Sunday, March 20, 2016

कैेसे हुई होली मनाने की शुरुआत?

होली को सबसे पहले कब से मनाया जाना शुरू हुआ? क्या दूसरे देशों में भी ऐसा कोई पर्व मनाया जाता है?
होली का त्योहार देश के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है. इतिहासकारों के अनुसार आर्यों में इस पर्व का प्रचलन था. अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था. विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ से प्राप्त ईसा से 300 वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी होली मनाए जाने का उल्लेख मिलता है. पुराने ग्रंथों जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गाहय-सूत्र, नारद पुराण और भविष्य पुराण में मिलता है. ग्यारहवीं सदी में फारस से आए विद्वान अल-बिरूनी ने भी अपने होली मनाने का उल्लेख किया है. इसका प्रारम्भिक नाम होलाका बताया जाता है.

हिंदू पंचांग के अनुसार यह फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इसे दो दिन मनाते हैं. पहले दिन होलिका जलाई जाती है. दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल वगैरह फेंकते हैं. ढोल बजा कर गीत गाये जाते हैं. यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है. वसंत पंचमी से ही फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है. प्रकृति भी इस समय खिली हुई होती है. सरसों के पीले फूल धरती को रंग देते हैं. गेहूँ की बालियाँ निकल आती हैं. आम पर बौर फूलने लगते हैं. किसान खुश होकर गीत गाते हैं. यों भी हमारे भारत के प्रायः सभी त्योहार फसल और मौसम से जुड़े हैं.

दुनिया में कई जगह इससे मिलते-जुलते पर्व मनाए जाते हैं. थाईलैंड में भी सौंगक्रान नाम के पर्व में वृद्धजन इत्र मिश्रित जल डालकर महिलाओं, बच्चों और युवाओं को आशीर्वाद देते हैं. जर्मनी में ईस्टर के दिन घास का पुतला जलाया जाता है और लोग एक-दूसरे पर रंग डालते हैं. हंगरी का ईस्टर होली के अनुरूप ही है. अफ्रीका में ओमेना वोंगा के नाम से होली जैसा पर्व मनाया जाता है. पोलैंड में आर्सिना पर्व पर लोग एक दूसरे पर रंग और गुलाल मलते हैं.

अमेरिका में मेडफो नामक पर्व में लोग गोबर तथा कीचड़ से गोले बनाकर एक-दूसरे पर फेंकते हैं. चेक और स्लोवाकिया में बोलिया कोनेन्से त्योहार पर युवक-युवतियां एक दूसरे पर पानी व इत्र डालते हैं. हॉलैंड का कार्निवल होली-की मस्ती से भरपूर है. बेल्जियम की होली भारत जैसी होती है. इटली में रेडिका त्योहार में चौराहों पर लकडि़यों के ढेर जलाए जाते हैं और एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं. रोम में सेंटरनेविया और यूनान में मेपोल ऐसे ही पर्व हैं. स्पेन के ला टोमाटिना में लोग एक-दूसरे को टमाटर मारकर होली खेलते हैं. लाओस में यह पर्व नववर्ष की खुशी के रूप में मनाया जाता है. लोग एक दूसरे पर पानी डालते हैं. म्यांमर में इसे जल पर्व के नाम से जाना जाता है. जापान, दक्षिण कोरिया और वियतनाम में एक-दूसरे को मिट्टी से रंगने का त्योहार मनाया जाता है.

