Sunday, March 20, 2016

कैेसे हुई होली मनाने की शुरुआत?

होली को सबसे पहले कब से मनाया जाना शुरू हुआ? क्या दूसरे देशों में भी ऐसा कोई पर्व मनाया जाता है?
होली का त्योहार देश के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है. इतिहासकारों के अनुसार आर्यों में इस पर्व का प्रचलन था. अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था. विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ से प्राप्त ईसा से 300 वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी होली मनाए जाने का उल्लेख मिलता है. पुराने ग्रंथों जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गाहय-सूत्र, नारद पुराण और भविष्य पुराण में मिलता है. ग्यारहवीं सदी में फारस से आए विद्वान अल-बिरूनी ने भी अपने होली मनाने का उल्लेख किया है. इसका प्रारम्भिक नाम होलाका बताया जाता है.

हिंदू पंचांग के अनुसार यह फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इसे दो दिन मनाते हैं. पहले दिन होलिका जलाई जाती है. दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल वगैरह फेंकते हैं. ढोल बजा कर गीत गाये जाते हैं. यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है. वसंत पंचमी से ही फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है. प्रकृति भी इस समय खिली हुई होती है. सरसों के पीले फूल धरती को रंग देते हैं. गेहूँ की बालियाँ निकल आती हैं. आम पर बौर फूलने लगते हैं. किसान खुश होकर गीत गाते हैं. यों भी हमारे भारत के प्रायः सभी त्योहार फसल और मौसम से जुड़े हैं.

दुनिया में कई जगह इससे मिलते-जुलते पर्व मनाए जाते हैं. थाईलैंड में भी सौंगक्रान नाम के पर्व में वृद्धजन इत्र मिश्रित जल डालकर महिलाओं, बच्चों और युवाओं को आशीर्वाद देते हैं. जर्मनी में ईस्टर के दिन घास का पुतला जलाया जाता है और लोग एक-दूसरे पर रंग डालते हैं. हंगरी का ईस्टर होली के अनुरूप ही है. अफ्रीका में ओमेना वोंगा के नाम से होली जैसा पर्व मनाया जाता है. पोलैंड में आर्सिना पर्व पर लोग एक दूसरे पर रंग और गुलाल मलते हैं.

अमेरिका में मेडफो नामक पर्व में लोग गोबर तथा कीचड़ से गोले बनाकर एक-दूसरे पर फेंकते हैं. चेक और स्लोवाकिया में बोलिया कोनेन्से त्योहार पर युवक-युवतियां एक दूसरे पर पानी व इत्र डालते हैं. हॉलैंड का कार्निवल होली-की मस्ती से भरपूर है. बेल्जियम की होली भारत जैसी होती है. इटली में रेडिका त्योहार में चौराहों पर लकडि़यों के ढेर जलाए जाते हैं और एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं. रोम में सेंटरनेविया और यूनान में मेपोल ऐसे ही पर्व हैं. स्पेन के ला टोमाटिना में लोग एक-दूसरे को टमाटर मारकर होली खेलते हैं. लाओस में यह पर्व नववर्ष की खुशी के रूप में मनाया जाता है. लोग एक दूसरे पर पानी डालते हैं. म्यांमर में इसे जल पर्व के नाम से जाना जाता है. जापान, दक्षिण कोरिया और वियतनाम में एक-दूसरे को मिट्टी से रंगने का त्योहार मनाया जाता है.

मार्टिन लूथर किंग प्रथम व द्वितीय (सीनियर और जूनियर) कौन थे?
मार्टिन लूथर किंग प्रथम या सीनियर कोई नहीं है. पहले हैं मार्टिन लूथर (1483-1546), जो ईसाई धर्म में प्रोटेस्टवाद नामक सुधारात्मक आन्दोलन चलाने के लिए प्रसिद्ध हैं. वे जर्मन भिक्षु, धर्मशास्त्री, विश्वविद्यालय में प्राध्यापक, पादरी एवं चर्च-सुधारक थे जिनके विचारों के द्वारा प्रोटेस्टिज्म सुधारान्दोलन आरम्भ हुआ जिसने पश्चिमी यूरोप के विकास की दिशा बदल दी. दूसरे हैं डॉ. मार्टिन लूथर किंग (15 जनवरी 1929 से 4 अप्रैल 1968) अमेरिका के एक पादरी, आन्दोलनकारी (ऍक्टिविस्ट) एवं अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष के प्रमुख नेता थे. उन्हें अमेरिका का गांधी भी कहा जाता है. उनके प्रयत्नों से अमेरिका में नागरिक अधिकारों के क्षेत्र में प्रगति हुई; इसलिए उन्हें आज मानव अधिकारों के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है. आपने पूछा है कि दोनों में अंतर क्या है और इन्हें मार्टिन लूथर किंग जूनियर क्यों कहा जाता है? इनका जन्म का नाम माइकेल किंग जूनियर था. इनके पिता का नाम भी माइकेल किंग था. पिता का नाम इसीलिए माइकेल किंग सीनियर था और बेटे का नाम माइकेल लूथर किंग जूनियर. इनका परिवार 1934 में यूरोप की यात्रा पर गया और वहाँ प्रोटेस्टेंट आंदोलन के नेता मार्टिन लूथर के कार्यों से परिचित होने के बाद इनके पिता ने अपने बेटे का नाम मार्टिन लूथर रख दिया. किंग जूनियर उसके बाद अपने आप जुड़ गया. यह बालक आगे जाकर युगांतरकारी महापुरुष साबित हुआ.

