Friday, December 31, 2021

वीडियो-बॉम्बिंग

यह शब्द टीवी पत्रकारिता के विकास के साथ एक नई तरह की संस्कृति को व्यक्त करता है। किसी वीडियो में अचानक किसी ऐसे व्यक्ति का आ जाना जिसकी उम्मीद नहीं रही हो। अक्सर टीवी पत्रकार किसी विशिष्ट व्यक्ति से कैमरा पर बात करते हैं तो आसपास लोग जमा हो जाते हैं और कैमरा में अपनी शक्ल दिखाने की कोशिश करते हैं। कोशिश ही नहीं हाथों से इशारे वगैरह भी करते हैं, ताकि उनकी तरफ ध्यान जाए। किसी बड़े खिलाड़ी, नेता, अभिनेता या सेलिब्रिटी के साथ खुद को जोड़ने की कोशिश करना वीडियोबॉम्बिंग है। हाल के वर्षों में खेल के जीवंत प्रसारण के साथ ऐसे दर्शकों की तस्वीरें भी दिखाई जाने लगी है, जो अपने पहनावे, रंगत या हरकतों की वजह से अलग पहचाने जाते हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के साथ कुछ दर्शक दुनियाभर की यात्रा करते हैं और हरेक मैच में नजर आते हैं। अमेरिका के रॉलेन फ्रेडरिक स्टीवर्ट ने सत्तर के दशक में अमेरिकी खेल के मैदानों में इंद्रधनुषी रंगों के एफ्रो-स्टाइल विग पहनकर इसकी शुरुआत की थी, जिसके कारण उन्हें रेनबो मैन कहा जाता था। इसे फोटोबॉम्बिंग भी कहा जाता है।

 आईक्यू क्या होती है?

बुद्धिलब्धि या इंटेलिजेंस कोशेंट संक्षेप में आईक्यूकई तरह के परीक्षणों से प्राप्त एक गणना है जिससे बुद्धि का आकलन किया जाता है। आईक्यू या इंटेलिजेंस कोशेंट शब्द का पहली बार इस्तेमाल जर्मन मनोवैज्ञानिक विलियम स्टर्न ने 1912 में अल्फ्रेड बाईनेट और थियोडोर सिमोन द्वारा बौद्धिक परीक्षण के लिए प्रस्तावित पद्धति के लिए किया था। इस शब्द का इस्तेमाल अब भी होता है, पर अब वेचस्लेर एडल्ट इंटेलिजेंस स्केल जैसी पद्धतियों का उपयोग आधुनिक बौद्धिक परीक्षण में किया जाता है। इसमें केन्द्रीय मान (औसत आईक्यू’)100 होता है और मानक विचलन 15 होता है। हालांकि विभिन्न परीक्षणों में मानक विचलन अलग-अलग हो सकते हैं। मनोविज्ञानी कहते हैं कि 95 से 105 के बीच का आईक्यू स्कोर सामान्य है।

नीम कड़वा क्यों होता है?

नीम के तीन कड़वे तत्वों को वैज्ञानिकों ने अलग किया है, जिन्हें निम्बिन, निम्बिडिन और निम्बिनिन नाम दिए हैं। सबसे पहले 1942 में भारतीय वैज्ञानिक सलीमुज़्ज़मा सिद्दीकी ने यह काम किया। वे बाद में पाकिस्तान चले गए थे। यह कड़वा तत्व ही एंटी बैक्टीरियल, एंटी वायरल होता है और कई तरह के ज़हरों को ठीक करने का काम करता है। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

