गाड़ी पर लाल और नीली बत्ती लगाने का अधिकार किन अधिकारियों को होता है?
- कैलाश पालीवाल, कानोड़
आपने अक्सर देखा होगा कि कोई एम्बुलेंस खास तरीके का सायरन बजाती आती है और लोग उसे रास्ता देते हैं। इसे आपत्कालीन सेवा संकेत कहते हैं। एम्बुलेंस की छत पर रंगीन बत्तियाँ भी लगी रहती हैं। इसी तरह की व्यवस्था फायरब्रिगेड के साथ भी होती है। पुलिस की गश्ती गाड़ियों पर भी। इसका उद्देश्य ज़रूरी काम पर जा रहे लोगों को पहचानना और मदद करना है। महत्वपूर्ण सरकारी अधिकारियों, फौजी और नागरिक पदाधिकारियों के लिए भी ज़रूरत के अनुसार ऐसी व्यवस्थाएं की जाती हैं।
भारत में सेंट्रल मोटर ह्वीकल्स रूल्स 1989 के नियम 108(3) के अंतर्गत गाड़ियों पर बत्ती लगाने के जो निर्दश दिए हैं उनके अंतर्गत आने वाले कुछ पदाधिकारियों की सूची नीचे दे रहे हैं। ये केन्द्रीय निर्देश हैं। इनके अलावा राज्य सरकारों के निर्देश भी होते हैं।
लाल बत्ती फ्लैशर के साथ
राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा स्पीकर, कैबिनेट मंत्री, हाई कोर्टों के मुख्य न्यायाधीश, पूर्व प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष, राज्यों के मुख्यमंत्री आदि।
लाल बत्ती बिना फ्लैशर के
मुख्य चुनाव आयुक्त, सीएजी, लोकसभा उपाध्यक्ष, राज्य मंत्री, सचिव स्तर के अधिकारी आदि।
पीली बत्ती
कमिश्नर इनकम टैक्स, रिवेन्यू कमिश्नर, डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक।
नीली बत्ती
एम्बुलेंस, पुलिस की गाड़ियाँ
भूकंप क्यों आते हैं?
- राजीव व्यास, उदयपुर
पृथ्वी की सतह से उसके केन्द्र की कुल दूरी औसतन लगभग 3960 मील है। धरती की बाहरी सतह ठोस है। इस ठोस सतह पर ही समुद्र हैं। इस सतह के नीचे उच्च तापमान पर पिघला लावा है। बाहरी सतह के हम क्रस्ट या पर्पटी कहते हैं। यह क्रस्ट पूरी तरह एक साथ जुड़ी नहीं है, बल्कि कई जगह से खंडित है। एक तरह से खौलते तरल लावा के ऊपर भूमि के खंड तैरते हैं। इन खंडों को प्लेट्स कहते हैं। दुनिया के नक्शे पर कई प्लेटें हैं। अंदर के दबाव के कारण इन प्लेटों में टकराव होता है तो भूकम्प आते हैं। इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट भारत से होकर गुजरती हैं।
- कैलाश पालीवाल, कानोड़
आपने अक्सर देखा होगा कि कोई एम्बुलेंस खास तरीके का सायरन बजाती आती है और लोग उसे रास्ता देते हैं। इसे आपत्कालीन सेवा संकेत कहते हैं। एम्बुलेंस की छत पर रंगीन बत्तियाँ भी लगी रहती हैं। इसी तरह की व्यवस्था फायरब्रिगेड के साथ भी होती है। पुलिस की गश्ती गाड़ियों पर भी। इसका उद्देश्य ज़रूरी काम पर जा रहे लोगों को पहचानना और मदद करना है। महत्वपूर्ण सरकारी अधिकारियों, फौजी और नागरिक पदाधिकारियों के लिए भी ज़रूरत के अनुसार ऐसी व्यवस्थाएं की जाती हैं।
भारत में सेंट्रल मोटर ह्वीकल्स रूल्स 1989 के नियम 108(3) के अंतर्गत गाड़ियों पर बत्ती लगाने के जो निर्दश दिए हैं उनके अंतर्गत आने वाले कुछ पदाधिकारियों की सूची नीचे दे रहे हैं। ये केन्द्रीय निर्देश हैं। इनके अलावा राज्य सरकारों के निर्देश भी होते हैं।
लाल बत्ती फ्लैशर के साथ
राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा स्पीकर, कैबिनेट मंत्री, हाई कोर्टों के मुख्य न्यायाधीश, पूर्व प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष, राज्यों के मुख्यमंत्री आदि।
लाल बत्ती बिना फ्लैशर के
मुख्य चुनाव आयुक्त, सीएजी, लोकसभा उपाध्यक्ष, राज्य मंत्री, सचिव स्तर के अधिकारी आदि।
पीली बत्ती
कमिश्नर इनकम टैक्स, रिवेन्यू कमिश्नर, डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक।
नीली बत्ती
एम्बुलेंस, पुलिस की गाड़ियाँ
भूकंप क्यों आते हैं?
