Saturday, July 5, 2025

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स

 

एफएटीएफ यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जो 1989 में जी-7 देशों के पेरिस शिखर सम्मेलन की देन है। शुरू में यह मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के लिए बना था, पर 11 सितम्बर 2001 को न्यूयॉर्क पर हुए आतंकवादी हमले के बाद से इसने आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन उपलब्ध कराने के खिलाफ भी सिफारिशें देना शुरू किया। अब यह जन-संहार के हथियारों के प्रसार के विरुद्ध भी नीति-निर्देश दे रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण और अन्य वित्तीय अपराधों को रोकने के लिए नीतियाँ और मानक विकसित करना है। इसके लिए यह देशों की वित्तीय प्रणालियों की निगरानी करता है और ग्रे लिस्ट और ब्लैक लिस्ट जारी करता है, जो उन देशों को दर्शाती हैं जो मानकों का पालन नहीं करते। यह 40 सिफारिशें प्रदान करता है, जो वित्तीय अपराधों को रोकने के लिए मानक हैं। 1989 में इसके 16 सदस्य थे, जो अब 39 हैं, जिनमें 37 देश और 2 क्षेत्रीय संगठन, यूरोपीय संघ और खाड़ी सहयोग परिषद हैं। इसका मुख्यालय पेरिस में है। भारत 2010 से इसका पूर्ण सदस्य है। भारत क वित्तीय इंटेलिजेंस यूनिट के डायरेक्टर जनरल इसमें देश का प्रतिनिधित्व करते हैं।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 5 जुलाई, 2025 के प्रकाशित

 

 

Saturday, June 28, 2025

भारत के रेलवे ट्रैक

 

भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है, जो अमेरिका, चीन और रूस के बाद आता है। इसके ट्रैक की लंबाई 135,207 किलोमीटर (2024 तक) है, जिसमें रनिंग ट्रैक की लंबाई 109,748 किलोमीटर और रूट की लंबाई 69,181 किलोमीटर है। हमारे यहाँ तीन तरह की पटरियाँ हैं, ब्रॉड गेज़ 1.676 मीटर, मीटर गेज़ 1.00 मीटर, और नैरो गेज़ 76.2 सेमी और 61 सेमी। दुनिया के देशों में पटरियों के बीच की दूरी अलग-अलग होती है। स्टैंडर्ड गेज (1,435 मिमी) दुनिया में सबसे ज्यादा प्रचलित है। ब्रॉड गेज़ को इंडियन गेज़ भी कहा जाता है। इसका उपयोग अपेक्षाकृत कम देशों में है। हमारे यहाँ ज्यादातर मेट्रो लाइनें स्टैंडर्ड गेज़ में हैं। दिल्ली में मेट्रो का निर्माण करते समय शुरू में इंडियन गेज़ को और बाद में स्टैंडर्ड गेज़ को अपनाया गया। इस तरह दिल्ली मेट्रो में दो तरह की लाइनें हैं। रेलवे में ब्रॉड गेज़ का संजाल भारत के ज्यादातर हिस्सों में फैला हुआ है। इंडियन गेज़ का निम्नलिखित देशों में भी उपयोग होता है: पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, अर्जेंटीना, चिली, नेपाल। अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों में आंशिक रूप से इंडियन या ब्रॉड गेज़ का उपयोग होता है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 28 जून 2025 को प्रकाशित

Thursday, June 26, 2025

विमान, जो बाज की शक्ल का है


ईरान के परमाणु स्थलों पर हमला करने वाले बी-2 स्पिरिट स्टैल्थ बॉम्बर का जन्म प्राकृतिक दुनिया के अध्ययन से हुआ है, जिसमें सबसे उल्लेखनीय है पेरेग्रीन फैल्कन। इसका अनोखा आकार शांत, तेज और ईंधन-कुशल उड़ान की अनुमति देता है, जो इसे इतिहास का सबसे महंगा विमान बनाता है। इस हफ्ते, बी-2 स्पिरिट के बारे में बहुत कुछ कहा गया- एक अमेरिकी स्टैल्थ बॉम्बर जो अमेरिकी धरती से ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों तक 18 घंटे तक बिना रुके उड़ान भरता रहा, अपना पेलोड गिराने के बाद बिना उतरे वापस लौट आया।

बहुत कम लोग जानते हैं कि 2.1 अरब डॉलर के इस विमान का डिज़ाइन एक अपेक्षाकृत छोटे लेकिन असाधारण शिकारी पक्षी: पेरेग्रीन बाज़ से प्रेरित था। बाज़ का लैटिन नाम-फाल्को पेरेग्रीनस-फाल्को, जिसका अर्थ है “दरांती” जो उड़ान में इसके तीखे घुमावदार, फैले हुए पंखों का संकेत है, और पेरेग्रीन, जिसका अर्थ है “भटकने वाला”, जो इसके लगभग वैश्विक वितरण को दर्शाता है। पेरेग्रीन बाज़ पश्चिम एशिया का मूल निवासी है, और फ़ारस की खाड़ी क्षेत्र में, इसे शिकार के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। यह संयुक्त अरब अमीरात का राष्ट्रीय पक्षी भी है।

Saturday, June 21, 2025

पासपोर्ट का इतिहास क्या है?

इंग्लैंड के राजा हेनरी पंचम ने 1414 में पहली बार ऐसे औपचारिक परिचय पत्र का आविष्कार किया, जिसे पासपोर्ट कह सकते हैं। उन्नीसवीं सदी में रेलवे के आविष्कार के बाद यूरोप में यात्राएं बढ़ीं, जिसके कारण दस्तावेजों की जाँच मुश्किल काम हो गया। लंबे समय तक बगैर पासपोर्ट यात्राएं भी हुईं। पहले विश्व युद्ध तक पासपोर्ट की व्यवस्था लगभग समाप्त हो गई थी, पर उसी दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल उठे और फिर आधुनिक व्यवस्था का विकास हुआ। 1920 में लीग ऑफ नेशंस का पासपोर्ट और कस्टम को लेकर पेरिस सम्मेलन हुआ और पासपोर्ट की मानक बुकलेट डिजाइन स्वीकृत हुई। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद 1963 में अंतरराष्ट्रीय यात्रा को लेकर सम्मेलन हुआ। 1980 में अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन ने मशीन रीडेबल पासपोर्ट का मानक रूप बनाया। फिर बायोमीट्रिक्स पहचान को पासपोर्ट में शामिल किया गया। भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान पासपोर्ट का उपयोग यूरोपीय व्यापारियों, अधिकारियों और सैनिकों के लिए था। भारतीयों को विदेश यात्रा के लिए प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती थी। स्वतंत्रता के बाद 1950 में भारत ने अपने नागरिकों के लिए आधुनिक पासपोर्ट प्रणाली शुरू की। पासपोर्ट एक्ट, 1967 ने इसे और व्यवस्थित किया।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 21 जून, 2025 को प्रकाशित

Saturday, June 14, 2025

‘डीप स्टेट’ किसे कहते हैं?

 डीप स्टेट शब्द उस समूह या नेटवर्क की ओर इशारा करता है, जो किसी सरकार के भीतर या बाहर से, बिना सार्वजनिक जवाबदेही के, सरकार से ज्यादा ताकतवर नज़र आने लगता है। इस शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले 1990 के दशक में तुर्की में हुआ। यह शब्द तुर्की भाषा के डेरिन डेवलेटसे ही लिया गया, जिसका अर्थ है गैर-निर्वाचित तत्व जो अनधिकृत रूप से लोकतांत्रिक सरकार पर हावी होते हैं। तुर्की में इसका तात्पर्य फौजी, खुफिया एजेंसियों और नौकरशाही से था, जो पर्दे के पीछे से सरकार को नियंत्रित करते थे। इक्कीसवीं सदी में अमेरिका में भी इसका इस्तेमाल हुआ। डॉनल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में एफबीआई और सीआईए के खुफिया नेटवर्क के लिए इसका इस्तेमाल हुआ। आजकल पाकिस्तान में सेना को डीप स्टेट माना जाता है। इसमें नौकरशाह, खुफिया एजेंसियाँ, फौजी अधिकारी, जज, राजनेता, कॉरपोरेट अधिकारी यहाँ तक कि अपराधी माफिया तक शामिल हो सकते हैं। यानी ऐसे लोग जो अन्य कारणों से महत्वपूर्ण होते हैं, पर औपचारिक रूप से जनता द्वारा चुने नहीं जाते। यह दिखाई पड़ने वाली ताकत नहीं होती, फिर भी कुछ लोग इसे वास्तविक और संगठित मानते हैं, जबकि कुछ इसे अतिशयोक्तिपूर्ण या काल्पनिक विचार मानते हैं।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 14 जून, 2025 को प्रकाशित

Saturday, June 7, 2025

ISBN कोड क्या होता है?

