चीन के
राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने ताइवान के लोगों से कहा है कि उनका हर हाल
में चीन के साथ 'एकीकरण' होकर रहेगा. चीन मानता है कि ताइवान उसका टूटा हुआ
हिस्सा है. शी चिनफिंग के भाषण के एक दिन पहले 2 जनवरी को ताइवान की राष्ट्रपति साई
इंग-वेन ने कहा कि हम चीन की शर्तों पर एकीकरण के लिए कभी तैयार नहीं होंगे. चीन
को 2.3 करोड़ लोगों की
स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए. चीन सरकार ‘एक चीन
नीति’ को
बहुत महत्व देती है. जो देश इसे स्वीकार नहीं करता उससे राजनयिक सम्बन्ध नहीं
रखती. उसने धमकी दे रखी है कि यदि यह देश औपचारिक स्वतंत्रता की घोषणा करेगा, तो
हम फौजी कार्रवाई करेंगे. भारत भी ‘एक चीन नीति’ को स्वीकार करता है. दुनिया के केवल 17 देशों के साथ इसके रिश्ते
हैं. चीन मानता है
कि ताइवान को चीन में शामिल होना होगा, भले ही हमें इसके लिए बल प्रयोग क्यों न
करना पड़े.
चीन और इसमें
क्या अंतर है?
इसका आधिकारिक
नाम है रिपब्लिक ऑफ़ चाइना. सन 1912 से यह मेनलैंड चीन का नाम है, जो 1950 तक सर्वमान्य था. आज
मेनलैंड चीन का नाम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना है, जो 1949 के बाद रखा गया. पहले यह
फॉरमूसा नाम से प्रसिद्ध था और 17वीं सदी से पहले चीन से अलग था. 17वीं सदी में डच
और स्पेनिश उपनिवेशों की स्थापना के बाद यहाँ चीन से हान लोगों का बड़े स्तर पर
आगमन हुआ. सन 1683 में चीन के अंतिम चिंग राजवंश ने इस द्वीप पर कब्जा कर लिया. उन्होंने
चीन-जापान युद्ध के बाद 1895 में इसे जापान से जोड़ दिया. उधर चीन में 1912 में
चीनी गणराज्य की स्थापना हो गई, पर ताइवान, जापान के अधीन रहा. सन 1945 में जापान के
समर्पण के बाद यह चीनी गणराज्य के हाथों में चला गया. उन दिनों चीन में राष्ट्रवादी
पार्टी कुओमिंतांग और कम्युनिस्टों के बीच युद्ध चल रहा था. सन 1949 में माओ-जे-दुंग के नेतृत्व
में कम्युनिस्टों ने च्यांग काई शेक के नेतृत्व वाली कुओमिंतांग पार्टी की सरकार
को परास्त कर दिया. माओ के पास नौसेना नहीं थी, इसलिए वे समुद्र पार करके ताइवान
पर कब्जा नहीं कर सके. ताइवान तथा कुछ
द्वीप कुओमिंतांग के कब्जे में ही रहे.
ताइवान बचा कैसे रहा?
काफी समय तक दुनिया ने
साम्यवादी चीन को मान्यता नहीं दी. पश्चिमी देशों ने ताइवान को ही चीन माना. संयुक्त राष्ट्र के जन्मदाता
देशों में वह शामिल था. सन 1971 तक साम्यवादी चीन के स्थान पर वह संरा का सदस्य
था. साठ के दशक में इस देश ने बड़ी तेजी से आर्थिक और तकनीकी विकास किया. अस्सी और
नब्बे के दशक में कुओमिंतांग के अधीन एक दलीय सैनिक तानाशाही की जगह यहाँ बहुदलीय
प्रणाली ने ले ली. यह देश इलाके के सबसे समृद्ध और शिक्षित देशों में गिना जाता
है. सन 1971 के बाद से यह संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं है. देश की आंतरिक
राजनीति में भी चीन में शामिल हों या नहीं हों, इस आधार पर राजनीतिक दल बने हैं.