मार्टिन लूथर किंग प्रथम व द्वितीय (सीनियर और जूनियर) कौन थे?
मार्टिन लूथर किंग प्रथम या सीनियर कोई नहीं है. पहले हैं मार्टिन लूथर (1483-1546), जो ईसाई धर्म में प्रोटेस्टवाद नामक सुधारात्मक आन्दोलन चलाने के लिए प्रसिद्ध हैं. वे जर्मन भिक्षु, धर्मशास्त्री, विश्वविद्यालय में प्राध्यापक, पादरी एवं चर्च-सुधारक थे जिनके विचारों के द्वारा प्रोटेस्टिज्म सुधारान्दोलन आरम्भ हुआ जिसने पश्चिमी यूरोप के विकास की दिशा बदल दी. दूसरे हैं डॉ. मार्टिन लूथर किंग (15 जनवरी 1929 से 4 अप्रैल 1968) अमेरिका के एक पादरी, आन्दोलनकारी (ऍक्टिविस्ट) एवं अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष के प्रमुख नेता थे. उन्हें अमेरिका का गांधी भी कहा जाता है. उनके प्रयत्नों से अमेरिका में नागरिक अधिकारों के क्षेत्र में प्रगति हुई; इसलिए उन्हें आज मानव अधिकारों के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है. आपने पूछा है कि दोनों में अंतर क्या है और इन्हें मार्टिन लूथर किंग जूनियर क्यों कहा जाता है? इनका जन्म का नाम माइकेल किंग जूनियर था. इनके पिता का नाम भी माइकेल किंग था. पिता का नाम इसीलिए माइकेल किंग सीनियर था और बेटे का नाम माइकेल लूथर किंग जूनियर. इनका परिवार 1934 में यूरोप की यात्रा पर गया और वहाँ प्रोटेस्टेंट आंदोलन के नेता मार्टिन लूथर के कार्यों से परिचित होने के बाद इनके पिता ने अपने बेटे का नाम मार्टिन लूथर रख दिया. किंग जूनियर उसके बाद अपने आप जुड़ गया. यह बालक आगे जाकर युगांतरकारी महापुरुष साबित हुआ.

खर्राटे क्यों आते हैं? क्या यह कोई बीमारी है या उसका कोई लक्षण है? तथा इनसे किस प्रकार बचा जा सकता है?
सोते समय गले का पिछला हिस्सा थोड़ा सँकरा हो जाता है. साँस जब सँकरी जगह से जाती है तो आसपास के टिशुओं में स्पंदन होता है, जिससे आवाज आती है. यही हैं खर्राटे. यह सँकरापन नाक एवं मुँह में सूजन के कारण भी हो सकता है. यह सूजन एलर्जी, संक्रमण, धूम्रपान, शराब पीने या किसी दूसरे कारण से हो सकती है. इससे फेफड़ों को कम आक्सीजन मिलती है, जिससे मस्तिष्क के न्यूरोट्रांसमीटर ज्यादा ऑक्सीजन माँगने लगते हैं. ऐसे में नाक एवं मुँह ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं, जिससे खर्राटे की आवाज आने लगती है. बच्चों में एडीनॉयड ग्रंथि में सूजन एवं टांसिल से भी खर्राटे आते हैं. मोटापे के कारण भी गले की नली में सूजन से रास्ता संकरा हो जाता है, और सांस लेने में आवाज आने लगती है. जीभ का बढ़ा आकार भी खर्राटे का बड़ा कारण है. ब्राज़ील में हुए एक शोध के अनुसार भोजन में नमक की अध‌िकता शरीर में ऐसे फ्लूइड का निर्माण करती है जिससे नाक के छिद्र में व्यवधान होता है.

बहरहाल खर्राटे या तो खुद बीमारी हैं या बीमारी का लक्षण हैं. खर्राटे से अचानक हृदय गति रुकने का खतरा रहता है. मधुमेह एवं मोटापे की बीमारी के कारण खर्राटे के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं. खर्राटे के दौरान शरीर में रक्त संचार अनियमित हो जाता है, जो दिल के दौरे का बड़ा कारण है. दिमाग में रक्त की कम आपूर्ति से पक्षाघात तक हो सकता है. इससे फेफड़ों पर भी दबाव पड़ता है. खर्राटे के रोगियों को पॉलीसोमनोग्राफी टेस्ट करवाना चाहिए. यह टेस्ट व्यक्ति के सोते समय की शारीरिक स्थितियों की जानकारी देता है.

प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

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