Tuesday, November 17, 2015

जाड़ों में स्वेटर या गर्म कपड़े पहनने पर हमें ठंड क्यों नहीं लगती है ?

ऊनी कपड़ों में गर्मी नहीं होती, बल्कि वे हमें सर्दी लगने से रोकते हैं। ऊनी या मोटे कपड़े तापमान के कुचालक होते हैं। यानी बाहर की सर्दी से वे ठंडे नहीं होते। हमारे शरीर की गर्मी हमें गर्म रखती है। यही बात गर्मी पर भी लागू होती है। आपने देखा होगा कि रेगिस्तानी इलाकों के लोग मोटे कपड़े पहनते हैं। इसका कारण यह है कि मोटे कपड़े गर्मी को भीतर आने नहीं देते।

वायुयान से पक्षियों के टकराने के कारण भयंकर दुर्घटना का खतरा होता है। जमीन से कितनी ऊँचाई तक पक्षी मिलते हैं?

वायुसेना के जो विमान दुर्घटना के शिकार होते हैं, उनमें से 9 फीसदी दुर्घटनाओं का कारण पक्षियों से टकराना है। भारत में नागरिक विमानों से भी पक्षियों के टकराने की सालाना औसतन 200 घटनाएं होती हैं। सभी दुर्घटनाओं में विमान गिरते नहीं हैं। अक्सर मामूली नुकसान होता है। मानसून के मौसम में पक्षियों से टकराने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। बड़े विमानों को तो छोटे पक्षियों से सिर्फ कुछ नुकसान होता है लेकिन जिस तेज रफ्तार से लड़ाकू विमान उड़ान भरते हैं। उससे टकराने वाले छोटे पक्षी का आघात काफी जबर्दस्त होता है। आमतौर पर पक्षियों से टकराने की घटनाएं टेकऑफ और लैंडिंग के समय होती है क्योंकि ऊंचाई हासिल करने के बाद विमान जिस ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं वहां पक्षी नहीं होते। इसलिए हवाई अड्डे के चार-पाँच किलोमीटर के दायरे में खतरा ज्यादा होता है, खासतौर से ज़मीन से एक हज़ार फुट की ऊँचाई तक। वायुसेना ने पक्षियों की समस्या से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं जिनमें एवियन रेडार लगाना, झाडियों को साफ करना, माइक्रो लाइट विमानों की मदद से पक्षियों पर निगरानी करना आदि शामिल हैं। एवियन रेडार के जरिए पक्षियों के झुंड पर तीन किमी. दूर से नजर रखी जा सकती है। यह वही दूरी है जो उड़ान भरते और उतरते विमानों के लिए काफी जोखिम भरी होती है। एवियन रेडार की सूचना के आधार पर पायलट को पूर्व सूचना दे कर सतर्क किया जा सकता है। अब हवाई अड्डों पर पक्षियों की आवाजें निकालने वाली मशीनें भी लगाई जा रही हैं। पक्षियों की आवाजों के अध्ययन से पता लगा है कि वे खतरे के मौके पर खास तरह का आवाज़ें निकालते हैं। उन आवाज़ों को हवा में छोड़ने पर पक्षी उस दिशा से विपरीत दिशा में उड़ना शुरू कर देते हैं। 




एक्साइज ड्यूटी क्या है? और यह किन-किन वस्तुओं पर लागू होती है? क्या यह कारीगर और मजदूरों पर लागू होती है?

एक्साइज़ ड्यूटी परोक्ष टैक्स है जो किसी उत्पाद को बनाने वाला सरकार को देता है। अंततः यह टैक्स माल को खरीदने वाले को देना होता है। दुनिया भर के देशों में यह टैक्स लगता है। कारीगरों और मजदूरों पर यह लागू नहीं होता। इसे उत्पाद शुल्क भी कहते हैं। किसी वस्तु की कीमत बढ़ जाने का एक कारण एक्साइज ड्यूटी बढ़ना भी हो सकता है।


डेंगू शब्द कहाँ से आया?
हालांकि डेंगू शब्द का इस्तेमाल काफी होने लगा है, पर इस शब्द का सही उच्चारण डेंगी है। यह स्पष्ट नहीं है कि शब्द कहां से आया। कुछ लोगों का मानना है कि यह शब्द स्वाहीली भाषा के वाक्यांश का-डिंगा पेपो से आया है। यह वाक्यांश बुरी आत्माओं से होने वाली बीमारी के बारे में बताता है। माना जाता है कि स्वाहीली शब्द डिंगा स्पेनी के शब्द डेंगी से बना है। इस शब्द का अर्थ है "सावधान"। वह शब्द एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने के लिए उपयोग किया गया हो सकता है जो डेंगू बुखार के हड्डी के दर्द से पीड़ित हो; वह दर्द उस व्यक्ति को सावधानी के साथ चलने पर मजबूर करता होगा। यह भी संभव है कि स्पेनी शब्द स्वाहीली भाषा से आया हो। कुछ का मानना है कि "डेंगू" नाम वेस्ट इंडीज़ से आया है। वेस्ट इंडीज़ में, डेंगू से पीड़ित लोग डैंडी की तरह तनकर खड़े होने वाले और चलने वाले कहे जाते थे और इसी कारण से बीमारी को भी "डैंडी फीवर" कहा जाता था।


राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

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