यह शब्द टीवी पत्रकारिता के विकास के साथ एक नई तरह की संस्कृति को व्यक्त करता है। किसी वीडियो में अचानक किसी ऐसे व्यक्ति का आ जाना जिसकी उम्मीद नहीं रही हो। अक्सर टीवी पत्रकार किसी विशिष्ट व्यक्ति से कैमरा पर बात करते हैं तो आसपास लोग जमा हो जाते हैं और कैमरा में अपनी शक्ल दिखाने की कोशिश करते हैं। कोशिश ही नहीं हाथों से इशारे वगैरह भी करते हैं, ताकि उनकी तरफ ध्यान जाए। किसी बड़े खिलाड़ी, नेता, अभिनेता या सेलिब्रिटी के साथ खुद को जोड़ने की कोशिश करना वीडियोबॉम्बिंग है। हाल के वर्षों में खेल के जीवंत प्रसारण के साथ ऐसे दर्शकों की तस्वीरें भी दिखाई जाने लगी है, जो अपने पहनावे, रंगत या हरकतों की वजह से अलग पहचाने जाते हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के साथ कुछ दर्शक दुनियाभर की यात्रा करते हैं और हरेक मैच में नजर आते हैं। अमेरिका के रॉलेन फ्रेडरिक स्टीवर्ट ने सत्तर के दशक में अमेरिकी खेल के मैदानों में इंद्रधनुषी रंगों के एफ्रो-स्टाइल विग पहनकर इसकी शुरुआत की थी, जिसके कारण उन्हें ‘रेनबो मैन’ कहा जाता था। इसे फोटोबॉम्बिंग भी कहा जाता है।
आईक्यू क्या होती है?
बुद्धिलब्धि या इंटेलिजेंस कोशेंट संक्षेप में ‘आईक्यू’ कई तरह के परीक्षणों से प्राप्त एक गणना है जिससे बुद्धि का आकलन किया जाता है। ‘आईक्यू’ या इंटेलिजेंस कोशेंट शब्द का पहली बार इस्तेमाल जर्मन मनोवैज्ञानिक विलियम स्टर्न ने 1912 में अल्फ्रेड बाईनेट और थियोडोर सिमोन द्वारा बौद्धिक परीक्षण के लिए प्रस्तावित पद्धति के लिए किया था। इस शब्द का इस्तेमाल अब भी होता है, पर अब वेचस्लेर एडल्ट इंटेलिजेंस स्केल जैसी पद्धतियों का उपयोग आधुनिक बौद्धिक परीक्षण में किया जाता है। इसमें केन्द्रीय मान (औसत ‘आईक्यू’)100 होता है और मानक विचलन 15 होता है। हालांकि विभिन्न परीक्षणों में मानक विचलन अलग-अलग हो सकते हैं। मनोविज्ञानी कहते हैं कि 95 से 105 के बीच का ‘आईक्यू’ स्कोर सामान्य है।
नीम कड़वा क्यों होता है?
नीम के तीन कड़वे तत्वों
को वैज्ञानिकों ने अलग किया है,
जिन्हें निम्बिन, निम्बिडिन और निम्बिनिन नाम दिए हैं। सबसे पहले 1942 में
भारतीय वैज्ञानिक सलीमुज़्ज़मा सिद्दीकी ने यह काम किया। वे बाद में पाकिस्तान चले
गए थे। यह कड़वा तत्व ही एंटी बैक्टीरियल, एंटी वायरल होता है और कई तरह के ज़हरों को ठीक करने का काम
करता है।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित