Sunday, October 9, 2016

आंख के चश्मे की खोज कब हुई?

आँख के चश्मे या तो नज़र ठीक करने के लिए पहने जाते हैं या फिर धूपधूल या औद्योगिक कार्यों में उड़ती चीजों से आँखों को बचाने के लिए भी इन्हें पहना जाता है। शौकिया फैशन के लिए भी। स्टीरियोस्कोपी जैसे कुछ विशेष उपकरण भी होते हैंजो कलाशिक्षा और अंतरिक्ष अनुसंधान में काम करते हैं। सामान्यतः ज्यादा उम्र के लोगों को पढ़ने और नजदीक देखने के लिए चश्मा लगाने की जरूरत होती है।

सम्भवतः सबसे पहले 13वीं सदी में इटली में नजर के चश्मे पहने गए। पर उसके पहले अरब वैज्ञानिक अल्हाज़न बता चुके थे कि हम इसलिए देख पाते हैंक्योंकि वस्तु से निकला प्रकाश हमारी आँख तक पहुँचता है न कि आँखों से निकला प्रकाश वस्तु तक पहुँचता है। सन 1021 के आसपास लिखी गई उनकी किताब अल-मनाज़िर किसी छवि को बड़ा करके देखने के लिए उत्तल(कॉनवेक्सलेंस के इस्तेमाल का जिक्र था। बारहवीं सदी में इस किताब का अरबी से लैटिन में अनुवाद हुआ। इसके बाद इटली में चश्मे बने।

अंग्रेज वैज्ञानिक रॉबर्ट ग्रोसेटेस्ट की रचना ऑन द रेनबो में बताया गया है कि किस प्रकाश ऑप्टिक्स की मदद से महीन अक्षरों को दूर से पढ़ा जा सकता है। यह रचना 1220 से 1235 के बीच की है। सन 1262 में रोजर बेकन ने वस्तुओं को बड़ा करके दिखाने वाले लेंस के बारे में लिखा। बारहवीं सदी में ही चीन में धूप की चमक से बचने के लिए आँखों के आगे धुंधले क्वार्ट्ज पहनने का चलन शुरू हो गया था। बहरहाल इतना प्रमाण मिलता है कि सबसे पहले सन 1286 में इटली में चश्मा पहना गया। यह स्पष्ट नहीं है कि उसका आविष्कार किसने किया। चौदहवीं सदी की पेंटिंगों में एक या दोनों आँखों के चश्मा धारण किए पात्रों के चित्र मिलते हैं।

डूरंड रेखा कहाँ है?

अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर 2,640 किलोमीटर लम्बी सीमा रेखा को डूरंड रेखा कहते हैं। सन 1893 में ब्रिटिश इंडिया और अफ़ग़ान प्रतिनिधियों के बीच एक सहमति हुई, जिसके अधीन अफ़ग़ानिस्तान को ब्रिटिश भारत से अलग करने के लिए एक रेखा तय की गई। इसका नाम ब्रिटिश इंडिया के तत्कालीन विदेश मंत्री सर मॉर्टिमर डूरंड के नाम पर रखा गया। अफगानिस्तान में इसका विरोध हुआ, क्योंकि इससे अफ़ग़ान कबीले बँट गए। अफगानिस्तान ने इस रेखा को कभी स्वीकार नहीं किया। यह इलाका अब पाकिस्तान के उत्तरी इलाक़ोंसरहदी सूबे और बलूचिस्तान में शामिल है। 1949 में अफ़ग़ानिस्तान की लोया जिरगा ने इस रेखा को अवैध घोषित कर दिया था। डूरंड रेखा अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच अन्तर्राष्ट्रीय सीमारेखा के रूप में नक्शों पर दर्ज है हालांकि अफगानिस्तान का विरोध अब भी है।
  
फिटकरी क्या है?

फिटकरी एक प्रकार का खनिज है जो प्राकृतिक रूप में पत्थर की शक्ल में मिलता है। इस पत्थर को एल्युनाइट कहते हैं। इससे परिष्कृत फिटकरी तैयार की जाती है। नमक की तरह है, पर यह सेंधा नमक की तरह चट्टानों से मिलती है। यह एक रंगहीन क्रिस्टलीय पदार्थ है। इसका रासायनिक नाम है पोटेशियम एल्युमिनियम सल्फेट। संसार को इसका ज्ञान तकरीबन पाँच सौ से ज्यादा वर्षों से है। इसे एलम भी कहते हैं। पोटाश एलम का इस्तेमाल रक्त में थक्का बनाने के लिए किया जाता है। इसीलिए दाढ़ी बनाने के बाद इसे चेहरे पर रगड़ते हैं ताकि छिले-कटे भाग ठीक हो जाएं। इसके कई तरह के औषधीय उपयोग हैं।

मेरी स्टोप्स कौन थीं?

मेरी स्टोप्स अंग्रेज लेखिका, पुरा वनस्पति विज्ञानी और परिवार नियोजन के सिलसिले में स्त्रियों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली महिला थीं। उनका जन्म 15 अक्तूबर 1880 को और निधन 2 अक्तूबर 1958 को हुआ था।  उन्होंने बर्थ कंट्रोल न्यूज़ नाम से न्यूज़ लेटर निकाला था, जिसके मार्फत उन्होंने स्त्रियों को जो सलाह दी उसे लेकर चर्च से उनकी ठन गई। उनके नाम से चलने वाली संस्था मेरी स्टोप्स इंटरनेशनल आज चालीस से ज्यादा देशों में काम कर रही है और इसकी 560 से ज्यादा शाखाएं हैं। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

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