चुनाव आयोग ने पहली बार 1977 में इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया से ईवीएम का प्रोटोटाइप बनाने के लिए कहा। 1980 में राजनीतिक दलों को प्रोटोटाइप दिखाया गया और लगभग सभी ने उसे पसंद किया। बीईएल को ईवीएम बनाने का जिम्मा दिया गया और इसका पहला प्रयोगात्मक इस्तेमाल 1982 में केरल के पारावुर विधानसभा चुनाव में हुआ। जन प्रतिनिधित्व कानून-1951 के तहत चुनाव में केवल बैलट पेपर का इस्तेमाल हो सकता था। पारावुर के कुल 84 पोलिंग स्टेशनों में से 50 पर ईवीएम का इस्तेमाल हुआ, पर परिणाम को लेकर विवाद हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने बैलट पेपर से चुनाव कराने का आदेश दिया। फैसले के बाद आयोग ने ईवीएम का इस्तेमाल बंद कर दिया। 1988 में कानून में संशोधन करके ईवीएम को कानूनी बनाया गया। मशीनों का पहला प्रयोगात्मक इस्तेमाल नवंबर 1998 में 16 विधान सभा क्षेत्रों में हुआ। 2004 के लोकसभा चुनाव में पूरी तरह से ईवीएम का इस्तेमाल हुआ। उस चुनाव के बाद यूपीए सरकार बनी। 2009 में भी यूपीए की जीत के बाद भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम का विरोध किया था। अब दूसरे दल कर रहे हैं।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में
6 जुलाई, 2024 को प्रकाशित
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