खर्राटे क्यों आते हैं? क्या यह कोई बीमारी है या उसका कोई लक्षण है? तथा इनसे किस प्रकार बचा जा सकता है?
सोते समय गले का पिछला हिस्सा थोड़ा सँकरा हो जाता है. साँस जब सँकरी जगह से जाती है तो आसपास के टिशुओं में स्पंदन होता है, जिससे आवाज आती है. यही हैं खर्राटे. यह सँकरापन नाक एवं मुँह में सूजन के कारण भी हो सकता है. यह सूजन एलर्जी, संक्रमण, धूम्रपान, शराब पीने या किसी दूसरे कारण से हो सकती है. इससे फेफड़ों को कम आक्सीजन मिलती है, जिससे मस्तिष्क के न्यूरोट्रांसमीटर ज्यादा ऑक्सीजन माँगने लगते हैं. ऐसे में नाक एवं मुँह ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं, जिससे खर्राटे की आवाज आने लगती है. बच्चों में एडीनॉयड ग्रंथि में सूजन एवं टांसिल से भी खर्राटे आते हैं. मोटापे के कारण भी गले की नली में सूजन से रास्ता संकरा हो जाता है, और सांस लेने में आवाज आने लगती है. जीभ का बढ़ा आकार भी खर्राटे का बड़ा कारण है. ब्राज़ील में हुए एक शोध के अनुसार भोजन में नमक की अध‌िकता शरीर में ऐसे फ्लूइड का निर्माण करती है जिससे नाक के छिद्र में व्यवधान होता है.

बहरहाल खर्राटे या तो खुद बीमारी हैं या बीमारी का लक्षण हैं. खर्राटे से अचानक हृदय गति रुकने का खतरा रहता है. मधुमेह एवं मोटापे की बीमारी के कारण खर्राटे के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं. खर्राटे के दौरान शरीर में रक्त संचार अनियमित हो जाता है, जो दिल के दौरे का बड़ा कारण है. दिमाग में रक्त की कम आपूर्ति से पक्षाघात तक हो सकता है. इससे फेफड़ों पर भी दबाव पड़ता है. खर्राटे के रोगियों को पॉलीसोमनोग्राफी टेस्ट करवाना चाहिए. यह टेस्ट व्यक्ति के सोते समय की शारीरिक स्थितियों की जानकारी देता है.

प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

Sunday, March 13, 2016

@ की क्या महत्ता है? इसके बिना ई-मेल अधूरा क्यों है?

अंग्रेज़ी के ऍट या स्थान यानी लोकेशन का यह प्रतीक चिह्न है। शुरू में इसका इस्तेमाल गणित में ऍट द रेट ऑफ’ यानी दर के लिए होता था। ई-मेल में इसके इस्तेमाल ने इसके अर्थ का विस्तार कर दिया। ई-मेल में पते के दो हिस्से होते हैं। एक होता है लोकल पार्ट जो @ के पहले होता है। इसमें अमेरिकन स्टैंडर्ड कोड फॉर इनफॉरमेशन इंटरचेंज (एएससीआईआई) के तहत परिभाषित अक्षर, संख्या या चिह्न शामिल हैं। चिह्न @ के बाद डोमेन का नाम लिखा जाता है। यानी इस चिह्न के पहले व्यक्ति या संस्था का नाम बताने वाले संकेत और उसके बाद डोमेन नाम।

(बीबीसी हिन्दी वैबसाइट ने इस सिलसिले में रोचक सामग्री प्रकाशित की है.
इंटरनेट, ई-मेल और सोशल नेटवर्क के इस ज़माने में हम @ इस प्रतीक का ख़ूब इस्तेमाल करते हैं. मगर, कभी आपने सोचा है कि इस @ यानी 'ऐट द रेट ऑफ़' चिह्न का इस्तेमाल पहली बार कब हुआ? अंग्रेज़ी में ये प्रतीक अक्षर कहां से आया? अगर, आप अंग्रेज़ी नहीं बोलते हैं तो इसके बारे में बात करना और भी दिलचस्प होगा. तो चलिए इस @ से जुड़े दिलचस्प क़िस्से आपको सुनाते हैं. इसे पढ़ें यहाँ)
(अंग्रेज़ी में मूल लेख यहां पढ़ें, जो बीबीसी फ्यूचर पर उपलब्ध है.)

क्या होती है कौड़ी? इस शब्द का प्रयोग मुद्रा के रूप में कैसे और कब से है? बीस की संख्या के लिए कौड़ी शब्द का आधार क्या है?

कौड़ी शंख की तरह एक प्रकार का छोटा समुद्री घोंघा है। कौड़ी को इतालवी भाषा में पोर्सेलाना कहा जाता है। अपनी चमक के कारण पोर्सलीन शब्द इसी पोर्सेलाना यानी कौड़ी से बना है। हमारे यहाँ शंख को लक्ष्मी का भाई माना जाता है। शंख की ही तरह कौड़ी भी समुद्र से उत्पन्न हुई है। इसलिए वह लक्ष्मी की बहन है। उसे लक्ष्मी का प्रतीक मानते हैं। चौपड़ खेलने के लिए पाँसो की जगह कौड़ी का इस्तेमाल होता है। दरवाज़े पर मांगलिक कौड़ी की झालरें लगाई जाती हैं। दीपावली के दिन चांदी के सिक्कों के साथ कौड़ी को भी दूध आदि से नहलाकर पूजा की जाती है। मुद्रा के चलन से पहले विनिमय में कौडि़यों का प्रयोग भी होता था। बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों में उत्तर भारत में एक पैसा सोलह कौड़ियों के बराबर था।

मनुष्य ने व्यापार-व्यवसाय पहले शुरू किया फिर विनिमय के साधन खोजे। मुद्रा के रूप में कौड़ियों और सीपों वगैरह का इस्तेमाल दुनिया के प्रायः सभी समाजों में होता था। इसे शैल मनी कहते हैं। ईसा से तकरीबन डेढ़ हजार साल पहले चीन में कौड़ी का मुद्रा के तौर पर चलन शुरू होने के प्रमाण मिले हैं। कौड़ी को ही मुद्रा के रूप में क्यों चुना गया? कौड़ी में वे सारे गुण पाए गए जो अच्छी मुद्रा में होने चाहिए। इसे आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। ये नष्ट नहीं होती। गिनने में आसानी रहती है। नकली कौड़ी नहीं बन सकती। आज भी अफ्रीका के कुछ भागों में कौड़ी की मुद्रा चलती है। जहाँ-जहाँ भी ऐतिहासिक खुदाइयां हुई हैं,वहां कौड़ी भी मिली हैं।

हमारे यहाँ उल्लेख मिलते हैं जिनके अनुसार दस कौड़ी मिलाकर एक दमड़ी बनती थी। एक गाय खरीदने के लिए पच्चीस हजार कौड़ियों की ज़रूरत पड़ती थी। कौड़ी की अल्प क्रय शक्ति को देखते हुए ही मुहावरों की दुनिया में कौड़ी तुच्छता के भाव में भी शामिल हो गई। दाम के छठे हिस्से को छदाम कहा गया जो छह+द्रम्म के मेल से बना। दो दमड़ी मिलाकर एक छदाम बनता था। अर्थात एक छदाम यानी बीस कौड़ी।
   
राइट टु रिकॉल क्या है? इसके बारे में विस्तार से बताएं। यह किन-किन देशों में लागू है
राइट टु रिकॉल का मतलब है चुने हुए प्रतिनिधि को वापस बुलाना। एथेंस के नगर लोकतंत्र में यह व्यवस्था थी। अमेरिका की राज्य क्रांति के मूल तत्वों में नागरिक के इस अधिकार का ज़िक्र भी है। पर संविधान में इसकी व्यवस्था नहीं है। फिर भी देश के 18 राज्यों में इसकी व्यवस्था है। सन 2011 में 150 रिकॉल चुनाव हुए, जिनमें 75 पदाधिकारियों को उनके पद से हटाया गया। ये रिकॉल सिटी काउंसिल, मेयर, स्कूल बोर्ड वगैरह में हुए हैं। कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया प्रांत में इसकी व्यवस्था है। स्विट्ज़रलैंड में संघीय स्तर पर तो नहीं, पर छह कैंटनों में इसकी व्यवस्था है। वेनेजुएला में सन 2004 में राष्ट्रपति ह्यूगो शावेस को हटाने के लिए जनमत संग्रह हुआ था, जिसमें जनता ने उन्हें अपने पद पर बने रहने का आदेश दिया। भारत में भी इस अधिकार की माँग की जा रही है। इस अधिकार के साथ अनेक दिक्कतें जुड़ीं हैं। राजनीति में आरोप लगाना आसान होता है। भारत जैसे देश में हम इसका उदाहरण रोज-बरोज देख सकते हैं। इसके प्रयोग हमें गाँव या स्कूल के स्तर पर करके देखना चाहिए।

कुओं की खुदाई गोल और पोखरों की खुदाई चौकोर क्यों होती है?
कुओं के निर्माण को साथ यह बात जुड़ी होती है कि उनकी दीवार भीतर से मज़बूत हो। गोलाकार या आर्च के आकार की दीवार काफी मजबूत होती है। पुराने ज़माने में जब लिंटेल नहीं होते थे या आरसीसी निर्माण नहीं होता था आर्च के सहारे बड़े-बड़े हॉल और पुल बनते थे। चौकोर कुआं बनाने पर चारों दीवारों की मजबूती के मुकाबले गोलाकार दीवार कहीं मजबूत होगी। पोखरों का आकार बड़ा होता है और उनपर यह बात लागू नहीं होती। बावज़ूद इसके दुनिया के कई मशहूर बाँध जैसे हूवर बाँध अर्ध गोलाकार हैं। ऐसे बाँधों को आर्च डैम कहते है।


Tuesday, March 8, 2016

क्रिकेट के खेल में एशेज क्या है?

