नेल्सन, डबल नेल्सन और ट्रिपल नेल्सन क्रिकेट में 111, 222 और 333 के स्कोर को कहते हैं। यह एक लोक प्रयोग हैं और इसे ब्रिटेन की नौसेना के अठारहवीं सदी के मशहूर एडमिरल लॉर्ड होरेशियो नेल्सन के नाम से जोड़ते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस बहादुर फौजी की एक आँख, एक हाथ और एक पैर लड़ाई में जाता रहा। यह तथ्य पूरी तरह सही नहीं है। उनकी एक आँख और एक हाथ वाली बात तक ठीक है, पर उनके दोनों पैर थे। बहरहाल नेल्सन स्कोर के साथ अंधविश्वास है कि इसपर विकेट गिरता है। हालांकि यह भी सच नहीं है। ‘द क्रिकेटर’ नाम की मशहूर मैगज़ीन ने पुराने स्कोर की पड़ताल की तो इन स्कोरों पर विकेट ज़्यादा नहीं गिरे हैं। सबसे ज़्यादा विकेट 0 के स्कोर पर गिरते हैं। बहरहाल प्रसिद्ध अम्पायर डेविड शेफर्ड ने नेल्सन स्कोर को प्रसिद्ध बनाया। वे इस स्कोर पर या तो एक पैर उठा देते थे या तब तक दोनों पैरों पर खड़े नहीं होते थे, जब तक स्कोर आगे न बढ़ जाए। वे उछलते रहते थे। नेल्सन स्कोर की तरह ऑस्ट्रेलिया में 87 के स्कोर को लेकर अंधविश्वास है। 100 से 13 कम यानी 87 को खतरनाक माना जाता है। संयोग है कि ऑस्ट्रेलिया के काफी खिलाड़ी इस स्कोर पर आउट होते हैं।
बॉडी मास इंडेक्स क्या होता है?
बॉडी मास इंडेक्स या बीएमआई व्यक्ति की ऊँचाई और वजन के
संतुलन को बताता है। यह सिर्फ इस बात का
संकेत देता है कि व्यक्ति का वजन कम या ज्यादा तो नहीं। इस संकेतक का आविष्कार
बेल्जियम के वैज्ञानिक एडॉल्फ केटेलेट ने सन 1830 से 1850 के बीच कभी किया। उनके नाम पर इसे केटेलेट इंडेक्स भी कहते
हैं। इसे निकालने का आसान तरीका है व्यक्ति अपने वजन को अपनी ऊँचाई के वर्ग मीटर
से भाग दे तो जो प्राप्त होगा वह उसका बीएमआई है। आमतौर पर यह इंडेक्स 18।5 से 25 के बीच रहना चाहिए। 25 से ऊपर का अर्थ है
व्यक्ति का वज़न ज्यादा है और 18।5 से कम का अर्थ है वज़न कम
है। आपने जो संख्या लिखी है वह इन दो के बीच की संख्या है, इसलिए आदर्श है।
‘पीत-पत्रकारिता’ क्या होती है?
पीत पत्रकारिता उस
पत्रकारिता को कहते हैं जिसमें सही समाचारों की अनदेखी करके सनसनी फैलाने वाले या
ध्यान-खींचने वाले शीर्षकों का बहुतायत में प्रयोग किया जाता है। इसे समाचारपत्रों
की बिक्री बढ़ाने का घटिया तरीका माना जाता है। मूलतः अब इससे आशय अनैतिक और भ्रष्ट
पत्रकारिता है। जिन दिनों यह शब्द चला था तब इसका मतलब लोकप्रिय पत्रकारिता था।
इसका इस्तेमाल अमेरिका में 1890 के आसपास शुरू हुआ था।
उन दिनों जोज़फ पुलिट्जर के अख़बार ‘न्यूयॉर्क वर्ल्ड’ और विलियम रैंडॉल्फ हर्स्ट
के ‘न्यूयॉर्क जर्नल’ के बीच जबर्दस्त प्रतियोगिता चली थी। इस पत्रकारिता को यलो
कहने के बीच प्रमुख रूप से पीले रंग का इस्तेमाल है, जो दोनों अखबारों
के कार्टूनों का प्रभाव बढ़ाता था। दोनों अखबारों का हीरो पीले रंग का कुत्ता था।
यलो जर्नलिज्म शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल उन्हीं दिनों न्यूयॉर्क प्रेस के सम्पादक
एरविन वार्डमैन ने किया।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 25 मार्च, 2023 को
प्रकाशित