Tuesday, December 21, 2021

बॉक्सिंग डे


बॉक्सिंग डे पश्चिमी देशों में क्रिसमस दिवस के अगले कार्यकारी दिन (वीक डे) को मनाया जाता है। बॉक्सिंग डे 26 दिसंबर को होता है, पर इन देशों में यदि क्रिसमस सप्ताहांत में हो, तो बॉक्सिंग डे की छुट्टी क्रिसमस के एक या दो दिन बाद (वीक डे पर) भी हो सकती है। हालांकि शुरू में यह दिन छुट्टी के रूप में मनाया जाता था, ताकि लोग गरीबों को उपहार दे सकें, पर अब यह शॉपिंग की छुट्टी के रूप में मनाया जाने लगा है। इसका यह नाम संभवतः उस बॉक्स के कारण है, जो गरीबों को दान देने के लिए रखा जाता था। या क्रिसमस के बाद गरीबों को उपहार देने वाले बॉक्स के कारण। इसकी शुरुआत युनाइटेड किंगडम से हुई थी, पर अब यह ब्रिटिश साम्राज्य से अतीत में जुड़े रहे तमाम देशों में मनाया जाने लगा है। बॉक्सिंग डे ईसाई संत स्टीफेंस के दिन के रूप में भी मनाया जाता है। यूरोप के कई देशों, जैसे बल्गारिया, कैटालोनिया, चेझ़िया (चेक रिपब्लिक), जर्मनी, हंगरी, नीदरलैंड्स, पोलैंड, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्कैंडिनेविया में इसे दूसरे क्रिसमस दिवस के रूप में भी मनाते हैं।

 

Monday, November 1, 2021

कॉप 26 क्या है?


कांफ्रेंस ऑफ द पार्टीज़ या कॉप दुनिया के 200 देशों वाले यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क ऑन क्लाइमेट चेंज कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के तहत निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है। इस बार इसकी 26वीं बैठक होने जा रही है, इसलिए इसे कॉप 26 कहा जा रहा है। यह बैठक 31 अक्तूबर से 12 नवंबर तक स्कॉलैंड के ग्लासगो शहर में हो रही है। उम्मीद है कि इस सम्मेलन में कॉप 21 के बाद पहली बार मानव-जाति जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अपने लक्ष्यों को ऊपर करेगी। सन 2015 के पेरिस समझौते के अनुसार सभी पक्ष हरेक पाँच साल में इस विषय पर विमर्श करेंगे। इसे बोलचाल की भाषा में रैचेट मिकैनिज्म कहा जाता है। मूल योजना के तहत कॉप 26 का आयोजन नवंबर 2020 में होना चाहिए था, पर महामारी के कारण इस कार्यक्रम को एक साल के लिए टाल दिया गया।

इस समय दुनिया 2050 तक कार्बन उत्सर्जन का नेट-शून्य लक्ष्य हासिल करना चाहती है। यानी जितना कार्बन उत्सर्जित हो उतना वातावरण में पेड़ों या तकनीक के द्वारा अवशोषित कर लिया जाए। इसके अलावा वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस की अधिकतम वृद्धि तक सीमित रखना। ये लक्ष्य कैसे हासिल होंगे, इसे लेकर दुविधा है। बहरहाल जिन बातों पर सहमति है, वे हैं:-

·      सदस्यों और प्राकृतिक आवासीय क्षेत्रों के संरक्षण के लिए सदस्य देशों को एकजुट करना।

·      विकसित देशों को वादे के अनुसार 2020 तक सालाना कम से कम 100 अरब डॉलर जलवायु वित्त उपलब्ध कराने के लिए प्रेरित करना

·      अंतरराष्ट्रीय वित्त संस्थाओं को वैश्विक स्तर पर नेट-शून्य उत्सर्जन सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय संसाधन मुहैया कराने के लिए तैयार करना।

सम्मेलन से क्या उम्मीदें?

·      जलवायु परिवर्तन रोकने के लक्ष्यों और सदस्य देशों की नीतियों में मौजूद अंतर दूर करने के प्रयास हो सकते हैं।

·      भारत की ओर से किसी बड़ी घोषणा की आशा।

·      कार्बन क्रेडिट की खरीद-फरोख्त के लिए कार्बन मार्केट मशीनरी बनाना।

·      सर्वाधिक जोखिम वाले देशों की क्षतिपूर्ति को वित्तीय आवंटन सुनिश्चित करना।

पेरिस समझौता

·      12 दिसंबर 2015 को 196 देशों ने बाध्यकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो 4 नवंबर 2016 से लागू हुआ है।

·      इसके तहत ग्लोबल वॉर्मिंग में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस और आदर्श स्थिति में 1.5 डिग्री तक सीमित करना।

