका ई-मेल आने में देर लगाता है, तब हम कहते हैं कि कहीं सायबरस्पेस में अटक गया है।
क्रिकेट पिच किस तरह बनाते हैं?
क्रिकेट का पिच बनाते वक्त बुनियादी तौर पर तो यह देखा जाता है कि वह लगातार खेल के बावज़ूद जल्द टूटे नहीं। पिच में दरार पड़ना या धूल पैदा होना अच्छा नहीं माना जाता। अक्सर इस पर घास उगाई जाती है। घास अपने नीचे की ज़मीन को जोड़कर रखती है। पर ज्यादा घास से विकेट तेज़ हो जाता है। गेंद उसपर पड़कर तेजी से उठती है। पिच बनाते समय कई तरह की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। उनकी परतें इस तरह बिछाई जाती हैं कि खेल की पट्टी वैसा व्यवहार करे, जैसा उसे बनाने वाले चाहते हैं। मसलन कुछ ऐसी पिचें चाहते हैं, जिनमें पड़कर गेंद तेजी से उछलती है और कुछ पिचें ऐसी होती हैं, जिनमें गेंद कम उछाल लेती है। घास के कारण भी उछाल बढ़ता है।




Friday, October 18, 2019

कौन सा देश स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाता?


स्वतंत्रता दिवस वही देश मनाएगा, जिसके कंधे पर कभी गुलामी का बोझ रहा हो। जैसे कि यूके, रूस, फ्रांस, नेपाल, थाईलैंड, जापान, चीन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे देश स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाते। फिर भी कई देश अपने राष्ट्रीय दिवस मनाते हैं। फ्रांस अपनी क्रांति की याद में बास्तील दिवस मनाता है। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका पर बाहर से आए लोगों का शासन है। पर वे इन देशों के निवासी हैं, इसलिए स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाते। चीन 1 अक्तूबर को कम्युनिस्ट शासन की शुरूआत को मनाता है। नेपाल 29 मई 2008 को संप्रभुता सम्पन्न गणतंत्र बना। इस दिन यहाँ से राजशाही का खात्मा हुआ। पर नेपाल में लोकतंत्र दिवस हर साल फाल्गुन सप्तमी को मनाया जाता है। इस रोज सन 1951 में राजा त्रिभुवन ने देश को राणाशाही के हाथों से निकाल कर लोकतंत्र की स्थापना की थी। पर देश में लोकतंत्र 1960 में आया जब राजा महेन्द्र ने पंचायत प्रणाली की स्थापना की।
सुपरमैन का जन्म कैसे हुआ?
सुपरमैन एक काल्पनिक चरित्र है, जिसकी कथाएं कॉमिक्स के रूप में छापी जाती हैं। इसे एक अमेरिकी प्रतीक माना जाता है। सन १९३२ में इसकी रचना जैरी सीगल और जो शुस्टर दो किशोरों ने की थी जब वे क्लीवलैंड, ओहायो में रहते थे और स्कूल में पढ़ते थे। उन्होंने इस चरित्र के अधिकार डिटेक्टिव  कॉमिक्स को बेच दिए थे। इसका पहला प्रकाशन सन 1938 में एक्शन कॉमिक्स #1 में हुआ था। इसके बाद यह चरित्र टेलिविजन और रेडियो आदि पर भी अवतरित हुआ। यह अब तक के रचे गए सबसे लोकप्रिय चरित्रों मे से एक है। सुपरमैन नीले रंग का परिधान पहनता है। उसके सीने पर लाल रंग की ढाल बनी होती है, जिसपर लिखा होता है एस। उसकी मूल कथा यह है कि उसका जन्म क्रिप्टॉन ग्रह पर हुआ था जहाँ उसका नाम था कैल-एल। यह क्रिप्टॉन ग्रह नष्ट हो रहा था कि उसके वैज्ञानिक पिता ने इस शिशु को रॉकेट पर रखकर धरती की ओर भेज दिया। यह बच्चा कैनसस के किसान और उसकी पत्नी को मिला। उन्होंने इसे पाला और इसका नाम रखा क्लार्क कैंट। इस बच्चे को उन्होंने गहरी नैतिक शिक्षा दी। इस बच्चे में शुरूआत से ही विलक्षण शक्तियाँ थीं, जिनका इस्तेमाल उसने अच्छे कार्यों में किया। सुपरमैन अमेरिका के एक काल्पनिक नगर मेट्रोपोलिस में रहता है। क्लार्क कैंट के रूप में वह मेट्रोपोलिस के अखबार डेली प्लेनेट में काम करता है।
स्नो ब्लोवर क्या होता है?
स्नो ब्लोवर वह मशीन है जो बर्फ गिरने के बाद सड़क, फुटपाथ वगैरह से बर्फ को हटाती है। बर्फ को जब यह हटाती है तो इसके आउटलेट से बर्फ की धारा जैसी निकलती है जैसे कि किसी ब्लोवर से पानी की धारा छोड़ी जाए।