- राजीव व्यास, उदयपुर
पृथ्वी की सतह से उसके केन्द्र की कुल दूरी औसतन लगभग 3960 मील है। धरती की बाहरी सतह ठोस है। इस ठोस सतह पर ही समुद्र हैं। इस सतह के नीचे उच्च तापमान पर पिघला लावा है। बाहरी सतह के हम क्रस्ट या पर्पटी कहते हैं। यह क्रस्ट पूरी तरह एक साथ जुड़ी नहीं है, बल्कि कई जगह से खंडित है। एक तरह से खौलते तरल लावा के ऊपर भूमि के खंड तैरते हैं। इन खंडों को प्लेट्स कहते हैं। दुनिया के नक्शे पर कई प्लेटें हैं। अंदर के दबाव के कारण इन प्लेटों में टकराव होता है तो भूकम्प आते हैं। इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट भारत से होकर गुजरती हैं।
हमारी पलकें क्यों झपकती हैं?
- नवीन शर्मा, बाड़मेर पलकों का झपकना हमारी आँखों का एक प्रकार का सुरक्षा तंत्र है। बार-बार पलकें झपकने से आँखों में मौजूद पानी पूरी आँख में बराबरी से फैलता है। आँखों में निरंतर नमी की ज़रूरत होती है। नमी न हो तो आँख खराब हो जाएंगी। वे लगातार खुली रहें तो वे सूख जाएंगी, जिससे जलन होने लगेगी। पलकें झपकते हुए आँखों में मौजूद छोटे मोटे बाहरी तत्वों को भी कॉर्निया और कंजक्टिवा से हटाती रहती हैं। तेज हवा और आँधी में पलकें बंद हो जाती हैं ताकि धूल-मिट्टी न चली जाए। छींक आने पर भी पलकें बंद हो जाती हैं ताकि पुतलियाँ बाहर न निकलें।
राजस्थान पत्रिका के कॉलम नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित
- नवीन शर्मा, बाड़मेर पलकों का झपकना हमारी आँखों का एक प्रकार का सुरक्षा तंत्र है। बार-बार पलकें झपकने से आँखों में मौजूद पानी पूरी आँख में बराबरी से फैलता है। आँखों में निरंतर नमी की ज़रूरत होती है। नमी न हो तो आँख खराब हो जाएंगी। वे लगातार खुली रहें तो वे सूख जाएंगी, जिससे जलन होने लगेगी। पलकें झपकते हुए आँखों में मौजूद छोटे मोटे बाहरी तत्वों को भी कॉर्निया और कंजक्टिवा से हटाती रहती हैं। तेज हवा और आँधी में पलकें बंद हो जाती हैं ताकि धूल-मिट्टी न चली जाए। छींक आने पर भी पलकें बंद हो जाती हैं ताकि पुतलियाँ बाहर न निकलें।
राजस्थान पत्रिका के कॉलम नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित