दुनिया के काफी देशों में
एक सदन वाली संसदीय व्यवस्था काम करती है. हमारे पड़ोस में श्रीलंका और बांग्लादेश
में एक सदनात्मक व्यवस्था है. पश्चिम एशिया और अफ्रीका के देशों में बड़ी संख्या
में एक सदन ही हैं. इंडोनेशिया में एक सदन है और स्कैंडिनेवियाई देशों में भी. दुनिया
में एक सदन वाले देशों की संख्या ज्यादा है, करीब दो तिहाई. पर इंग्लैंड, फ्रांस,
अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में द्विसदनात्मक व्यवस्था है. अतीत में
कुछ देशों ने तीन सदनों वाली व्यवस्था भी शुरू की थी. दो सदन होने पर एक को उच्च
सदन और दूसरे को निम्न सदन कहते हैं. सामान्यतः निम्न सदनों का आकार और
प्रतिनिधित्व प्रत्यक्ष होता है. उसके पास अधिकार भी ज्यादा होते हैं. कार्यपालिका
की जवाबदेही उनके प्रति होती है. उच्च सदन की भूमिका प्रायः सलाह देने की होती है.
कुछ देशों में उच्च सदन काफी प्रभावशाली होता है. अमेरिकी सीनेट के पास प्रशासन को
चलाने की काफी शक्तियाँ होती हैं. नीदरलैंड्स में उच्च सदन किसी प्रस्ताव को रोक
सकता है. भारत में राज्यसभा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में सीनेट, युनाइटेड
किंगडम में लॉर्डसभा, मलेशिया में दीवान नेगारा, जर्मनी में बुंडेसराट और फ्रांस
में सीने उच्च सदन हैं. इटली की सीनेट के पास वही अधिकार होते हैं, जो निम्न सदन
के पास हैं.
राज्यसभा की पृष्ठभूमि क्या है?
भारत में द्वितीय सदन का प्रारम्भ 1918 के मोन्टेग-चेम्सफोर्ड प्रतिवेदन से
हुआ. भारत सरकार अधिनियम, 1919 में तत्कालीन विधानमंडल के
द्वितीय सदन के तौर पर काउंसिल ऑफ स्टेट्स का सृजन करने का उपबंध किया गया जिसका
विशेषाधिकार सीमित था और जो वस्तुत: 1921 में अस्तित्व में आया। गवर्नर-जनरल
तत्कालीन काउंसिल ऑफ स्टेट्स का पदेन अध्यक्ष होता था। भारत सरकार अधिनियम, 1935 के माध्यम से इसके गठन में कोई
परिवर्तन नहीं किया गया. संविधान सभा ने भी 1950 तक केन्द्रीय विधानमंडल के रूप
में कार्य किया, फिर इसे 'अनंतिम संसद' के रूप में परिवर्तित कर दिया गया. इस अवधि में केन्द्रीय विधानमंडल जिसे 'संविधान सभा' (विधायी) और आगे चलकर 'अनंतिम संसद' कहा गया, 1952 में पहले चुनाव कराए जाने
तक, एक-सदनी रहा.
इसकी भूमिका क्या है?
द्वितीय सदन की उपयोगिता को लेकर संविधान सभा में विस्तृत बहस हुई और अन्ततः द्विसदनीय
विधानमंडल बनाने का निर्णय मुख्य रूप से इसलिए किया गया क्योंकि संघीय प्रणाली को
अपार विविधताओं वाले इतने विशाल देश के लिए सर्वाधिक सहज स्वरूप की सरकार माना गया.
इसका आशय ऐसी सभा से था जिसका निर्वाचन राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों की सभाओं
के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया गया. निर्वाचित सदस्यों के अलावा, राष्ट्रपति द्वारा बारह सदस्यों के नामनिर्देशन का भी उपबंध किया गया. नामनिर्देशित
सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव
है. यह स्थायी सदन है और
भंग नहीं होता, तथापि, प्रत्येक दो वर्ष बाद राज्य सभा के एक-तिहाई सदस्य सेवा-निवृत्त हो जाते हैं. संविधान
के अनुच्छेद 75 (3) के अधीन, मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति जिम्मेदार होती है. यानी कि राज्यसभा सरकार को
बना या गिरा नहीं सकती है, तथापि सरकार पर नियंत्रण रख सकती है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नये भारत का उदय - अनुच्छेद 370 और 35A खत्म - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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