Thursday, April 16, 2015

काउंटडाउन क्यों होता है? सीधी गिनती क्यों नहीं गिनी जाती?

आपने मुहावरा सुना होगा कि फलां की उलटी गिनती शुरू हो गई. यानी कि अंत करीब है. इस मुहावरे को बने अभी सौ साल भी नहीं हुए हैं, क्योंकि उलटी गिनती की अवधारणा बहुत पुरानी नहीं है. काउंटडाउन सिर्फ रॉकेट छोड़ने के लिए ही इस्तेमाल नहीं होता. फिल्में शुरू होने के पहले शुरुआती फुटेज पर उल्टी गिनतियाँ होती हैं. नया साल आने पर पुराने साल के आखिरी सप्ताह काउंटडाउन शुरू हो जाता है. पिछले साल जब भारत में लोकसभा चुनाव हुए तो कुछ टीवी चैनलों ने बाकायदा स्क्रीन पर घंटों और मिनट में चुनाव परिणाम का काउंटडाउन दिखाया. धीर-धीरे यह शब्द हमारे जीवन का हिस्सा बन गया है.

काउंटडाउन की शुरुआत कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी में एक नौका प्रतियोगिता में हुई थी. सन 1929 में फ्रिट्ज लैंग की एक जर्मन साइंस फिक्शन मूवी ‘डाई फ्रॉ इम मोंड’ में चंद्रमा के लिए रॉकेट भेजने के पहले नाटकीयता पैदा करने के लिए काउंटडाउन दिखाया गया. पर अब इस काउंटडाउन का व्यावहारिक इस्तेमाल भी होता है. आमतौर पर एक सेकंड की एक संख्या होती है. सिर्फ टक-टक करने से पता नहीं लगता कि कितने सेकंड बाकी है.
उपग्रह प्रक्षेपण के लिए 72 से 96 घंटे पहले उलटी गिनती शुरू की जाती है. इस दौरान उड़ान से पहले की कुछ प्रक्रियाएं पूरी की जाती हैं. रॉकेट के साथ उपग्रह को जोड़ना, ईंधन भरना और सहायक उपकरणों का परीक्षण करना इसका हिस्सा है. इस चेकलिस्ट की मदद से उड़ान कार्यक्रम सुचारु चलता है. अगस्त 2013 में भारत के जीएसएलवी रॉकेट पर लगे क्रायोजेनिक इंजन के परीक्षण के लिए चल रहे काउंटडाउन के दौरान प्रक्षेपण से एक घंटे 14 मिनट पहले एक लीक का पता लगा और काउंटडाउन रोक दिया गया और उड़ान स्थगित कर दी गई. टीवी चैनलों के कंट्रोल रूम में पैकेज रोल करने के पहले काउंट डाउन होता है. इससे एंकर के वक्तव्य और पैकेज के शुरू होने के बीच सेकंड का भी अंतर नहीं रहता. विमान के कॉकपिट में भी होता है. इन दिनों एक दिनी और टी-20 क्रिकेट मैच शुरू करने के पहले काउंट डाउन होता है. यह सिर्फ नाटकीयता पैदा करने के लिए है. 

सवाल है कि सीधी गिनती क्यों नहीं? सीधे-सीधे बोलने से वास्तविक समय का पता चलता है. जबकि उल्टी संख्या बोलने से बाकी बचे सेकंडों का पता लगता है. वस्तुतः उड़ान के बाद घड़ियाँ सीधी गिनती शुरू कर देती हैं. रॉकेट और उससे जुड़ी प्रणाली के कुछ काम पूर्व निर्धारित समय पर तय होते हैं. वे जैसे-जैसे पूरे होते जाते हैं परीक्षण सफल होता जाता है. हमने अपने मंगल यान कार्यक्रम में देखा कि नवम्बर 2013 में उड़ान के बाद सितम्बर 2014 तक के सारे कार्यक्रम समयबद्ध थे, जो पूरे होते गए.

सूर्य सबसे पहले किस देश में निकलता है?