क्रिकेट के खेल में एशेज क्या है? इसे हारा या जीता कैसे जाता है?

चंद्रशेखर कानूनगो, एजी 233, स्कीम नं.: 54, विजयनगर, इंदौर-452010 (म.प्र.)


इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेली जाने वाली क्रिकेट श्रृंखला को एशेज ट्रॉफी कहते हैं। दोनों देशों के बीच यह 1882 से खेली जा रही है। इसे शुरू कराने में ब्रिटिश मीडिया की भूमिका है। इसकी शुरुआत 1882 में हुई जब ऑस्ट्रेलिया ने ओवल में पहली बार इंग्लैंड टीम को उसी की धरती पर हराया। ऑस्ट्रेलिया से मिली करारी हार पर ब्रिटिश अख़बार तिलमिला गए। गुस्से में उन्होंने इस हार को क्रिकेट की मौत का रूपक दे डाला। एक अखबार ‘द स्पोर्ट्स टाइम्स’ ने बाकायदा शोक संदेश छापा जिसमें लिखा था- “इंग्लिश क्रिकेट का 29 अगस्त 1882 को ओवल में देहांत हो गया और अब इसके अंतिम संस्कार के बाद राख (एशेज) ऑस्ट्रेलिया ले जाई जाएगी। जब 1883 में इंग्लिश टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर रवाना हुई तो इसी लाइन को आगे बढ़ाते हुए इंग्लिश मीडिया ने एशेज वापस लाने की बात रखी ‘क्वेस्ट टु रिगेन एशेज।’ बाद में विकेट की बेल्स को जलाकर जो राख बनी उसको ही राख रखने वाले बर्तन में डाल कर इंग्लैंड के कप्तान इवो ब्लिग को दिया गया। वहीं से परम्परा चली आई और आज भी एशेज की ट्रॉफी उसी राख वाले बर्तन को ही माना जाता है और उसी की एक बड़ी डुप्लीकेट ट्रॉफी बना कर दी जाती है।

पोस्टकार्ड कब से चलन में आए और पहला पोस्टकार्ड किसने-किसको भेजा था?

विजय शर्मा, गायत्री किराना स्टोर्स के बाजू में, श्रीवास्तव कॉलोनी, छिंदवाड़ा-480002 (म.प्र.)


दुनिया में पोस्टकार्ड का चलन इंग्लैंड से शुरू हुआ है। पहला पोस्टकार्ड फुलहैम, लंदन से लेखक थियोडोर हुक को भजा गया था, जो लेखक ने खुद अपने नाम लिखा था। शायद यह उसी समय शुरू हुई डाकसेवा पर व्यंग्य था। इसपर ‘पेनी ब्लैक’ डाक टिकट लगा था, जो दुनिया का पहला डाक टिकट था। पर इसे पहला पोस्टल कार्ड कहना सही नहीं होगा। पोस्टल कार्ड और पोस्ट कार्ड में अंतर समझना चाहिए। पोस्ट कार्ड सामान्य कार्ड है, जिसपर डाक टिकट लगाकर भेजा जाता है, जबकि पोस्टल कार्ड किसी डाक विभाग द्वारा जारी कार्ड होता है, जिसपर डाक की कीमत छपी होती है। पोस्ट कार्ड का इस्तेमाल आज पिक्चर पोस्ट कार्ड तथा व्यावसायिक संदेशों के ले भी होता है। बहरहाल पहला पोस्टल कार्ड 1 अक्तूबर 1869 में ऑस्ट्रिया-हंगरी के डाक विभाग ने जारी किया। इसके बाद दूसरे देशों में इसकी शुरूआत हुई। पोस्टकार्ड आज संग्रह की वस्तु भी हैं। इनके अध्ययन और संग्रह को डेल्टायलॉजी कहा जाता है।

आधुनिक ‘मोबाइल फोन’ में जैलीबीन, लॉलीपॉप, किटकैट आदि नाम किस आधार पर रखे जाते हैं?

जेडी व्यास, डी-750, एमडी व्यास नगर, बीकानेर-334004 (राज.)

ये नाम मोबाइल फोन के नहीं, बल्कि मोबाइल फोन के ऑपरेटिंग सिस्टम के हैं. आप जानते हैं कि कम्प्यूटर में हार्डवेयर के अलावा एक ऑपरेटिंग सिस्टम होता है। ये नाम एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम के अलग-अलग संस्करणों के हैं। एंड्रॉयड के हर वर्ज़न का नाम मिठाई पर होता है। कम्पनी ने कभी यह स्पष्ट नहीं किया कि मिठाई पर इनके नाम रखने की वजह क्या है। अलबत्ता ये नाम अल्फाबैटिक ऑर्डर में आगे बढ़ रहे हैं। कपकेक, डोनट, एक्लेयर, फ्रॉयो, जिंजरब्रैड, हनीकॉम्ब, आइसक्रीम सैंडविच, जैलीबीन और किटकैट से होते हुए यह नवीनतम लॉलीपॉप तक सिलसिला तक आ पहुंचा है। इससे यह अनुमान है कि अगला नाम एम से होगा।

संसद सत्र की कार्रवाई के अंतराल में कई बार विपक्ष द्वारा स्थगन प्रस्ताव क्यों, किन परिस्थितियों में और किन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लाया जाता है, संसद की कार्यवाही व सत्ता पक्ष इससे किस प्रकार प्रभावित होता है?

बी. एस. चौहान, पता-बी-51, मानव स्थली अपार्टमेंट, 6, वसुंधरा एनक्लेव, दिल्ली-110095

संसदीय व्यवस्था में सदनों की अपनी नियमावली होती है। इनमें कई तरह के प्रस्तावों का उल्लेख होता है। भारतीय संसद में अवि‍लंबनीय लोक महत्व के मामले अध्‍यक्ष या सभापति की अनुमति ‍से पेश किए जा सकते हैं। इसका आशय होता है कि मामले के महत्व को देखते हुए सामान्य काम रोक कर पहले उल्लिखित विषय पर चर्चा की जाए। स्थगन प्रस्‍ताव का उद्देश्य अचानक हुई किसी घटना, सरकार की किसी चूक अथवा विफलता या फौरी तौर पर गंभीर परिणाम देने वाले मामले पर ध्यान खींचना हो सकता है। कार्य स्थगन के अलावा ध्यानाकर्षण का इस्तेमाल भी इसी प्रकार के उद्देश्य के लिए किया जा सकता है। ध्यानाकर्षण प्रक्रिया भारतीय संसदीय व्यवस्था की देन है। इसमें अनुपूरक प्रश्न पूछना और संक्षिप्त टि‍प्‍पणि‍यां करना शामिल है। इस प्रक्रिया में सरकार को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त अवसर मिलता है। ध्यानाकर्षण मामलों पर सभा में मतदान नहीं किया जाता।

क्या किसी भी मृत व्यक्ति का पोस्टमार्टम कराना आवश्यक है? यह क्यों जरूरी है?

ललित कुमार नागर, बी-120, दक्षिणपुरी, नई दिल्ली-110062

सामान्य रूप से किसी व्यक्ति के निधन पर पोस्टमार्टम की जरूरत नहीं होती। केवल उन मामलों में जहाँ मृत्यु के कारण को लेकर संदेह हो या आपराधिक कारण हो या एक्सीडेंट हो या संदेह का कोई और कारण हो तभी पोस्टमार्टम की जरूरत होती है।

कादम्बिनी के दिसम्बर 2015 के अंक में प्रकाशित

Thursday, March 3, 2016

रुपये का गिरना या डूबना क्या होता है?

जिस चीज का मूल्य होता है वह धन है। सिक्के, नोट और बैंकिग दस्तावेज एक मूल्य को दर्शाते हैं। यह मूल्य हजारों साल पहले वस्तु के विनिमय से तय होता था। मसलन एक बोरा धान के बदले कपड़ा, बर्तन या कोई दूसरी चीज। विनिमय को थोड़ा आसान करने के लिए मुद्रा का जन्म हुआ। आपका सवाल इन मुद्राओं के विनिमय की दर को लेकर है। इसका गणित जटिल है, पर उसके कारकों को समझना दिक्कत तलब नहीं है। जैसे वस्तुओं की कीमत उसकी माँग से तय होती है उसी तरह मुद्रा की कीमत भी उसकी माँग से तय होती है।

जब हम अंतरराष्ट्रीय बाजार में व्यापार करने निकलते हैं तब किसी न किसी मुद्रा के बरक्स हमारी मुद्रा का मूल्य तय होता है तभी व्यापार हो पाता है। प्रायः हम डॉलर के बरक्स अपनी मुद्रा की कीमत को देखते हैं, क्योंकि डॉलर दुनिया की कुछ उन हार्ड करेंसियों में सबसे आगे है जिनके माध्यम से दुनिया में कारोबार होता है। एकाध देशों के साथ हम रुपए में लेन-देन भी करते हैं। दरअसल जिसे हम रुपए की कीमत गिरना कहते हैं वह डॉलर की कीमत बढ़ना है। पिछले कुछ वर्षों से डॉलर की माँग बढ़ने का कारण उसकी कीमत बढ़ने लगी है, क्योंकि उसकी माँग बढ़ रही है। मुद्रा की कीमत तय होने का एकमात्र कारण यही नहीं है। सबसे बड़ा कारण है मुद्रा प्रसार के कारण वस्तुओं की कीमतें बढ़ना। जैसे ही किसी अर्थव्यवस्था का विस्तार होता है लोगों की आय बढ़ने लगती है। इससे चीजों की माँग बढ़ती है। यदि उनकी सप्लाई पर्याप्त न हो तो चीजों के दाम बढ़ते हैं। यह मुद्रास्फीति है। इससे मुद्रा की कीमत भी कम होती है। मसलन पहले 100 रुपए में जितना अनाज मिलता था, वह 110 रुपए में मिलने लगा।

अर्थव्यवस्था की अंदरूनी ताकत भी मुद्रा की ताकत को कम या ज्यादा करती है, पर वह भी एकमात्र कारण नहीं है। और मुद्रा की कीमत कम होना हमेशा नुकसानदेह भी नहीं होता। मसलन चीन चूंकि काफी निर्यात करने वाला देश है उसे डॉलर की कीमत बढ़ने से फायदा होना चाहिए, क्योंकि उसका माल अमेरिकी बाजार में और सस्ता हो जाएगा। हाल में चीन ने अपनी मुद्रा की कीमत कम की है।

बैंकिंग प्रणाली में आरटीजीएस और आईएफएससी कोड क्या है? यह किस तरह काम करते हैं, इससे आम आदमी को कोई फायदा होता है?
यह बैंकों के धनराशि लेन-देन की व्यवस्था है। भारतीय बैंक रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (आरटीजीएस) और नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर प्रणाली के मार्फत काम करते हैं। आमतौर पर धनराशि का ट्रांसफर इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरिंग सर्विसेज (ईसीएस) के मार्फत होता है। इस व्यवस्था के तहत बैंकों की ब्रांचों के इंडियन फाइनेंशियल सिस्टम कोड (आईएफएससी) प्रदान किए गए हैं। यह कोड चेक पर लिखा रहता है। आम आदमी को जल्द और सही सेवा देने के लिए ही इन्हें बनाया गया है।

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। इसमें गांधी का मतलब क्या है? इन्हें महात्मा और बापू किसने कहा?

गांधी का मतलब परचूनी, पंसारी से लेकर इत्र फरोश यानी गंध बेचने वाला तक है। गांधी एक कारोबारी परिवार से आते थे और उनके पिता का नाम करमचंद गांधी था। उनके पिता हिन्दू मोढ़ समुदाय से ताल्लुक रखते थे। उन्हें महात्मा की उपाधि सन 1915 में भारत आने के बाद ही कभी दी गई। आमतौर पर माना जाता है कि उन्हें सबसे पहले रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने महात्मा कहकर संबोधित किया। पर ऐसे प्रमाण मिलते है कि 21 जनवरी 1915 को गुजरात में जतपुर के नगरसेठ नौतमलाल भगवानजी मेहता ने उन्हें महात्मा कहा। रवीन्द्रनाथ ठाकुर से गांधी की पहली मुलाकात इसके बाद अप्रेल 1915 में हुई। सम्भव है यह शब्द इसके भी पहले जनता के बीच से आया हो जैसे कि बापू। पिता के लिए यह भारत में सबसे ज्यादा प्रचलित अभिव्यक्ति है।

शंख क्या है? इसका धार्मिक महत्व क्यों है?

शंख एक सामान्य नाम है जो बड़े आकार के समुद्री घोंघे का खोल या शैल होता है। विज्ञान की शब्दावली में ये स्ट्रॉम्बिडा परिवार के गैस्ट्रोपोड मोलस्क हैं। इनमें से अनेक शंख स्ट्रॉम्बिडा परिवार से ताल्लुक नहीं रखते। इनमें पवित्र शंख भी शामिल है, जिसे टर्बिनेला पायरम कहते हैं, जिनका ताल्लुक टर्बिनेलाइडा परिवार से है। जीवित शंख या घोंघे की तमाम छोटी-बड़ी प्रजातियों को पूर्वी एशिया तथा दुनिया के अन्य देशों में सीफूड के रूप में खाया भी जाता है। शंख की विशेषता है उसका सर्पिल शिखर स्वरूप। उसके शिखर पर छेद करके इसका इस्तेमाल फूँकवाद्य के रूप में भी किया जाता है। पर सभी शंखों से आवाज नहीं निकलती। छोटे-बड़े शंखों का इस्तेमाल सजावट के लिए भी किया जाता है। इससे गहने भी बनाए जाते हैं।

हिन्दू मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में एक रत्न शंख है। समुद्र मंथन के समय आठवें स्थान पर वह प्राप्त हुआ था। लक्ष्मी के समान शंख भी सागर से उत्पन्न हुआ है इसलिए इसे लक्ष्मी का भाई भी कहा जाता है। लक्ष्मी और विष्णु दोनों ही अपने हाथों में शंख धारण करते हैं। महाभारत के युद्ध की शुरूआत अलग-अलग योद्धाओं की शंख-ध्वनि से होती है। वेदों के अनुसार शंख घोष विजय का प्रतीक है। कृष्ण ने पांचजन्य, युधिष्ठिर ने अनन्तविजय, भीम ने पौण्ड्र, अर्जुन ने देवदत्त, नकुल ने सुघोष एवं सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंखों का नाद किया। भीष्म के शंख का नाम गंगनाभ, दुर्योधन का विदारक और कर्ण का शंख हिरण्यगर्भ था।

