Thursday, May 12, 2016

चीन का विगुर आंदोलन

चीन के शेनजियांग प्रांत में विगुर अलगाववादी आंदोलन चल रहा है. हिन्दी में इसे उइगुर भी लिखा जा रहा है. हाल में इस आंदोलन के नेता दोल्कुन इसा को भारत का वीजा मिलने और फिर रद्द होने के कारण यह इलाका खबरों में आया. दूसरी वजह है चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर. शेनजियांग से पाकिस्तान के बंदरगाह ग्वादर तक चीन कॉरिडोर बना रहा है, जिसमें राजमार्ग, रेलमार्ग और बिजलीघर वगैरह बनेंगे. शेनजियांग की राजधानी उरुमछी है. इसका सबसे बड़ा नगर काशगर है. चीन में जातिगत हिंसा और सन 2009 में कर्फ़्यू लगने के बाद इसका जिक्र बढ़ा. तिब्बत से भी बड़ा प्रतिरोध शेनजियांग प्रांत में है. यहाँ के लोग पश्चिम में तुर्की की ओर से और उत्तर में मंगोलिया से आए हैं. सन 1933 और 1944 में दो बार यहाँ पूर्वी तुर्किस्तान नाम के स्वतंत्र देश बन चुका है. राजनीतिक शक्ति न होने और सोवियत संघ के दबाव में दोनों बार यह विफल रहा.

बायो टॉयलेट

बायो टॉयलेट मोटे तौर पर ड्राई टॉयलेट हैं जिनमें मल निस्तारण के लिए कम से कम पानी का इस्तेमाल होता है. इसके लिए कई तरह की तकनीकें प्रचलित हैं. डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) ने जो टॉयलेट विकसित किया है उसमें शौचालय के नीचे बायो डाइजेस्टर कंटेनर में एनेरोबिक बैक्टीरिया होते हैं जो मानव मल को पानी और गैसों में तब्दील कर देते हैं. इन गैसों को वातावरण में छोड़ दिया जाता है जबकि दूषित जल को क्लोरिनेशन के छोड़ दिया जाता है. इसे खेती या कंस्ट्रक्शन के काम में इस्तेमाल किया जा सकता है.

किताब का अंतरराष्ट्रीय नम्बर आईएसबीएन

आईएसबीएन (ISBN) नम्बर किताबों की पहचान का नम्बर है. इसे इंटरनेशनल स्टैंडर्ड बुक नम्बर कहते हैं. हर प्रकाशित पुस्तक का एक खास नम्बर होता है. यह प्रकाशकों, पुस्तकालयों और वितरकों के लिए उपयोगी है. सन 1966 में पुस्तक विक्रेता डब्ल्यूएच स्मिथ ने ट्रिनिटी कॉलेज, डबलिन के प्रोफेसर गॉर्डन फॉस्टर से 9 डिजिट का नम्बर तैयार कराया था. इसके बाद इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर स्टैंडर्डाइजेशन ने सारी दुनिया के प्रकाशकों के लिए यूनीक नम्बर की ज़रूरत महसूस की. 1970 से 10 डिजिट का अंतरराष्ट्रीय नम्बर शुरू हो गया. जनवरी 2007 से 13 डिजिट का आईएसबीएन शुरू हुआ जो आजकल प्रचलन में है. आपको 10 और 13 डिजिट के दोनों नम्बर इस्तेमाल में मिलेंगे. सारे प्रकाशक अभी इसे ढंग से लागू कर भी नहीं रहे हैं.

हिंदी में फुल स्टॉप
हिन्दी में जिन विराम चिह्नों का प्रयोग होता है उनमें अधिकतर यूरोप से आए हैं. संस्कृत से हमें केवल एक विराम चिह्न मिला है वह है खड़ी पाई. अल्प विराम, कोलन, सेमी कोलन, डैश और उद्धरण चिह्न इनवर्टेड कॉमा हमने बाहर से लिए हैं. पूर्ण विराम के रूप में खड़ी पाई का इस्तेमाल हम काफी समय से करते आए हैं और आज भी यह सबसे ज्यादा प्रचलित है. हमने अंकों के लिए रोमन को संवैधानिक रूप से स्वीकार कर लिया है इस वजह से 1 और विराम चिह्न ‘।’ में टकराव होने लगा है. हाथ से लिखने पर कभी वाक्य 101 पर खत्म हो तो 101 को ‘101।.’ यानी एक हजार ग्यारह भी पढ़ा जा सकता है. यह सही है या गलत कहने का कोई मतलब नहीं. इस समय दोनों रूप चल रहे हैं.

यूनिसेफ के काम

दूसरे विश्वयुद्ध में तमाम देशों में बरबादी हुई. खासतौर से बच्चों का जीवन कष्टमय हो गया. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 11 दिसम्बर 1946 को युनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल चिल्ड्रंस इमर्जेंसी फंड की स्थापना की. इस संस्था ने बहुत अच्छा काम किया. अंतत: 1953 में इसे एक स्थायी संस्था बना दिया गया जिसका नाम छोटा कर दिया गया. नया नाम था युनाइटेड नेशंस चिल्ड्रंस फंड. इसे संक्षेप में अब भी युनीसेफ ही कहते हैं. युनीसेफ को 1965 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया और 2006 में प्रिंस ऑफ ऑस्तुरियाज़ अवॉर्ड ऑव कॉनकॉर्ड दिया गया.

सिलाई मशीन का आविष्कार

सिलाई मशीन पहली औद्योगिक क्रांति की देन है. इसका जब पहली बार आविष्कार हुआ तब यह ऐसी नहीं थी जैसी आज है. सन 1791 में पहली बार ब्रिटिश आविष्कारक टॉमस सेंट ने एक सिलाई मशीन को पेटेंट कराया. इसे सिर्फ पेटेंट ही कराया गया. इसका व्यावहारिक मॉडल कभी नहीं बना. 1830 में फ्रांस के टेलर बार्थेल्मी तिमोने ऐसी मशीन बना पाए जो कपड़ों की सिलाई करती थी. वे फ़्रांसीसी सेना के लिए वर्दियाँ तैयार करते थे. इसके बाद कई तरह की मशीनें बनीं, पर सबसे महत्वपूर्ण काम अमेरिकी आविष्कारक, अभिनेता और उद्यमी आइजक मैरिट सिंगर ने किया. उन्होंने जो मशीन तैयार की उसकी सूई लम्बवत थी जैसी आज की मशीनों में होती है. आज हालांकि तमाम तरह की मशीनें हैं, पर इनमें ज्यादातर तत्व सिंगर के हैं. 

प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

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