·      समझौते में शामिल देशों को कार्बन उत्सर्जन कटौती के लिए पांच और दस साल के राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाने होंगे और नियमित रूप से इसकी समीक्षा करने होगी। आर्थिक रूप से कमजोर देशों को ये लक्ष्य हासिल करने के लिए विकसित देश आर्थिक भार वहन करेंगे।


Monday, August 16, 2021

कौन हैं तालिबान

तालिबानी नेताओं के साथ बैठे मुल्ला बारादर

अरबी शब्द तालिब का अर्थ है तलब रखने वाला, खोज करने वाला, जिज्ञासु या विद्यार्थी। अरबी में इसके दो बहुवचन हैं-तुल्लाब और तलबा। भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान में इसका बहुवचन तालिबान बन गया है। मोटा अर्थ है इस्लामी मदरसे के छात्र। अफगानिस्तान में सक्रिय तालिबान खुद को अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात का प्रतिनिधि कहते हैं। नब्बे के दशक की शुरुआत में जब सोवियत संघ अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था, उस दौर में सोवियत संघ के खिलाफ लड़ने वाले मुजाहिदीन के कई गुट थे। इनमें सबसे बड़े समूह पश्तून इलाके से थे।

पश्तो-भाषी क्षेत्रों के मदरसों से निकले संगठित समूह की पहचान बनी तालिबान, जो 1994 के आसपास खबरों में आए। तालिबान को बनाने के आरोपों से पाकिस्तान इनकार करता रहा है, पर इसमें  संदेह नहीं कि शुरुआत में तालिबानी पाकिस्तान के मदरसों से निकले थे। इन्हें प्रोत्साहित करने के लिए सऊदी अरब ने धन मुहैया कराया। इस आंदोलन में सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यताओं का प्रचार किया जाता था। चूंकि सोवियत संघ के खिलाफ अभियान में अमेरिका भी शामिल हो गया, इसलिए उसने भी दूसरे मुजाहिदीन समूहों के साथ तालिबान को भी संसाधन, खासतौर से हथियार उपलब्ध कराए।

अफगानिस्तान से सोवियत संघ की वापसी के बाद भी लड़ाई चलती रही और अंततः 1996 में तालिबान काबुल पर काबिज हुए और 2001 तक सत्ता में रहे। इनके शुरुआती नेता मुल्ला उमर थे। सोवियत सैनिकों के जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान के आम लोग मुजाहिदीन की ज्यादतियों और आपसी संघर्ष से परेशान थे इसलिए पहले पहल तालिबान का स्वागत किया गया। भ्रष्टाचार रोकने, अराजकता पर काबू पाने, सड़कों के निर्माण और कारोबारी ढांचे को तैयार करने और सुविधाएं मुहैया कराने में इनकी भूमिका थी।

तालिबान ने सज़ा देने के इस्लामिक तौर तरीकों को लागू किया। पुरुषों और स्त्रियों के पहनावे और आचार-व्यवहार के नियम बनाए गए। टेलीविजन, संगीत और सिनेमा पर पाबंदी और 10 साल से अधिक उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी गई। उस तालिबान सरकार को केवल सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और पाकिस्तान ने मान्यता दी थी। 11 सितंबर, 2001 को न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद दुनिया का ध्यान तालिबान पर गया।

अमेरिका पर हमले के मुख्य आरोपी ओसामा बिन लादेन को शरण देने का आरोप तालिबान पर लगा। अमेरिका ने तालिबान से लादेन को सौंपने की माँग की, जिसे तालिबान ने नहीं माना। इसके बाद 7 अक्टूबर, 2001 को अमेरिका के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय सैनिक गठबंधन ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर दिया और दिसंबर के पहले सप्ताह में तालिबान का शासन ख़त्म हो गया।

ओसामा बिन लादेन और तालिबान प्रमुख मुल्ला मोहम्मद उमर और उनके साथी अफ़ग़ानिस्तान से निकलने में कामयाब रहे। दोनों पाकिस्तान में छिपे रहे और एबटाबाद के एक मकान रह रहे लादेन को अमेरिकी कमांडो दस्ते ने 2 मई 2011 को हमला करके मार गिराया। इसके बाद अगस्त, 2015 में तालिबान ने स्वीकार किया कि उन्होंने मुल्ला उमर की मौत को दो साल से ज़्यादा समय तक ज़ाहिर नहीं होने दिया। मुल्ला उमर की मौत खराब स्वास्थ्य के कारण पाकिस्तान के एक अस्पताल में हुई थी।

