अंग्रेजी का शब्द है मिलेट्स, जिसका सामान्य अर्थ होता है मोटा अनाज। मोटा अनाज माने ज्वार (सोरग़म और पर्ल मिलेट्स), बाजरा, मडुआ, रागी, मक्का, जई, कंगनी, कोदों, सावां, चेना, कुटटू, चौलाई, कुटकी वगैरह। इनके अनेक रूप और अनेक नाम हैं। हिंदी में इन्हें बेझर या मोटा अनाज कहते हैं। गत 18 मार्च को दिल्ली में हुए वैश्विक मिलेट्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें श्रीअन्न या श्रीखाद्य का नाम दिया। भारत के प्रस्ताव और प्रयासों के बाद ही संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को ‘इंटरनेशनल मिलेट इयर’ घोषित किया है।
इनमें रेशे, विटामिन
बी-कॉम्प्लेक्स, अमीनो एसिड, वसीय
अम्ल, विटामिन-ई, आयरन,
मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम,
विटामिन बी-6, व कैरोटिन काफी ज़्यादा मात्रा में पाए
जाते है। ग्लूकोज़ कम होने से इनमें मधुमेह का ख़तरा कम होता है। इसलिए इन फसलों
को सुपर फ़ूड कहते है। ये फसलें कम पानी में अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उगाई जा
सकती हैं तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के परिणाम आसानी से सहन करने की क्षमता
रखती है। इन की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बहुत अधिक होने से उत्पादन लागत बहुत कम होती
है। भारत में, मुख्य रूप से गरीब और सीमांत किसानों
और आदिवासी समुदायों द्वारा शुष्क भूमि में मोटे अनाजों की खेती की जाती है। ये
अनाज शुष्क क्षेत्रों और उच्च तापमान पर अच्छी तरह से बढ़ते हैं; वे खराब मिट्टी, कम नमी और महँगे रासायनिक कृषि इनपुट
की कमी से जूझ रहे लाखों गरीब और सीमांत किसानों के लिए ये वरदान हैं।
सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने कहा, विश्व जब
‘इंटरनेशनल मिलेट ईयर’ मना रहा है, तो भारत इस अभियान की अगुवाई कर रहा
है। ‘ग्लोबल मिलेट्स कॉन्फ्रेंस’ इसी दिशा का एक महत्वपूर्ण कदम है। एफएओ के
अनुसार, 2020 में मोटे अनाजों का वैश्विक उत्पादन 3.0464
करोड़ मीट्रिक टन था और भारत की हिस्सेदारी इसमें 1.249 मीट्रिक टन थी, जो मोटे अनाजों के कुल उत्पादन का 41 प्रतिशत है।
भारतीय सेना ने भी हाल में जवानों के राशन में
श्रीअन्न (मिलेट्स) आटे की फिर से शुरुआत की है। सेना ने करीब पांच दशक पहले गेहूँ
के आटे के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए मोटे अनाज का इस्तेमाल बंद कर दिया था। सेना
ने गत 22 मार्च को जारी बयान में कहा कि यह फैसला सैनिकों को स्थानीय और पारंपरिक
अनाज की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।
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