भारत में 1 जनवरी 2004 के पहले तक मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या से जुड़ा कोई नियम नहीं था। प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्रियों के विवेक पर निर्भर था कि वे कितने सदस्यों को मंत्रिपरिषद में शामिल करते हैं। उपरोक्त तिथि से लागू 91वें संविधान संशोधन के बाद अब मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या, जिसमें प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री भी शामिल हैं, सदन के कुल सदस्यों की संख्या के 15 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती। संविधान के अनुच्छेद 75 (1ए) के अनुसार मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या सदन के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। इसी तरह संविधान के अनुच्छेद 164 (1ए) के अनुसार राज्य में मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या राज्य की विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।
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