Friday, January 31, 2020

ई-मंडी क्या है?


ई-मंडी नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट या कृषि मंडियों को जोड़ने वाले इलेक्ट्रॉनिक व्यापार मंच का नाम है. इसके अंग्रेजी संक्षिप्ताक्षर हैं ई-नाम. हिंदी में इसके लिए ई-मंडी शब्द प्रचलित है. इसकी मदद से किसानों को देशभर की कृषि मंडियों में कृषि उत्पादों का भाव पता चलता है, साथ ही वे अपनी उपज को बेच भी सकते हैं. हमारे देश में कृषि उत्पादों को एक राज्य से दूसरे राज्य में बेचने की प्रक्रियाएं जटिल हैं, जिसके कारण अक्सर किसानों को अपनी उपज कम कीमत पर बेचनी पड़ती है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के तहत काम करने वाला 'लघु कृषक कृषि व्यापार संघ' (एसएफएसी) ई-नाम को लागू करने वाली शीर्ष संस्था है. देशभर में करीब 2,700 कृषि उपज मंडियां और 4,000 उप-बाजार हैं. पहले कृषि उपज मंडी समितियों के भीतर या एक ही राज्य की दो मंडियों में कारोबार होता था. अब दो राज्यों की अलग-अलग मंडियों के बीच ई-नाम के माध्यम से व्यापार शुरू किया गया है. किसानों को इस अवधारणा के साथ खुद को जोड़ने में शायद समय लगे, पर मंडियों में व्याप्त बदइंतजामी का यह एक साफ-सुथरा विकल्प है. एक राष्ट्रीय बाजार बनाने के लिए राज्यों के कृषि मंडी कानूनों में बदलाव की जरूरत भी होगी. सरकार इसे 22,000 ग्रामीण बाजारों से जोड़ना चाहती है. इसकी सफलता के पीछे बुनियादी ताकत तकनीक की है. ट्रेडर्स अब खरीदारी से पहले जिंस की गुणवत्ता को चैक कर सकें इसके लिए सरकार ने देश की सभी मंडियों में क्वालिटी चैक लैब बनाने का भी फैसला किया है.
यह कब शुरू हुआ?
भारत सरकार ने अप्रेल 2016 में कृषि उत्पादों के लिए ऑनलाइन बाजार की शुरुआत की थी. ताजा समाचार है कि गत 31 दिसम्बर 2019 तक देश ई-नाम के माध्यम से होने वाला कारोबार 91,000 करोड़ रुपये का हो गया है. इस समय देश के 16 राज्यों में 585 कृषि मंडियाँ इस प्लेटफॉर्म से जुड़ चुकी हैं. अभी तक देश में 1.65 करोड़ किसान और 1.27 व्यापारी ई-नाम में पंजीकृत हैं. साल 2017 तक ई-मंडी से सिर्फ 17 हजार किसान ही जुड़े थे. सरकार का कहना है कि कारोबार जल्द एक लाख करोड़ रुपये को पार कर लेगा. इस सप्ताह आने वाले आम बजट में इस सिलसिले में कोई घोषणा हो सकती है. इस कार्यक्रम की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि राज्य अपने कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) कानून में जल्द से जल्द बदलाव करें और छोटे किसानों को भी अच्छा बाजार उपलब्ध कराएं. किसानों की समस्या यह है कि उनके राज्यों के कानून ही उनकी उपज को बेहतर बाजारों में जाने से रोकते हैं.
एपीएमसी में बदलाव होगा?
पिछले नवम्बर में वित्तमंत्री वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि केंद्र सरकार राज्यों से अनुरोध कर रही है कि वे कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) को खारिज कर दें और इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (ई-नाम) को अपनाएं. वित्तमंत्री ही नहीं स्वयं प्रधानमंत्री जब भी किसानों के बीच जाते हैं इस कार्यक्रम का जिक्र जरूर करते हैं. जो महत्वपूर्ण खेतिहर राज्य इससे बाहर हैं, उनमें बिहार, केरल और कर्नाटक के नाम हैं. उम्मीद है कि मार्च के तक केरल और बिहार भी इसमें शामिल हो जाएंगे. कर्नाटक में राज्य स्तर का एक पोर्टल पहले से काम कर रहा है. केंद्र सरकार प्रयास कर रही है कि कर्नाटक भी जल्द से जल्द केंद्रीय पोर्टल से खुद को जोड़े.

