फ्रांस में इन दिनों पेट्रोल
की बढ़ती कीमतों के खिलाफ आंदोलन चल रहा है, जो ‘यलो
जैकेट (ज़िले
ज़ोन)’ या
पीली कमीज आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ है. इसकी शुरूआत 17 नवम्बर को हुई थी,
जिसमें तीन लाख से ज्यादा लोगों ने देश के अलग-अलग शहरों में जाम लगाए और रैलियाँ
कीं. देखते ही देखते इस आंदोलन ने बगावत की शक्ल ले ली. आंदोलनकारियों ने यातायात
रोका, पेट्रोल डिपो घेरे और पुलिस पर हमले किए. कुछ आंदोलनकारियों की मौत भी हुई. आंदोलन
उग्र होता गया और 21 नवम्बर तक इस आंदोलन के कारण 585 नागरिकों के और 113
पुलिसकर्मियों के घायल होने की खबरें आईं. आंदोलन फ्रांस तक ही सीमित नहीं था,
बल्कि हिंद महासागर में फ्रांस प्रशासित द्वीप रियूनियन में दंगे हुए. वहाँ तीन
दिन के लिए स्कूल बंद कर दिए गए. सेना तैनात करनी पड़ी. आंदोलन के कारण सरकार ने
दबाव में आकर टैक्स में वृद्धि वापस ले ली है. मध्य वर्ग का यह गुस्सा फ्रांस में
ही नहीं है, यूरोप के दूसरे देशों में भी है. ऐसे ही आंदोलन इटली, बेल्जियम और
हॉलैंड में भी शुरु हुए हैं.
यलो जैकेट नाम क्यों?
अंग्रेजी में बर्र या ततैया के लिए यलो जैकेट
शब्द का इस्तेमाल किया जाता है. इस आंदोलन से जुड़े लोगों का व्यवहार बर्र जैसा
है. पर केवल इसी वजह से इस आंदोलन को ‘यलो जैकेट’ नाम नहीं मिला.
वस्तुतः सन 2008 से देश में मोटर-चालकों के लिए अपनी गाड़ी में पीले रंग के चमकदार
जैकेट रखना अनिवार्य कर दिया गया है, ताकि आपदा की स्थिति में दूर से पहचाना जा
सके. आंदोलन में शामिल लोग पीली जैकेट पहनते हैं. अब यह जैकेट आंदोलन प्रतीक बन
गया है. पचास के दशक से फ्रांस में मोटर वाहनों की खरीद को बढ़ावा दिया गया. डीजल
इंजनों के निर्माण पर सब्सिडी दी गई. कम्पनियों को मोटर-वाहन खरीदने पर टैक्स में
छूट दी गई. इस वजह से गाड़ियों की भरमार हो गई. इससे देश में मोटर-वाहन उद्योग को
बढ़ावा मिला. समृद्धि भी बढ़ी.
आंदोलन क्यों?
आंदोलन के पीछे बुनियादी तौर पर अपनी व्यवस्था के
प्रति रोष है. इनमें सबसे ज्यादा मध्यवर्ग के गोरे लोग हैं, जो मानते हैं कि
व्यवस्था ने उन्हें भुला दिया है. उनका कहना है कि हम सबसे ज्यादा टैक्स भरते हैं,
फिर भी हमसे ही सारी वसूली की जाती है. उन्हें पूँजीवादी व्यवस्था से भी शिकायत
है. संयोग से पिछले कुछ वर्षों में पेट्रोलियम की कीमतें बढ़ीं और फ्रांस सरकार ने
अपने खर्चे पूरे करने के लिए टैक्स बढ़ाए. जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर सन 2014 से
सरकार ने जीवाश्म-आधारित तेल की खपत कम करने के लिए भी पेट्रोलियम के उपभोग पर
कार्बन टैक्स बढ़ा दिया. इतना ही नहीं सन 2019 में और नए टैक्स लगाने की योजना है.
इन सब बातों का मिला-जुला प्रभाव यह हुआ कि नागरिकों के मन में नाराजगी बढ़ने लगी.
यह महंगाई पिछले राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के समय में शुरू हो गई थी, पर
नाराजगी पिछले महीने भड़की.
अच्छी जानकारी...
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.12.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3191 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद