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Saturday, June 1, 2024

अल-नीनो और ला-नीना क्या हैं?

इस साल भारत के मौसम कार्यालय ने वर्षा-ऋतु में सामान्य से अधिक बारिश की संभावना व्यक्त की है, क्योंकि अगस्त-सितंबर के महीने में पूर्वी प्रशांत महासागर में ला-नीना परिस्थिति पैदा होने की संभावना है। इसके विपरीत जब भी अल-नीनो परिस्थिति पैदा होती है, तब बारिश कम होने की संभावना होती है। अल-नीनो और ला-नीना, मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में हुई बढ़ोत्तरी या गिरावट के मानक के रूप में स्थापित हो गए हैं। इनके आधार पर मौसम विज्ञानी जलवायु का अनुमान लगाते हैं।

दुनिया के किसी एक हिस्से में समुद्र का तापमान औसत से ज़्यादा गर्म या ठंडा होना, पूरी दुनिया के मौसम को प्रभावित कर सकता है। प्रशांत महासागर में सामान्य परिस्थितियों के दौरान, व्यापारिक हवाएँ भूमध्य रेखा के
साथ पश्चिम की ओर बहती हैं
, जो गर्म पानी को दक्षिण अमेरिका से एशिया की ओर ले जाती हैं। उस गर्म पानी को बदलने के लिए, ठंडा पानी गहराई से ऊपर उठता है-एक प्रक्रिया जिसे अपवैलिंग (उत्स्रवण) कहा जाता है।

अल-नीनो और ला-नीना दो विपरीत जलवायु पैटर्न हैं जो सामान्य स्थितियों में बदलाव लाते हैं। वैज्ञानिक इसे अल नीनो सदर्न ऑसिलेशन (ईएनएसओ) कहते हैं। हर दो से सात साल में मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर की सतह का तापमान सामान्य से एक से तीन डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा गर्म हो जाता है। इसके विपरीत ला-नीना तब माना जाता है, जब पूर्वी प्रशांत में महासागर की सतह का तापमान सामान्य से ज्यादा ठंडा हो जाता है। इससे पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के ऊपर जोरदार दबाव बन जाता है। अल नीनो और ला नीना के एपिसोड आम तौर पर नौ से 12 महीने तक चलते हैं, लेकिन कभी-कभी वर्षों तक भी रह सकते हैं। ये पैटर्न हर दो से सात साल में अनियमित रूप से आगे-पीछे बदलते रहते हैं। अल-नीनो का प्रभाव अक्सर दिसंबर के दौरान चरम पर होता है। भारत में मानसून के इतिहास को देखें तो जितने भी साल यहां अल-नीनो प्रभाव रहा है, इसकी वजह से मानसून प्रभावित हुआ है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 1 जून, 2024 को प्रकाशित

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