ट्रंप पर महाभियोग का अर्थ?


अमेरिकी संविधान के अनुसार चुने हुए राष्ट्रपति के विरुद्ध शिकायतें हैं, तो वहाँ की संसद के दोनों सदन मिलकर एक प्रक्रिया पूरी करने के बाद राष्ट्रपति को हटा सकते हैं. यह प्रक्रिया संसद के दोनों सदनों में एक के बाद एक करके पूरी करनी होती है. इन दिनों वहाँ के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विरुद्ध संसद में महाभियोग की प्रक्रिया चल रही है, जिसका पहला चरण प्रतिनिधि हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में पूरा हो चुका है, जहाँ यह प्रस्ताव 193 के मुकाबले 228 वोटों से पास हो गया है. अब वहाँ की सीनेट को इस विषय पर विचार करना है. सीनेट से यह प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पास होना जरूरी है, अन्यथा इसे रद्द माना जाएगा. अमेरिका के 230 साल के इतिहास में ट्रंप तीसरे राष्ट्रपति हैं, जिनके विरुद्ध महाभियोग लाया गया है. उनके पहले केवल दो राष्ट्रपतियों, 1886 में एंड्रयू जॉनसन और 1998 में बिल ​क्लिंटन के​ ख़िलाफ़ महाभियोग लाया गया था, लेकिन दोनों राष्ट्रपतियों को पद से हटाया नहीं जा सका. सन 1974 में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन पर अपने एक विरोधी की जासूसी करने का आरोप लगा था. इसे वॉटरगेट स्कैंडल का नाम दिया गया था. उस मामले में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होने के पहले उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था.
महाभियोग क्यों?
हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में महाभियोग की यह प्रक्रिया 24 सितंबर, 2019 को शुरू हुई थी और अब अंतिम पड़ाव यानी सीनेट तक आ पहुँची है. ट्रंप पर आरोप है कि उन्होंने राष्ट्रपति पद का आगामी चुनाव जीतने के लिए अपने एक प्रतिद्वंदी के ख़िलाफ़ साजिश की है. उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की के साथ फ़ोन पर हुई बातचीत में ज़ेलेंस्की पर दबाव डाला कि वे जो बायडन और उनके बेटे के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के दावों की जाँच करवाएं. जो बायडन डेमोक्रेटिक पार्टी के संभावित उम्मीदवार हैं. आरोप है कि ट्रंप ने ज़ेलेंस्की से कहा था कि हम आपके देश को रोकी गई सैनिक सहायता शुरू कर सकते हैं, बशर्ते आप जो बायडन, उनके बेटे हंटर और यूक्रेन की एक नेचुरल गैस कंपनी बुरिस्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच बैठा दें. बुरिस्मा के बोर्ड में हंटर सदस्य रह चुके हैं.
अब क्या होगा?
अब सीनेट में ट्रंप के विरुद्ध आरोपों को रखा गया है. प्रतिनिधि सदन ने इस काम के लिए सात महाभियोग प्रबंधकों को चुना है. वे सीनेट में जाकर आरोप पढ़ेंगे. गत 15 जनवरी को ये प्रबंधक एक जुलूस के रूप में सीनेट गए थे और गुरुवार 16 जनवरी को उन्होंने सदन में इन आरोपों को जोरदार आवाज में पढ़ा. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ने इसके साथ ही सीनेट के सभी 100 सदस्यों को न्याय करने की शपथ दिलाई. वे इस सुनवाई की अध्यक्षता करेंगे. अगले सप्ताह सुनवाई की प्रक्रियाएं तय होंगी, जिनके पूरा होने के बाद इस प्रस्ताव पर मतदान होगा. अनुमान है कि यह प्रस्ताव पास नहीं हो पाएगा. देखना होगा कि इसका प्रभाव राष्ट्रपति पद के चुनाव पर पड़ेगा या नहीं.