तमाम दुश्वारियों के बावजूद तालिबान का अस्तित्व बना रहा और उसने धीरे-धीरे खुद को संगठित किया और अंततः सफलता हासिल की। उसे कहाँ से बल मिला, किसने उसकी सहायता की और उसके सूत्रधार कौन हैं, यह जानकारी धीरे-धीरे सामने आएगी। वर्तमान समय में तालिबान के चार शिखर नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं, जो इस प्रकार हैं: 1.हैबतुल्‍ला अखूंदजदा, 2. मुल्ला बारादर, 3.सिराजुद्दीन हक्कानी और 4.मुल्ला याकूब, जो मुल्ला उमर का बेटा है। इनकी प्रशासनिक संरचना अब सामने आएगी।

 

Sunday, June 13, 2021

एंटीफा क्या है?

 

एंटीफा शब्द अंग्रेजी के एंटी-फासिस्ट का संक्षिप्त रूप है। पिछले साल अमेरिका में अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ़्लॉयड की पुलिस कार्रवाई में हुई मौत के बाद राजधानी वॉशिंगटन समेत कई शहरों में भड़की हिंसा के पीछे इसका हाथ बताया गया था। तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हिंसा में शामिल होने के आरोप में एंटीफा पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया था। यह शब्द उग्रवादी, वामपंथी और फासीवादी विरोधी आंदोलन के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ये लोग नव-नाजी, नव-फासीवाद, ह्वाइट सुपीरियॉरिटी और रंगभेद के खिलाफ हैं।

एंटीफा के गठन को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है। इससे जुड़े सदस्य दावा करते हैं कि इसका गठन 1920 और 1930 के दशक में यूरोपीय फासीवादियों का सामना करने के लिए किया गया था। हालांकि एंटीफा की गतिविधियों पर नजर रखने वाले जानकार बताते हैं कि एंटीफा आंदोलन 1980 के दशक में एंटी-रेसिस्ट एक्शन नामक एक समूह के साथ शुरू हुआ था। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक तक यह आंदोलन सुस्त था लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद इसने रफ्तार पकड़ी थी। हाल में जॉर्ज फ़्लॉयड की पिछले साल हुई मौत के मामले में अमेरिका की एक अदालत द्वारा पूर्व पुलिस अधिकारी डेरेक शॉविन को हत्या का दोषी माने जाने के बाद इस समूह के सदस्यों ने खुशी मनाई थी।

पिनकोड किस आधार पर बने हैं?

पिनकोड यानी पोस्टल इंडेक्स नम्बर भारतीय डाक-व्यवस्था के वितरण के लिए बनाया गया नम्बर है। छह संख्याओं के इस कोड में सबसे पहला नम्बर क्षेत्रीय नम्बर है। पूरे देश को आठ क्षेत्रीय और नवें फंक्शनल जोन में बाँटा गया है। इसमें दूसरा नम्बर उप-क्षेत्र का नम्बर है। तीसरा नम्बर सॉर्टिंग डिस्ट्रिक्ट का है। अंतिम तीन संख्याएं सम्बद्ध डाकघरों से जुड़ी हैं। दिल्ली को शुरूआती नम्बर मिला है 11। 12 और 13 नम्बर हरियाणा को मिले हैं, 14, 15 नम्बर पंजाब को इसी तरह 20 से 28 नम्बर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को मिले हैं। राजस्थान को 30-34, कर्नाटक को 56-59 वगैरह-वगैरह। उदाहरण के लिए दिल्ली के आठ जिलों के पिनकोड भौगोलिक स्थित के अनुसार बाँटे गए हैं। नई दिल्ली के कनॉट प्लेट, बंगाली मार्केट के आसपास के इलाकों के नम्बर 110001 से शुरू होते हैं, मिंटो रोड, अजमेरी गेट और दरियागंज वगैरह का नम्बर है 110002, इसके बाद लोदी रोड, सफदरजंग एयरपोर्ट और पंडारा रोड वगैरह का नम्बर है 110003। अंत में यमुना पार इलाके में मयूर विहार के फेज़ 1 में 110091 से होता हुआ गाज़ीपुर, मयूर विहार फेज़ 3 और वसुन्धरा एनक्लेव में यह 110096 हो जाता है।

