यह सच है कि आज से चार हजार साल पहले हमारे पूर्वज सरकंडे की कलम को स्याही में डुबाकर लिख रहे थे। इस लिहाज से वह पेन था। सन 1795 में ग्रेफाइट के पाउडर और मिट्टी को मिलाकर सख्त पेंसिल की ईज़ाद फ्रांसीसी रसायन शास्त्री निकोलस याकस कोंतें ने की। सन 1800 के आसपास बाँस में पेंसिल की बत्ती को डालकर पेंसिल बनाई थी। यों पहला फाउंटेन पेन 1883 में बना। पर दूसरे अर्थ में देखें तो पेंसिल सबसे पुरानी है। जब इंसान लिखना नहीं जानता था वह जली हुई लकड़ी के कोयले या चारकोल से गुफाओं में तस्वीरें बनाने लगा था, जो पेंसिल ही थीं।
ज्वालामुखी कब और कैसे फूटते हैं? क्या भारत में
ज्वालामुखी हैं?
ज्वालामुखी क्या होते हैं वे और क्यों सक्रिय
हो जाते हैं, यह समझने के लिए धरती की संरचना को समझना चाहिए। पृथ्वी की सतह से उसके केन्द्र
की कुल दूरी औसतन लगभग 3960 मील है। धरती की बाहरी सतह ठोस है। इस ठोस सतह पर ही समुद्र
हैं। इस सतह के नीचे उच्च तापमान पर पिघला लावा है। बाहरी सतह के हम क्रस्ट या पर्पटी
कहते हैं। यह क्रस्ट पूरी तरह एक साथ जुड़ी नहीं है, बल्कि कई जगह से खंडित है। एक तरह से खौलते
तरल लावा के ऊपर भूमि के खंड तैरते हैं। इन खंडों को प्लेट्स कहते हैं। दुनिया के नक्शे
पर कम से कम सात बड़ी प्लेटें हैं। अंदर के दबाव के कारण इन प्लेटों में टकराव होता
है तो भूकम्प आते हैं और ज्वालामुखी भी सक्रिय होते हैं। ज्वालामुखी धरती पर बने ऐसे
सूराख हैं, जहां से पिघली हुई चट्टान, गरम चट्टानों के टुकड़े, गैस, राख और भाप बाहर
आती है।
भारत के दो सबसे खतरनाक ज्वालामुखी अंडमान
निकोबार द्वीप पर हैं। इनमें से एक बैरन वन है। 2004 में आई सुनामी के दौरान बैरन वन
फट गया था। इस दौरान इसके 500 मीटर ऊंचे क्रेटर से लावा निकलने लगा था। इसी के मिलते
जुलते नाम वाला ज्वालामुखी है बैरन आयलैंड। अंडमान में ही तीसरा बड़ा ज्वालामुखी है
नारकोंडम। जिसे पहले खत्म मान लिया गया था। जून 2005 में इस ज्वालामुखी से कीचड़ और
धुआं निकलता देखा गया था। इससे पहले 100 साल तक इसमें कोई गतिविधि नहीं हुई थी। वैज्ञानिकों
के मुताबिक धरती पर सबसे ज्यादा खतरनाक ज्वालामुखी तंबोरा है। जो इंडोनेशिया में मौजूद
है। हिंद महासागर में सबसे ज्यादा ताकतवर ज्वालामुखी पिंटो दे ला फॉर्नेस है, जो रियूनियन
द्वीप पर है। धरती का सबसे बड़ा ज्वालामुखी मौना लोआ को माना जाता है। जो हवाई द्वीप
में है।
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