Monday, February 5, 2018

विश्व की पहली रोबो नागरिक

सोफिया पहली पूर्ण रोबोट है, जो मनुष्य की तरह व्यवहार कर सकती है, हालांकि उसका व्यवहार अभी काफी शुरुआती स्तर का है. उसे फिल्म अभिनेत्री ऑड्री हैपबर्न की शक्ल दी गई है. सोफिया को हांगकांग की कम्पनी हैंसन रोबोटिक्स (Hanson Robotics) ने तैयार किया है. उसे बनाने में कृत्रिम मेधा (Artificial Intelligence) के विशेषज्ञों और गूगल की पितृ कम्पनी अल्फाबेट इनकॉरपोरेशन की मदद ली गई है, जिसने उसे आवाज पहचानने की क्षमता दी है और सिंगुलैरिटीनेट (SingularityNET) ने उसके दिमाग को तैयार किया है. 25 अक्तूबर 2017 को सऊदी अरब सरकार ने उसे नागरिकता देने की घोषणा भी की है. इस प्रकार वह दुनिया की पहली रोबो नागरिक बन गई है. दिसम्बर 2017 में सोफिया को भारत में पहली बार आईआईटी, बॉम्बे के टेकफेस्ट समारोह में पेश किया गया.
सोफया बातचीत करती है और उसके चेहरे पर हाव-भाव भी आते हैं. वह पूर्व निर्धारित विषयों पर विचार-विमर्श कर सकती है. उसके जवाब पूर्व निर्धारित होते हैं. उसका सम्पर्क क्लाउड नेटवर्क से होता है, जहाँ से वह उत्तर प्राप्त करती है. उसकी आँखों की जगह पर लगे कैमरा अलग-अलग चेहरों को पहचान सकते हैं. इसे सन 2015 में बनाया गया था, पर उसके पैर जनवरी 2018 में ही सक्रिय किए गए हैं. कृत्रिम मेधा विशेषज्ञ अनुभव के आधार पर उसका निरंतर विकास कर रहे हैं. सोफिया के अलावा हैंसन रोबोटिक्स ने उसके कुछ साथी और बनाए हैं. इनके नाम हैं एलिस, अल्बर्ट आइंस्टाइन ह्यूबो, बीना48, हान, ज्यूल्स, प्रोफेसर आइंस्टाइन, फिलिप के डिक एंड्रॉयड, ज़ेनो और जो कैओटिक.  
राजकोषीय घाटा?
राजकोषीय घाटा तब होता है, जब सरकार का कुल खर्च उसके राजस्व से ज्यादा हो जाए. राजस्व घाटे का मतलब हमेशा वास्तविक राजस्व वसूली में कमी नहीं होती. सरकारी व्यय ज्यादा होने पर भी घाटा होता है. इस घाटे की भरपाई आमतौर पर केंद्रीय बैंक (रिजर्व बैंक) से उधार लेकर की जाती है या छोटी और लंबी अवधि के बॉन्ड के जरिए पूंजी बाजार से फंड जुटाया जाता है. घाटा पूरा करने के मकसद से ली गई उधारी पर सरकार को जो ब्याज देना पड़ता है, उसे राजकोषीय घाटे में से कम करने पर हासिल धनराशि को प्राथमिक घाटा कहेंगे. वास्तविक राजस्व वसूली उम्मीद से ज्यादा होने पर रेवेन्यू सरप्लस की स्थिति पैदा होती है.
राजकोषीय घाटे को लेकर अर्थशास्त्रियों की कई धारणाएं हैं. जॉन मेनार्ड कीन्स की धारणा थी कि राजस्व घाटा, देशों को मंदी से बचाता है. परम्परागत समझ है कि बजट में संतुलन होना चाहिए. अमेरिकी अर्थ-व्यवस्था में राजकोषीय घाटे की सकारात्मक भूमिका भी रही है. जब संयुक्त राज्य अमेरिका बन ही रहा था, तब वित्तमंत्री अलेक्जेंडर हैमिल्टन ने सुझाव दिया कि गृहयुद्ध के दौरान लिए गए कर्जों को चुकता करने के लिए बॉण्ड जारी किए जाएं. इन कर्जों पर ब्याज देने के कारण राजकोषीय घाटा पैदा हो रहा था. जब 1860 के दशक में सारे कर्ज निपट गए तो घाटा भी खत्म हो गया.
इसके बाद के सभी युद्धों के खर्च के लिए अमेरिका ने कर्जे लिए. पहले और दूसरे विश्वयुद्धों के दौरान जीडीपी के 17 और 24 फीसदी तक का घाटा था. चालू वित्त वर्ष में अमेरिकी सरकार का घाटा 440 अरब डॉलर का है, जो जीडीपी का 2.5 फीसदी है. सन 2017-18 के भारत के आम बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य था जीडीपी का 3.2 फीसदी.  
पूँजीगत खर्च क्या होता है?
आम बजट में और कम्पनियों की बैलेंस शीट में पूँजीगत व्यय (Capex) का उल्लेख होता है. यह खर्च कम्पनी या देश की अचल (फिक्स्ड) सम्पदा जैसे भवन, वाहन, उपकरण या भूमि वगैरह को खरीदने पर होता है. यह खर्च इस सम्पदा की खरीद के अलावा वर्तमान सम्पदा की जीवनावधि को बढ़ाने, मसलन रिपेयर वगैरह पर भी हो सकता है.
दावोस शिखर सम्मेलन?
दावोस स्विट्जरलैंड का एक शहर है, जो हर साल जनवरी के उत्तरार्ध में होने वाले आर्थिक शिखर-सम्मेलन के कारण प्रसिद्ध हुआ है. इस बैठक में दुनिया के ढाई हजार के आसपास बिजनेस लीडर जमा होते हैं. उनके अलावा विभिन्न देशों के राजनीतिक नेता, अर्थशास्त्री और सरकारी अधिकारी भी यहाँ जमा होते हैं. इस सालाना सम्मेलन के अलावा व‌र्ल्ड इकोनॉमिक फोरम साल में छह से आठ क्षेत्रीय बैठकें भी आयोजित करता है. ये बैठकें अफ्रीका, पूर्वी एशिया, लैटिन अमेरिका और दूसरे इलाकों में आयोजित होती हैं. इनके अलावा दो सालाना बैठकें चीन और संयुक्त अरब अमीरात में भी होती हैं.
व‌र्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, जिनीवा स्थित एक गैर-सरकारी संस्था है, जो वैश्विक प्रश्नों पर विचार करती है. हर साल स्विट्ज़रलैंड के दावोस शहर में होने वाली बैठक के कारण यह प्रसिद्ध है. इस बैठक में दुनिया भर के उद्योगपति, राजनैतिक नेता, पत्रकार और बुद्धिजीवी हिस्सा लेते हैं. एक-प्रकार से यह संस्था सरकारों और निजी उद्योग जगत के बीच सेतु का काम भी करती है. इस संस्था की शुरुआत 1971 में क्लॉस मार्टिन शाबे नाम के बिजनेस प्रोफेसर ने जिनीवा में की थी. तब इसका नाम था युरोपियन मैनेजमेंट फोरम. तब यह एक तरह से बिजनेस से जुड़े लोगों की संस्था थी. धीरे-धीरे इसका रूप बदलता गया और 1987 में इसका नाम वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम हो गया.


2 comments:

  1. सोफिया के बारे में दी गयी जानकारी अच्छी लगी।

    ReplyDelete
  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राजौरी के चारों शहीदों को शत शत नमन - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...