‘निसार’ सैटेलाइट क्या है?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा सन 2022 में एक उपग्रह का प्रक्षेपण करने वाले हैं, जिसका नाम नासा-इसरो और सिंथेटिक एपर्चर रेडार (एसएआर) को मिलाकर बनाया गया है निसार। यह उपग्रह धरती की सतह पर होने वाली एक सेमी तक छोटी गतिविधियों पर नजर रखेगा। इसका प्रक्षेपण भारत के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से किया जाएगा। इसे नियर-पोलर कक्षा में स्थापित किया जाएगा और अपने तीन साल के मिशन में यह हरेक 12 दिन में पूरी धरती को स्कैन करेगा।

इस उपग्रह की लागत आएगी 1.5 अरब डॉलर। नासा को इस सैटेलाइट के लिए एक विशेष एस-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रेडार (एसएआर) की जरूरत थी जो भारत ने उपलब्ध कराया है। इस सैटेलाइट में अब तक का सबसे बड़ा रिफ्लेक्टर एंटेना लगाया गया है। दिलचस्प बात यह है कि इसरो का जो रॉकेट इस उपग्रह को लेकर जाएगा उसपर 1992 में अमेरिका ने प्रतिबंध लगाया था। 2200 किलो वजन के नासा-इसरो सार (निसार)को दुनिया की सबसे महंगी इमेजिंग सैटेलाइट माना जा रहा है और यह कैलिफोर्निया में नासा की जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी में तैयार किया जा रहा है।

निसारधरती की सतह पर ज्वालामुखियों, बर्फ की चादरों के पिघलने और समुद्र तल में बदलाव और दुनिया भर में पेड़ों-जंगलों की स्थिति में बदलाव को ट्रैक करेगा। धरती की सतह पर होने वाले ऐसे बदलावों की मॉनिटरिंग इतने हाई रिजॉल्यूशन और स्पेस-टाइम में पहले कभी नहीं की गई। इसका हाई रिजॉल्यूशन रेडार बादलों और घने जंगल के आर-पार भी देख सकेगा। इस क्षमता से दिन और रात दोनों के मिशन में सफलता मिलेगी। इसके अलावा बारिश हो या धूप, कोई भी बदलाव ट्रैक कर सकेगा। अमेरिका और भारत ने इस उपग्रह के प्रक्षेपण का समझौता 2014 में किया था।

रेलगाड़ी की आखिरी बोगी के आखिर में X क्यों अंकित होता है?

रेलगाड़ी के आखिरी डिब्बे पर कोई निशान जरूरी है ताकि उनपर नज़र रखने वाले कर्मचारियों को पता रहे कि पूरी गाड़ी गुज़र गई है। सफेद या लाल रंग से बना यह बड़ा सा क्रॉस आखिरी डिब्बे की निशानी है। इसके अलावा अब ज्यादातर गाड़ियों में अंतिम बोगी पर बिजली का एक लैम्प भी लगाया जाता है, जो रह-रहकर चमकता है। पहले यह लैम्प तेल का होता था, पर अब यह बिजली का होता है। इस लैम्प को लगाना नियमानुसार आवश्यक है। इसके अलावा इस आखिरी डिब्बे पर अंग्रेजी में काले या सफेद रंग का एलवी लिखा एक बोर्ड भी लटकाया जाता है। एलवी का मतलब है लास्ट वेहिकल। यदि किसी स्टेशन या सिग्नल केबिन से कोई गाड़ी ऐसी गुजरे जिसपर लास्ट वेहिकल न हो तो माना जाता है कि पूरी गाड़ी नहीं आ पाई है। ऐसे में तुरत आपात कालीन कार्रवाई शुरू की जाती है।

कार्निवल ग्लास क्या है?