इस सवाल का जवाब समझना आसान नहीं है, क्योंकि धरती घूमती रहती है. इसलिए सबसे पहले कौन सा इलाका सूर्य के सामने आता है कहना मुश्किल है. बहरहाल मनुष्य ने धरती को अक्षांश, देशांतर के मार्फत विभाजित किया है. साथ ही पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाएं भी तय की हैं. धरती के गोले पर उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक जो काल्पनिक देशांतर रेखाएं हैं, उनमें जो देश सुदूर पूर्व में 180 देशांतर पर पड़ेंगे, वहाँ सबसे पहले सूर्योदय मानना चाहिए.

दुनिया को अलग-अलग टाइम ज़ोन में विभाजित किया है. इस टाइम ज़ोन से तय होता है कि सबसे पहले सूर्योदय किस देश में होता है. सामान्यतः हम मानते हैं कि दुनिया में जापान का मिनामी तोरीशीमा धुर पूर्व में है. इसलिए वहाँ सबसे पहले सूर्योदय मान सकते हैं. दूसरा तरीका यह है कि डेटलाइन को आधार मानें. ग्रीनविच मीन टाइम को यदि हम आधार मानते हैं तो जापान के समय में नौ घंटे जोड़ने होंगे. यानी जब ग्रीनविच मीन टाइम शून्य यानी रात के बारह बजे होंगे तब जापान में सुबह के नौ बजे होंगे. वास्तव में जीएमटी से ठीक बारह घंटे का फर्क फिजी, तुवालू, न्यूजीलैंड और किरिबाती के मानक समय में है, जबकि इन सबकी स्थिति में फर्क है. इस लिहाज से दुनिया का सबसे पूर्व में स्थित क्षेत्र किरिबाती का कैरलिन द्वीप है, जहाँ के सूर्योदय को धरती का पहला सूर्योदय मान सकते हैं.

यूरेनियम होता क्या है?

यूरेनियम चाँदी जैसे सफेद रंग का ऐक्टिनाइड श्रेणी का एक तत्व है. इस श्रेणी में आंतरिक इलेक्ट्रॉनीय परिकक्षा (5 परिकक्षा) के इलेक्ट्रॉन स्थान लेते हैं. प्राकृतिक रूप से यूरेनियम-238, 235 और 234 के रूप में मिलता है. प्रकृति में पाए गए तत्वों में प्लूटोनियम के बाद यूरेनियम का एटॉमिक वेट होता है. इसकी खोज 1789 में मार्टिन हेनरिक क्लाप्रोट नामक वैज्ञानिक ने पिचब्लेंड नामक अयस्क से की. उसने नए तत्व का नाम कुछ वर्ष पहले ज्ञात यूरेनस ग्रह के आधार पर यूरेनियम रखा.

सन 1896 में हेनरी बेक्वरेल ने यूरेनियम में रेडियो एक्टिवता की खोज की. उसके अनुसंधानों से ज्ञात हुआ कि यह गुण यूरेनियम के सब यौगिकों में तथा कुछ अन्य अयस्कों में भी वर्तमान है. इन निरीक्षणों के फलस्वरूप ही पिचब्लेंड अयस्क से रेडियम की ऐतिहासिक खोज संभव हो सकी थी. यूरेनियम धरती की संपूर्ण ऊपरी सतह पर फैला है. अनुमान है कि पृथ्वी की पपड़ी में यूरेनियम की मात्रा लगभग 1014 टन है.

न्यूक्लियर इनर्जी के पहले यूरेनियम के अधिक उपयोग न थे. इसका उपयोग कुछ विशेष प्रकार के तंतुओं में होता था. इसके लवण रेशम को रंगने का कार्य करते हैं. सोडियम डाइयूरेनेट का उपयोग पोर्सलीन के बरतनों को रंगने में हुआ है. परमाणु ऊर्जा प्रयोगों के कारण यूरेनियम अत्यधिक उपयोगी तत्व हो गया है. एक किलोग्राम यूरेनियम-235 से 3000 टन कोयले के बराबर ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है.

प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

2 comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...