Saturday, March 29, 2025

दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी

माना जाता है कि अमेरिकी डॉलर दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण करेंसी है। हार्ड करेंसी के रूप में वह है भी, पर आज की तारीख में कुवैती दीनार दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा है। स्थिरता इसकी ताकत है। इसके मूल्य में मामूली उतार-चढ़ाव आता है। कुवैत के मज़बूत तेल निर्यात और वित्तीय प्रबंधन के कारण यह मुद्रा स्थिर रहती है। किसी करेंसी को वैश्विक रैंकिंग में ऊपर ले जाने वाले कई कारक होते हैं। कम मुद्रास्फीति, मजबूत अर्थव्यवस्था, ब्याज दरें और निर्यात वगैरह इसके कारक हैं। मोटे तौर पर विनिमय दर एक बड़ा आधार है। पिछले छह महीनों में जहाँ दुनियाभर की अनेक मुद्राओं का मूल्य डॉलर के मुकाबले कम हुआ है वहीं कुवैती दीनार का मूल्य स्थिर रहा है। गत 14 मार्च को एक कुवैती दीनार का मूल्य 3.25 अमेरिकी डॉलर था। पिछले छह महीनों में इसकी सबसे ऊँची कीमत 20 सितंबर, 2024 को 3.28 डॉलर थी। विनिमय दर के आधार पर दुनिया की पहली दस मुद्राएँ इस क्रम में मानी जाती हैं: कुवैती दीनार, बहरीनी दीनार, ओमानी रियाल, जॉर्डन दीनार, ब्रिटिश पाउंड, जिब्राल्टर पाउंड, केमैन आइलैंड्स डॉलर, स्विस फ़्रैंक, यूरो और अमेरिकी डॉलर। 

 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 29 मार्च, 2025 को प्रकाशित



Saturday, March 22, 2025

स्पेस स्टेशन क्या है

स्पेस स्टेशन उपग्रह हैं जो अंतरिक्ष में अनुसंधान के लिए बनाए गए हैं। पहला स्पेस स्टेशन सैल्यूत-1 था जिसे 1971 में सोवियत संघ ने छोड़ा था। इसे पहले धरती पर बनाया गया, फिर छोड़ा गया। अमेरिका का पहला स्टेशन ‘स्काईलैब’ था, जिसे ‘नासा’ ने 14 मई, 1973 को अंतरिक्ष में भेजा। 1977-78 में सौर लपटों से इसे नुकसान पहुँचा और जुलाई, 1979 में जलकर इसके अवशेष समुद्र में गिर गए। 1986 में सोवियत संघ ने ‘मीर’ स्टेशन भेजा, जिसने सन 2001 तक काम किया। वह मॉड्यूलर था, यानी कि इसका एक हिस्सा पहले भेजा गया, फिर धीरे-धीरे अंतरिक्ष में छोटे हिस्से सैटेलाइटों में रखकर भेजे गए और उन्हें जोड़कर बड़ा बनाया गया। अमेरिका ने 80 के दशक में ‘फ्रीडम’ नाम से मॉड्यूलर स्पेस स्टेशन भेजने की योजना बनाई थी, जो फलीभूत नहीं हुई। इसके बाद ‘इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन’ भेजा गया, जिसमें ‘नासा’ के साथ रूसी, जापानी, कनाडा और यूरोपियन स्पेस एजेंसियों ने मिलकर काम किया। इस समय चीन का स्टेशन ‘तियांगोंग’ भी कक्षा में है, जिसका पहला मॉड्यूल 29 अप्रैल 2021 को भेजा गया था। भारत ने भी 2035 तक स्पेस स्टेशन स्थापित करने की तैयारी की है। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 22 मार्च, 2025 को प्रकाशित

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अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स के नौ महीने बाद धरती पर वापस लौट आने के साथ ही इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) भी चर्चा में बना हुआ है. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन का मिशन 2031 में ख़त्म हो जाएगा. आईएसएस 1998 में अपने प्रक्षेपण के बाद से स्पेस इंडस्ट्री की तरक्की का प्रतीक रहा है. पृथ्वी से लगभग 400-415 किलोमीटर की ऊँचाई पर मौजूद इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन 109 मीटर लंबा (एक फुटबॉल मैदान के आकार का) है और इसका वजन चार लाख किलोग्राम (400 टन और लगभग 80 अफ्रीकी हाथियों के बराबर) से अधिक है.





Saturday, March 8, 2025

डिसरप्टिव टेक्नोलॉजी का अर्थ

इसे डिसरप्टिव इनोवेशन या परिवर्तनकारी नवाचार कहते हैं। जैसे सृजन के लिए संहार जरूरी है वैसे ही परिवर्तन के संदर्भ में इसके मायने सकारात्मक है। इनोवेशन, नयापन लाने के लिए पुराने को खत्म करता है। जैसे सीएफएल ने परंपरागत बल्ब को खत्म किया और एलईडी ने सीएफएल को। ‘डिसरप्टिव इनोवेशन’ शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल अमेरिकी शिक्षाविद क्लेटन क्रिस्टेनसेन ने 1995 में किया था। उनके इस विचार के आधार पर ‘इकोनॉमिस्ट’ ने उन्हें ‘अपने समय का सबसे प्रभावशाली मैनेजमेंट-विचारक’ बताया। विस्तार से इस अवधारणा का उल्लेख रिचर्ड एन फॉस्टर की किताब ‘इनोवेशन: द अटैकर्स एडवांटेज’ और जोसेफ शुम्पेटर  की ‘कैपिटलिज्म, सोशलिज्म एंड डेमोक्रेसी’ में हुआ। सभी नवाचार विघटनकारी नहीं होते, भले ही वे क्रांतिकारी हों। बीसवीं सदी के शुरू में कार का आविष्कार क्रांतिकारी था, पर उसने घोड़ागाड़ी के परंपरागत परिवहन को तत्काल खत्म नहीं किया, क्योंकि मोटरगाड़ी महंगी थी। 1908 में फोर्ड के सस्ते मॉडल टी के आगमन के बाद घोड़ागाड़ी खत्म होने की प्रक्रिया शुरू हुई जो तकरीबन तीस साल तक चली। इसके मुकाबले मोबाइल फोन ने परंपरागत फोन को जल्दी खत्म किया। अब सुनाई पड़ रहा है कि मोबाइल फोन को खत्म करने वाली तकनीक आने वाली है। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 8 मार्च, 2025 को प्रकाशित




Saturday, March 1, 2025

आर्टेमिस कार्यक्रम

बाहरी अंतरिक्ष में अनुसंधान के लिए अमेरिका की पहल पर शुरू हुआ यह अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम है। इसमें 2027 तक चंद्रमा पर मनुष्य की यात्रा का प्रयास शामिल है। इसके अलावा इसका लक्ष्य मंगल ग्रह और उससे आगे अंतरिक्ष अन्वेषण का विस्तार करना है। 21 जनवरी 2025 को इस समझौते में फिनलैंड के प्रवेश के साथ, 53 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। इनमें यूरोप के 27, एशिया के नौ, दक्षिण अमेरिका के सात, उत्तरी अमेरिका के  पाँच, अफ्रीका के तीन और ओसनिया के दो देश शामिल हैं। समझौते पर मूल रूप से 13 अक्तूबर 2020 को आठ देशों की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए गए थे। ये देश हैं ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, जापान, लक्ज़ेम्बर्ग, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका। जून 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस कार्यक्रम के समांतर चीन और रूस के नेतृत्व में इंटरनेशनल ल्यूनर रिसर्च स्टेशन (आईआरएलएस) नाम से एक और समझौता भी है। इसका इरादा भी चंद्र सतह पर या चंद्र कक्षा में व्यापक वैज्ञानिक अन्वेषण करना है। इसमें 13 सदस्य देश हैं। भारत इसमें शामिल नहीं है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 1 मार्च, 2025 को प्रकाशित


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