हालांकि जम्मू-कश्मीर देश के दूसरे राज्यों की
तरह एक राज्य है, पर हमारे संविधान ने इसे विशेष राज्य का दर्जा दिया है. इस वजह
से यहाँ की प्रशासनिक व्यवस्था शेष राज्यों से अलग है. देश का यह अकेला राज्य है,
जिसका अपना अलग संविधान भी है. संविधान के अनुच्छेद 370 के अनुसार देश की संसद और
संघ शासन का जम्मू-कश्मीर पर सीमित क्षेत्राधिकार है. जो मामले संघ सरकार के
क्षेत्राधिकार में नहीं हैं, वे राज्य की विधायिका के अधीन हैं. देश के शेष
राज्यों की तुलना में जम्मू-कश्मीर में एक बड़ा अंतर 30 मार्च, 1965 तक और था.
जहाँ अन्य राज्यों में राज्यपाल का पद होता था, वहाँ जम्मू-कश्मीर में
सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री के स्थान पर वजीर-ए-आज़म (प्रधानमंत्री) का पद होता
था. जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 27 के अनुसार सदर-ए-रियासत का चुनाव
राज्य की विधायिका के मार्फत जनता करती थी. सन 1965 में जम्मू-कश्मीर के संविधान
में हुए छठे संशोधन के बाद सदर-ए-रियासत के पद को राज्यपाल का नाम दे दिया गया और
उसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं.
राज्यपाल या राष्ट्रपति शासन?
इस साल जून में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के
इस्तीफे के बाद जम्मू-कश्मीर में जब राज्यपाल शासन लागू किया गया, तब यह सवाल उठा
था कि क्या यह अन्य राज्यों में लागू होने वाले राष्ट्रपति शासन से अलग है? वास्तव में यह अलग है. जहाँ अन्य राज्यों
में राष्ट्रपति शासन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत लागू किया जाता
है, वहीं जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 92 के तहत राज्यपाल शासन लागू किया
जाता है. यह राज्यपाल शासन छह महीने के लिए लागू होता है. इन छह महीनों के दौरान
विधान सभा स्थगित रहती है या राज्यपाल चाहें तो भंग भी की जा सकती है. छह महीने के
राज्यपाल शासन के बाद या तो नई विधानसभा चुनकर आ सकती है, अन्यथा वहाँ अनुच्छेद
356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है.
दोनों में अंतर?
बुनियादी तौर पर कोई
अंतर नहीं है. दोनों परिस्थितियों में राज्यपाल केन्द्र सरकार के निर्देश पर
प्रशासन चलाते हैं. पर जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन फौरन नहीं लगता. पहले
राज्यपाल शासन लगता है. यदि राज्यपाल इस दौरान विधानसभा भंग करते हैं, तो उसके छह
महीने के भीतर चुनाव होने चाहिए. छह महीने के भीतर चुनाव नहीं होते हैं, तो कारण
स्पष्ट करने होते हैं. राज्य में राज्यपाल शासन के छह महीने की अवधि 20 दिसम्बर को
पूरी होने वाली है. तबतक वहाँ विधानसभा चुनाव नहीं हो पाएंगे, इसलिए राज्यपाल वहाँ
राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करेंगे. इस सिफारिश पर केन्द्रीय मंत्रिमंडल
विचार करेगा और इसके लिए संसद के दोनों सदनों की मंजूरी लेनी होगी. यह मंजूरी
राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद दो महीने के भीतर मिल जानी चाहिए. संसद से
मंजूरी के बाद राष्ट्रपति शासन छह महीने तक लागू रह सकता है. इसकी अवधि फिर बढ़ाई
जा सकती है. सन 1990 में लागू हुआ राष्ट्रपति शासन छह साल तक चला था. इस दौरान
राज्य सूची के 61 विषयों पर कानून देश की संसद बना सकेगी.
No comments:
Post a Comment