Thursday, October 17, 2019

कुर्द समस्या क्या है?


कुर्दों की आबादी मूलतः दक्षिण पूर्व तुर्की, उत्तरी सीरिया, उत्तरी इराक़ और उत्तर पश्चिम ईरान से लगे क्षेत्रों में बसी है. इनमें सुन्नी और शिया दोनों तरह के मुसलमान शामिल हैं. इनके बीच यारासनी, यजीदी, जोरोस्ट्रीयन और ईसाई समुदाय भी हैं. इनकी दो तरह की माँगें हैं. कुछ लोग आसपास के देशों में कुर्दों के स्वायत्त क्षेत्र बनाना चाहते हैं, वहीं कुछ संगठन इस पूरे क्षेत्र को मिलाकर एक अलग कुर्दिस्तान बनाना चाहते हैं. इन दिनों तुर्की के साथ कुर्दों के टकराव की दो वजहें हैं. तुर्की में रहने वाले कुर्द एक अरसे से अलग देश की लड़ाई लड़ रहे हैं. सीरिया में हाल में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ चली लड़ाई में कुर्दों के संगठन सीरियन डेमोक्रेटिक फ़ोर्सेज़ (एसडीएफ) ने अमेरिका का साथ दिया. उनके साथ सीरिया के कुर्दों का संगठन वाईपीजी भी था. तुर्की ने कार्रवाई तब की जब अमेरिकी सैनिक यहाँ से हट गए. एसडीएफ का मानना है कि उनकी 'पीठ में छुरा घोंपा गया' है. तुर्की को लगता है कि यदि सीरिया के कुर्द मज़बूत हो गए तो तुर्की के भीतर कुर्द आंदोलन भी मज़बूत होगा.

इस वक्त लड़ाई क्यों?
तुर्की में कुर्दों का मुख्य संगठन कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी है, जिसका कुर्द भाषा में संक्षिप्त नाम पीकेके है. इस संगठन पर पाबंदी है. तुर्की में सन 1980 की सैनिक क्रांति के बाद से कुर्द, कुर्दिस्तान और कुर्दिश शब्दों के इस्तेमाल पर पाबंदी है. तुर्की इन्हें पहाड़ी तुर्क कहता है. देश में कुर्द भाषा के इस्तेमाल पर भी रोक है. कुर्द भाषा बोलने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया जाता है. 15 अगस्त 1984 को कुर्दों के संगठन पीकेके ने बगावत की घोषणा की थी. तब से अब तक करीब 40,000 कुर्द नागरिकों की मौत इस संघर्ष में हो चुकी है. कुर्दों ने सन 1999 में युद्ध विराम की घोषणा भी की थी, पर सरकारी दमन नहीं रुकने के कारण 1 जून 2004 को उन्होंने अपने संग्राम को फिर से शुरू करने की घोषणा की. इसके बाद भी एक-दो बार समझौते की कोशिशें हुईं, पर 25 जुलाई 2015 को पीकेके ने फिर से संघर्ष चलाने की घोषणा कर दी.

कुर्दों के साथ कौन?
अमेरिकी सेना हट गई है और यूरोपियन देशों की दिलचस्पी है नहीं. सबको अपनी-अपनी फिक्र है. कहना मुश्किल है कि इस्लामिक स्टेट का पूरी तरह सफाया हुआ भी है या नहीं. उनके हजारों लोग कैद में हैं. उन्हें कौन रखेगा?  काफी कैदी कुर्दों के पास हैं. कुर्दों के पास साधन नहीं हैं. कोई देश उनकी मदद नहीं करेगा. केवल पहाड़ ही उनके मददगार हैं. इराक में 1970 के बाद से कुर्दों का एक स्वायत्त क्षेत्र है. सन 2014 में इस्लामिक स्टेट के उदय के बाद तुर्की ने घबराकर उत्तरी इराक़ में स्वतंत्र कुर्दिस्तान के अस्तित्व को स्वीकार करना शुरू कर दिया था, पर इस्लामिक स्टेट की पराजय के बाद उसे कुर्द ही दुश्मन लगते हैं.





Friday, October 11, 2019

जम्मू कश्मीर पुनर्गठन?


जम्मू कश्मीर राज्य पुनर्गठन अधिनियम-2019 भारत की संसद से पारित एक कानून है. इसमें राज्य के पुनर्गठन की व्यवस्था की गई है. इसके अंतर्गत इस राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित किया जाएगा. एक, जम्मू कश्मीर और दूसरा लद्दाख. यह अधिनियम 31 अक्तूबर से लागू होगा. यह अधिनियम राज्य सभा से 5 अगस्त और लोकसभा से 6 अगस्त, 2019 को पास हुआ. इसपर राष्ट्रपति ने 9 अगस्त को हस्ताक्षर किए. इस अधिनियम के पास होने के पहले संविधान के अनुच्छेद 370 के अंतर्गत राष्ट्रपति के हस्ताक्षरों से एक अधिसूचना जारी हुई, जिसके द्वारा जम्मू कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया गया. इसमें कहा गया कि भारतीय संविधान अब पूरी तरह इस राज्य पर लागू होगा. इस अधिसूचना के बाद ही देश की संसद को राज्य के पुनर्गठन का अधिकार प्राप्त हुआ. अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर राज्य को एक विशेष दर्ज दिया गया था, जिसके कारण राज्य का अपना संविधान था और उसे विशेष प्रशासनिक स्वायत्तता प्राप्त थी. इसके तहत दूसरे अन्य उपबंधों के अलावा देश के दूसरे इलाकों के निवासी इस राज्य में जमीन और अचल संपत्ति खरीद नहीं सकते थे. यह राज्य 20 जून 2018 से राष्ट्रपति शासन के अधीन है.
इस बदलाव से क्या होगा?
अधिनियम के अनुसार दो अलग-अलग केंद्र शासित राज्यों का गठन किया जाएगा. एक जम्मू कश्मीर और दूसरा लद्दाख. जम्मू कश्मीर में विधानसभा भी होगी. दोनों राज्यों में लेफ्टिनेंट गवर्नर नियुक्त होंगे. लद्दाख में लेह और करगिल क्षेत्र भी शामिल होंगे. जम्मू कश्मीर का हाईकोर्ट दोनों राज्यों के हाईकोर्ट का काम करेगा. अधिनियम में कहा गया है कि जम्मू कश्मीर का प्रशासन अब संविधान के अनुच्छेद 239 के अनुसार संचालित होगा. इसके साथ ही मूल रूप से पुदुच्चेरी के लिए बनाया गया अनुच्छेद 239-ए भी जम्मू कश्मीर पर लागू होगा. राज्य की विधानसभा में 107 से 114 सदस्य होंगे. यह विधानसभा सार्वजनिक-व्यवस्था और पुलिस को छोड़कर राज्य सूची में वर्णित सभी विषयों पर कानून बना सकेगी. राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की नियुक्ति लेफ्टिनेंट गवर्नर करेंगे. जो विषय विधान सभा के अधीन नहीं होंगे, उनपर लेफ्टिनेंट गवर्नर को निर्णय करने का अधिकार होगा.
कितने केंद्र शासित राज्य?
अभी तक देश में सात केंद्र शासित प्रदेश हैं. दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमण और दीव, लक्षद्वीप और पुदुच्चेरी. 31 अक्तूबर 2019 के बाद इस सूची में जम्मू कश्मीर और लद्दाख के नाम जुड़ जाएंगे, जिससे केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या बढ़कर नौ हो जाएगी. केंद्र शासित प्रदेश या संघ-क्षेत्र भारत के संघीय प्रशासनिक ढाँचे की एक उप-राष्ट्रीय प्रशासनिक इकाई है. सामान्य प्रदेशों की अपनी चुनी हुई सरकारें होती हैं, लेकिन केंद्र शासित प्रदेशों में सीधे केंद्र सरकार का शासन होता है. भारत का राष्ट्रपति हर केंद्र शासित प्रदेश का सरकारी प्रशासक या लेफ्टिनेंट गवर्नर नामित करता है.


Friday, October 4, 2019

संरा महासभा की क्या भूमिका है?


संयुक्त राष्ट्र के छह मुख्य अंग हैं. महासभा इनमें एक है और कई मायनों में सबसे महत्वपूर्ण अंग है. संयुक्त राष्ट्र की यह एकमात्र संस्था है, जिसमें सभी सदस्य देशों की भूमिका है और सबका स्तर समान है. संयुक्त राष्ट्र के विचार-विमर्श का यह सबसे महत्वपूर्ण मंच भी है. आमतौर पर संयुक्त राष्ट्र के नीति संबंधी विषयों पर यहीं विचार होता है और संयुक्त राष्ट्र का बजट भी यहाँ से पास होता है. सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों और संगठन के महासचिव की की नियुक्ति भी महासभा करती है. संरा के विविध अंगों से प्राप्त रिपोर्टों पर भी महासभा विचार करती है और महासभा के प्रस्तावों के रूप में उन्हें पास भी करती है. संरा के न्यूयॉर्क स्थित मुख्यालय में महासभा के नियमित, विशेष और आपात अधिवेशनों की व्यवस्था है. संरा महासचिव या महासभा के सभापति की अध्यक्षता में नियमित अधिवेशन हर साल सितंबर के तीसरे मंगलवार को शुरू होते हैं. इसके अगले हफ्ते के मंगलवार से नियमित बहस नौ कार्य दिवसों में लगातार चलती है.
अधिवेशन कब तक?
इस साल संरा महासभा का 74वां वार्षिक अधिवेशन है, जो मंगलवार 17 सितंबर से शुरू हुआ. सालाना नियमित बहस मंगलवार 24 सितंबर को शुरू हुई. 73 वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा ने नाइजीरिया के राजनीति शास्त्री तिज्जानी मुहम्मद बंदे को 74वीं महासभा के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया था. वे महासभा के 71वें अधिवेशन में उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं. सदस्यों की सालाना आम बहस 30 सितंबर को पूरी हो गई. सामान्यतः यह काम सात दिन में पूरा हो जाता है, पर जरूरत होने पर दिसंबर और जनवरी तक भी चल सकता है. महासभा के दूसरे सम्मेलन चलते रहते हैं और प्रायः अगले वर्ष के सितंबर में नया सत्र शुरू होने के कुछ समय पहले सत्र समाप्त होता है.
महासभा की परंपराएं
एक परंपरा है कि संरा महासचिव पर्ची उठाकर तय करते हैं कि इस वर्ष महासभा कक्ष की पहली सीट किस देश को मिलेगी. इस साल घाना को पहली सीट दी गई है. इसके बाद की सीटें वक्ता के अंग्रेजी नाम के अकारादिक्रम से तय होती हैं. दूसरी परंपरा बोलने वालों के क्रम की है. सन 1955 से परंपरा है कि पहले नंबर पर ब्राजील और दूसरे नंबर पर अमेरिका के शासनाध्यक्ष या प्रतिनिधि बोलते हैं. प्रत्येक वक्ता को 15 मिनट का समय दिया जाता है. संरा की छह आधिकारिक भाषाएं हैं. अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश. संयुक्त राष्ट्र के सभी दस्तावेज इन भाषाओं में तैयार किए जाते हैं. वक्ताओं के लिए आवश्यक होता है कि वे आधिकारिक भाषाओं में से किसी एक में बोलें. यदि वे इन छह के अलावा किसी अन्य भाषा में बोलना चाहते हैं, तब उन्हें किसी एक आधिकारिक भाषा में अपने वक्तव्यों के अनुवाद की व्यवस्था करनी होती है.


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