ऐसी धारणा है कि, जिस घर में शंख होता है उस घर में सुख-समृद्धि आती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शंख चंद्रमा और सूर्य के समान देवस्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है। आमतौर पर शंख उल्टे हाथ के तरफ खुलते हैं। लक्ष्मी का शंख दक्षिणावर्ती अर्थात सीधे हाथ की तरफ खुलने वाले होते हैं। वामावर्ती शंख को जहां विष्णु का स्वरुप माना जाता है वहीं दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी का स्वरुप माना जाता है। एक और शंख मध्यावर्ती होता है-मध्य में खुला। इसके अलावा हेममुख, पुन्जिका एवं नारायण शंख भी होते हैं। हेममुख एवं नारायण शंख में मुँह कटा नहीं होता है। नारायण शंख भी दक्षिणावर्ती ही होता है। किन्तु इसमें पांच या इससे अधिक वक्र चाप होते है। पांच से कम चाप वाले को दक्षिणावर्ती शंख कहते है। इनके अलावा और भी अनेक प्रकार के शंख पाए जाते हैं जैसे लक्ष्मी शंख, गरुड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, गोमुखी शंख, देव शंख, राक्षस शंख, विष्णु शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, शनि शंख, राहु एवं केतु शंख। आयुर्वेद में शंखभस्म औषधि के रूप में प्रयुक्त होती है।



प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

Tuesday, March 1, 2016

मोबाइल में चार्ज करने के लिए इस्तेमाल होनेवाला ‘पावर बैंक’ क्या है?

मोबाइल में चार्ज करने के लिए इस्तेमाल होनेवाला ‘पावर बैंक’ क्या है?
शैल बाला करण, ‘पंचवटी’ (ग्रीन व्यू), भंवर पोखर, पटना-800004
पावर बैंक एक प्रकार का बैटरी चार्जर है, जिसमें चार्ज होने वाली बैटरी लगी है। इस बैटरी की क्षमता ज्यादा होती है। इसे भी उसी तरह चार्ज किया जाता है जैसे मोबाइल फोन की बैटरी को चार्ज करते हैं। आमतौर पर ये यूएसबी पोर्ट के मार्फत मोबाइल को चार्ज करते हैं और खुद भी यूएसबी पोर्ट से चार्ज होते हैं। इनकी मदद से कैमरा, पोर्टेबल स्पीकर, जीपीएस सिस्टम, एमपी3 प्लेयर और टेबलेट तक को चार्ज किया जा सकता है। अब सोलर पावर से चार्ज होने वाले पावर बैंक उपलब्ध हैं। इनकी एम्पियर आवर रेटिंग एमएएच से व्यक्त होती है।

कंप्यूटर कुकीज क्या होती हैं? इनकी लाभ-हानि क्या हैं?
गगन शर्मा, जीजी 1, 171 ए, विकासपुरी, नई दिल्ली

कुकी एक छोटी फाइल होती है जो कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क में सेव होती जाती है. अकसर कम्प्यूटर सेव करने से पहले आपकी वरीयता पूछता भी है। हम कुकीज को स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं। ज्यादातर वैब ब्राउजर स्वत: इन्हें स्वीकार करते हैं. पर आप चाहें तो ब्राउजर की सैटिंग में संशोधन कर सकते हैं। कई बार होता है कि कोई वेबसाइट विशेष नहीं खुलती तो मैसेज आता है कि अपनी कुकीज सैटिंग चेंज करें। यह फाइल वैब ट्रैफिक का विश्लेषण करने तथा किसी विशेष वैबसाइट पर जाने में मदद करती है। कूकी उन वेब एप्‍लीकेशनों को संचालित करने मददगार होती है जो इंटरनेट पर हमारी प्राथमिकताओं, रुचि आदि पर निगाह रखते हैं। इनकी मदद से वैबसाइट संचालक यह जान पाता है कि वैबसाइट पर कौन, कितनी देर रहता है और क्या देखता है।
कुकीज एक छोटा सा टेक्स्ट मैसेज होता है। यदि हम ब्राउजर की मदद से कुकीज को अस्वीकार कर दें तो कुछ साइट खुलने से इंकार कर देती हैं। गूगल भी आप तक पहुँचने में कुकी का प्रयोग करता है। आपने देखा होगा कि आप नेट के मार्फत जब कोई खरीदारी करते हैं तब उसके बाद ज्यादातर वैबसाइट पर उन्हीं वस्तुओं के विज्ञापन नजर आने लगते हैं। गूगल एडसेंस के विज्ञापन आपकी जानकारी और पसंद के हिसाब से ही दिखाए जाते हैं।

कलम या पैन का आविष्कार किसने और कब किया था?
उदयराज वर्मा, छिटेपुर सैंठा, गौरीगंज, अमेठी-227409 (उ.प्र.)