कार्निवल ग्लास से आशय शीशे के उन पात्रों और वस्तुओं से है, जो सजावटी, चमकदार और अनेक रंगतों की आभा देती हैं और महंगी नहीं होतीं। काँच की ये वस्तुएं साँचे में ढालकर या प्रेस करके तैयार की जाती हैं। इनका रूपाकार ज्यामितीय, फूलों-पत्तियों वाला और कट ग्लास जैसा भी होता है। ऐसी वस्तुएं बीसवीं सदी के शुरू बाजारों में आईं थीं और आज भी मिलती हैं। इन्हें कार्निवल ग्लास कहने के पीछे एक कारण यह है कि पश्चिमी देशों में लगने वाले मेलों और उत्सवों में, जिन्हे कार्नवल कहा जाता है ऐसी काँच की वस्तुओं को प्रतियोगिताओं में इनाम के रूप में दिया जाता था।

राजस्थान के मीनेक्स्ट में प्रकाशित

 

 

 

 

 

Friday, April 23, 2021

सूती कपड़ों का चलन कहाँ शुरू हुआ?

कपास की खेती ईसा से कम से कम पाँच हजार साल पहले शुरू हो गई थी। सिंधु घाटी की सभ्यता को सम्भवतः कपास की खेती का श्रेय दिया जा सकता है। अलबत्ता मैक्सिको और पेरू की प्राचीन सभ्यताओं में भी कपास और सूती परिधान मिले हैं। प्राचीन यूनानी लेखक हैरोडोटस ने भारतीय कपास के बारे में लिखा है कि वह भेड़ के ऊन से भी बेहतर होती है। एक और यूनानी इतिहासकार स्त्राबो ने भारतीय सूती परिधानों की खासियतों का विवरण दिया है।

पुराने यूनानी साहित्य में विवरण मिलता है कि भारतीय कपास लेकर अरब व्यापारी आते थे। भारत का वस्त्र उद्योग एक जमाने में दुनिया भर में विख्यात था। यूरोप में छपे हुए भारतीय वस्त्र सन 1690 के बाद पहली बार ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पहुँचाए तो लोग उनपर टूट पड़े। कोझीकोड का कपड़ा जिसे ब्रिटेन में कालीकट या कैलिको क्लॉथ कहा जाता था, इतनी बड़ी मात्रा में जाने लगा कि उससे इंग्लैंड का स्थानीय वस्त्र उद्योग चरमराने लगा। इसके कारण ब्रिटिश संसद ने कैलिको एक्ट पास करके भारतीय वस्त्र के आयात पर रोक लगा दी।

उसी दौरान मशीनों का आविष्कार हो गया और सन 1774 में कैलिको कानून वापस ले लिया गया, क्योंकि इंग्लैंड के उत्पादक भारतीय कपड़े का मुकाबला करने लगे। उसी दौर में भारत तैयार वस्त्रों के निर्यातक के बजाय केवल कपास के निर्यातक के रूप में सीमित होता चला गया। भाप की शक्ति के आविष्कार, सस्ते मजदूरों की उपलब्धि और कताई-बुनाई मशीनरी के आविष्कार ने ब्रिटेन को बड़ी ताकत बना दिया। इंग्लैंड के पूँजीवादी विकास में लंकाशायर और मैनचेस्टर की टेक्सटाइल मिलों की बड़ी भूमिका है।

भारत की पहली हवाई सेवा कहां से हुई?

भारत में पहली व्यावसायिक असैनिक उड़ान 18 फरवरी 1911 को इलाहाबाद से नैनी के बीच हुई थी। इस उड़ान में विमान ने 6 मील यानी 9.7 किलोमीटर की दूरी तय की थी। उस दिन फ्रांसीसी विमान चालक हेनरी पेके हम्बर-सोमर बाईप्लेन पर डाक के 6,500 पैकेट लेकर गया था। यह दुनिया में पहली आधिकारिक एयरमेल सेवा भी थी।

इसके बाद दिसम्बर 1912 में इंडियन एयर सर्विसेज ने कराची और दिल्ली के बीच पहली घरेलू सेवा की शुरुआत की। उसके तीन साल भारत की पहली निजी वायुसेवा टाटा संस ने कराची और मद्रास के बीच शुरू की। 15 अक्तूबर 1932 को जेआरडी टाटा कराची से जुहू हवाई अड्डे तक हवाई डाक लेकर आए। व्यावसायिक उड़ान का लाइसेंस पाने वे पहले भारतीय थे। उनकी विमान सेवा का नाम ही बाद में एयर इंडिया हुआ।

क्या बरसात में समुद्र में भी पानी बढ़ता है?

