Thursday, January 3, 2019

बांग्लादेश की शासन-पद्धति?



बांग्लादेश में भारत की तरह संसदीय शासन पद्धति है. देश में बहुदलीय प्रणाली है, जिसके तहत पाँच साल में संसदीय चुनाव होते हैं. इस बार 30 दिसम्बर को चुनाव हुए. 350 सदस्यों वाले सदन को जातीय संसद कहते हैं. देश का संविधान सन 1972 में तैयार हुआ था. इसमें अब तक 16 संशोधन हो चुके हैं. संसद के 350 सदस्यों में से 300 सीधे फर्स्ट पास्ट द पोस्ट की पद्धति से चुने जाते हैं. महिलाओं के लिए आरक्षित 50 सीटों का चुनाव पार्टियों को प्राप्त वोटों के अनुपात में किया जाता है. सन 1973 से अब तक संसद के 10 चुनाव हो चुके हैं. पहले चुनाव में शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में अवामी लीग को भारी विजय मिली थी और वे प्रधानमंत्री बने. पर 15 अगस्त 1975 को उनकी हत्या के बाद देश में सैनिक शासन लागू रहा. फिर देश में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली लागू कर दी गई और 1977 में सेनाध्यक्ष जनरल जिया-उर-रहमान राष्ट्रपति बने. सन 1979 में संसदीय चुनाव हुए और अर्ध-अध्यक्षात्मक/अर्ध संसदीय प्रणाली की शुरूआत हुई.
संसदीय प्रणाली की वापसी
सन 1981 में राष्ट्रपति जिया-उर-रहमान की हत्या कर दी गई. उनके स्थान पर अब्दुस सत्तार राष्ट्रपति बने. एक साल बाद उनकी सरकार का तख्ता भी पलट गया. कुछ समय के अंतराल में सेनाध्यक्ष हुसेन मोहम्मद राष्ट्रपति बने. उन्होंने अपनी जातीय पार्टी बनाई. उनके ही नेतृत्व में सन 1988 में देश की संसद ने धर्मनिरपेक्ष-व्यवस्था के स्थान पर इस्लाम को देश का धर्म घोषित किया. सन 1990 में जनांदोलनों के बाद लोकतंत्र की वापसी हुई. सन 1991 में चुनाव के बाद खालिदा जिया प्रधानमंत्री बनीं. संविधान में 12वाँ संशोधन हुआ, जिसके तहत संसदीय प्रणाली की वापसी हुई. सन 1996 में संसद के दो बार चुनाव हुए. फरवरी 1996 के चुनाव में बीएनपी के मुकाबले पूरे विपक्ष ने चुनाव का बहिष्कार किया. इसके बाद जून में फिर चुनाव हुए, जिनमें अवामी लीग को बहुमत मिला और शेख हसीना पहली बार प्रधानमंत्री बनीं, पर 2001 के चुनाव में खालिदा जिया की वापसी हुई. सन 2006 से 2008 के बीच फिर अराजकता रही. सन 2008 के बाद से शेख हसीना की सरकार वहाँ है.
क्या अब स्थिरता है?
देश में पिछले चुनाव सन 2014 में हुए थे. तब खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने चुनाव का बहिष्कार किया था, जिसके कारण 154 सीटों पर चुनाव ही नहीं हुआ. इन 154 में से 127 पर अवामी लीग के प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए. नव-निर्वाचित सदस्यों ने 9 जनवरी, 2014 को शपथ ली. अवामी लीग की शेख हसीना लगातार दूसरी बार देश की प्रधानमंत्री बनी थीं. इसबार चुनाव में बीएनपी की भागीदारी भी है. सत्तारूढ़ गठबंधन के मुकाबले विरोधी दलों का जातीय ओइक्य (या एक्य) फ्रंट भी चुनाव मैदान में है. 20 दलों के इस फ्रंट में बीएनपी भी शामिल है, पर उसकी नेता खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण जेल की सज़ा मिली है. इस फ्रंट के नेता हैं कमाल हुसेन, जो पहले शेख मुजीबुर्रहमान के सहयोगी हुआ करते थे.


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