Thursday, January 16, 2020

दफा 144 क्या होती है?


अपराध प्रक्रिया संहिता-1973 या सीआरपीसी की धारा 144 इन दिनों देशव्यापी आंदोलनों के कारण खबरों में है. गत वर्ष अगस्त के महीने से जम्मू कश्मीर में लगाई गई पाबंदियों के सिलसिले में फैसला सुनाते हुए 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 144 का इस्तेमाल किसी के विचारों को दबाने के लिए नहीं किया जा सकता. अदालत ने कहा कि इस धारा का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है, और लंबे समय तक के लिए नहीं लगा सकते हैं, इसके लिए जरूरी तर्क होना चाहिए. सामान्यतः जब किसी इलाके में कानून-व्यवस्था बिगड़ने का अंदेशा हो, तो इस धारा को लागू किया जाता है. इसे लागू करने के लिए मजिस्ट्रेट या प्राधिकृत अधिकारी एक अधिसूचना जारी करता है. जिस जगह भी यह धारा लगाई जाती है, वहां तीन या उससे ज्यादा लोग जमा नहीं हो सकते हैं. मोटे तौर पर इसका इस्तेमाल सभाएं करने या लोगों को जमा करने से रोकना है. उस स्थान पर हथियारों के लाने ले जाने पर भी रोक लगा दी जाती है. इसका उल्लंघन करने वाले को गिरफ्तार किया जा सकता है, जिसमें एक साल तक की कैद की सजा भी हो सकती है. यह एक ज़मानती अपराध है, जिसमें जमानत हो जाती है.
कितने समय के लिए लगती है?
धारा-144 को दो महीने से ज्यादा समय तक नहीं लगाया जा सकता है, पर यदि राज्य सरकार को लगता है कि व्यवस्था बनाए रखने के लिए इसकी जरूरत है तो इसकी अवधि को बढ़ाया जा सकता है. इस स्थिति में भी इसे छह महीने से ज्यादा समय तक इसे नहीं लगाया जा सकता है. इस कानून को अतीत में कई बार अदालतों में चुनौती दी गई है. यह धारा अंग्रेजी राज की देन है और सबसे पहले सन 1861 में इसका इस्तेमाल किया गया था. इस धारा की आलोचना में यह बात कही जाती है कि इसका उद्देश्य जो भी हो, पर प्रशासन इसका दुरुपयोग करता है.
अदालतों में चुनौती दी गई?
सन 1939 में अर्देशिर फिरोज शॉ बनाम अनाम मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने चीफ प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट की आलोचना की थी. सन 1961 के बाबूलाल पराटे बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के पाँच सदस्यों की बेंच ने इस कानून को रद्द करने से इनकार कर दिया था. सन 1967 में समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया ने इसे चुनौती दी, पर अदालत ने कहा, यदि सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने की खुली छूट दे दी जाएगा, तो कोई भी लोकतंत्र बचा नहीं रहेगा. सन 1970 में मधु लिमये बनाम सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट मामले में भी अदालत ने इसे रद्द करने से इनकार कर दिया. सन 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन सरकार की इस बात के लिए आलोचना की थी कि पुलिस ने रामलीला मैदान में सोते हुए लोगों की पिटाई की थी.


Sunday, January 12, 2020

एशिया में कितने देश हैं?


एशिया में पूरी तरह स्वतंत्र और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की संख्या 49 है। इनके अलावा 6 ऐसे देश हैं, जो आंशिक रूप से मान्यता प्राप्त हैं जैसे अबखाजिया, नागोर्नो कारबाख, उत्तरी सायप्रस, फलस्तीन, दक्षिण ओसेतिया और ताइवान। इनमें से दो देश ऐसे हैं, जो जिन्हें अंतरमहाद्वीपीय कहा जा सकता है। तुर्की का एक हिस्सा यूरोप में है और उसी प्रकार मिस्र का एक हिस्सा अफ्रीका में पड़ता है। रूस का ज्यादातर क्षेत्र हालांकि एशिया महाद्वीप में है, पर उसे यूरोपीय देश माना जाता है। सायप्रस ऐसा अकेला देश है, जो एशिया में है, पर जो यूरोपियन यूनियन का सदस्य है। छह देश या इलाके ऐसे हैं जो किसी देश के अधीन हैं। ये हैं अक्रोती, ब्रिटिश इंडियन ओसन टेरिटरीज़, क्रिसमस द्वीप, कोको द्वीप, हांगकांग और मकाऊ। एशिया के पाँच सबसे छोटे देश हैं फलस्तीन, ब्रूनेई, बहरीन, सिंगापुर और मालदीव। मालदीव इनमें सबसे छोटा है।
ओलिंपिक में क्रिकेट शामिल होगा?
इन दिनों खबरें हैं कि लॉस एंजेलस में सन 2028 में होने वाले ओलिंपिक खेलों में क्रिकेट को भी शामिल करने के प्रयास किए जा रहे हैं। संभावना है कि क्रिकेट की टी-20 शैली को इन खेलों में शामिल कर लिया जाए। ओलिंपिक के इतिहास में केवल एक बार क्रिकेट को शामिल किया गया है। 1896 में एथेंस में हुए पहले ओलिम्पिक खेलों में क्रिकेट को शामिल किया गया था, पर पर्याप्त संख्या में टीमें न आ पाने के कारण, क्रिकेट प्रतियोगिता रद्द हो गई। सन 1900 में पेरिस में हुए दूसरे ओलिम्पिक में चार टीमें उतरीं, पर बेल्जियम और नीदरलैंड्स ने अपना नाम वापस ले लिया, जिसके बाद सिर्फ फ्रांस और इंग्लैंड की टीमें बचीं। उनके बीच मुकाबला हुआ, जिसमें इंग्लैंड की टीम चैम्पियन हुई। क्रिकेट के पाँच दिनी टेस्ट मैच स्वरूप के कारण इसका आयोजन काफी मुश्किल समझा जाता था। साथ ही इसे खेलने वाले देशों की संख्या एक समय तक ज्यादा नहीं थी। पहले एक दिनी और फिर टी-20 क्रिकेट के आगमन के बाद इसे खेलने वाले देशों की संख्या बढ़ी है और इसमें लगने वाला समय भी कम हुआ है।
हम मोटे क्यों होते हैं?
एक वैज्ञानिक अध्ययन से पता लगा है कि चूहों के शरीर में पैनेक्सिन 1 नाम का एक प्रोटीन होता है, जो उनके शरीर में वसा या फैट का नियमन करता है। शारीरिक विकास के शुरुआती समय में पैंक्स 1 जीन के कमजोर हो जाने से फैट बढ़ने लगता है। इसके पहले ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने ‘एफटीओ’ नामक विशेष कोशिका खोज निकाली थी, जिसकी वजह से मोटापा, हृदयघात और मधुमेह जैसी बीमारियां देखने को मिलती हैं। जिनके शरीर में यह खास किस्म का जीन पाया जाता है, उन्हें अगर एक प्रकार का आहार दिया जाए, तो वह उन लोगों के मुकाबले अपना वजन बढ़ा हुआ महसूस करते है, जिनके शरीर में यह जीन नहीं होता है। वैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि इस जीन को खोज लिया गया है, जो कोशिकाओं में चर्बी जमा होने के लिए जिम्मेदार हैं।  इन्हें फिट-1 व फिट-2 (फैट इंड्यूसिंग ट्रांसक्रिप्ट 1-2) जीन कहा जाता है।
पोलर लाइट्स क्या हैं?
ध्रुवीय ज्योति या मेरुज्योति, वह चमक है जो ध्रुव क्षेत्रों के वायुमंडल के ऊपरी भाग में दिखाई पड़ती है। उत्तरी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को सुमेरु ज्योति और दक्षिणी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को कुमेरु ज्योति कहते हैं। यह रोशनी वायुमंडल के ऊपरी हिस्से थर्मोस्फीयर ऊर्जा से चार्ज कणों के टकराव के कारण पैदा होती है। धरती का चुम्बकीय घेरा इन्हें वायुमंडल में भेजता है।
पृथ्वी गोलाकार क्यों है?
इसकी वजह गुरुत्व शक्ति है। धरती की संहिता इतनी ज्यादा है कि वह अपने आसपास की सारी चीजों को अपने केन्द्र की ओर खींचती है। यह केन्द्र चौकोर नहीं गोलाकार ही हो सकता है। इसलिए उसकी बाहरी सतह से जुड़ी चीजें गोलाकार हैं। इतना होने के बावजूद पृथ्वी पूरी तरह गोलाकार नहीं है। उसमें पहाड़ ऊँचे हैं और सागर गहरे। दोनों ध्रुवों पर पृथ्वी कुछ दबी हुई और भूमध्य रेखा के आसपास कुछ उभरी हुई है।
बवंडर या टॉर्नेडो क्या होते हैं?
टॉर्नेडो मूलतः वात्याचक्र हैं। यानी घूमती हवा। यह हवा न सिर्फ तेजी से घूमती है बल्कि ऊपर उठती जाती है। इसकी चपेट में जो भी चीजें आती हैं वे भी हवा में ऊपर उठ जाती हैं। इस प्रकार धूल और हवा से बनी काफी ऊँची दीवार या मीनार चलती जाती है और रास्ते में जो चीज़ भी मिलती है उसे तबाह कर देती है। इनके कई रूप हैं। इनके साथ गड़गड़ाहट, आँधी, तूफान और बिजली भी कड़कती है। जब से समुद्र में आते हैं तो पानी की मीनार जैसी बन जाती है। हमारे देश में तो अक्सर आते हैं।
बारह राशियां क्या होती हैं?
यह एक काल्पनिक व्यवस्था है और इसका सम्बन्ध फलित ज्योतिष से है, खगोल विज्ञान से नहीं। अलबत्ता अंतरिक्ष का नक्शा बनाने में इससे आसानी होती है। अंतरिक्ष का अध्ययन करने के लिए प्रायः हम एक काल्पनिक गोला मानकर चलते हैं, जो पृथ्वी केंद्रित है। इसे खगोल कहते हैं। पृथ्वी की भूमध्य रेखा और दोनों ध्रुवों के समांतर इस खगोल की भी मध्य रेखा और ध्रुव मान लेते हैं। इस खगोल में सूर्य का एक विचरण पथ है, जिसे सूरज का क्रांतिवृत्त या एक्लिप्टिक कहते हैं। पूरे साल में सूर्य इससे होकर गुजरता है। अंतरिक्ष में हर वस्तु गतिमान है, पर यह गति इस प्रकार है कि हमें तमाम नक्षत्र स्थिर लगते हैं। इन्हें अलग-अलग तारा-मंडलों के नाम दिए गए हैं।
सूर्य के यात्रा-पथ को एक काल्पनिक लकीर बनाकर देखें तो पृथ्वी और सभी ग्रहों के चारों ओर नक्षत्रों की एक बेल्ट जैसी बन जाती है। इस बेल्ट को बारह बराबर भागों में बाँटने पर बारह राशियाँ बनतीं हैं, जो बारह तारा समूहों को भी व्यक्त करतीं हैं। इनके नाम हैं मेष, बृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन। सूर्य की परिक्रमा करते हुए धरती और सारे ग्रह इन तारा समूहों से गुजरते हैं। साल भर में सूर्य इन बारह राशियों का दौरा करके फिर अपनी यात्रा शुरू करता है। अंतरिक्ष विज्ञानी इसके आधार पर निष्कर्ष नहीं निकालते। फलित ज्योतिषी निकालते हैं।










