लाल रंग को खतरे के निशान के रूप में सबसे पहले समुद्री जहाजों ने अपनाया। प्रकाश की किरणों में लाल रंग की वेवलेंग्थ ज्यादा होने की वजह से भी यह फैसला किया गया। उन्नीसवीं सदी के शुरू में ब्रिटेन ने रेलवे में सिग्नलिंग की व्यवस्था की। रेलगाड़ियों का एक ही ट्रैक होता था, इसलिए ज़रूरी था कि उनके लिए सिग्नलिंग की व्यवस्था की जाए। लाल रंग को तब तक खतरे के निशान के रूप में स्वीकार किया जा चुका था।
चूंकि हरा रंग
लाइन क्लियर के लिए सोचा गया था, इसलिए रेलवे सिग्नल में उसे
ऊपर रखा गया। वैसे भी रेलवे के शुरू के सिग्नल कई तरह के सोचे गए थे। इनमें सबसे
ज्यादा लोकप्रिय डाउन और अप सिग्नल हुए। उनके साथ रंगीन शीशे की प्लेट होती थीं, जिनके पीछे रात में लालटेन लगाई जाती थी। उसमें एक ही रंग
दिखाई पड़ता था। रेलवे में लाइन क्लियर ज्यादा महत्वपूर्ण होता है और सड़क पर
नियंत्रण और सावधानी।
सड़कों पर
ट्रैफिक के संचालन के लिए 9 दिसम्बर 1868 को लंदन में ब्रिटिश संसद भवन के सामने
रेलवे इंजीनियर जेपी नाइट ने ट्रैफिक लाइट लगाई। यह सिग्नल भी रेलवे जैसा ही था।
पर वह व्यवस्था चली नहीं। सड़कों पर व्यवस्थित रूप से ट्रैफिक सिग्नल सन 1912 में
अमेरिका सॉल्ट लेक सिटी यूटा में शुरू किए गए। सड़कों के ट्रैफिक सिग्नल तय करते
वक्त सोचा गया कि ये संकेतक ज्यादा ऊँचाई पर नहीं होंगे, इसलिए लाल रंग को ऊपर रखना ही बेहतर होगा। वैज्ञानिक
अध्ययनों से यह भी पता लगा कि जो रंग सबसे ज्यादा ध्यान खींचता है, वह लाल नहीं बल्कि लालिमा युक्त पीला रंग या केसरिया रंग है।
इस रंग को भी ट्रैफिक सिग्नल में जगह दी गई है।
ओलिंपिक में
क्रिकेट?
1896 में एथेंस
में हुए पहले ओलिंपिक खेलों में क्रिकेट को भी शामिल किया गया था, पर पर्याप्त संख्या में टीमें न आ पाने के कारण, क्रिकेट प्रतियोगिता रद्द हो गई। सन 1900 में पेरिस में हुए
दूसरे ओलिम्पिक में चार टीमें उतरीं, पर बेल्जियम और
नीदरलैंड्स ने अपना नाम वापस ले लिया, जिसके बाद सिर्फ फ्रांस
और इंग्लैंड की टीमें बचीं। उनके बीच मुकाबला हुआ, जिसमें इंग्लैंड
की टीम चैम्पियन हुई। पिछले दिनों कॉमनवैल्थ गेम्स में और हाल में एशियाई खेलों
में टी-20 क्रिकेट प्रतियोगिता भी हुई थी। फिलहाल 2024 के पेरिस ओलिंपिक खेलों में
क्रिकेट शामिल नहीं है, पर 2028 के लॉस एंजेलस ओलिंपिक में क्रिकेट को शामिल करने का
फैसला हो गया है। अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक कमेटी (आईओसी) के अध्यक्ष थॉमस बाख के
नेतृत्व में गत 16 अक्तूबर को मुंबई में
हुई बैठक में यह फैसला किया गया।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 28 अक्तूबर, 2023 को प्रकाशित