प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन
की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग की स्थापना 18 नवम्बर 2004 को की गई थी. देश में किसानों की बढ़ती आत्महत्या की
घटनाओं के कारण इसका गठन किया गया था. यूपीए सरकार के न्यूनतम साझा कार्यक्रम में
किसानों की समस्या का समाधान भी शामिल था. आयोग ने पहले दिसम्बर 2004, अगस्त 2005, दिसम्बर 2005 और अप्रेल 2006 में अपनी चार रिपोर्टें
दीं. इसके बाद 4 अक्तूबर 2006 को अपनी पाँचवीं और अंतिम रिपोर्ट दी.
आयोग ने खाद्य और
पुष्टाहार सुरक्षा के लिए एक मध्यावधि-नणनीति बनाने, कृषि उत्पादकता, लाभ और खेती-बाड़ी की व्यवस्था को सुदृढ़ करने, युवा वर्ग को खेती की तरफ आकर्षित करने, नीतिगत सुधारों, कृषि-अनुसंधान पर निवेश
बढ़ाने और समेकित विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सुझाव दिए थे. इनमें
से एक सुझाव यह भी था कि गेहूँ और धान के अलावा दूसरी फसलों के लिए भी न्यूनतम
समर्थन मूल्य की व्यवस्था की जानी चाहिए. आयोग का सुझाव था कि किसान को भारित औसत
लागत से 50 प्रतिशत ज्यादा कीमत दी
जानी चाहिए.
अन्न का औसत लागत मूल्य
क्या होता है?
स्वामीनाथन आयोग ने अपनी
रिपोर्ट में भारित औसत लागत को परिभाषित नहीं किया था. अलबत्ता देश के कृषि लागत
और मूल्य आयोग (CACP) ने भारित लागत को तीन तरह
से परिभाषित किया है. इन्हें A2, A2+FL और C2 कहा जाता है. A2 के अंतर्गत किसानों
द्वारा बीज, खाद, रसायन, मजदूरों, ईंधन, सिंचाई वगैरह पर हुआ खर्च
शामिल होता है. A2+FL में उपरोक्त लागतों के, जिनका भुगतान कर दिया गया है, अलावा परिवार के
श्रम को भी शामिल किया जाता है, जिसका भुगतान नहीं किया
गया.
C2 लागत और ज्यादा व्यापक है. इसमें उपरोक्त दो लागतों के
अलावा जमीन और खेती से जुड़ी दूसरी अचल सम्पदा के किराए और ब्याज वगैरह को भी
शामिल किया जाता है. भारत के आम बजट में सरकार ने किसान की लागत के मूल्य पर 50 फीसदी ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की जो घोषणा की है, उसमें यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार का आशय उपरोक्त तीनों में
से किस लागत से है.
‘ब्लू मून’ की गणना कैसे होती है?
ब्लू मून का मतलब है साल
में एक अतिरिक्त पूर्णमासी का होना. या किसी महीने में एक के बजाय दो पूर्ण चंद्र.
इसी तरह एक मौसम में तीन के बजाय चार पूर्ण चंद्र. चूंकि ऐसा बहुत कम होता है
इसलिए इसे मुहावरा बना दिया गया, ‘वंस इन ए ब्लू मून.’ वैसे ही जैसे ‘ईद का चाँद.’ सामान्यतः एक कैलेंडर महीने में एक रात ही पूर्ण चंद्रमा
दिखाई देता है. चंद्रवर्ष और सौरवर्ष की काल गणना में संगति बैठाने के लिए प्राचीन
यूनानी खगोल-विज्ञानी एथेंस के मेटोन ने गणना करके बताया कि 19 साल में 235 चंद्रमास (228 सौरमास) और 6940 दिन होते हैं. इस प्रकार
19 साल का एक मेटोनिक चक्र होता है. आपने देखा कि इन 19 साल में 234 चंद्रमास हैं जबकि
कैलेंडर में 228 महीने हैं. इस प्रकार इन
19 साल में (234-228=7)
सात अतिरिक्त
पूर्णचंद्र होंगे. इस 19 वर्ष की अवधि में यदि
किसी साल फरवरी में पूर्णमासी नहीं होती है (जैसाकि इस साल है) तब एक ब्लू मून और
बढ़ जाता है.
पिछली 31 जनवरी 2018 से पहले 31 जुलाई 2015 को ब्लू मून था. अब इसके
आगे की तारीखें हैं 31 मार्च, 2018, 31 अक्तूबर, 2020, 31 अगस्त, 2023, 31 मई, 2026, 31 दिसम्बर, 2028, 30 सितम्बर, 2031, 31 जुलाई, 2034. आपने गौर किया होगा कि 31 जुलाई 2015 के ठीक 19 साल बाद उसी तारीख यानी 31 जुलाई 2034 को ब्लू मून होगा.
टैक्टिकल न्यूक्लियर वैपन?
टैक्टिकल न्यूक्लियर वैपन
का मतलब होता है, छोटे नाभिकीय अस्त्र. नाभिकीय अस्त्र बड़े स्तर पर भारी संहार
करता है. उनका इस्तेमाल वास्तविक युद्धक्षेत्र से दूर शत्रु-देश की सीमा के काफी
भीतर जाकर किया जाता है, जबकि इन छोटे हथियारों का इस्तेमाल छोटे युद्धक्षेत्र में
किया जा सकता है. इनमें ग्रेविटी बम, कम दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें, तोप के
गोले, पलीते वगैरह होते हैं. इन हथियारों के इस्तेमाल से बड़े आणविक युद्ध का खतरा
पैदा हो सकता है. हाल के वर्षों में पाकिस्तानी सेना ने भारत को धमकियाँ दी हैं कि
यदि कभी सीमा पार की तो हम टैक्टिकल न्यूक्लियर वैपन का इस्तेमाल करेंगे.
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बैंक की साख पर बट्टा है ये घोटाला : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नलिनी जयवंत और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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