 

इंटरनेशनल स्टैंडर्ड बुक नंबर (आईएसबीएन) किसी किताब की विशिष्ट पहचान है। आमतौर पर यह किताब के पिछले कवर पर, कॉपीराइट पेज पर, या बारकोड के साथ छपा होता है। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किताबों की बिक्री और पुस्तकालयों में ट्रैकिंग आसान हो जाती है। यह नंबर हरेक पुस्तक के अलग-अलग संस्करणों और परिवर्धित संस्करणों के लिए अलग होता है। इससे किताबों की वैश्विक-पहचान सुनिश्चित होती है। पुस्तक के पुनर्मुद्रण में नंबर वही रहता है। 1 जनवरी 2007 के पहले यह नंबर दस अंकों का होता था। उसके बाद से यह 13 अंकों का हो गया है। इसकी शुरुआत 1966 में 9 अंकों से हुई थी। इसका मानक इंटरनेशनल स्टैंडर्डाइजेशन ऑर्गनाइजेशन (आईएसओ) ने 1970 में तैयार किया था। इसमें प्रकाशक कोड, शीर्षक कोड, देश/भाषा कोड और अंत में चेक डिजिट होती है। कोई भी पुस्तक बगैर आईएसबीएन नंबर के भी प्रकाशित की जा सकती है। लेखक चाहे तो इसे प्रकाशन के बाद भी हासिल किया जा सकता है। पुस्तकों के अलावा पत्रिकाओं के लिए इंटरनेशनल स्टैंडर्ड सीरियल नंबर (आईएसएसएन) भी होता है। संगीत रचना के लिए इंटरनेशनल स्टैंडर्ड म्यूजिक नंबर (आईएसएमएन) होता है। इसकी एक अंतरराष्ट्रीय आईएसबीएन एजेंसी भी है, जो ब्रिटेन में स्थित है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 7 जून, 2025 को प्रकाशित

 

Saturday, May 24, 2025

स्त्रियों-पुरुषों की आवाज में फर्क क्यों?

 हमारी आवाज़ के तीन मुख्य कारक होते हैं। फेफड़े जो हवा तैयार करते हैं, लैरिंक्स में स्थित वोकल कॉर्ड जहाँ आवाज़ बनती है और तीसरे ज़ुबान, गाल, होंठ और मुँह का वह हिस्सा जो स्वर को दिशा देता है। जहाँ से गला शुरु होता है वह दो भागों में बँटता है। एक से भोजन पेट में जाता है और दूसरे से हवा फेफड़ों में। हवा जाने वाले रास्ते के ऊपरी सिरे को कंठ कहते हैं, दो वाकतंतु होते हैं। जब हम बोलते हैं तो हमारी माँसपेशियाँ इन वाकतंतुओं को खींचती हैं और इनमें से गुज़रने वाली हवा कंपन पैदा करती है जो ध्वनि के रूप में सुनाई देती है। बच्चा जब बोलना शुरू करता है तब लड़का हो या लड़की उसकी आवाज एक जैसी होती है। किशोरावस्था में लड़कों का कंठ बड़ा हो जाता है जिसकी वजह से उनकी आवाज़ भारी हो जाती है जबकि लड़कियों के कंठ में उतना विकास नहीं होता। लड़कों में टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन कंठ नली पर भी प्रभाव डालता है। यह हार्मोन लड़कियों में नहीं बनता, फिर भी हार्मोन या अनुवांशिकी के कारण बहुत सी लड़कियों की आवाज़ भारी और लड़कों की पतली होती है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 24 मई, 2025 को प्रकाशित


 

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