समुद्र में पानी की मात्रा इतनी ज्यादा होती है कि उसमें बढ़ना-घटना आप समझ नहीं पाएंगे। दूसरे जो पानी बारिश बनकर गिरता है वह भी समुद्र से भाप बनकर उठता है। वापस वह फिर समुद्र में पहुँच जाता है। इसका एक चक्र है, जो चलता रहता है। कभी यहाँ बारिश होती है, कभी ऑस्ट्रेलिया में और कभी यूरोप में। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

 

Thursday, April 22, 2021

गर्मी में पसीना क्यों आता है?


पसीना सर्दियों में भी आ सकता है। महत्वपूर्ण है त्वचा का ठंडा या गर्म होना। हमारे शरीर के भीतर ऐसी व्यवस्था है कि जैसे ही त्वचा का तापमान बढ़े उसे कम करने के लिए शरीर सक्रिय हो जाता है। पसीना उस कोशिश का हिस्सा है। ज़ाहिर है कि गर्मियों शरीर ज्यादा गर्म होता है इसलिए में पसीना ज्यादा आता है। स्तनधारियों की त्वचा में पसीने की ग्रंथियों से निकलने वाला एक तरल पदार्थ हैजिसमें पानी मुख्य रूप से शामिल हैं और साथ ही विभिन्न क्लोराइड तथा यूरिया की थोड़ी सी मात्रा होती है। तेज़ गर्मी में त्वचा की सतह गर्म होने पर शरीर पानी छोड़कर उसे ठंडा करने की कोशिश करता है। गर्म मौसम मेंया व्यक्ति की मांसपेशियों को मेहनत के काम करने के कारणशरीर पसीने का उत्पादन करता है। सर्दियों में उसकी ज़रूरत नहीं होती इसलिए वह नहीं निकलता। हमारे मस्तिष्क के हायपोथेलेमस के प्रियॉप्टिक और एंटेरियर क्षेत्रों के एक केंद्र से पसीना नियंत्रित होता हैजहां तापमान से जुड़े न्यूरॉन्स होते हैं। त्वचा में तापमान रिसेप्टर्स से प्राप्त सूचनाओं से मस्तिष्क सक्रिय हो जाता है और पसीना निकलने लगता है।

क्या सफेद हाथी भी होते हैं?

दक्षिण पूर्व एशिया के थाईलैंड, म्यांमार, लाओस और कम्बोडिया आदि में सफेद हाथी भी मिलते हैं। इनकी संख्या कम होने के कारण इन्हें महत्वपूर्ण माना जाता है। राजा महाराजा ही इन्हें रखते हैं। हिन्दू परम्परा में सफेद हाथी ऐरावत है इन्द्र की सवारी। पवित्र होने के नाते इस इलाके में सफेद हाथियों से काम भी नहीं कराते। हाथी रखना यों भी खर्चीला काम है, इसलिए सफेद हाथी एक मुहावरा बन गया है।

हेल्मेट की शुरूआत कब हुई?

हेल्मेट का मतलब है शिरस्त्राण। सिर को बचाने वाला। ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले शिरस्त्राण मेसोपोटामिया की सभ्यता से जुड़े सैनिकों ने पहने थे। ईसा से तकरीबन एक हजार साल पहले सैनिकों ने चमड़े और धातु के बने टोपे पहनने शुरू किए थे ताकि पत्थरों, डंडों और तलवारों के वार से बचाव हो सके। यों उसके पहले इंसान ने छाते के रूप में सिर को पानी और धूप से बचाने का इंतजाम किया था।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित


Tuesday, April 20, 2021

‘निसार’ सैटेलाइट क्या है?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा सन 2022 में एक उपग्रह का प्रक्षेपण करने वाले हैं, जिसका नाम नासा-इसरो और सिंथेटिक एपर्चर रेडार (एसएआर) को मिलाकर बनाया गया है निसार। यह उपग्रह धरती की सतह पर होने वाली एक सेमी तक छोटी गतिविधियों पर नजर रखेगा। इसका प्रक्षेपण भारत के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से किया जाएगा। इसे नियर-पोलर कक्षा में स्थापित किया जाएगा और अपने तीन साल के मिशन में यह हरेक 12 दिन में पूरी धरती को स्कैन करेगा।