Friday, January 10, 2020

जनगणना कब होती है?


भारत में हर दस साल बाद जनगणना होती है. दुनिया में अपने किस्म की यह सबसे बड़ी प्रशासनिक गतिविधि है. पिछली जनगणना सन 2011 में हुई थी और अगली जनगणना अब 2021 में होगी. जनगणना में आबादी के साथ ही साक्षरता, शिक्षा, बोली-भाषा, लिंगानुपात, शहरी तथा ग्रामीण निवास तथा अन्य जनसांख्यिकीय जानकारियाँ मिलती हैं. सन 2011 की जनगणना के अनुसार विश्व की कुल आबादी की तुलना में 17.5 फीसदी लोग भारत में रहते हैं. उससे पिछली जनगणना यानी 2001 में यह आंकड़ा 16.8 प्रतिशत का था. 2001 से 2011 में भारत की जनसंख्या 17.6 प्रतिशत की दर से 18 करोड़ बढ़ी है. यह वृद्धि वर्ष 1991-2001 की वृद्धि दर  21.5 प्रतिशत, से करीब 4 प्रतिशत कम थी. 2011 की जनगणना से यह भी पता लगा था कि भारत और चीन की आबादी का अंतर दस साल में घटकर 23 करोड़ 80 लाख से 13 करोड़ 10 लाख रह गया. इसी तरह देश में साक्षरता की दर 10 प्रतिशत बढ़कर करीब 74 प्रतिशत हो गई. जनगणना 2021 भारत की 16वीं और आजादी के बाद आज़ादी के बाद यह आठवीं जनगणना होगी. पहली जनगणना सन 1872 में हुई थी.
क्या यह एनपीआर से अलग है?
जनगणना बुनियादी तौर पर सभी निवासियों की गिनती है. जबकि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर या एनपीआर में व्यक्तियों के नाम और उनके जन्म, निवास तथा अन्य जानकारियों का विवरण दर्ज होगा. यह काम जनगणना की तरह घर-घर जाकर होगा. यह भारतीयों के साथ भारत में रहने वाले विदेशी नागरिकों के लिए भी अनिवार्य होगा. इसका उद्देश्य देश में रहने वाले लोगों की पहचान से जुड़ा डेटाबेस तैयार करना है. पहला एनपीआर 2010 में तैयार किया गया था और उसे 2015 में अपडेट किया गया था. इसे नागरिकता क़ानून 1955 और सिटीजनशिप (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटीजन्स एंड इश्यू ऑफ नेशनल आइडेंटिटी कार्ड्स) रूल्स, 2003 के प्रावधानों के तहत गाँव, पंचायत, ज़िला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर किया जाएगा.
जातीय जनगणना क्या है?
देश में जो जनगणना होती है, उसमें धर्म के साथ ही अनुसूचित जातियों और जनजातियों का विवरण भी होता, पर सभी जातियों का विवरण नहीं होता. देश में केवल 1931 में जातीय जनगणना हुई थी. इस बात की माँग होती रही है कि जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए. इसकी जरूरत शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों (ओबीसी) को आरक्षण देने के लिए भी हुई थी. मंडल आयोग ने 1931 की जनगणना को आधार बनाते हुए यह पाया था कि 52 प्रतिशत लोग ओबीसी वर्ग में आते हैं. सन 2011 की जनगणना के साथ जातीय आधार पर जनगणना कराने की बात भी हुई थी. इस सर्वेक्षण से प्राप्त जानकारियाँ सन 2015 में जारी की गईं, पर इसे जाति आधारित जनगणना नहीं कहा जा सकता. इसे लेकर कई प्रकार की पेचीदगियाँ बनी हुई हैं.



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