Saturday, July 27, 2024

अमेरिकी संसद के चुनाव

 

अमेरिका में इस साल राष्ट्रपति-चुनाव है, साथ ही संसद के चुनाव भी होंगे, जिसके दो सदन हैं-हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव और सीनेट। 50 राज्यों के 435 जिलों से 435 सदस्य चुनकर आएंगे, जिनसे 119वें हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव का गठन होगा। यह सदन 3 जनवरी 2025 से 3 जनवरी 2027 तक काम करेगा। देश का उच्च सदन है सीनेट, जिसमें 50 राज्यों से 100 सदस्य आते हैं। हरेक राज्य को चाहे वह छोटा हो या बड़ा, दो-दो सदस्यों के रूप में बराबर का प्रतिनिधित्व मिलता है। सीनेट के अधिकार भी ज्यादा होते हैं। वर्तमान समय में हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में रिपब्लिकन पार्टी का, 213 के मुकाबले 218 का क्षीण बहुमत है। दूसरी तरफ सीनेट में डेमोक्रेट्स का 51-49 से बहुमत है। हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव का कार्यकाल दो वर्ष का और सीनेटरों का छह वर्ष का होता है। चक्रीय व्यवस्था के तहत हरेक दो साल में सदन के 100 सदस्यों में से एक तिहाई नए आते हैं। इसबार 33 सदस्यों का चुनाव होगा, जो छह साल के लिए चुने जाएंगे। इनके अलावा 11 राज्यों और दो टेरिटरीज़ के गवर्नरों, शहरों के मेयरों तथा कई राज्यों तथा स्थानीय निकायों के चुनाव होंगे।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

Saturday, July 20, 2024

दुनिया में महिला-शासक

भारत के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े लोकतंत्र अमेरिका  की स्थापना के 248 साल बाद तक एक भी महिला राष्ट्रपति पद पर आसीन नहीं हो सकी है। युनाइटेड किंगडम में केवल तीन महिलाएं प्रधानमंत्री पद पर रही हैं। बेहतर हैं दक्षिण एशिया के देश जहाँ दुनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री सिरिमावो भंडारनायके बनीं। उनके बाद इंदिरा गांधी, बेनज़ीर भुट्टो, शेख हसीना और खालिदा जिया प्रधानमंत्री पद पर रहीं। म्यांमार में ऑन्ग सान सू ची भी अपने देश की प्रधानमंत्री रहीं। भारत में प्रतिभा पाटिल और द्रौपदी मुर्मू के अलावा नेपाल में विद्या देवी भंडारी ने राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया। महिला राजनीतिक नेताओं के बारे में 2024 के संयुक्त राष्ट्र डेटा के अनुसार दुनिया के 113 देशों में एकबार भी महिला शासनाध्यक्ष या राष्ट्राध्यक्ष पद पर आसीन नहीं हुई हैं। इस समय केवल 11 देशों का नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं। केवल 23 प्रतिशत मंत्रिपद स्त्रियों के पास हैं। 1 जनवरी 2024 तक के डेटा के अनुसार 141 देशों में कैबिनेट मंत्रियों के पद पर एक तिहाई से कम स्त्रियाँ हैं और सात देशों की कैबिनेट में एक भी महिला मंत्री नहीं है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 20 जुलाई, 2024 को प्रकाशित

Saturday, July 13, 2024

जहाँ रविवार को छुट्टी नहीं होती

पिछले दिनों चुनाव-प्रचार के दौरान एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में रविवार की छुट्टी की जड़ें ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से जुड़ी हैं। रविवार की छुट्टी मूलतः ईसाई परंपरा है। माना जाता है कि ईसाई धर्म को स्वीकार करने वाले रोम के पहले राजा कान्स्टेंटाइन ने 7 मार्च, 321 को आदेश दिया था कि रविवार को सार्वजनिक अवकाश रहेगा, ताकि लोग चर्च जाएं। दुनिया के काफी देशों में रविवार को छुट्टी होती है, पर सभी में नहीं होती। हमारे पड़ोस में नेपाल है, जहाँ शनिवार को साप्ताहिक छुट्टी होती है। बड़ी संख्या में इस्लामिक देशों में शुक्रवार को साप्ताहिक अवकाश होता है, जिनमें- बांग्लादेश, यमन, सीरिया, सऊदी अरब, कुवैत, ईरान, अफगानिस्तान, इराक, मालदीव, कतर, अल्जीरिया, सूडान, लीबिया, मिस्र, ओमान, बहरीन शामिल हैं। यहूदियों के देश इसराइल में शुक्र-शनि को साप्ताहिक अवकाश होता है। पाकिस्तान, मोरक्को, ट्यूनीशिया, लेबनॉन और सेनेगल जैसे इस्लामिक देशों में रविवार को ही अवकाश होता है। संयुक्त अरब अमीरात में, पहले शुक्रवार को होता था, पर 2022 के बाद से शनिवार और रविवार को होने लगा है, ताकि शेष विश्व के साथ उसके बाजारों का संपर्क बना रहे।  

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 13 जुलाई, 2024 को प्रकाशित

Saturday, July 6, 2024

भारत में ईवीएम

चुनाव आयोग ने पहली बार 1977 में इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया से ईवीएम का प्रोटोटाइप बनाने के लिए कहा। 1980 में राजनीतिक दलों को प्रोटोटाइप दिखाया गया और लगभग सभी ने उसे पसंद किया। बीईएल को ईवीएम बनाने का जिम्मा दिया गया और इसका पहला प्रयोगात्मक इस्तेमाल 1982 में केरल के पारावुर विधानसभा चुनाव में हुआ। जन प्रतिनिधित्व कानून-1951 के तहत चुनाव में केवल बैलट पेपर का इस्तेमाल हो सकता था। पारावुर के कुल 84 पोलिंग स्टेशनों में से 50 पर ईवीएम का इस्तेमाल हुआ, पर परिणाम को लेकर विवाद हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने बैलट पेपर से चुनाव कराने का आदेश दिया। फैसले के बाद आयोग ने ईवीएम का इस्तेमाल बंद कर दिया। 1988 में कानून में संशोधन करके ईवीएम को कानूनी बनाया गया। मशीनों का पहला प्रयोगात्मक इस्तेमाल नवंबर 1998 में 16 विधान सभा क्षेत्रों में हुआ। 2004 के लोकसभा चुनाव में पूरी तरह से ईवीएम का इस्तेमाल हुआ। उस चुनाव के बाद यूपीए सरकार बनी। 2009 में भी यूपीए की जीत के बाद भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम का विरोध किया था। अब दूसरे दल कर रहे हैं।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 6 जुलाई, 2024 को प्रकाशित

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