इस उपग्रह की लागत आएगी 1.5 अरब डॉलर। नासा को इस सैटेलाइट के लिए एक विशेष एस-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रेडार (एसएआर) की जरूरत थी जो भारत ने उपलब्ध कराया है। इस सैटेलाइट में अब तक का सबसे बड़ा रिफ्लेक्टर एंटेना लगाया गया है। दिलचस्प बात यह है कि इसरो का जो रॉकेट इस उपग्रह को लेकर जाएगा उसपर 1992 में अमेरिका ने प्रतिबंध लगाया था। 2200 किलो वजन के नासा-इसरो सार (निसार)को दुनिया की सबसे महंगी इमेजिंग सैटेलाइट माना जा रहा है और यह कैलिफोर्निया में नासा की जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी में तैयार किया जा रहा है।

निसारधरती की सतह पर ज्वालामुखियों, बर्फ की चादरों के पिघलने और समुद्र तल में बदलाव और दुनिया भर में पेड़ों-जंगलों की स्थिति में बदलाव को ट्रैक करेगा। धरती की सतह पर होने वाले ऐसे बदलावों की मॉनिटरिंग इतने हाई रिजॉल्यूशन और स्पेस-टाइम में पहले कभी नहीं की गई। इसका हाई रिजॉल्यूशन रेडार बादलों और घने जंगल के आर-पार भी देख सकेगा। इस क्षमता से दिन और रात दोनों के मिशन में सफलता मिलेगी। इसके अलावा बारिश हो या धूप, कोई भी बदलाव ट्रैक कर सकेगा। अमेरिका और भारत ने इस उपग्रह के प्रक्षेपण का समझौता 2014 में किया था।

रेलगाड़ी की आखिरी बोगी के आखिर में X क्यों अंकित होता है?

रेलगाड़ी के आखिरी डिब्बे पर कोई निशान जरूरी है ताकि उनपर नज़र रखने वाले कर्मचारियों को पता रहे कि पूरी गाड़ी गुज़र गई है। सफेद या लाल रंग से बना यह बड़ा सा क्रॉस आखिरी डिब्बे की निशानी है। इसके अलावा अब ज्यादातर गाड़ियों में अंतिम बोगी पर बिजली का एक लैम्प भी लगाया जाता है, जो रह-रहकर चमकता है। पहले यह लैम्प तेल का होता था, पर अब यह बिजली का होता है। इस लैम्प को लगाना नियमानुसार आवश्यक है। इसके अलावा इस आखिरी डिब्बे पर अंग्रेजी में काले या सफेद रंग का एलवी लिखा एक बोर्ड भी लटकाया जाता है। एलवी का मतलब है लास्ट वेहिकल। यदि किसी स्टेशन या सिग्नल केबिन से कोई गाड़ी ऐसी गुजरे जिसपर लास्ट वेहिकल न हो तो माना जाता है कि पूरी गाड़ी नहीं आ पाई है। ऐसे में तुरत आपात कालीन कार्रवाई शुरू की जाती है।

कार्निवल ग्लास क्या है?

कार्निवल ग्लास से आशय शीशे के उन पात्रों और वस्तुओं से है, जो सजावटी, चमकदार और अनेक रंगतों की आभा देती हैं और महंगी नहीं होतीं। काँच की ये वस्तुएं साँचे में ढालकर या प्रेस करके तैयार की जाती हैं। इनका रूपाकार ज्यामितीय, फूलों-पत्तियों वाला और कट ग्लास जैसा भी होता है। ऐसी वस्तुएं बीसवीं सदी के शुरू बाजारों में आईं थीं और आज भी मिलती हैं। इन्हें कार्निवल ग्लास कहने के पीछे एक कारण यह है कि पश्चिमी देशों में लगने वाले मेलों और उत्सवों में, जिन्हे कार्नवल कहा जाता है ऐसी काँच की वस्तुओं को प्रतियोगिताओं में इनाम के रूप में दिया जाता था।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित 

 

 

 

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...