आज से पाँच हजार साल से भी पहले हमारे पूर्वज सरकंडे या बाँस की कलम को स्याही में डुबाकर लिख रहे थे। इस लिहाज से वह पेन था। स्टीवन रोजर फिशर ने अपनी किताब ‘अ हिस्ट्री ऑफ राइटिंग’ में लिखा है कि ईसा से 3000 साल पहले मिस्र के सक्कर इलाके में कलम से लिखा जा रहा था। प्राचीन चीन में कागज की ईज़ाद के साथ लिखने का सीधा सम्बंध था। मिस्र में इसे पैपीरस कहते थे। कलम का इस्तेमाल लिखने के पहले रेखाचित्र और पेंटिंग में हुआ होगा। चीन और पूर्वी इलाकों में लिखने के लिए तूलिका या ब्रश का इस्तेमाल होता था। इस अर्थ में पेन से पहले पेंसिल आई होगी। जब इंसान लिखना नहीं जानता था वह जली हुई लकड़ी के कोयले या चारकोल से गुफाओं में तस्वीरें बनाने लगा था, जो पेंसिल ही थीं।

कार्बन से बनी स्याही या इंडिया इंक का आविष्कार भी चीन में ईसा के ढाई हजार साल पहले हो गया था। भारत सहित सभी प्राचीन सभ्यताओं का शुरूआती लेखन बाँस या लकड़ी को काटकर बनाए गए कलमों से हुआ होगा। इसके अलावा पक्षियों के पंखों के पिछले हिस्से से भी लिखा जाता था, जिसे क्विल कहते हैं। पंद्रहवीं-सोलहवीं सदी तक यह कलम दुनिया भर में प्रचलित रहा। सन 1822 में जॉन मिशेल ने बर्मिंघम, इंग्लैंड में धातु का निब तैयार किया। इससे कलम को एक नई दिशा मिली। पर दूसरा महत्वपूर्ण आविष्कार था फाउंटेन पेन का। ऐसा लगता है कि धातु का निब आने के बाद फाउंटेन बना होगा, पर ऐसा नहीं है। दसवीं सदी में पश्चिमोत्तर अफ्रीका के, जिसे मगरिब कहते हैं, खलीफा म’आद-अल-मु’इज़ ने कहा कि लिखने पर कलम की स्याही से हाथ गंदा हो जाता है। इसे ठीक किया जाए। बताया जाता है कि इसकी जुगत में ऐसा कलम बनाया गया, जिसकी नोक के पीछे स्याही भरी रहती थी। हालांकि इसके बारे में ज्यादा विवरण नहीं मिलता, पर बाद में यूरोप में चिड़िया की दो क्विल जोड़कर बनाए गए फाउंटेन पेन का जिक्र मिलता है।

जर्मन आविष्कारक डैनियल श्वेंटर ने क्विल से बने ऐसे पेन का जिक्र किया है, जिसके पीछे वाले खोखले हिस्से में स्याही भरी जाती थी और अगला नुकीला हिस्सा निब का काम करता था। बहरहाल 1828 के बाद बर्मिंघम में धातु के पेन और निब बनने लगे। सन 1850 में दुनिया में बनने वाले पेन और निबों में से 50 फीसदी बर्मिंघम से ही बनकर आते थे। यों पहला पूर्ण फाउंटेन पेन 1883 में बना।

इसके बाद फैल्ट पैन, बॉल पेन, से लेकर जैल पेन तक इससे जुड़े आविष्कार होते गए और अब अंतरिक्ष में काम करने वाला पेन भी बना लिया गया। पेन के साथ पेंसिल का भी थोड़ा जिक्र होना चाहिए। सन 1795 में ग्रेफाइट के पाउडर और मिट्टी को मिलाकर सख्त पेंसिल की ईज़ाद फ्रांसीसी रसायन शास्त्री निकोलस याकस कोंतें ने की। सन 1800 के आसपास बाँस में पेंसिल की बत्ती को डालकर पेंसिल बनाई थी।

अक्सर छातों का रंग काला होता है, जबकि काला रंग प्रकाश का अच्छा अवशोषक है, जिसकी वजह से छाता-धारक को ज्यादा गर्मी का आभास होता है? ऐसा क्यों?
डॉ. जीडी आर्या, द्वारा: लक्ष्मी आर्या नर्सिंग होम, गली चंद्र वैद्य, तांगा अड्डे के पास,  ताजगंज, आगरा

यह बात सही है कि काला रंग ज्यादा गर्मी को सोखता है, इसलिए भारत जैसे देशों में छातों का रंग सफेद, आसमानी या की हल्का रंग होना चाहिए। भारत में आधुनिक किस्म के छातों का इस्तेमाल अंग्रेजी राज में शुरू हुआ था। अंग्रेजों के परिधान में काला रंग प्रमुखता रखता है। खासतौर से सूट के साथ काला रंग मेल खाता है। यों वहाँ छाता केवल धूप से बचाने के लिए ही नहीं वर्षा और हिमपात से बचाने का काम भी करता है। काला छाता धूप की चमक को भी कम करता है। जिन इलाकों में बर्फ गिरती है वहाँ धूप की चमक भी ज्यादा होती है। इसके अलावा वह जल्द गंदा नजर नहीं आता। इन बातों के बावजूद काले के अलावा दूसरे रंग के छातों का चलन बढ़ रहा है। इसका फैशन से भी रिश्ता है।

कादम्बिनी नवम्बर 2015 के अंक में प्रकाशित
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